(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 846/2000
(जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा परिवाद संख्या- 396/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17-12-1999 के विरूद्ध)
मारूति उद्योग लि0 कारपोरेट आफिस 11th floor, जीवन प्रकाश 25 के०जी० मार्ग न्यू दिल्ली।
.अपीलार्थी
बनाम
1- श्री वी०के खण्डेलवाल पुत्र श्री कृष्ण खण्डेलवाल मैसर्स खण्डेलवाल ब्रदर्स सदर बाजार, झांसी।
2- मैसर्स कवीशा मोटर्स प्रा०लि० एफ-7 आफीसर्स कालोनी, कमला नगर, बायपास रोड, आगरा- यू०पी०
3- मैसर्स ए०बी० मोटर्स अडलजी वायस कम्पाउण्ड नियर इलाहाबाद बैंक झांसी।
प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री अंकित श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी सं०1 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा
प्रत्यर्थी सं० 2 व 3 की ओर से : कोई उपस्थित नहीं ।
दिनांक. 25-05-2022
माननीय सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या– 396 सन् 1999 श्री वी०के खण्डेलवाल बनाम मैसर्स कवीशा मोटर्स प्रा०लि० व अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17-12-1999 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 17-12-1999 के बारे में अपीलार्थी को जानकारी दिनांक 08-03-2000 को हुयी तत्पश्चात उसने प्रत्यर्थी संख्या-2 से सम्पर्क स्थापित किया जिन्होंने उन्हें एकपक्षीय आदेश के बारे में बताया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक झूठा और बनावटी परिवाद प्रस्तुत किया जिसमें यह कहा गया है कि प्रश्नगत मारूति 800 वाहन प्रारम्भ से ही तकनीकी दोष से ग्रसित थी। परिवादी ने यह भी कहा कि उसने इसकी सूचना कई बार मौखिक रूप से दी। परिवादी ने यह भी कहा कि दिनांक 10-08-99 को ड्राइविंग सेफ्ट और लॉक बैलेंस न होने के कारण टूट गया किन्तु इन दोषों के बारे में स्पष्टीकण नहीं दिया गया। परिवादी द्वारा वाहन को बदलने की प्रार्थना की गयी। सम्मन प्राप्त होने पर अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी संख्या-2 को आवश्यक नोटिस दिया। इसके पश्चात दिनांक 29-11-99 को कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की गयी और प्रश्गनत निर्णय के द्वारा विद्वान जिला आयोग ने प्रश्नगत वाहन को बदलने के लिए आदेश पारित किया। जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्गनत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है और नैसर्गिग न्याय के विरूद्ध है। एक बार यह वाहन दुर्घटनाग्रस्त भी हुआ था जिसका संज्ञान नहीं लिया गया। इस वाहन की वारण्टी भी समाप्त हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने योग्य है। अत: माननीय राज्य आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अंकित श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी सं०1 की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री वी०पी० शर्मा को सुना और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी संख्या– 2 व 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
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हमने पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों एवं विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।
अपीलार्थी ने अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने के लिए एक प्रार्थना पत्र शपथ-पत्र के साथ प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी ने यह कहा है कि उसे प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश की जानकारी दिनांक 08-03-2000 को हुयी तब उसने पत्रावली का अवलोकन किया और अपील प्रस्तुत की। वर्तमान अपील दिनांक 07-04-2000 को प्रस्तुत की गयी थी।
हमने प्रश्गनत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में लिखा है कि विपक्षी ने वाद चलने में कोई रूचि नहीं दिखायी। अत: सुनवाई एकपक्षीय रूप से की गयी। वर्तमान अपील की धारा 2 (g) में अपीलार्थी ने लिखा है कि सम्मन दिनांक 27-11-99 में जारी हुआ और सम्मन प्राप्त होने पर अपीलार्थी मारूति उद्योग लि0 ने प्रत्यर्थी संख्या-2 कवीशा मोटर्स प्रा०लि० लि0 आगरा को निर्देश दिया कि वह इस मामले में अपीलार्थी की ओर से उपस्थित हो जाएं और एक अधिवक्ता नियुक्त कर लें। इससे यह स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी को इस परिवाद की पूरी जानकारी थी और परिवादी का एक सम्मन भी उसे प्राप्त हुआ था। उसके द्वारा प्रत्यर्थी संख्या-2 को नोटिस भी दी गयी किन्तु उसके बाद भी परिवाद में ये लोग उपस्थित नहीं हुए और परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की गयी जो सर्वथा उचित थी। वर्तमान अपील दिनांक 07-04-2000 को प्रस्तुत की गयी जबकि प्रश्नगत निर्णय दिनांक 17-12-99 का है। स्पष्ट है कि प्रस्तुत अपील लगभग 03 माह विलम्ब से प्रस्तुत की गयी है। अपीलार्थी की स्वयं स्वीकारोक्ति से यह स्पष्ट होता है कि उसे परिवाद की पूरी जानकारी थी।
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उपभोक्ता आयोग में उपभोक्ताओं को यथाशीघ्र न्याय देना होता है। इस सम्बन्ध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक विशिष्ट अधिनियम है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को त्वरित सेवा प्रदान करना है। यहॉं पर अगर लिखित कथन भी निश्चित समय अर्थात 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत नहीं किया जाता है या न्यायालय 15 दिन का अतिरिक्त समय नहीं देता है तब लिखित कथन विलम्ब से प्रस्तुत करने पर स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी कारण से इस अधिनियम का उद्देश्य व्यापक है। अत: विलम्ब क्षमा नहीं किया जाना चाहिए।
विलम्ब के सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक सिद्धांतो को भी देखना आवश्यक है।
In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that "condonation cannot be a matter of routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation". In the instant matter, the appellants have not given any explanation of delay for each and every day.
In U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandey, IV (2009) CPJ 217 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation." In the instant matter, the cause shown by the appellants has been vehemently denied by the respondent on cogent reasons.
In Anshul Agarwal Vs. New Okhla Industrial Development Authority, IV (2011) CPJ 62 (SC), it was observed by the Hon'ble Apex Court that "it is also apposite to observe that while deciding an
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application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that special period of limitation has been prescribed in the Consumer Protection Act for filing appeals and revisions in consumer matter and the objection of expeditious adjudication of consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition against the orders of Consumer Fora."
इस प्रकार इस मामले में हम इस निष्कर्ष पर पहॅुचते हैं कि वर्तमान मामले में विलम्ब को क्षमा किये जाने हेतु जो स्पष्टीकरण अपीलार्थी द्वारा दिया गया है वह युक्तियुक्त नहीं है। विलम्ब का कोई सन्तोषजनक और युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देने में अपीलार्थी असफल रहे हैं। अत: प्रस्तुत अपील में हुए विलम्ब में छूट नहीं प्रदान की जा सकती है क्योंकि इसका त्वरित निस्तारण होता है। वर्तमान अपील कालबाधा के आधार पर निरस्त होने योग्य है।
वर्तमान अपील, कालबाधित होने के कारण निरस्त की जाती है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।.
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज दिनांक- 25-05-2022 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0
कोर्ट-2