राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-९८४/१९९७
(जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-२९१/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०७-०४-१९९७ के विरूद्ध)
ब्रान्च मैनेजर, इलाहाबाद बैंक, ब्रान्च रेनुकूट, पोस्ट आफिस-रेनुकूट, जिला सोनभद्र।
................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
राम नारायण पाण्डेय पुत्र श्री नन्द किशोर पाण्डेय, निवासी रेनुकूट, पोस्ट आफिस-रेनुकूट, जिला सोनभद्र। .................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री दीपक मेहरोत्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री एस0पी0 बाजपेयी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ३१-०७-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-२९१/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०७-०४-१९९७ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ट्रक चालक है एवं डाला निवासी श्री गिरजा शंकर दुबे का ट्रक चला कर गुजर-बसर करता है। परिवादी अपीलार्थी अपीलार्थी बैंक में अपने बचत खाता सं0-२६२२ में अपना पैसा जमा करता रहा। परिवादी ने उक्त बचत खाते में माह अप्रैल, १९९३ तक ३४,०००/- रू० जमा किया था। ट्रक चालक होने के नाते परिवादी का काफी दूर तक आना-जाना होता है तथा अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी की पासबुक में पैसा जमा करने पर तुरन्त पृविष्टयॉं नहीं की जाती हैं बल्कि एक-दो दिन बाद ही पृविष्टि करते रहे जिसके कारण परिवादी अपनी पासबुक बैंक में ही जमा कर देनी पड़ी थी। परिवादी पुन: दिनांक ०८-०५-१९९५ को पुन:
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खाते में २,०००/- रू० जमा करने के लिए गया तो बैंक में पृविष्टि के लिए पहले से जमा पासबुक परिवादी को नहीं दी गई बल्कि यह कहा गया कि पासबुक नहीं मिल रही है इसलिए १०/- रू० का स्टाम्प पेपर ले आओ तो नई पासबुक बना दी जायेगी। परिवादी ने १०/- रू० का स्टाम्प पेपर शाखा प्रबन्धक को दिया तो बैंक में पैसा जमा करते समय शाखा प्रबन्धक ने कहा कि तुम्हारा (परिवादी) के खाते से दिनांक ०६-०५-१९९५ को ३०,०००/- रू० निकाले जा चुके हैं। शाखा प्रबन्धक के इस कथन पर परिवादी को आश्चर्य हुआ और उसने अपीलार्थी से विरोध करते हुए कहा कि उसने (परिवादी) बैंक से ३०,०००/- रू० नहीं निकाले हैं और न ही दिनांक ०६-०५-१९९५ को परिवादी रेनुकूट में मौजूद था क्योंकि वह हैदराबाद से रवाना होकर दिनांक ०६-०५-१९९५ को गोरखपुर में मौजूदा था। अपीलार्थी द्वारा सन्दर्भित कार्यवाही न किए जाने पर परिवादी ने घटना की सूचना दिनांक ०९-०५-१९९५ को पुलिस विभाग के तमाम अधिकारियों तथा क्षेत्रीय कार्यालय मिर्जापुर इलाहाबाद बैंक, वित्त मंत्री भारत सरकार तथा प्रधान कार्यालय कलकत्ता इलाहाबाद बैंक को दिया तथा इस बात का उल्लेख किया कि परिवादी ने उक्त खाते से ३०,०००/- रू० नहीं निकाले और न ही वापसी वाउचर पर परिवादी के हस्ताक्षर हैं। परिवादी के कथनानुसार अपीलार्थी बैंक के शाखा प्रबन्धक तथा बैंक के कर्मचारियों की मिलीभगत के फलस्वरूप ३०,०००/- रू० उसके खाते से निकाल लिए गये। इस प्रकार सेवा में घोर कमी अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच के समक्ष उपरोक्त अवैध रूप से आहरित धनराशि ३०,०००/- रू० मय ब्याज वापस दिलाए जाने एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया।
अपीलार्थी द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी द्वारा यह अभिकथित किया गया कि पास में पैसे की इण्ट्री एक दो दिन बाद नहीं की जाती है बल्कि पैसा जमा करने के कुछ समय बाद ही उसी दिन पासबुक में इण्ट्री करके खाताधारकों को पासबुक वापस कर दी जाती हैं। पासबुक को बैंक में जमा नहीं रखा जाता। परिवादी को भी उसकी पासबुक वापस कर दी गई तथा बैंक के ऊपर गलत आरोप परिवादी द्वारा लगाया जा रहा है। पैसा जमा करते समय पासबुक लाना आवश्यक नहीं
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है। पैसा जमा करने के बाद भी पासबुक को ठीक कराया जा सकता है। परिवादी द्वारा बैंक में पासबुक जमा कर दी गई थी, इस सन्दर्भ में कोई प्रमाण परिवादी द्वारा नहीं दिया गया है। परिवादी द्वारा अवगत कराये जाने पर कि उसकी पासबुक कहीं खो गई है, उचित कार्यवाही करके उसे दूसरी पासबुक जारी कर दी गई। पासबुक प्राप्त होने के बाद स्वयं परिवादी ने अपीलार्थी को अवगत कराया कि उसके खाते से दिनांक ०६-०५-१९९५ को ३०,०००/- रू० निकला लिया गया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि परिवादी का यह कथन मानने योग्य नहीं है कि दिनांक ०६-०५-१९९५ को वह गोरखपुर में था। दिनांक ०६-०५-१९९५ को पैसा निकालने के बाद भी रेनुकूट से चलकर गोरखपुर पहुँच सकता है। परिवादी का यह कथन उचित प्रतीत नहीं होता कि वह रेनुकूट में नहीं था। दिनांक ०६-०५-१९९५ को अपने खाते से ३०,०००/- रू० परिवादी द्वारा स्वयं निकाला गया। निकासी फार्म पर परिवादी के ही हस्ताक्षर हैं। परिवादी के हस्ताक्षर पूरा मिलान करने के बाद ही पासिंग अधिकारी द्वारा भुगतान पास किया गया जिसे परिवादी ने स्वयं प्राप्त किया। परिवादी के हस्ताक्षर मिलान करने एवं पास करने में कोई लापरवाही अपीलार्थी द्वारा नहीं की गई। पासबुक सुरक्षित रखने का दायित्व खाताधारक का है, बैंक अथवा बैंक के कर्मचारियों का नहीं। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थीको निर्देशित किया कि वह परिवादी को ३०,०००/- रू० दिनांक ०६-०५-१९९५ को बैंक द्वारा प्रचलित ब्याज दर के अनुसार ब्याज सहित भुगतान करे। इसके अतिरिक्त ५००/- रू० परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रकरण के सम्बन्ध में किए गये व्यय तथा वाद व्यय के सन्दर्भ में प्रदान किए जाने हेतु भी आदेशित किया गया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा एवं प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 बाजपेयी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच द्वारा पत्रावली पर
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उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि स्वयं परिवादी ने अपने खाते से दिनांक ०६-०५-१९९५ को विदड्रॉल फार्म पर अपने हस्ताक्षर करके ३०,०००/- रू० आहरित किए। बैंक कर्मियों द्वारा विदड्रॉल फार्म पर किए गये हस्ताक्षर बैंक में मौजूद परिवादी के नमूना हस्ताक्षर से मिलान करने के बाद ही भुगतान किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पासबुक की सुरक्षा का दायित्व खाताधारक का होता है। पासबुक खोने के लिए स्वयं खाताधारक उत्तरदायी होगा। परिवादी द्वारा अपीलार्थी बैंक में पासबुक जमा नहीं की गई और न ही इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी ने हस्तलेख विशेषज्ञ की आख्या भी प्रस्तुत की है। हस्तलेख विशेषज्ञ ने वैज्ञानिक उपकरणें की सहायता से प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वीकृत हसताक्षरों का मिलान विवादित हस्ताक्षरों से किया तथा यह मत व्यक्त किया कि स्वीकृत हस्ताक्षर तथा विवादित हस्ताक्षर में बहुत सूक्ष्म अन्तर पाया गया। आसानी से दोनों हस्ताक्षरों की भिन्नता पहँचानी नहीं जा सकती किन्तु जिला मंच द्वारा हस्तलेख विशेषज्ञ की आख्या के इस भाग पर ध्यान नहीं दिया गया। ऐसी परिस्थिति में बैंक के कर्मचारियों द्वारा सेवा में त्रुटि की जानी नहीं मानी जा सकती। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच ने पासबुक खोने के सन्दर्भ में कोई मत व्यक्त नहीं किया है क्योंकि बिना पासबुक के विदड्रॉल फार्म द्वारा धन आहरित नहीं किया जा सकता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन करते हुए तर्कसंगत आधार पर प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। परिवादी द्वारा जिला मंच के समक्ष यह साक्ष्य प्रस्तुत की गई कि वह दिनांक ०६-०५-१९९५ को रेनुकूट में नहीं था। हस्तलेख विशेषज्ञ द्वारा प्रस्तुत आख्या में विवादित हस्ताक्षर तथा परिवादी द्वारा स्वीकृत हस्ताक्षर में भिन्नता पाई गई। स्वयं जिला मंच द्वारा स्वीकृत हस्ताक्षर तथा विवादित हस्ताक्षर का मिलान किया
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गया तथा यह पाया गया कि यह हस्ताक्षर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा किए गये हैं। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह भी स्पष्ट है कि प्रश्नगत खाते के सम्बन्ध में जारी की गई पासबुक माह मई में परिवादी के पास नहीं र्थी। द्वितीय पासबुक उसके द्वारा प्राप्त की गई।
प्रस्तुत प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बचत खाता सं0-२६२२ अपीलार्थी बैंक में था। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि दिनांक ०६-०५-१९९५ उकत खाते से ३०,०००/- रू० विद्ड्राल फार्म भरकर आहरित किया गया। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि स्वयं परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई हस्तलेख विशेषज्ञ आख्या में भी विवादित हस्ताक्षर तथा स्वीकृत हस्ताक्षर समान नहीं पाये गये। जिला मंच के समक्ष परिवादी द्वारा शपथ पत्र एवं मै0 बालाजी फ्रूट कम्पनी गोरखपुर का इस आशय का अभिलेख दिनांकित ०७-०५-१९९५ प्रस्तुत किया है कि परिवादी दिनांक ००६-०५-१९९५ दिन शनिवार को समय १० बजे दिन, हैदराबाद से चलकर (मै0 बालाजी फ्रूट कम्पनी गोरखपुर) आया और मौसमी का माल अनलोड कराया और उसने १२,४२५/- रू० भाड़े का प्राप्त किया था। परिवादी का यह स्पष्ट अभिकथन है कि दिनांक ०६-०५-१९९५ को वह रेनुकूट में नहीं था। भाड़े पर सामान ट्रक से हैदराबाद से गोरखपुर के लिए लाया था। स्वयं परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई हस्तलेख विशेषज्ञ आख्या अपील मेमो के साथ दाखिल की गई है जिसमें हस्तलेख विशेषज्ञ द्वारा यह मत व्यक्त किया गया है कि विवादित हस्ताक्षर तथा स्वीकृत हस्ताक्षर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा किए गये हैं। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह भी विदित होता है कि जिला मंच ने भी स्वीकृत एवं विवादित हस्ताक्षरों का स्वयं मिलान किया तथा इन्हें भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा किया जाना प्रतीत होना माना। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से ३०,०००/- रू० स्वयं परिवादी द्वारा आहरित नहीं किए गये। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी का कथन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। प्रश्नगत निर्णय तथा पक्षकारों के अभिकथनों से यह भी स्पष्ट है कि अपने खाते से अवैध रूप से धन आहरित होने के तत्काल बाद प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित घटना की पुलिस में सूचना दी गई तथा बैंक के उच्च अधिकारियों को भी
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सूचित किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह आचरण तथा पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि धन आहरण की कथित घटना में स्वयं परिवादी की कोई भूमिका होना प्रमाणित नहीं है।
जहॉं तक प्रश्नगत बचत खाते की पासबुक के खोने का सम्बन्ध है परिवादी का यह कथन है कि बैंक में पासबुक में पृविष्टि तत्काल नहीं की जाती थी। एक-दो दिन बाद पृविष्टि की जाती थी। परिवादी ने अपने बचत खाते में अप्रैल, १९९५ में ३४,०००/- रू० जमा किया तथा उस समय उसकी पासबुक पृविष्टि हेतु रोक ली गई थी। दिनांक ०८-०५-१९९५ को वह २,०००/- रू० जमा करने पुन: गया तब उसे बताया गया कि उसकी पासबुक नहीं मिल रही है। नई पासबुक जारी किया जाना स्वयं अपीलार्थी स्वीकार करता है। यद्यपि बैंक द्वारा परिवादी की पासबुक रोके जाने के तथ्य को अस्वीकार किया गया तथा यह कहा गया कि इस सम्बन्ध में परिवादी द्वारा कोई साक्ष्य जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई किन्तु व्यावहारिक रूप में प्राय: बैकों में पासबुक में पृविष्टि तत्काल नहीं की जाती है। पासबुक पृविष्टि के बाद, बाद में प्राप्त करने के लिए बैंक कर्मियों द्वारा कहा जाता है तथा बैंक द्वारा पासबुक जमा करने की कोई रसीद नहीं प्रदान की जाती। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता कि उसकी पासबुक अप्रैल, १९९५ में उसके द्वारा धनराशि जमा किए जाने के बाद तत्काल उसे प्राप्त नहीं कराई गई।
बैंक में उपभोक्ता अपनी धनराशि की सुरक्षा हेतु धनराशि जमा करता है। प्रस्तुत प्रकरण में पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह प्रमाणित है कि बैंक द्वारा परिवादी के बचत खाते से ३०,०००/- रू० परिवादी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को प्राप्त कराये गये।
ऐसी परिस्थिति में जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण परिवादी के बचत खाते से अवैध रूप से ३०,०००/- रू० आहरित करके बैंक कर्मचारियों द्वारा सेवा में त्रुटि की गई है, त्रुटिपूर्ण नहीं है। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य
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का उचित परिशीलन करते हुए तर्कसंगत आधार पर प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अपील में बल नहीं है। अपील तद्नुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील, निरस्त की जाती है। जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-२९१/१९९६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०७-०४-१९९७ की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.