(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1384/2008
(जिला आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या-69/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.6.2008 के विरूद्ध)
दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लि0, रजिस्टर्ड हेड आफिस ओरियण्टल हाऊस, ए-25/27, असफ अली रोड, नई दिल्ली एंड रीजनल आफिस स्थित तृतीय तल, जीवन भवन, 43 हजरतगंज लखनऊ, डिवीजनल आफिस स्थित वाराणसी एवं ब्रांच आफिस स्थित विजय नगर मालधईया, वाराणसी व अन्य द्वारा मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 व 2
बनाम
1. श्री रमेश कुमार गुप्ता पुत्र स्व0 श्री मुन्नी लाल गुप्ता, निवासी मकान नं0-सी-6/62 ए, मोहल्ला बाग बरियल सिंह हलका, चेतगंज, वाराणसी, (यू.पी.)।
2. काशी ग्रामीण बैंक, द्वारा ब्रांच मैनेजर सेन पुरा ब्रांच, वाराणसी (यू.पी.)।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-3
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी.पी. दुबे के कनिष्ठ
सहायक श्री आर.सी. मिश्रा।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री मानवेन्द्र प्रताप।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 23.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-69/2003, रमेश कुमार गुप्ता बनाम दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.6.2008 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी सं0-1 एवं 2 को आदेशित किया है कि अंकन 88,000/-रू0 09 प्रतिशत ब्याज के साथ परिवादी को अदा किया जाए।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने दुकान संख्या बी-17/28 विशाल जनरल स्टोर के नाम से संचालित की, जिस पर अंकन 1,25,000/-रू0 का ऋण विपक्षी सं0-3 से लिया गया तथा विपक्षी सं0-3 ने अपने ऋण की सुरक्षा के लिए विपक्षी सं0-1 एवं 2 से बीमा कराया। दिनांक 4.12.2002 को दुकान में आग लग गई, जिसकी सूचना अग्निशमन विभाग को दी गई और आग पर काबू पाया गया। दुकान में अंकन 88,000/-रू0 का सामान रखा था, जिसकी सूचना विपक्षी सं0-3 को दी गई और विपक्षी सं0-3 द्वारा बीमा कंपनी को तत्काल सूचना नहीं दी गई, इसलिए बीमा कंपनी द्वारा क्लेम नकार दिया गया।
3. बीमा कंपनी का कथन है कि दिनांक 17.12.2002 / 18.12.2002 को दुकान में अग्नि के कारण हुई क्षति की सूचना प्राप्त हुई तब सर्वेयर नियुक्त किया गया। सर्वेयर को दुकान में जला हुआ कोई सामान नहीं मिला। जले हुए सामान का कोई निरीक्षण सर्वेयर से नहीं कराया गया और न ही क्रय विक्रय का खाता बही का निरीक्षण कराया गया। इसी आधार पर क्लेम निरस्त किया गया है।
4. विपक्षी सं0-3 का कथन है कि अग्निशमन अधिकारी द्वारा क्षति का आंकलन किया गया है। विपक्षी सं0-1 को समयावधि के अंतर्गत सूचना दी गई थी, उनके स्तर से कोई लापरवाही नहीं की गई है।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया कि परिवादी द्वारा सूचना देने में कोई विलम्ब नहीं किया गया है। यदि कोई विलम्ब हुआ है तो वह विपक्षी सं0-3 के स्तर से हुआ है, परन्तु इस विलम्ब के आधार पर बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति से इंकार नहीं कर सकती। तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के सहायक अधिवक्ता का यह तर्क है कि अग्निशमन विभाग की रिपोर्ट को अनावश्यक रूप से महत्व दिया गया है, जिसमें अग्नि का कारण शार्ट सर्किट बताया गया है, जबकि पोल से लेकर शटर तक के तार क्षतिग्रस्त पाए गए थे तथा शटर के अन्दर के इलेक्ट्रिक तारों में कोई खराबी नहीं पायी गयी थी। क्षति का कोई आंकलन नहीं किया गया, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
7. दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
8. इस अपील के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमित परिसर में अग्निकाण्ड की कोई घटना घटित हुई ? द्वितीय विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि अग्निकाण्ड में परिवादी को किस राशि का नुकसान हुआ ?
9. उपरोक्त दोनों विनिश्चायक बिन्दु एक-दूसरे के पूरक हैं। अत: दोनों विनिश्चायक बिन्दुओं पर एक ही निष्कर्ष दिया जा रहा है।
10. विद्वान जिला आयोग ने अग्निशमन विभाग की रिपोर्ट को विचार में लिया गया है, उनके द्वारा मौके पर जाकर आग बुझाई गई और करीब अंकन 50,000/-रू0 का नुकसान हुआ। सर्वेयर को भी पड़ोसियों द्वारा यह बताया गया कि दुकान में आग लगने की घटना हुई है। अग्निशमन अधिकारी वाराणसी के शपथ पत्र पर भी विचार किया गया, जिसमें आग लगने की घटना को सत्य पाया गया तथा यह निष्कर्ष दिया गया कि चूंकि आग लगने की घटना साबित है, इसलिए तरीकों पर विस्तृत विवेचना की आवश्यकता नहीं है। इस पीठ का भी यह मत है कि चूंकि आग लगने की घटना साबित है, इसलिए उसके तरीको में गहराई से निष्कर्ष देने की आवश्यकता नहीं है।
11. क्षति के तथ्य को साबित करने के लिए परिवादी की ओर से विद्वान जिला आयोग के समक्ष कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई। चूंकि क्रय और विक्रय का कोई सबूत परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है, इसलिए परिवादी के कथन के अनुसार अंकन 88,000/-रू0 की क्षति के आंकलन की कल्पना की गई है कि अंकन 88,000/-रू0 का सामान मौजूद रहा होगा, जबकि वास्तविक क्षति को साबित करने का दायित्व परिवादी पर था और चूंकि परिवादी द्वारा इस संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है और क्रय विक्रय का कोई विवरण नहीं दिया गया है, इसलिए क्षति का आंकलन किया जाना संभव नहीं है। अग्निशमन विभाग की रिपोर्ट क्षति के आंकलन के संबंध में विचार में नहीं ली जा सकती। यह रिपोर्ट केवल उस उद्देश्य के लिए की तैयार की जाती है कि अग्निशमन विभाग द्वारा अपनी कार्य गुजारी का लेखा-जोखा तैयार किया जा सके। अग्निशमन विभाग के समक्ष वास्तविक क्षति को आंकलित करने का कोई अधिकार नहीं होता और न ही उनके द्वारा वास्तविक क्षति का आंकलन किया जाना संभव है, इसलिए इस रिपोर्ट के आधार पर क्षतिपूर्ति प्रदान करने का आदेश विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता। चूंकि क्षति का आंकलन किया जाना संभव नहीं है, इसलिए इस स्थिति में परिवाद स्वीकार करना उचित नहीं था, क्योंकि मात्र कल्पना और संभावना के आधार पर क्षतिपूर्ति निर्धारित नहीं की जा सकती। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
12. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.06.2008 अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2