राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या :1028/2001
(जिला मंच, प्रथम आगरा द्धारा परिवाद सं0-78/1996 में पारित निर्णय/ आदेश दिनांक 29.12.2000 के विरूद्ध)
Agra Development Authority, Jaipur House, Agra through its secretary.
........... Appellant/Opp. Party
Versus
Sri Hari Prasad Agarwal adult, S/o Sri Shyam Lal Agarwal, R/o 53, C.O.D. Colony, Shahganj, Agra.
……..…. Respondent/Complainant.
समक्ष :-
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री आर0के0 गुप्ता
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक : 18.04.2017
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-78/1996 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 29.12.2000 के विरूद्ध योजित की गई है।
प्रश्नगत निर्णय/आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा यह आदेश पारित किया गया है कि प्रतिवादी सभी सुविधायें एग्रीमेंट एवं स्कीम के अनुसार प्रदान करें और प्रतिवादी को यह भी निर्देशित किया गया है कि जो रू0 17,633.00 ज्यादा जमा कर दिया गया है, उसे समायोजित करें और रू0 4000.00 मानसिक, शारीरिक कष्ट के लिए लगाया गया है। यह भी निर्देशित किया गया है कि परिवादी रू0 9070.00 जो बकाया है, उसे अदा करें। यह भी आदेशित किया गया है कि यदि उक्त धनराशि प्रतिवादी 45 दिन के अन्दर जमा नहीं करता है, तो 15 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देना होगा।
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संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने प्रतिवादी आगरा विकास प्राधिकरण की शमसावाद गृह विस्तार योजना के तहत इन्दिरापुरम् में एक एम0आई0जी0 भवन हेतु पंजीकरण कराया और शडयूल के अनुसार रू0 15,000.00 दिनांक 30.7.1988 को जमा किए। परिवादी को प्रतिवादी के सम्पत्ति विभाग भवन अनुभाग के पत्र दिनांकित 08.8.1989 के द्वारा एक एम0आई0जी0 भवन सं0-04 आवंटित किया गया और भवन का मूल्य 1,59,600.00 निर्धारित किया गया। पेमेंट शडयूल के अनुसार परिवादी द्वारा सभी किश्तों का भुगतान किया गया। पेमेंट शडयूल में स्पष्ट लिखा गया कि अंतिम किश्त की धनराशि 9070.00 रू0 कब्जे के समय दी जायेगी। परिवादी द्वारा मौके पर भवन का निरीक्षण किया गया, तो भवन कब्जा प्राप्त हेतु तैयान नहीं था और न ही रहने हेतु आवश्यक पानी, बिजली, सीवर, सडक, नाली आदि व विकास कार्य मौजूद नहीं थे। परिवादी ने प्रतिवादी को पत्र द्वारा स्थिति से अवगत करा दिया था। प्रतिवादी द्वारा परिवादी के पत्रों का कोई जवाब नहीं दिया गया। प्रतिवादी द्वारा कोई सूचना न दिये जाने की दशा में परिवादी ने दिनांक 22.12.1992 को प्रतिवादी के कार्यालय गया तो उसे पता चला कि उसका भवन निरस्त कर दिया गया है। परिवादी द्वारा प्रतिवादी को कुल 1,77,233.80 पैसे अदा कर दिये गये हैं और दिनांक 01.10.1993 को असुविधाओं के पश्चात कब्जा प्राप्त कर लिया। आवंटन पत्र दिनांक 08.8.1989 के द्वारा उक्त भवन की कीमत 1,59,600.00 रू0 थी जबकि परिवादी रू0 1,77,233.80 पैसे जमा कर चुका है और इस प्रकार परिवादी ने रू0 17,633.80 पैसे अधिक जमा किया है। परिवादी के पत्र दिनांक 12.12.1992 के जवाब में जवाबी पत्र दिनांकित 29.12.1992 के द्वारा सूचित किया गया कि उपाध्यक्ष महोदय के आदेश दिनांक 29.12.1992 के द्वारा निम्नलिखित धनराशि दिनांक 01.01.1993 द्वारा जमा कराने पर आपके नाम किया गया आवंटन पुर्न जीवित करने के आदेश दिये गये है और जो धनराशि जमा करनी है, वह इस प्रकार है:-
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1- कब्जे तक देय किश्तों की धनराशि 9070.00, 2- अनुमानित व वास्तविक मुल्य का अन्तर 20868.00, 3- लीज रेन्ट रू0 7308 पुर्नजीवन, 4- शुल्क रूपये 18046.00, 5- विलम्ब शुल्क 14370.00रू0 कुल 69600.00 रू0 और जमा करने को कहा, जबकि परिवादी द्वारा पूर्ण रूपया अदा किया जा चुका है और रू0 17633.80 पैसे अधिक जमा किया गया है।
प्रतिवाद पत्र में कहा गया कि आवंटन पत्र में लिखी हुई शर्तें पूर्ण रूप से अनुमानित है तथा वास्तविक कीमत बाद में सूचित की जायेगी।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता उपस्थित आये। आयोग के आदेश दिनांक 11.11.2016 से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी को पंजीकृत डाक के माध्यम से नोटिस निर्गत किया गया था, जो बिना तामील वापस प्राप्त नहीं हुआ, अत: प्रत्यर्थी पर नोटिस का तामीला पर्याप्त स्वीकार किया गया। यह अपील वर्ष-2001 से पीठ के समक्ष विचाराधीन है, अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 29.12.2000 का अवलोकन किया गया तथा अपील आधार का अवलोकन किया गया।
आधार अपील के पैरा- जे में यह उल्लेख किया गया है कि कब्जे के समय भवन की कीमत रू0 1,80,468.00 आयी और इस प्रकार परिवादी ने कोई ज्यादा धनराशि की अदायगी नहीं की है और बहस में यह कहा गया है कि जो जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा रू0 17633.80 पैसे वापसी के लिए कहा गया है, वह विधि सम्मत नहीं है और निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुनने एवं आधार अपील के अवलोकन के उपरांत जो जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा रू0 17,633.00 की वापसी का आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत नहीं है और आधार अपील में लागत के बाद जो रू0 1,80,468.00 आया है, वह कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं है। इस प्रकार केस के तथ्यों परिस्थितियों में हम यह पाते हैं जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो रू0 17,633.00 भुगतान
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करने हेतु आदेश किया गया है, वह निरस्त किये जाने योग्य है और अपीलार्थी को सुनने के उपरांत हम यह पाते है कि जो रू0 4000.00 मानसिक, शारीरिक कष्ट के लिए अलग से लगाया गया, वह समाप्त किये जाने योग्य है तथा प्रश्नगत आदेश के अंत में जो 45 दिन के अन्दर भुगतान न करने पर 15 प्रतिशत समस्त धनराशि एवं रू0 4000.00 पर ब्याज देय होने की शर्त लगायी गई है, वह भी समाप्त किये जाने योग्य है तथा आदेश के शेष भाग की पुष्टि करते हुए अपीलार्थी की प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-78/1996 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 29.12.2000 में जो रू0 17,633.00 भुगतान करने हेतु आदेश पारित है, वह निरस्त किया जाता है तथा जो रू0 4000.00 मानसिक, शारीरिक कष्ट के लिए लगाया गया, वह भी निरस्त किया जाता है एवं प्रश्नगत आदेश के अंत में जो 45 दिन के अन्दर भुगतान न करने पर 15 प्रतिशत समस्त धनराशि एवं रू0 4000.00 पर ब्याज देय होने की शर्त लगायी गई है, वह भी निरस्त की जाती है। आदेश के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेगें।
(रामचरन चौधरी) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-2