राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2615/2003
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या 05/1999 में पारित आदेश दिनांक 01.07.2003 के विरूद्ध)
M/s. Pepsico Company India Holdings Limited, 3 DDLF, Corporate Park, S-Block, Qutub Enclave, Phase-II, Gurgaon, Haryana, through Area Manager, Pepsi Company India Holdings Limited, Bareilly (Uttar Pradesh). ....................अपीलार्थी/विपक्षी सं01
बनाम
1. Shri Aqil Hussain S/o Shri Sumeraj, Resident
Jumerat Ka Bazar, Pakbara, Tehsil & District
Moradabad.
2. Gupta Pepsi Agency, Near Bank of India, Pakbara,
Moradabad, through its Proprietor Pankaj Gupta,
Son of Namaloom, Resident of Pakbara,
Moradabad.
3. Gulpham Sweet Store, Kelsa Road, Pakbara,
Moradabad through its proprietor Israr Ahmad, Son
of Bhurey, Resident of Pakbara, Moradabad.
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी और विपक्षी सं02 व 3
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 30.03.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-05/1999 श्री आकिल हुसैन बनाम पेप्सी कम्पनी इण्डिया होल्डिंग लिमिटेड आदि में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश
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दिनांक 01.07.2003 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी मै0 पेप्सिको कम्पनी इण्डिया होल्डिंग्स लिमिटेड की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए आदेशित किया है कि परिवादी परिवाद के विपक्षीगण संख्या-1 और 2 से 3000/-रू0 क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी आदेशित किया है कि विपक्षीगण संख्या-1 और 2 दो माह के अन्दर यह धनराशि परिवादी को अदा करें। जिला फोरम ने विपक्षी संख्या-3 के विरूद्ध परिवाद खारिज कर दिया है।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री विकास सिंह उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया है। प्रत्यर्थीगण को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजी गयी है, जो अदम तामील वापस नहीं आयी है। अत: उन पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है। फिर भी उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं आया है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने दिनांक 25.05.1999 को परिवाद के विपक्षी संख्या-3 गुलफाम स्वीट स्टोर से एक कैरेट मि्रन्डा शीतल पेय 230/-रू0 में खरीदा, जिसमें 300 एम0एल0 की 24 बोतलें मि्रन्डा शीतल पेय भरी हुई थी। जब उसने उक्त बोतलों को मेहमान और परिवार वालों को पीने के लिए पेश किया तब एक खोली हुई बोतल में काली चीज दिखायी दी, जिसको निकालने पर ज्ञात हुआ कि कोई काला मरा हुआ कीड़ा था। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने कैरेट में बची हुई बोतलों को देखा तो ज्ञात हुआ कि एक अन्य बोतल में एक लाल
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दिखने वाली चीज है, जो लाल मांस के टुकड़े के समान दिख रही थी। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक खाली बोतल और एक बन्द बोतल उपरोक्त विपक्षी संख्या-3 को दिखाया तो उसके द्वारा बताया गया कि ये बोतलें उसने विपक्षी संख्या-2 गुप्ता पेप्सी एजेन्सी पाकबड़ा मुरादाबाद से खरीदी हैं और विपक्षी संख्या-2 ये बोतलें विपक्षी संख्या-1 पेप्सी कम्पनी इण्डिया होल्डिंग लिमिटेड से मंगवाता है, जो इन बोतलों का निर्माता है।
उपरोक्त कथन के साथ प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष उपरोक्त विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत किया और क्षतिपूर्ति की मांग की।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-3 ने उपस्थित होकर अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया और कहा कि ये बोतलें विपक्षी संख्या-1 द्वारा सील की गयी और बेची गयी हैं। वही इसका निर्माता है और उसने ये बोतलें उपरोक्त विपक्षी संख्या-2 से खरीदी हैं तथा दिनांक 25.05.1999 को परिवादी को बेची है।
जिला फोरम के समक्ष उपरोक्त विपक्षी संख्या-2 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा का निर्माण विपक्षी संख्या-1 द्वारा किया जाता है और उसके द्वारा निर्मित पदार्थ की बिक्री उसके द्वारा की जाती है। यदि इसमें कोई शिकायत है तो इसके लिए विपक्षी संख्या-1 निर्माता उत्तरदायी है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-1 निर्माता पेप्सी कम्पनी इण्डिया होल्डिंग लिमिटेड की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर यह कथन किया गया है कि यह परिवाद विपक्षी संख्या-3 की साजिश से गलत कथन के साथ प्रस्तुत किया गया है। उसने अपने लिखित कथन में यह भी कहा है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ का वह निर्माता नहीं है और न ही विक्रेता है और उसके विरूद्ध कोई वाद हेतुक नहीं है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के अवलोकन से यह स्पष्ट है
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कि विवादित पेय पदार्थ मि्रन्डा बोतल की जांच राजकीय जन विश्लेषक लखनऊ द्वारा करायी गयी है। तब राजकीय जन विश्लेषक ने अपनी आख्या प्रस्तुत की है। तदोपरान्त जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों और जन विश्लेषक की आख्या के आधार पर यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा का निर्माता है और प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 उसका वितरक है और प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 ने प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 से ये बोतलें खरीदकर प्रत्यर्थी/परिवादी को बेची हैं। जिला फोरम ने जन विश्लेषक की आख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा मानव उपयोग हेतु उपयुक्त नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा निर्मित नहीं है, बल्कि किसी अन्य द्वारा इसका निर्माण कर मि्रन्डा के नाम से इसका व्यापार किया गया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जन विश्लेषक से जांच ढाई वर्ष बाद करायी गयी है। इस कारण जन विश्लेषक की आख्या के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा मानव उपयोग हेतु उपयुक्त नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश त्रुटिपूर्ण और विधि विरूद्ध है। अत: निरस्त किए जाने योग्य है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
जन विश्लेषक की आख्या की प्रति संलग्नक ए-4 के रूप में अपील मेमो के साथ प्रस्तुत की गयी है। इसके अवलोकन से यह
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स्पष्ट है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा दिनांक 14.06.2002 को जन विश्लेषक के विश्लेषण हेतु प्रस्तुत किया गया है। तब जन विश्लेषक ने इसका परीक्षण किया है। जन विश्लेषक की आख्या से यह स्पष्ट है कि जन विश्लेषक ने प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा का परीक्षण कर जो आख्या प्रेषित की है, उसमें निष्कर्ष में अंकित किया है कि नमूने में फफूंदी विद्यमान है तथा स्टार्च की संरचना भी उपस्थित है। जन विश्लेषक की विश्लेषण आख्या में अन्य बिन्दुओं पर कोई प्रतिकूल तथ्य अंकित नहीं किया गया है। जन विश्लेषक की आख्या में ऐसा कोई प्रतिकूल तथ्य अंकित नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा में मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व पाए गए हैं। जन विश्लेषक आख्या से इस बात की पुष्टि नहीं होती है कि बोतल में मांस के टुकड़े जैसी कोई वस्तु पायी गयी है।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा दिनांक 25.05.1999 को परिवादी ने विपक्षी संख्या-3 से खरीदना बताया है और उसका रासायनिक परीक्षण दिनांक 14.06.2002 को अर्थात् करीब तीन साल बाद हुआ है। अत: इतनी लम्बी अवधि बीतने पर फफूंद का आना और स्टार्च की संरचना होना स्वाभाविक है। अत: दिनांक 14.06.2002 को हुए रासायनिक परीक्षण में प्रश्नगत पेय पदार्थ मि्रन्डा में फफूंद और स्टार्च पाए जाने के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि दिनांक 25.05.1999 को जब यह पेय पदार्थ सेवन हेतु खरीदा गया था, उस समय यह मानव उपयोग हेतु उपयुक्त नहीं था।
उपरोक्त विवेचना और सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा खरीदी गयी मि्रन्डा की बोतल में कोई लाल रंग का मांस का टुकड़ा पाए जाने की बात आधार युक्त नहीं दिखती है। सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों और रासायनिक परीक्षण आख्या को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने प्रश्नगत
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पेय पदार्थ मि्रन्डा को जो मानव उपयोग हेतु खरीद के समय अनउपयुक्त माना है, वह उचित और विधिसम्मत नहीं है। उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 01.07.2003 अपास्त करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1