राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-२४/२०१८
सुरजीत कुमार यादव पुत्र स्व0 सोहन लाल यादव, निवासी ग्राम बेहसा, ट्रान्सपोर्ट नगर, सरोजनीनगर, लखनऊ। ...........परिवादी।
बनाम
१. श्री राम ट्रान्सपोर्ट कम्पनी (फाइनेंस) द्वारा शमशाद अली शाखा प्रबन्धक श्रीराम ट्रान्सपोर्ट फाइनेंस कम्पनी लि0 गुरूप्रीत हाउस, प्रथम तल स्टेशन रोड-२१, लखनऊ।
२. श्री राम ट्रान्सपोर्ट कम्पनी मुख्य प्रबन्धक श्री बी0एन0 द्विवेदी श्री राम ट्रान्सपोर्ट फाइनेंस कम्पनी लि0 राणा प्रताप मार्ग, निकट दैनिक जागरण चौराहा, हजरतगंज, लखनऊ।
३. प्रशासनिक अधिकारी श्री ट्रान्सपोर्ट फाइनेंस कम्पनी लि0, १०१/१०५, शिव चैम्बर, सैक्टर-११, बी0बी0डी0 ........... नवी मुम्बई, महाराष्ट्र।
............ विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश कुमार यादव विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १३-०९-२०२२.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसने विद्वान जिला फोरम, लखनऊ में दिनांक २२-०७-२०११ को परिवाद सं0-६८६/२०११ प्रस्तुत किया था जिसमें उसने वाहन की कीमत १८,५०,०००/- रू० मय ब्याज के अदा करने, ४५,०००/- रू० प्रतिमाह की दर से वाहन भाड़ा और ०२.०० लाख रू० आर्थिक, मानसिक, सामाजिक व व्यावसायिक क्षतिपूर्ति हेतु ५०,०००/- रू० और परिवाद व्यय विपक्षीगण से दिलाए जाने हेतु अनुतोष मांगा था। विद्वान जिला फोरम ने इस सारे अनुतोष का योग करके पाया कि कुल अनुतोष की धनराशि २१,४५,०००/- रू० है जबकि जिला फोरम को २०.०० लाख रू० तक का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। अत: परिवाद पोषणीय न होने के आधार पर खारिज किया गया। इसके पश्चात् परिवादी ने वर्तमान परिवाद इस राज्य आयोग में प्रस्तुत किया।
परिवाद पत्र में परिवादी के कथनानुसार उसने अपनी गाड़ी ट्रक सं0-यू0पी0 ३२
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सी.एन. १५३२ इंजन सं0-३७३११४५ वी0एस0 जेड-१०८५७८ चेसिस सं0-८९७ टी0सी0-३६ वी0एस0जेड-१११६५२ की मरम्मत के लिए अप्रैल, २०१० में विपक्षीगण की संस्था से मु0-४,००,०००/- रू० का ऋण लिया था। परिवादी ने ऋण अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार वाहन मरम्मत करा कर माह मई एवं जून २०१० में दो किश्तें समय से विपक्षीगण को अदा की थीं। तदोपरान्त दुर्भाग्यवश माह जुलाई, २०१० में परिवादी मार्ग दुर्घटना में घायल हो गया। फलस्वरूप लगभग एक माह से अधिक तक परिवादी इलाज कराता रहा और इस बीच अपने वाहन का संचालन नहीं कर सका, दवा इलाज के बाद स्वस्थ होने पर परिवादी पहला भाड़ा (मोरंग) लादकर हमीरपुर से आरहा था कि रास्ते में वाहन को सक्षम परिवहन अधिकारी द्वारा सीज कर दिया गया, जो लगभग दो माह बाद सक्षम न्यायालय के आदेश से अवमुक्त हो सका। फलस्वरूप परिवादी समय से विपक्षीगण को देय किश्तों का भुगतान नहीं कर सका।
वाहन न्यायालय से अवमुक्त कराकर किसी तरह से इन्तजाम करके माह जुलाई, अगस्त, सितम्बर व अक्टूबर, २०१० की चार किश्तों की अदायगी हेतु मु0-४०,०००/- रू० एकत्रित करके दिनांक १५-११-२०१० को वाहन चालक के साथ विपक्षीगण के पास जमा करने जा रहा था कि रास्ते में विपक्षीगण के कर्मचारी अपने साथ कुछ अराजक तत्वों के साथ मिले तथा वाहन को रोक कर परिवादी व उसके वाहन चालक के साथ हाथापाई करके बलात वाहन अपनी अभिरक्षा में ले लिया और कहा कि किश्तें अदा नहीं की हैं। तब परिवादी ने कहा कि बकाया किश्तें ही अदा करने रूपये लेकर जा रहा हूँ तो विपक्षीगण के कर्मचारी व उनके गुण्डा साथियों ने परिवादी से जबरन वाहन सहित रूपये ले लिए तथा कहा कि कम्पनी आकर हिसाब किताब कर लेना।
दूसरे दिन परिवादी विपक्षीगण के कार्यालय पहुँचा तो बिना रसीद दिये ही विपक्षीगण ने कहा कि आप मु0 ८०,०००/- रू० नगद तथा जमानत के नये कागजात जमा करके नया अनुबन्ध करा लें तभी आपको वाहन दिया जायेगा तथा छीने गये चालीस हजार रूपये का हिसाब नये अनुबन्ध के ऋण में अन्त में समायोजन कर लिया जाएगा।
विपक्षी सं0-१ के कथनानुसार परिवादी ने दिनांक २४-०३-२०११ को किसी तरह से
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मु0 ७२,०००/- रू० नगर विपक्षी सं0-१ के पास जमा किया तथा ८०००/- रू० में स्टाम्प पेपर, शपथ पत्र तथा जमानत आदि के कागजात बयनामा व नये अनुबन्ध के पेपर बताकर कुछ कागजात पर परिवादी से हस्ताक्षर करवा लिए तथा कहा कि बाद में आकर वाहन ले जाना। उसके बाद भी जब वाहन नहीं दिया तो परिवादी ने दिनांक २२-०४-२०११ को विपक्षी सं0-१ से पुन: कहा, फिर भी उन्होंने बहानेबाजी करके टाल दिया। इस बात की शिकायत करने पर विपक्षी सं0-१ ने कहा कि आपका वाहन अन्य बारह वाहनों के साथ ही अज्ञानतावश कहीं इधर उधर हो गया है, मुझे आप द्वारा जमा किए गए १,१२,०००/- रू० एवं नया अनुबन्ध पत्र होने की जानकारी नहीं थी, कोई बात नहीं आपका वाहन एक सप्ताह में आपको वापस करा दिया जाएगा।
विपक्षी नं0-२ द्वारा दिए गए आश्वासन के आधार पर जब परिवादी दिनांक २९-०४-२०११ को अपने वाहन को लेने के लिए विपक्षी नं0-१ के कार्यालय जाकर मिला तो उन्होंने कहा कि यह पागल हो गया है तथा मातहत कर्मचारियों के साथ परिवादी को बुरी-बुरी गालियॉं दीं तथा परिवादी को अममान सूचक अपशब्द व धमकियॉं देकर कार्यालय से बाहर ढकेल दिया।
तदोपरान्त परिवादी ने उपरोक्त के सम्बन्ध में एवं उच्चाधिकारियों को व्यक्तिगत एवं रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से प्रार्थना पत्र देकर शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई तो परिवादी ने जरिए अधिवक्ता दिनांक ०३-०५-२०११ को विपक्षी नं0-१ को विधिक नोटिस भेजी लेकिन इसके बाबजूद भी आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। फलस्वरूप जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, लखनऊ में दिनांक २२-०७-२०११ को वाद दायर किया था जिसको जिला उपभोक्ता फोरम ने क्षेत्राधिकार के आधार पर दिनांक ०६-१०-२०१७ को निरस्त कर दिया तथा क्षेत्राधिकार के आधार पर निरस्त होने पर माननीय न्यायालय में वाद दायर करने की आवश्यकता हुई।
परिवादी ने जीविकोपार्जन हेतु घर परिवार एवं मिलने वालों से कर्जा उधार लेकर उपरोक्त वाहन लिया था एवं विपक्षीगण की घोर लापरवाही एवं अवैधानिक कृत्यों के फलस्वरूप परिवादी को अत्यधिक आर्थिक, मानसिक, शारीरिक क्षति हुई है, जिसके लिए विपक्षीगण पूर्णरूप से उत्तरदायी हैं क्योंकि विपक्षीगण ने उपरोक्त कृत्य जानबूझकर किया है।
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परिवादी, विपक्षीगण का विधिक उपभोक्ता है तथा जानबूझकर विपक्षीगण द्वारा उपभोक्ता सेवाओं में की गई घोर लापरवाही एवं अनियमितता से उत्पन्न क्षतिपूर्ति हेतु विपक्षीगण उत्तरदायी हैं तथा परिवादी का प्रस्तुत परिवाद माननीय न्यायालय के न्यायिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आता है।
परिवादी को विपक्षी सं0-१ के कार्यालय कर्मचारियों से पता चला है कि विपक्षी सं0-१ ने अनुचित तरीके से धनार्जन करने हेतु अभिलेखों में हेराफेरी करके फर्जी तरीके से परिवादी के वाहन को छिनवाकर ऑन लाइन अपने मेली मददगारों के हक उपरोक्त वाहन का कथित विक्रय बताकर वाहन को स्वयं ही मु0 ४५०००/- रू० प्रतिमाह की दर से भाड़े पर चलवा रहा है। फलस्वरूप अकारण ही परिवादी को निरन्तर आर्थिक, मानसिक सामाजिक एवं व्यावसायिक क्षति हो रही है, जिसके लिए विपक्षीगण पूर्णरूप से उत्तरदायी हैं।
परिवादी उपरोक्त वाहन की आर0सी0, स्वस्थता प्रमाण पत्र, प्रदूषण नियन्त्रण, जांच प्रमाण पत्र, सर्टिफिकेट कम पालिसी शिड्यूल श्रीमान अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हमीरपुर द्वारा पारित आदेश दिनांक १६-१०-२०१०, परिवादी द्वारा अदायगी किश्त की रसीद दिनांक २४-०३-२०११, परिवादी व उसकी मॉं के नोटरी द्वारा प्रमाणित शपथ पत्र दिनांक २५-०३-२०११, विपक्षीगण को दिए गए सादे स्टाम्प पेपर मु0 २४०/- रू० कीमत के (४ वर्क), परिवादी द्वारा उच्चाधिकारियों को दिए गए प्रार्थना पत्र दिनांक २५-०४-२०११ एवं उससे सम्बन्धित डाकखाना रजिस्ट्री रसीदों एवं विपक्षी को भेजी गई विधिक रजिस्टर्ड नोटिस दिनांक ०३-०५-२०११ की छायाप्रतियॉं जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, लखनऊ वाद सं0-६८६ सन् २०११ की पत्रावली में संलग्न हैं।
परिवादी ने निम्नलिखित अनुतोष मांगा है :-
(अ) निर्धारित समयावधि के भीतर विपक्षीगण से परिवादी को उसका उपरोक्त प्रश्नगत वाहन/ट्रक सं0-यू0पी0 ३२ सी0एन0 १५३२ दिलाया जाए तथा वाहन उपरोक्त न लौटाने की दशा में विपक्षीगण को आदेश दिया जाए कि वे परिवादी को नियत समय सीमा के भीतर वाहन की कीमत मु0 १८,५०,०००/- रू० मय ब्याज के अदा करें जिसमें सभी प्रतितोष शामिल हैं।
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(ब) अवैध रूप से वाहन खिंचवाने के दिनांक से वाहन सुपुर्दगी के दिनांक तक मु0 ४५,०००/- रू० प्रतिमाह की दर से वाहन का भाड़ा विपक्षीगण से परिवादी को दिलाया जाए।
(स) परिवादी से ली गई अधिक धनराशि वाहन की बकाया किश्तों में समायेाजित करने का आदेश पारित किया जाए।
(द) आर्थिक, मानसिक, सामाजिक व व्यावसायिक क्षतिपूर्ति स्वरूप परिवादी को विपक्षीगण से मु0 २,००,०००/- रू० दिलाए जाऐं।
(य) मु0 ५०,०००/- रू० वाद व्यय परिवादी को विपक्षीगण से दिलाए जाऐं।
(र) वाकयात मुकदमा व कानून को देखते हुए अन्य उचित अनतोष जो माननीय महोदय न्यायोचित समझें परिवादी के पक्ष में विपक्षीगण के विरूद्ध पारित करने की कृपा करें।
विपक्षी फाइनेंस कम्पनी ने अपना लिखित कथन प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह वाहन लोन के अन्तर्गत था। परिवादी ने ०४.०० लाख रू० का ऋण लिया था जो ३५ किश्तों में अदा करना था। पहली किश्त १५,४०६/- रू० की और दूसरी किश्त १६,७५४/- रू० की तथा शेष किश्तें १५,४०६/- रू० जबकि अन्तिम किश्त मात्र १५,३९६/- रू० की थी। ऋण की शर्तें स्पष्ट थीं और समय से भुगतान न होने पर ब्याज देय था। परिवादी वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में असफल रहा और उसने ऋण का भुगतान समय से नहीं किया। उसके द्वारा सम्पूर्ण ऋण के भुगतान में व्यवधान किया। वाहन विपक्षी के पास बन्धक रखा हुआ था। शर्तों में यह लिखा था :-
“ REPOSSESSION OF ASSET- to take possession of the hypothecated asset from wheresoever it may be and remove the hypothecated asset including all accessories, bodywork and fittings and for the said purpose, it shall be lawful for Sriram or Sriram authorized representatives, servants, officers and agents forthwith or at any time and without notice to the borrowers to enter upon the promises. Oregon Raj or go down well hypothecated asset shall be lying or kept and to take possession or recover or receive the same and if necessary to break open such place of storage, Sriram will be
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within its rights to use a tow van to carry away the asset. Any damages to the land or building caused by the removal of the said shall be the sole responsibility of the borrower.”
विपक्षी ने सभी नियमों का पालन किया और वाहन को अपने कब्जे में लिया। इसके पश्चात् उसने दिनांक ३०-११-२०१० को एक पत्र परिवादी को भेजा कि वह ४,३९,२६३/- रू० का भुगतान कर दे अन्यथा विपक्षी के पास वाहन बेचने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होगा किन्तु परिवादी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके पश्चात् पुन: विपक्षी ने ०४ माह का समय और दिया किन्तु परिवादी ने फिर भी भुगतान नहीं किया। दिनांक १७-०३-२०११ तक देय धनराशि ५,१०,०००/- रू० हो गई। इसके पश्चात् वाहन को नियमानुसार नीलाम कर दिया गया।
जब यह परिवादी को मालूम हुआ कि वाहन को नीलाम कर दिया गया है तब उसने दिनांक २६-०३-२०११ को ७२,०००/- रू० बैंक की शाखा में जमा कर दिए और तब विपक्षी ने इस धनराशि को वापस करने के लिए १,०८,०००/- रू० का प्रस्ताव दिया किन्तु परिवादी ने इस स्वीकार करने से मना कर दिया और फिर पुरानी चेतावनी दी। इसके पश्चात् परिवादी ने विद्वान जिला फोरम के समक्ष दावा प्रस्तुत किया और यह कहा कि उसने यह धनराशि जमा कर दी है जैसा कि विपक्षी ने स्वीकार कर लिया है।
वर्तमान मामला ऋण की अदायगी न करने से सम्बन्धित है। विपक्षी, परिवादी की मानसिक हालत के लिए उत्तरदायी नहीं है। सरकारी अधिकारियों ने ट्रक अपने कब्जे में लिया था जिसके लिए विपक्षी उत्तरदायी नहीं है। स्पष्ट है कि ऋण का भुगतान न करने के कारण ही उसका वाहन जब्त किया गया और बार-बार मौका दिए जाने के उपरान्त भी रूपया जमा न करने पर उसकी नीलामी की गई। अत: यह परिवाद पोषणीय नहीं है।
हमने अधिवक्ता परिवादी की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। विपक्षीगण की ओर से बहस करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
परिवादी ने अपने परिवाद में स्वीकार किया है कि उसने ऋण की अदायगी करने में विलम्ब किया है। परिवादी ने कहीं भी अपने परिवाद पत्र के साथ कोई लेख/विवरण प्रस्तुत नहीं किया है कि उसने कब-कब और कितनी धनराशि जमा की है।
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हमने विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों का अवलोकन किया। विपक्षी ने दिनांक ३०-११-२०१० को एक पत्र परिवादी को भेजा है कि वह ४,३९,२६३/- रू० जो बकाया है, उसे १० दिन में जमा करे किन्तु परिवादी ने इसे जमा नहीं किया।
वर्तमान मामले में यह स्पष्ट है कि ऋण की अदायगी न करने पर परिवादी के विरूद्ध रिकवरी वारण्ट जारी किया गया और उसका वाहन जब्त किया गया। ऋणी की अदायगी न करने पर विपक्षीगण द्वारा नियमानुसार कार्यवाही की गई। परिवादी ऋण की धनराशि जमा करने में असफल रहा है और वह स्वच्छ हाथों से नहीं आया है, अत: परिवादी के परिवाद में कोई बल नहीं है। तद्नुसार परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान परिवाद निरस्त किया जाता है।
परिवाद व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.