राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2803/2000
विवेकानन्द दूबे उम्र लगभग 36 वर्ष पुत्र श्री भीमल, ग्राम-पतजू, तप्पा-सिरसी, परगना-महुली पूरब, तहसील व जिला-बस्ती। अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1-श्री मुन्नी लाल, संग्रह अमीन, तहसील खलीलाबाद द्वारा तहसीलदार खलीलाबाद, जिला (बस्ती) नेवली क्रियेटेड जिला सन्त कबीर नगर।।
2-तहसीलदार खलीलाबाद, जिता सन्त कबीर नगर।
3-राज्य सरकार उत्तर प्रदेश द्वारा कलेक्टर (बस्ती) सन्त कबीर नगर।
4-सेन्ट्रल बैंक, शाखा गाहासांड, गोरखपुर। प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1 मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा पीठासीन सदस्य।
2-मा0 श्री राम चरन चौधरी सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित। कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित। कोई नहीं।
दिनांक-11-12-2014
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा पीठासीन, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा परिवाद संख्या-213/1994 विवेकानन्द दूबे बनाम श्री मुन्नी लाल व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27-07-2000 में निम्न लिखित आदेश पारित किया है।
" परिवादी का परिवाद निरस्त किया जाता है। "
उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा यह अपील योजित की गयी है।
संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं, परिवादी ने यह परिवाद इस आशय से दाखिल किया है कि उसके पिता ने विपक्षी संख्या-4 द्वारा पम्पिंग सेट हेतु दिनांक 12-08-72 को रू0 4,700/-रू0 का ऋण प्राप्त किया। विपक्षी संख्या-4 ने उक्त ऋण की वसूली हेतु नोटिस जारी किया और विपक्षी संख्या-3 ने अपने अधीनस्थ कर्मचारी संख्या-1 को वसूली करने हेतु नियुक्त किया। परिवादी के पिता ने विपक्षी संख्या-1 को समय-समय पर ऋण का भुगतान किया और रसीद प्राप्त किया। वर्ष 1979 में विपक्षी संख्या-1 ने रू0 1,500/-रू0 प्राप्त किया परन्तु रसीद नहीं दिया और तब से वसूली भी तहसील से नहीं की गयी।
2
विपक्षी संख्या 4 ने अपने पत्र दिनांक 16-11-90 से परिवादी के पिता को यह अवगत कराया कि शासनादेश के अनुसार ऋण राहत योजना के अन्तर्गत रू0 7,079/- का लाभ परिवादी के पिता को मिला तथा शेष धनराशि रू0 1,126/- जमा करने का निर्देश दिया। इसी दौरान परिवादी के पिता की मृत्यु हो गयी। माह जनवरी 1994 में तहसील खलीलाबाद से वसूली अमीन ने वसूली हेतु तकादा किया तब परिवादी ने तहसील में जाकर अपने पिता द्वारा जमा धनराशि का विवरण मांगा जो दिया गया। विवरण में वसूली खाता में ड्राफ्ट नंबर अंकित नहीं था तब परिवादी ने विपक्षी संख्या-4 के कार्यालय में जाकर एकाउण्ट खाता देखा और यह कि रसीद संख्या 49/55134/24-07-79 बैंक में दिनांक 25-07-79 व दिनांक 29-08-79 को जमा नहीं है। इस प्रकार विपक्षी संख्या 1 व 2 की सेवा में कमी जाहिर होती है। विपक्षी संख्या-1 व 2 ने विपक्षी संख्या-4 को रू0 1,360/- आज तक नहीं भेजा इसलिए परिवादी के विरूद्ध आर0 सी0 लम्बित है।
परिवादी ने प्रार्थना किया है कि विपक्षी 2, 3 व 4 को आदेश दिया जाये कि वे परिवादी के पिता के खाते का हिसाब-किताब कर दें और विपक्षी संख्या-1 व 3 द्वारा दिनांक 24-07-79 व दिनांक 23-08-79 को की गयी वसूली मय ब्याज विपक्षी संख्या-4 को भेजवाने का भी आदेश पारित किया जाये तथा विपक्षी संख्या 1 रू0 1,500/- व क्षतिपूर्ति आदि विपक्षीगण से दिलाया जावे।
विपक्षी संख्या 1 ता 3 की ओर से वादोत्तर दाखिल किया गया जिसमें अधिकतर कथनों को इनकार करते हुए यह कहा गया है कि रसीदों की वैधता प्रमाणित करने का भार परिवादी पर है, जो धनराशि प्राप्त हुई है वह तहसील के माध्यम से भेजी गयी है। इस परिवाद को सुनवाई का क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है। परिवादी उपभोक्ता नहीं है, कालबाधित है और निरस्त होने योग्य है।
विपक्षी संख्या 4 की ओर से जो वादोत्तर दाखिल है उसमें भी परिवादी के अधिकतर कथनों को इनकार करते हुए यह कहा गया है कि रू0 4,700/- की वसूली के लिए वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी, बस्ती के यहां भेजा गया है। ऋण राहत के रूप में परिवादी को रू0 7,072/-मिला है। विपक्षी संख्या 2 द्वारा दिनांक 21-09-76 को रू0 5,700/-दिनांक 25-11-77 को रू0 100/- एवं रू0 700/- परिवादी के खाते में ऋण के सम्बन्ध में जमा किया। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा या विपक्षी संख्या 2 व 3 द्वारा परिवादी के खाते में नहीं जमा किया गया। परिवादी के जिम्मे दिनांक 26-09-90 तक मूलधन एवं ब्याज रू0 5,376.90/-बाकी है।
3
पक्षकारान के अनुपस्थिति के कारण एवं अपीलार्थी के अनुपस्थिति के कारण अपील खण्डित किये जाने योग्य है। चूंकि अपील सन् 2000 से लम्बित है अत: यह न्यायसंगत पाया गया कि अपील पर गुण-दोष के आधार पर विचार कर लिया जाय।
अपीलार्थी द्वारा ऋण प्राप्त किया था उसी के संदर्भ में शेष धनराशि के बाबत विपक्षी की ओर से कार्यवाही की गयी जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी/अपीलार्थी की ओर से प्रश्नगत परिवाद प्रस्तुत किया गया। परिवाद पत्र के उक्त अभिवचन के दृष्टिगत परिवादी/अपीलार्थी को उपभोक्ता की श्रेणी में स्वीकार किया जाना विधि सम्मत नहीं है और जिला मंच द्वारा इस संदर्भ में विचार किया गया है उसमें किसी त्रुटि का होना नहीं पाया जाता है अपील खण्डित किये जाने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील खण्डित की जाती है।
वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (राम चरन चौधरी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
मनीराम आशु0-2
कोर्ट- 4