(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1588/2012
U.P. Power Corporation Ltd. Vidyut Vitran Khand-II, Magarwara Unnao through Executive Engineer, Unnao and Two Others.
………Appellants
Versus
Taufeeq Ali (deceased) son of Murtaza substituted by
1/1 Hasnain
1/2 Shahnoor
1/3 Taukir
1/4 Tausif
1/5 Smt. Qumar Jahan wife of Taufiq Ali All Resident of Mohalla Moti Nagar, (Garhi) Nagar Panchayat, Fatehpur Chaurasi, Pargana & Tehsil & District Unnao.
……….Respondents
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 26.05.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 278/2007 तौफीक अली (मृतक) हसनैन व चार अन्य (विधिक उत्तराधिकारीगण) बनाम अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 11.01.2012 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद सं0- 278/2007 एतद्द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा बिल संख्या- 1230451 दिनांक 27.08.2007 मु0 रूपये 13,645/- एतदद्वारा निरस्त किया जाता है।
परिवादी विपक्षी सं0- 2 से 15,000/-रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में पाने का अधिकारी होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी व मुहल्ले के अन्य व्यक्तियों ने अपीलार्थी/विपक्षी से विद्युत के सम्बन्ध में बातचीत किया तो अपीलार्थी/विपक्षी ने बताया कि पांच व्यक्तियों द्वारा विद्युत कनेक्शन हेतु पैसा जमा कर दिया जावे तो अपीलार्थी/विपक्षी खम्भे गड़वा करके व्यवस्था करा सकता है। उक्त के सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी ने कस्बा में कैम्प लगाया तब प्रत्यर्थी/परिवादी व अन्य व्यक्तियों ने कनेक्शन हेतु दि0 28.05.1998 को 811/-रू0 रसीद सं0- 42/480094 के माध्यम से जमा किया था तथा प्रत्यर्थी/परिवादी को जो बिल धनराशि 13,645/-रू0 का प्राप्त हुआ उसकी बिल सं0- 1230452 दि0 27.08.2007 है तथा बुक सं0- 2101, कनेक्शन सं0- 043822 तथा खण्ड संकेत सं0- 382 एवं खण्ड का नाम ई0डी0डी0 द्वितीय उन्नाव है। प्रत्यर्थी/परिवादी उपरोक्त बिल प्राप्त होने के पश्चात अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय गया और कहा कि कनेक्शन उपलब्ध नहीं कराया गया तथा न ही खम्भे गड़वाकर विद्युत लाइन ही खींची गई एवं फर्जी व जाली बिल बगैर विद्युत उपभोग के कैसे भेज दिया गया। इस पर अपीलार्थी/विपक्षी ने न तो बिल को निरस्त किया और न ही कोई उचित कार्यवाही करने का आश्वासन ही दिया, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
4. अपीलार्थी/विपक्षी यू0पी0पी0सी0एल0 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा इरादतन विपक्षी मुजीब को गलत नाम व पते से पक्षकार बनाया गया है। वादी द्वारा उ0प्र0पा0का0 व मध्यांचल वि0वि0नि0 को पक्षकार नहीं बनाया गया है। सदैव नियमानुसार बिल भेजे जाने के बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बिल अदा नहीं किया गया और न ही न्यूनतम चार्जेज के बिल अदा किए गए। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आवश्यक तथ्य छिपाकर वाद दायर किया गया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी स्वच्छ हाथों से न्यायालय के समक्ष नहीं आया है, अतएव दावा खारिज होने योग्य है।
5. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद मुख्य रूप से इस आधार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा एड्वोकेट कमिश्नर के माध्यम से मौके का निरीक्षण कराया गया था। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अतिरिक्त अन्य लोगों के मकान भी एड्वोकेट कमिश्नर देखे कोई भी विद्युत कनेक्शन किसी पोल से जुड़ा नहीं पाया गया। एड्वोकेट कमिश्नर ने यह भी लिखा कि ट्रांसफार्मर रखकर खम्भों में नई केबिल डाली गई है, किन्तु विद्युत प्रवाह नहीं हो रहा है। जिला उपभोक्ता आयोग ने एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को देखते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कभी भी विद्युत की आपूर्ति नहीं की गई है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त करते हुए प्रश्नगत निर्णय व आदेश पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय में सम्बन्धित बिल की धनराशि निरस्त किए जाने एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 15,000/- क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाये जाने के आदेश पारित किए गए जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 1998 में विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, किन्तु वर्ष 2007 में यह परिवाद योजित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न ही कभी विद्युत कनेक्शन के लिए बल दिया गया और केवल विद्युत बकाया की मांग होने पर उससे बचने के लिए यह परिवाद लाया गया है। यह सम्भव नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2007 तक बिना विद्युत कनेक्शन के निर्वाह किया हो। वास्तविकता यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन स्वीकृत करके कनेक्शन चालू किया गया था, चूँकि ग्रामीण एरिया में केवल केबिल के माध्यम से कनेक्शन दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के कारण मीटर स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं की गई थी। केवल विद्युत उपभोग के लिए अनुमोदित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से मांगी गई थी जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी देना नहीं चाहता है। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा पंकज त्रिपाठी नामक अधिवक्ता के समक्ष कार्यवाही की गई थी, किन्तु पंकज त्रिपाठी विभाग के अधिवक्ता नहीं हैं। इस प्रकार एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट एकपक्षीय थी जो प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में ली गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शन होने के कारण चूँकि कोई मीटर स्थापित नहीं था। इसलिए एड्वोकेट कमिश्नर के समक्ष उक्त केबिल हटा लिए गए थे, जिनकी फोटो जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है। अत: एड्वोकेट कमिश्नर रिपोर्ट विश्वास योग्य नहीं है और इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
7. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा कनेक्शन न होने के बावजूद विद्युत बकाया धनराशि की मांग की गई है जब कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ग्रामीण क्षेत्र के अनुसार बिना मीटर का कनेक्शन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिया गया था एवं इसी कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन संख्या भी एलाट हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत बकाया हेतु बिल दिए गए थे। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट अवश्य एकपक्षीय है एवं इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन एवं तर्क उचित प्रतीत होता है कि एड्वोकेट कमिश्नर के निरीक्षण के समय उक्त अस्थायी कनेक्शन की केबिल उतार करके पृथक कर दिए गए हों। दूसरी ओर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा बिना किसी कारण के विद्युत बकाया बिल कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए भेजे जाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है। धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा ली जाती है कि शासकीय एवं पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित हुए है। यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम इस संक्षिप्त विचारण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्णत: लागू नहीं होता है, किन्तु सैद्धांतिक दृष्टि से यह मानना उचित है कि विद्युत विभाग बिना किसी कारण के कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए विद्युत उपभोग का बिल बिना किसी कारण के प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर देगा, जो वास्तव में सरकारी कोष में जमा किया जाना है।
9. इसके अतिरिक्त प्रस्तुत मामले में मूल रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन न होने के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा धनराशि मांगे जाने का कथन किया गया है। वास्तव में बिल के रूप में कोई विद्युत बकाया की धनराशि देय है अथवा नहीं। यह सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने से भिन्न प्रतीत होता है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन बनाम अनीस अहमद प्रकाशित III(2013) पृष्ठ 1 (S.C.) में पारित निर्णय अवधारित किया गया है कि :-
“In view of the observation made above, we hold that:
(i) In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of “service” as defined under Section 2(1)(O) or “complaint” as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.”
10. उक्त निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को उन मामलों में पूरी शक्ति नहीं प्रदान की गई है जो धारा 2(1)(O) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ‘’सेवा’’ की परिभाषा में नहीं आते हों तथा जो धारा 2(1)(C) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद की श्रेणी में नहीं आते हैं।
11. प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं को कनेक्शनधारक होने से इंकार किया है एवं इसके बावजूद अवैध धनराशि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उ0प्र0 पावर कार्पोरशन द्वारा मांगना दर्शाया गया है। अवश्य ही यह ‘’मॉंग’’ सेवा की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवाद में यह तय होना है कि यह धनराशि की मॉंग उचित है या नहीं। अत: इस धनराशि को रोकने एवं निरस्त किए जाने का क्षेत्राधिकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को नहीं है। इस कारण भी जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3
(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1214/2012
U.P. Power Corporation Ltd. Through Prabandh Nideshak 14, Ashok Marg, Shakti Bhawan, Lucknow and Two Others.
………Appellants
Versus
Mathura Prasad Son of Sri Kallo Resident of Baunamau, Pargana, Tehsil & District Unnao.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 26.05.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 91/2010 मथुरा प्रसाद बनाम उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.12.2011 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद सं0- 91/2010 एतद्द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा बिल संख्या- बी097255 दिनांक 02.01.2010 मु0 रूपये 25,088/- एतदद्वारा निरस्त किया जाता है। परिवादी मथुरा प्रसाद विपक्षीगण से 10,000/-रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में पाने का अधिकारी होगा तथा 1500/-रूपये की राशि परिवाद व्यय के रूप में पाने का अधिकारी होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 1998 में आवश्यक आवेदन किया था एवं आवश्यक पैसा जमा किया था, किन्तु गांव के बाहर खम्भे लगने में काफी समय लग गया और प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को यह भ्रम था कि उसे कनेक्शन सेंशन नहीं हुआ है, इसलिए कनेक्शन नहीं दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार वाद के चार-पांच वर्ष पूर्व कुछ खम्भों में लाईन जोड़ी गई थी, परन्तु किसी को भी खम्भे से कनेक्शन नहीं दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी को दि0 02.01.2010 को एक बिल कनेक्शन सं0- 067357/3026/382 दर्शाते हुए मु0 25,088/-रू0 15 माह का विद्युत देयक का बिल प्रेषित किया गया एवं उस अवधि का बिल विद्युत देयक बकाया दिखाया गया। उक्त बिल ग्रामीण प्रभार 110/-रू0 प्रति माह के हिसाब से सम्भव नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसका विरोध किया, किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई जिससे व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. अपीलार्थी/विपक्षी यू0पी0पी0सी0एल0 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें इस तथ्य का विरोध किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन न दिया गया हो प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन झूठा है कि उसे विद्युत कनेक्शन नहीं दिया गया और बिना किसी कारण विद्युत उपभोग का बकाया दिखाकर बकाये की वसूली की जा रही हो। प्रत्यर्थी/परिवादी को नियमानुसार बिल भेजे जाने के बावजूद उसने कभी बिल अदा नहीं किए न ही न्यूनतम चार्जेज अदा किए। प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन दिया गया था। जानबूझकर बिल अदायगी न किए जाने की मंशा से यह वाद योजित किया गया है।
5. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद मुख्य रूप से इस आधार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा एड्वोकेट कमिश्नर के माध्यम से मौके का निरीक्षण कराया गया था। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अतिरिक्त अन्य लोगों के मकान भी एड्वोकेट कमिश्नर देखे कोई भी विद्युत कनेक्शन किसी पोल से जुड़ा नहीं पाया गया। एड्वोकेट कमिश्नर ने यह भी लिखा कि ट्रांसफार्मर रखकर खम्भों में नई केबिल डाली गई है, किन्तु विद्युत प्रवाह नहीं हो रहा है। जिला उपभोक्ता आयोग ने एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को देखते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कभी भी विद्युत की आपूर्ति नहीं की गई है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त करते हुए प्रश्नगत निर्णय व आदेश पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय में सम्बन्धित बिल की धनराशि निरस्त किए जाने एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 10,000/- की क्षतिपूर्ति के रूप में तथा परिवाद व्यय के रूप में 1500/-रू0 दिलाये जाने के आदेश पारित किए गए जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 1998 में विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, किन्तु वर्ष 2010 में यह परिवाद योजित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न ही कभी विद्युत कनेक्शन के लिए बल दिया गया और केवल विद्युत बकाया की मांग होने पर उससे बचने के लिए यह परिवाद लाया गया है। यह सम्भव नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2012 तक बिना विद्युत कनेक्शन के निर्वाह किया हो। वास्तविकता यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन स्वीकृत करके कनेक्शन चालू किया गया था, चूँकि ग्रामीण एरिया में केवल केबिल के माध्यम से कनेक्शन दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के कारण मीटर स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं की गई थी। केवल विद्युत उपभोग के लिए अनुमोदित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से मांगी गई थी जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी देना नहीं चाहता है। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा पंकज त्रिपाठी नामक अधिवक्ता के समक्ष कार्यवाही की गई थी, किन्तु पंकज त्रिपाठी विभाग के अधिवक्ता नहीं हैं। इस प्रकार एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट एकपक्षीय थी जो प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में ली गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शन होने के कारण चूँकि कोई मीटर स्थापित नहीं था। इसलिए एड्वोकेट कमिश्नर के समक्ष उक्त केबिल हटा लिए गए थे, जिनकी फोटो जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है। अत: एड्वोकेट कमिश्नर रिपोर्ट विश्वास योग्य नहीं है और इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
7. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा कनेक्शन न होने के बावजूद विद्युत बकाया धनराशि की मांग की गई है जब कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ग्रामीण क्षेत्र के अनुसार बिना मीटर का कनेक्शन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिया गया था एवं इसी कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन संख्या भी एलाट हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत बकाया हेतु बिल दिए गए थे। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट अवश्य एकपक्षीय है एवं इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन एवं तर्क उचित प्रतीत होता है कि एड्वोकेट कमिश्नर के निरीक्षण के समय उक्त अस्थायी कनेक्शन की केबिल उतार करके पृथक कर दिए गए हों। दूसरी ओर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा बिना किसी कारण के विद्युत बकाया बिल कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए भेजे जाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है। धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा ली जाती है कि शासकीय एवं पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित हुए है। यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम इस संक्षिप्त विचारण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्णत: लागू नहीं होता है, किन्तु सैद्धांतिक दृष्टि से यह मानना उचित है कि विद्युत विभाग बिना किसी कारण के कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए विद्युत उपभोग का बिल बिना किसी कारण के प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर देगा, जो वास्तव में सरकारी कोष में जमा किया जाना है।
9. इसके अतिरिक्त प्रस्तुत मामले में मूल रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन न होने के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा धनराशि मांगे जाने का कथन किया गया है। वास्तव में बिल के रूप में कोई विद्युत बकाया की धनराशि देय है अथवा नहीं। यह सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने से भिन्न प्रतीत होता है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन बनाम अनीस अहमद प्रकाशित III(2013) पृष्ठ 1 (S.C.) में पारित निर्णय अवधारित किया गया है कि :-
“In view of the observation made above, we hold that:
(i) In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of “service” as defined under Section 2(1)(O) or “complaint” as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.”
10. उक्त निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को उन मामलों में पूरी शक्ति नहीं प्रदान की गई है जो धारा 2(1)(O) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ‘’सेवा’’ की परिभाषा में नहीं आते हों तथा जो धारा 2(1)(c) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ‘’परिवाद’’ की श्रेणी में नहीं आते हैं।
11. प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं को कनेक्शनधारक होने से इंकार किया है एवं इसके बावजूद अवैध धनराशि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उ0प्र0 पावर कार्पोरशन द्वारा मांगना दर्शाया गया है। अवश्य ही यह मांग सेवा की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवाद में यह तय होना है कि यह धनराशि की मांग उचित है या नहीं। अत: इस धनराशि को रोकने एवं निरस्त किए जाने का क्षेत्राधिकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को नहीं है। इस कारण भी जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3
(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1216/2012
U.P. Power Corporation Ltd. Through Prabandh Nideshak 14, Ashok Marg, Shakti Bhawan, Lucknow and Two Others.
………Appellants
Versus
Sri Ram Son of Sri Babu Resident of Baunamau, Pargana, Tehsil & District Unnao.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 26.05.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 102/2010 श्रीराम बनाम उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.12.2011 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद सं0- 102/2010 एतद्द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा बिल संख्या- बी095694 दिनांक 02.01.2010 मु0 रूपये 27,295/- एतदद्वारा निरस्त किया जाता है। परिवादी श्रीराम विपक्षीगण से 10,000/-रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में व 1500/-रूपये की राशि परिवाद व्यय के रूप में पाने का अधिकारी होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 1998 में आवश्यक आवेदन किया था एवं आवश्यक पैसा जमा किया था, किन्तु गांव के बाहर खम्भे लगने में काफी समय लग गया और प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को यह भ्रम था कि उसे कनेक्शन सेंशन नहीं हुआ है, इसलिए कनेक्शन नहीं दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार वाद के चार-पांच वर्ष पूर्व कुछ खम्भों में लाईन जोड़ी गई थी, परन्तु किसी को भी खम्भे से कनेक्शन नहीं दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी को दि0 02.01.2010 को एक बिल कनेक्शन सं0- 066638/3026/382 दर्शाते हुए मु0 27,295/-रू0 15 माह का विद्युत देयक का बिल प्रेषित किया गया एवं उस अवधि का बिल विद्युत देयक बकाया दिखाया गया। उक्त बिल ग्रामीण प्रभार 110/-रू0 प्रति माह के हिसाब से सम्भव नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसका विरोध किया, किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई जिससे व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. अपीलार्थी/विपक्षी यू0पी0पी0सी0एल0 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें इस तथ्य का विरोध किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन न दिया गया हो प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन झूठा है कि उसे विद्युत कनेक्शन नहीं दिया गया और बिना किसी कारण विद्युत उपभोग का बकाया दिखाकर बकाये की वसूली की जा रही हो। प्रत्यर्थी/परिवादी को नियमानुसार बिल भेजे जाने के बावजूद उसने कभी बिल अदा नहीं किए न ही न्यूनतम चार्जेज अदा किए। प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन दिया गया था। जानबूझकर बिल अदायगी न किए जाने की मंशा से यह वाद योजित किया गया है।
5. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद मुख्य रूप से इस आधार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा एड्वोकेट कमिश्नर के माध्यम से मौके का निरीक्षण कराया गया था। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अतिरिक्त अन्य लोगों के मकान भी एड्वोकेट कमिश्नर देखे कोई भी विद्युत कनेक्शन किसी पोल से जुड़ा नहीं पाया गया। एड्वोकेट कमिश्नर ने यह भी लिखा कि ट्रांसफार्मर रखकर खम्भों में नई केबिल डाली गई है, किन्तु विद्युत प्रवाह नहीं हो रहा है। जिला उपभोक्ता आयोग ने एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को देखते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कभी भी विद्युत की आपूर्ति नहीं की गई है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त करते हुए प्रश्नगत निर्णय व आदेश पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय में सम्बन्धित बिल की धनराशि निरस्त किए जाने एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 10,000/- की क्षतिपूर्ति के रूप में तथा परिवाद व्यय के रूप में 1500/-रू0 दिलाये जाने के आदेश पारित किए गए जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 1998 में विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, किन्तु वर्ष 2010 में यह परिवाद योजित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न ही कभी विद्युत कनेक्शन के लिए बल दिया गया और केवल विद्युत बकाया की मांग होने पर उससे बचने के लिए यह परिवाद लाया गया है। यह सम्भव नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2012 तक बिना विद्युत कनेक्शन के निर्वाह किया हो। वास्तविकता यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन स्वीकृत करके कनेक्शन चालू किया गया था, चूँकि ग्रामीण एरिया में केवल केबिल के माध्यम से कनेक्शन दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के कारण मीटर स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं की गई थी। केवल विद्युत उपभोग के लिए अनुमोदित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से मांगी गई थी जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी देना नहीं चाहता है। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा पंकज त्रिपाठी नामक अधिवक्ता के समक्ष कार्यवाही की गई थी, किन्तु पंकज त्रिपाठी विभाग के अधिवक्ता नहीं हैं। इस प्रकार एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट एकपक्षीय थी जो प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में ली गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शन होने के कारण चूँकि कोई मीटर स्थापित नहीं था। इसलिए एड्वोकेट कमिश्नर के समक्ष उक्त केबिल हटा लिए गए थे, जिनकी फोटो जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है। अत: एड्वोकेट कमिश्नर रिपोर्ट विश्वास योग्य नहीं है और इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
7. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा कनेक्शन न होने के बावजूद विद्युत बकाया धनराशि की मांग की गई है जब कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ग्रामीण क्षेत्र के अनुसार बिना मीटर का कनेक्शन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिया गया था एवं इसी कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन संख्या भी एलाट हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत बकाया हेतु बिल दिए गए थे। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट अवश्य एकपक्षीय है एवं इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन एवं तर्क उचित प्रतीत होता है कि एड्वोकेट कमिश्नर के निरीक्षण के समय उक्त अस्थायी कनेक्शन की केबिल उतार करके पृथक कर दिए गए हों। दूसरी ओर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा बिना किसी कारण के विद्युत बकाया बिल कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए भेजे जाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है। धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा ली जाती है कि शासकीय एवं पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित हुए है। यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम इस संक्षिप्त विचारण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्णत: लागू नहीं होता है, किन्तु सैद्धांतिक दृष्टि से यह मानना उचित है कि विद्युत विभाग बिना किसी कारण के कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए विद्युत उपभोग का बिल बिना किसी कारण के प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर देगा, जो वास्तव में सरकारी कोष में जमा किया जाना है।
9. इसके अतिरिक्त प्रस्तुत मामले में मूल रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन न होने के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा धनराशि मांगे जाने का कथन किया गया है। वास्तव में बिल के रूप में कोई विद्युत बकाया की धनराशि देय है अथवा नहीं। यह सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने से भिन्न प्रतीत होता है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन बनाम अनीस अहमद प्रकाशित III(2013) पृष्ठ 1 (S.C.) में पारित निर्णय अवधारित किया गया है कि :-
“In view of the observation made above, we hold that:
(i) In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of “service” as defined under Section 2(1)(O) or “complaint” as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.”
10. उक्त निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को उन मामलों में पूरी शक्ति नहीं प्रदान की गई है जो धारा 2(1)(O) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सेवा की परिभाषा में नहीं आते हों तथा जो धारा 2(1)(c) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद की श्रेणी में नहीं आते हैं।
11. प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं को कनेक्शनधारक होने से इंकार किया है एवं इसके बावजूद अवैध धनराशि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उ0प्र0 पावर कार्पोरशन द्वारा मांगना दर्शाया गया है। अवश्य ही यह ‘’मांग’’ सेवा की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवाद में यह तय होना है कि यह धनराशि की मांग उचित है या नहीं। अत: इस धनराशि को रोकने एवं निरस्त किए जाने का क्षेत्राधिकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को नहीं है। इस कारण भी जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3
(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1215/2012
U.P. Power Corporation Ltd. Through Prabandh Nideshak 14, Ashok Marg, Shakti Bhawan, Lucknow and Two Others.
………Appellants
Versus
Shiv Prakash Son of Sri Shiv Ram Resident of Baunamau, Pargana, Tehsil & District Unnao.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 26.05.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 103/2010 शिव प्रकाश बनाम उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.12.2011 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद सं0- 103/2010 एतद्द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा बिल संख्या- बी095139 दिनांक 02.01.2010 मु0 रूपये 12,651/- एतदद्वारा निरस्त किया जाता है। परिवादी शिव प्रकाश विपक्षीगण से 10,000/-रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में व 1500/-रूपये की राशि परिवाद व्यय के रूप में पाने का अधिकारी होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 1998 में आवश्यक आवेदन किया था एवं आवश्यक पैसा जमा किया था, किन्तु गांव के बाहर खम्भे लगने में काफी समय लग गया और प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को यह भ्रम था कि उसे कनेक्शन सेंशन नहीं हुआ है, इसलिए कनेक्शन नहीं दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार वाद के चार-पांच वर्ष पूर्व कुछ खम्भों में लाईन जोड़ी गई थी, परन्तु किसी को भी खम्भे से कनेक्शन नहीं दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी को दि0 02.01.2010 को एक बिल कनेक्शन सं0- 063670/3026/382 दर्शाते हुए मु0 12,651/-रू0 53 माह का विद्युत देयक का बिल प्रेषित किया गया एवं उस अवधि का बिल विद्युत देयक बकाया दिखाया गया। उक्त बिल ग्रामीण प्रभार 110/-रू0 प्रति माह के हिसाब से सम्भव नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसका विरोध किया, किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई जिससे व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. अपीलार्थी/विपक्षी यू0पी0पी0सी0एल0 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें इस तथ्य का विरोध किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन न दिया गया हो प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन झूठा है कि उसे विद्युत कनेक्शन नहीं दिया गया और बिना किसी कारण विद्युत उपभोग का बकाया दिखाकर बकाये की वसूली की जा रही हो। प्रत्यर्थी/परिवादी को नियमानुसार बिल भेजे जाने के बावजूद उसने कभी बिल अदा नहीं किए न ही न्यूनतम चार्जेज अदा किए। प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन दिया गया था। जानबूझकर बिल अदायगी न किए जाने की मंशा से यह वाद योजित किया गया है।
5. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद मुख्य रूप से इस आधार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा एड्वोकेट कमिश्नर के माध्यम से मौके का निरीक्षण कराया गया था। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अतिरिक्त अन्य लोगों के मकान भी एड्वोकेट कमिश्नर देखे कोई भी विद्युत कनेक्शन किसी पोल से जुड़ा नहीं पाया गया। एड्वोकेट कमिश्नर ने यह भी लिखा कि ट्रांसफार्मर रखकर खम्भों में नई केबिल डाली गई है, किन्तु विद्युत प्रवाह नहीं हो रहा है। जिला उपभोक्ता आयोग ने एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को देखते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कभी भी विद्युत की आपूर्ति नहीं की गई है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त करते हुए प्रश्नगत निर्णय व आदेश पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय में सम्बन्धित बिल की धनराशि निरस्त किए जाने एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 10,000/- की क्षतिपूर्ति के रूप में तथा परिवाद व्यय के रूप में 1500/-रू0 दिलाये जाने के आदेश पारित किए गए जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 1998 में विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, किन्तु वर्ष 2010 में यह परिवाद योजित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न ही कभी विद्युत कनेक्शन के लिए बल दिया गया और केवल विद्युत बकाया की मांग होने पर उससे बचने के लिए यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। यह सम्भव नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2012 तक बिना विद्युत कनेक्शन के निर्वाह किया हो। वास्तविकता यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन स्वीकृत करके कनेक्शन चालू किया गया था, चूँकि ग्रामीण एरिया में केवल केबिल के माध्यम से कनेक्शन दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के कारण मीटर स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं की गई थी। केवल विद्युत उपभोग के लिए अनुमोदित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से मांगी गई थी जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी देना नहीं चाहता है। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा पंकज त्रिपाठी नामक अधिवक्ता के समक्ष कार्यवाही की गई थी, किन्तु पंकज त्रिपाठी विभाग के अधिवक्ता नहीं हैं। इस प्रकार एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट एकपक्षीय थी जो प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में ली गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शन होने के कारण चूँकि कोई मीटर स्थापित नहीं था। इसलिए एड्वोकेट कमिश्नर के समक्ष उक्त केबिल हटा लिए गए थे, जिनकी फोटो जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है। अत: एड्वोकेट कमिश्नर रिपोर्ट विश्वास योग्य नहीं है और इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
7. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा कनेक्शन न होने के बावजूद विद्युत बकाया धनराशि की मांग की गई है जब कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ग्रामीण क्षेत्र के अनुसार बिना मीटर का कनेक्शन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिया गया था एवं इसी कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन संख्या भी एलाट हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत बकाया हेतु बिल दिए गए थे। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट अवश्य एकपक्षीय है एवं इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन एवं तर्क उचित प्रतीत होता है कि एड्वोकेट कमिश्नर के निरीक्षण के समय उक्त अस्थायी कनेक्शन की केबिल उतार करके पृथक कर दिए गए हों। दूसरी ओर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा बिना किसी कारण के विद्युत बकाया बिल कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए भेजे जाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है। धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा ली जाती है कि शासकीय एवं पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित हुए है। यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम इस संक्षिप्त विचारण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्णत: लागू नहीं होता है, किन्तु सैद्धांतिक दृष्टि से यह मानना उचित है कि विद्युत विभाग बिना किसी कारण के कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए विद्युत उपभोग का बिल बिना किसी कारण के प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर देगा, जो वास्तव में सरकारी कोष में जमा किया जाना है।
9. इसके अतिरिक्त प्रस्तुत मामले में मूल रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन न होने के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा धनराशि मांगे जाने का कथन किया गया है। वास्तव में बिल के रूप में कोई विद्युत बकाया की धनराशि देय है अथवा नहीं। यह सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने से भिन्न प्रतीत होता है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन बनाम अनीस अहमद प्रकाशित III(2013) पृष्ठ 1 (S.C.) में पारित निर्णय अवधारित किया गया है कि :-
“In view of the observation made above, we hold that:
(i) In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of “service” as defined under Section 2(1)(O) or “complaint” as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.”
10. उक्त निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को उन मामलों में पूरी शक्ति नहीं प्रदान की गई है जो धारा 2(1)(O) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सेवा की परिभाषा में नहीं आते हों तथा जो धारा 2(1)(c) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद की श्रेणी में नहीं आते हैं।
11. प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं को कनेक्शनधारक होने से इंकार किया है एवं इसके बावजूद अवैध धनराशि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उ0प्र0 पावर कार्पोरशन द्वारा मांगना दर्शाया गया है। अवश्य ही यह ‘’मॉंग’’ सेवा की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवाद में यह तय होना है कि यह धनराशि की मॉंग उचित है या नहीं। अत: इस धनराशि को रोकने एवं निरस्त किए जाने का क्षेत्राधिकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को नहीं है। इस कारण भी जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3
(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1217/2012
U.P. Power Corporation Ltd. Through Prabandh Nideshak 14, Ashok Marg, Shakti Bhawan, Lucknow and Two Others.
………Appellants
Versus
Prem Shankar Son of Sri Kanhiya Resident of Baunamau, Pargana, Tehsil & District Unnao.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता
श्री मनोज कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 26.05.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 106/2010 प्रेम शंकर बनाम उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.12.2011 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद सं0- 106/2010 एतद्द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा बिल संख्या- बी094876 दिनांक 02.01.2010 मु0 रूपये 31,737/- एतदद्वारा निरस्त किया जाता है। परिवादी प्रेम शंकर विपक्षीगण से 10,000/-रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में व 1500/-रूपये की राशि परिवाद व्यय के रूप में पाने का अधिकारी होगा।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 1998 में आवश्यक आवेदन किया था एवं आवश्यक पैसा जमा किया था, किन्तु गांव के बाहर खम्भे लगने में काफी समय लग गया और प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को यह भ्रम था कि उसे कनेक्शन सेंशन नहीं हुआ है, इसलिए कनेक्शन नहीं दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार वाद के चार-पांच वर्ष पूर्व कुछ खम्भों में लाईन जोड़ी गई थी, परन्तु किसी को भी खम्भे से कनेक्शन नहीं दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी को दि0 02.01.2010 को एक बिल कनेक्शन सं0- 062472/3026/382 दर्शाते हुए मु0 31,737/-रू0 48 माह का विद्युत देयक का बिल प्रेषित किया गया एवं उस अवधि का बिल विद्युत देयक बकाया दिखाया गया। उक्त बिल ग्रामीण प्रभार 110/-रू0 प्रति माह के हिसाब से सम्भव नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने इसका विरोध किया, किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई जिससे व्यथित होकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. अपीलार्थी/विपक्षी यू0पी0पी0सी0एल0 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें इस तथ्य का विरोध किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन न दिया गया हो प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन झूठा है कि उसे विद्युत कनेक्शन नहीं दिया गया और बिना किसी कारण विद्युत उपभोग का बकाया दिखाकर बकाये की वसूली की जा रही हो। प्रत्यर्थी/परिवादी को नियमानुसार बिल भेजे जाने के बावजूद उसने कभी बिल अदा नहीं किए न ही न्यूनतम चार्जेज अदा किए। प्रत्यर्थी/परिवादी को विद्युत कनेक्शन दिया गया था। जानबूझकर बिल अदायगी न किए जाने की मंशा से यह वाद योजित किया गया है।
5. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद मुख्य रूप से इस आधार आज्ञप्त किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के द्वारा एड्वोकेट कमिश्नर के माध्यम से मौके का निरीक्षण कराया गया था। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह आया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के अतिरिक्त अन्य लोगों के मकान भी एड्वोकेट कमिश्नर देखे कोई भी विद्युत कनेक्शन किसी पोल से जुड़ा नहीं पाया गया। एड्वोकेट कमिश्नर ने यह भी लिखा कि ट्रांसफार्मर रखकर खम्भों में नई केबिल डाली गई है, किन्तु विद्युत प्रवाह नहीं हो रहा है। जिला उपभोक्ता आयोग ने एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को देखते हुए यह निष्कर्ष दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कभी भी विद्युत की आपूर्ति नहीं की गई है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त करते हुए प्रश्नगत निर्णय व आदेश पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय में सम्बन्धित बिल की धनराशि निरस्त किए जाने एवं प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 10,000/- की क्षतिपूर्ति के रूप में तथा परिवाद व्यय के रूप में 1500/-रू0 दिलाये जाने के आदेश पारित किए गए, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 1998 में विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, किन्तु वर्ष 2010 में यह परिवाद योजित किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा न ही कभी विद्युत कनेक्शन के लिए बल दिया गया और केवल विद्युत बकाया की मांग होने पर उससे बचने के लिए यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। यह सम्भव नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2012 तक बिना विद्युत कनेक्शन के निर्वाह किया हो। वास्तविकता यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन स्वीकृत करके कनेक्शन चालू किया गया था, चूँकि ग्रामीण एरिया में केवल केबिल के माध्यम से कनेक्शन दिया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के कारण मीटर स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए कोई कागजी कार्यवाही नहीं की गई थी। केवल विद्युत उपभोग के लिए अनुमोदित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से मांगी गई थी जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी देना नहीं चाहता है। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि एड्वोकेट कमिश्नर द्वारा पंकज त्रिपाठी नामक अधिवक्ता के समक्ष कार्यवाही की गई थी, किन्तु पंकज त्रिपाठी विभाग के अधिवक्ता नहीं हैं। इस प्रकार एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट एकपक्षीय थी जो प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में ली गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण कनेक्शन होने के कारण चूँकि कोई मीटर स्थापित नहीं था। इसलिए एड्वोकेट कमिश्नर के समक्ष उक्त केबिल हटा लिए गए थे, जिनकी फोटो जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है। अत: एड्वोकेट कमिश्नर रिपोर्ट विश्वास योग्य नहीं है और इस आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी को अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता है।
7. हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
8. प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कथन किया गया है कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा कनेक्शन न होने के बावजूद विद्युत बकाया धनराशि की मांग की गई है जब कि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन आया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ग्रामीण क्षेत्र के अनुसार बिना मीटर का कनेक्शन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिया गया था एवं इसी कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को कनेक्शन संख्या भी एलाट हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्युत बकाया हेतु बिल दिए गए थे। एड्वोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट अवश्य एकपक्षीय है एवं इस सम्बन्ध में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का यह कथन एवं तर्क उचित प्रतीत होता है कि एड्वोकेट कमिश्नर के निरीक्षण के समय उक्त अस्थायी कनेक्शन की केबिल उतार करके पृथक कर दिए गए हों। दूसरी ओर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा बिना किसी कारण के विद्युत बकाया बिल कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए भेजे जाने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है। धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा ली जाती है कि शासकीय एवं पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित हुए है। यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम इस संक्षिप्त विचारण में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पूर्णत: लागू नहीं होता है, किन्तु सैद्धांतिक दृष्टि से यह मानना उचित है कि विद्युत विभाग बिना किसी कारण के कनेक्शन संख्या दर्शाते हुए विद्युत उपभोग का बिल बिना किसी कारण के प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर देगा, जो वास्तव में सरकारी कोष में जमा किया जाना है।
9. इसके अतिरिक्त प्रस्तुत मामले में मूल रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कनेक्शन न होने के बावजूद अपीलार्थीगण/विपक्षीगण विद्युत विभाग द्वारा धनराशि मांगे जाने का कथन किया गया है। वास्तव में बिल के रूप में कोई विद्युत बकाया की धनराशि देय है अथवा नहीं। यह सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में त्रुटि किए जाने से भिन्न प्रतीत होता है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन बनाम अनीस अहमद प्रकाशित III(2013) पृष्ठ 1 (S.C.) में पारित निर्णय अवधारित किया गया है कि :-
“In view of the observation made above, we hold that:
(i) In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of “service” as defined under Section 2(1)(O) or “complaint” as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.”
10. उक्त निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को उन मामलों में पूरी शक्ति नहीं प्रदान की गई है जो धारा 2(1)(O) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सेवा की परिभाषा में नहीं आते हों तथा जो धारा 2(1)(c) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ‘’परिवाद’’ की श्रेणी में नहीं आते हैं।
11. प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं को कनेक्शनधारक होने से इंकार किया है एवं इसके बावजूद अवैध धनराशि अपीलार्थीगण/विपक्षीगण उ0प्र0 पावर कार्पोरशन द्वारा मांगना दर्शाया गया है। अवश्य ही यह ‘’मॉंग’’ सेवा की श्रेणी में नहीं आती है, क्योंकि परिवाद में यह तय होना है कि यह धनराशि की मॉंग उचित है या नहीं। अत: इस धनराशि को रोकने एवं निरस्त किए जाने का क्षेत्राधिकार मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय को नहीं है। इस कारण भी जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3