Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/336

Relaince General Insurance - Complainant(s)

Versus

Sri Bahora Construction - Opp.Party(s)

Mahendra Kumar Mishra

14 Jul 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/336
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Relaince General Insurance
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Sri Bahora Construction
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Chandra Bhal Srivastava PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

सुरक्षित ।

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0

अपील संख्‍या 335 सन 2013

साथ में

(अपील संख्‍या ३३६ सन २०१३, ३३७ सन २०१३, ३३८ सन २०१३, ३३९ सन २०१३, ४३१ सन २०१३)

रिलायंस जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी एवं अन्‍य अपीलार्थी

बनाम

मै0 बहोरा कान्‍स्‍ट्रक्‍शन कं0 प्रा0लि0      प्रत्‍यर्थी

 

समक्ष:-

मा0   श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव,  पीठासीन  सदस्‍य।

मा0    श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री महेन्‍द्र कुमार मिश्रा ।

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍त श्री ए0के0 पाण्‍डेय ।

 

दिनांक:       

श्री चन्‍द्रभाल श्रीवास्‍तव, सदस्‍य (न्‍यायिक) द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

 

      उपर्युक्‍त समस्‍त अपीलों में विवेच्‍य बिन्‍दु समान हैं, अत: उपर्युक्‍त समस्‍त अपीलों को समेकित रूप में निर्णीत किया जा रहा है।

      उपर्युक्‍त समस्‍त अपीलें, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्‍या 109/11, 111/11, 112/11, 113/11, 114/11, एवं परिवाद संख्‍या 110/11 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०4.12.2012 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी हैं, जिसके द्वारा जिला फोरम ने परिवाद को स्‍वीकार करते हुए विपक्षी/अपीलार्थीगण बीमा कम्‍पनी को बीमा धनराशि 10 प्रतिशत ब्‍याज के साथ अदा करने का निर्देश दिया है।

      संक्षेप में, इस प्रकरण के आवश्‍यक तथ्‍य इस प्रकार हैं कि वादी के 6 वाहन यमुना एक्‍सप्रेस वे आगरा-नोयडा के बीच  ग्राम गुरेला में काम कर रहे थे।  दिनांक 14.8.2010 को आन्‍दोलन कर रहे किसानों ने मुआवजे को लेकर उग्र प्रदर्शन किया और उग्र प्रदर्शन के दौरान वहां खड़े हुए परिवादी के उक्‍त 6 वाहनों में आग लगा दी। चूंकि वाहन बीमित थे, अत: परिवादी ने अलग-अलग 6 परिवाद प्रस्‍तुत किए ।

हमने उपर्युक्‍त अपीलों के अंगीकरण के बिन्‍दु पर विद्वान अधिवक्‍तागण की बहस सुन ली है एवं अभिलेख का अनुशीलन कर लिया है। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने सर्वप्रथम यह तर्क लिया है कि सभी अपीलें पर्याप्‍त विलम्‍ब से दाखिल की गयी हैं और उनका कोई समुचित स्‍पष्‍टीकरण नहीं दिया गया है, ऐसी स्थिति में सभी अपीलें कालबाधित हैं और अंगीकृत किए जाने के अयोग्‍य हैं।

 अभिलेख के अवलोकन से स्‍पष्‍ट हैं कि जिला फोरम मथुरा द्वारा प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०4.12.२01२ को पारित किया गया है जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को दिनांक १३.12.२०1२ को प्राप्‍त हुयी है जबकि पांच अपीलें विलम्‍ब से 22.2.2013 को दाखिल की गयी हैं एवं अपील संख्‍या 431/13 दिनांक 06.3.2013 को दाखिल की गयी है। यहां यह भी उल्‍लेखनीय है कि 22.2.2013 को भी उक्‍त अपीलें दोष-पूर्ण रूप में दाखिल की गयीं थीं । अपीलार्थी द्वारा विलम्‍ब क्षमा किए जाने हेतु आवेदन दिनांक 30.3.2013 को दिया गया है और आवेदन के समर्थन में श्री राजेश तिवारी, मैनेजर लीगल रिलायंस जनरल इंश्‍योरेंस कं0 लि0 लखनऊ का शपथपत्र दिनांक 30.3.2013 दाखिल किया गया है। इस शपथपत्र में भी अपीलार्थी द्वारा कहा गया है कि जिला फोरम के निर्णय की प्रति 13.12.2012 को प्राप्‍त हो गयी थी और उक्‍त प्रति हेड आफिस मुम्‍बई दिनांक 30.12.2012 को प्रेषित कर दी गयी थी। मुख्‍यालय में पत्रावली अन्‍य पत्रावलियों से मिल गयी जिसके कारण मुख्‍यालय से अप्रूवल 02.02.2013 को प्राप्‍त हुआ। यहां यह भी ध्‍यान देने की बात है मुम्‍बई के किसी अधिकारी का शपथपत्र इस उप-कथन के समर्थन में दाखिल नहीं किया गया ‍जिससे यह प्रतीत होता है कि यह मनगढ़ंत आधार सिर्फ समय सीमा से बचने के लिए लिया गया है। मुम्‍बई से अप्रूवल 02.2.2013 को प्राप्‍त होने के उपरांत दोषपूर्ण अपील 22.2.2013 को दाखिल किया जाना भी अपीलार्थी की असावधानी का द्योतक है और अपील दाखिल करते समय भी विलम्‍ब क्षमा आवेदन न देना और उसके  एक माह से अधिक अवधि के उपरांत आवेदन एवं शपथपत्र देना भी अपीलार्थी की घोर असावधानी को सूचित करता है।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने यह तर्क लिया है कि प्रस्‍तुत प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए अपीलार्थी  के विरूद्ध उदार रूख अपनाया जाना उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की भावनाओं के विपरीत है। उनकी ओर से अपने तर्क के समर्थन में मा0 राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग उ0प्र0 द्वारा अपील संख्‍या 969/14 में पारित निर्णय दिनांक 12.8.2014 की प्रति दाखिल की गयी है जिसमें इस आयोग द्वारा मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय के विभिन्‍न निर्णयों को उद्धरित करते हुए विलम्‍ब के बिन्‍दु को निम्‍नलिखित रूप में व्‍याख्‍यायित किया गया है:-

‘’ उपरोक्‍त वर्णित तथ्‍यों के परिप्रेक्ष्‍य में यह अवलोकनीय है कि माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-1166/2006 बलवन्‍त सिंह बनाम जगदीश सिंह तथा अन्‍य में यह अवधारित किया गया है कि समय-सीमा में छूट दिए जाने सम्‍बन्‍धी प्रकरण पर यह प्रदर्शित किया जाना कि सदभाविक रूप से देरी हुई है, के अलावा यह सिद्ध किया जाना भी आवश्‍यक है कि अपीलार्थी के प्राधिकार एवं नियंत्रण में वह सभी सम्‍भव प्रयास किए गए हैं, जो अनावश्‍यक देरी कारित न होने के लिए आवश्‍यक थे और इसलिए यह देखा जाना आवश्‍यक है कि जो देरी की गयी है उससे क्‍या किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता था। इसी प्रकार राम लाल तथा अन्‍य बनाम रीवा कोलफील्‍ड्स लिमिटेड, AIR 1962 SC 361 पर माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि बावजूद इसके कि पर्याप्‍त कारण देरी होने का दर्शाया गया हो, अपीलार्थी अधिकार स्‍वरूप देरी में छूट पाने का अधिकारी नहीं हो जाता है क्‍योंकि पर्याप्‍त कारण दर्शाया गया है ऐसा अवधारित किया जाना न्‍यायालय का विवेक है और यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित नहीं हुआ है तो अपील में आगे कुछ नहीं किया जा सकता है तथा देरी को क्षमा किए जाने सम्‍बन्‍धी प्रार्थना पत्र को मात्र इसी आधार पर अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि पर्याप्‍त कारण प्रदर्शित कर दिया गया है तब भी न्‍यायालय को यह विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है कि न्‍यायालय के विवेक को देरी क्षमा किए जाने के लिए प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए अथवा नहीं  और  इस स्‍तर पर अपील से सम्‍बन्धित सभी संगत तथ्‍यों पर विचार करते हुए यह निर्णीत किया जाना चाहिए कि अपील में हुई देरी को अपीलार्थी की सावधानी और सदभाविक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में क्षमा किया जाए अथवा नहीं। यद्यपि स्‍वाभाविक रूप से इस अधिकार को न्‍यायालय द्वारा संगत तथ्‍यों पर कुछ सीमा तक ही विचार करने के लिए प्रयुक्‍त करना चाहिए।

     हाल ही में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा आफिस आफ दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल तथा अन्‍य बनाम लिविंग मीडिया इण्डिया लि0 तथा अन्‍य, सिविल अपील संख्‍या-2474-2475 वर्ष 2012 जो एस.एल.पी. (सी) नं0 7595-96 वर्ष 2011 से उत्‍पन्‍न हुई है, में दिनांक 24.02.2012 को यह अवधारित किया गया है कि सभी सरकारी संस्‍थानों, प्रबन्‍धनों और एजेंसियों को बता दिए जाने का यह सही समय है कि जब तक कि वे उचित और स्‍वीकार किए जाने योग्‍य स्‍पष्‍टीकरण समय-सीमा में हुई देरी के प्रति किए गए सदभाविक प्रयास के परिप्रेक्ष्‍य में स्‍पष्‍ट नहीं करते हैं तब तक उनके सामान्‍य स्‍पष्‍टीकरण कि अपील को योजित करने में कुछ महीने/वर्ष अधिकारियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्‍य में लगे हैं, को नहीं माना जाना चाहिए। सरकारी विभागों के ऊपर विशेष दायित्‍व होता है कि वे अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन बुद्धिमानी और समर्पित भाव से करें। देरी में छूट दिया जाना एक अपवाद है और इसे सरकारी विभागों के लाभार्थ पूर्व अनुमानित नहीं होना चाहिए। विधि का साया सबके लिए समान रूप से उपलब्‍ध होना चाहिए न कि उसे कुछ लोगों के लाभ के लिए ही प्रयुक्‍त किया जाए।

     आर0बी0 रामलिंगम बनाम आर0बी0 भवनेश्‍वरी, 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी, IV (2011) CPJ 63 (SC)  में  माननीय  सर्वोच्‍च  न्‍यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से स्‍पष्‍ट किया है, क्‍या उसका कोई औचित्‍य है? क्‍योंकि देरी को क्षमा किए जाने के सम्‍बन्‍ध में यही मूल परीक्षण है, जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किए जाने में हुई देरी को क्षमा किए जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किए जाने के जो प्राविधान दिए गए हैं, उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किए जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गयी अपील को  बिना सदभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किए हुए अंगीकार कर लिया जाता है तो इससे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानानुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण सम्‍बन्‍धी उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा।‘’

 

      उपर्युक्‍त सभी सम्‍मानित विधिक उद्धरणों के परिप्रेक्ष्‍य में इस प्रकरण के विश्‍लेषण से हम यह पाते हैं कि अपीलार्थी ने अपील प्रस्‍तुत करने में घोर असावधानी का परिचय दिया है और केवल समय सीमा का लाभ उठाने के लिए मनगढंत आधारों पर विलम्‍ब क्षमा किए जाने हेतु आवेदन प्रस्‍तुत किया गया है जबकि अपीलार्थी को जिला फोरम के निर्णय की प्रति 13.12.2012 को प्राप्‍त हो गयी थी, ऐसी स्थिति में 22.2.2013 को अपील दाखिल करना अपीलार्थी की घोर असावधानी का द्योतक है। अपीलार्थी की ओर से यहां तक कि विलम्‍ब क्षमा आवेदन भी अपीलें प्रस्‍तुत करने के एक माह बाद दिनांक 30.3.2013 को प्रस्‍तुत किया गया है जबकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील दाखिल करने की कालावधि 30 दिन दी गयी है।

      उपर्युक्‍त विवेचन के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपीलार्थी द्वारा दिया गया स्‍पष्‍टीकरण पर्याप्‍त एवं संतोष-जनक नहीं है और किसी भी रूप में अपीलार्थी का विलम्‍ब क्षमा आवेदन स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है।

      परिणामत:, समस्‍त अपीलें कालबाधित होने के कारण अस्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

      उपर्युक्‍त समस्‍त अपीलें तद्नुसार अस्‍वीकार की जाती हैं।

 प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए इन अपीलों के व्‍यय के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।

इस निर्णय की प्रति संबंधित अपील संख्‍या ३३६ सन २०१३, ३३७ सन २०१३, ३३८ सन २०१३, ३३९ सन २०१३, ४३१ सन २०१३ की पत्रावलियों पर रखी जाए।

      निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करा दी जाए।

 

 (चन्‍द्रभाल श्रीवास्‍तव)                   (संजय कुमार)

पीठा0 सदस्‍य (न्‍यायिक)                    सदस्‍य

      कोर्ट-2

(S.K.Srivastav,PA)

 

 

 

      

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अपील संख्‍या 335 सन 2013

 रिलायंस जनरल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी बनाम मै0 बहोरा कान्‍स्‍ट्रक्‍शन कं0

 

दिनांक -    

 निर्णय उद्घोषित किया गया जिसके अन्‍तर्गत निम्‍नांकित आदेश

पारित किया गया -

''उपर्युक्‍त समस्‍त अपीलें तद्नुसार अस्‍वीकार की जाती हैं।

 प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए इन अपीलों के व्‍यय के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।

इस निर्णय की प्रति संबंधित अपील संख्‍या ३३६ सन २०१३, ३३७ सन २०१३, ३३८ सन २०१३, ३३९ सन २०१३, ४३१ सन २०१३ की पत्रावलियों पर रखी जाए।

      निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करा दी जाए।''

 

       

 

 (चन्‍द्रभाल श्रीवास्‍तव)                           (संजय कुमार)

पीठा0 सदस्‍य (न्‍यायिक)                             सदस्‍य

      कोर्ट-2

(S.K.Srivastav,PA)

 

 
 
[HON'BLE MR. Chandra Bhal Srivastava]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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