राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या 162 सन 2011
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 195/11 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.08.2011 के विरूद्ध)
अनिल कुमार शुक्ला पुत्र लक्ष्मीधर शुक्ला निवासी ग्राम हौज अभेरवा पा0 हौज तहसील सदर जिला जौनपुर ।
.............अपीलार्थी
बनाम
श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कं0लि0 आफिस- प्रथम तल नंदनी काम्पलेक्स, बीएसएनएल सिविल लाइंस, सुल्तानपुर द्वारा विवेक कुमार सिंह, प्रोडयूसर इक्जीक्यूटिव ।
.................प्रत्यर्थी
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 संजय कुमार , सदस्य।
विद्वान अधिवक्ता पुनरीक्षणकर्ता: श्री ए0के0 मिश्रा ।
विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी : श्री मनुदीक्षित ।
दिनांक: 28.11.2014
माननीय श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
यह पुनरीक्षण, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 195/11 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.08.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है जिसके द्वारा जिला फोरम ने यह अन्तरिम आदेश पारित किया था कि यदि परिवादी 90,000.00 रू0 जमा कर देता है और नियमित रूप से 23000.00 रू0 की किस्त जमा करता हैं तो विपक्षी प्रश्नगत वाहन का कब्जा परिवादी से नहीं लेगा। इस आदेश से विक्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा यह पुनरीक्षण प्रस्तुत किया गया है।
अंगीकरण के स्तर पर पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क लिया कि पुनरीक्षणकर्ता एक साथ रू0 90,000/- जमा करने में असमर्थ है। इस आयोग के आदेश दिनांक 16.09.2011 द्वारा पुनरीक्षण अंगीकृत किया गया एवं जिला फोरम द्वारा आदेशित 90,000/- रूपये की धनराशि तीन मासिक किस्तों में जमा करने हेतु निर्देश दिया गया, जिसके अनुपालन में उक्त धनराशि जिला फोरम में जमा भी कर दी गयी है, ऐसी स्थिति में अब इस पुनरीक्षण में कोई बल नहीं रह जाता है। वैसे भी यह पुनरीक्षण तीन वर्ष पूर्व दाखिल किया गया था और जिला फोरम ने भी उदारता बरतते हुए रू0 23,000/- प्रतिमाह किस्त अदा करने हेतु कहा था, जो कि उचित ही है।
उपर्युक्त विवेचन के प्रकाश में हम यह पाते हैं कि इस पुनरीक्षण में निर्णीत किये जाने हेतु कुछ शेष नहीं है और न्यायहित में यह अपेक्षित है कि मूल परिवाद का निस्तारण गुणदोष के आधार पर यथाशीघ्र कर दिया जाये।
परिणामत:, यह पुनरीक्षण तद्नुसार निस्तारित किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण तद्नुसार निस्तारित किया जाता है।
इस पुनरीक्षण के व्यय में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठा0 सदस्य (न्यायिक) सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA-2)