राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील सं0- 734/2018
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कासगंज द्वारा परिवाद सं0- 03/2017 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.03.2018 के विरुद्ध)
Executive Engineer, Dakshinanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd., Electricity Distribution Division Kasganj District Kasganj.
……Appellant
Versus
Soran Singh S/o Naksu Lal, R/o Narauli, Post Kisrauli, District Kasganj.
……..Respondent
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 09.08.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 03/2017 श्री सोरन सिंह बनाम श्रीमान अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खण्ड में जिला उपभोक्ता आयोग, कासगंज द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 13.03.2018 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत निर्णय व आदेश के माध्यम से परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’प्रस्तुत परिवाद परिवादी सव्यय आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह एक माह के अन्दर याची निजी नलकूप विद्युत संयोजन के 1 ली0 औसत खपत के आधार पर याची द्वारा जमा धनराशि का समायोजन करते हुए संशोधित बिल जारी करे तत्पश्चात नलकूप संयोजन काटकर संयोजन को समाप्त करे तथा मानसिक, शारीरिक कष्ट व वाद व्यय के लिए दो हजार रूपया अदा किया जाना सुनिश्चित करे।‘’
प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने नलकूप विद्युत संयोजन प्राप्त करके बिल समय-समय पर जमा किया तथा दि0 29.01.2016 को 25000/-रूपया जमा किया किन्तु विभाग ने दि0 29.08.2016 को एक नोटिस जारी किया जिसके बाबत जानकारी प्राप्त करने पर विभाग स्वयं कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सका। नोटिस के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी दि0 08.09.2016 को 50,000/-रू0 जमा करने गया तथा कनेक्शन काटने का निवेदन किया। प्रत्यर्थी/परिवादी के आवेदन पर पत्र दि0 27.10.2016 को विभाग ने निर्गत किया कि इस संयोजन पर नवीन मीटर स्थापित किया जाये। नवीन मीटर की सीलिंग के अभाव में संयोजन काफी समय तक एन0वी0 चलता रहा। वर्तमान में प्रत्यर्थी/परिवादी बिल संशोधित कराकर संयोजन समाप्त कराना चाहा। मीटर सीलिंग कार्यालय में उपलब्ध न होने के कारण औसत खपत के आधार पर बिल संशोधित कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है। विभाग द्वारा पत्र निर्गत होने के बाद भी विभाग ने समस्या का हल नहीं किया और न ही संयोजन समाप्त किया, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि संयोजन निजी नलकूप प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुरोध पर आटा चक्की संयोजन एल0एम0वी0 में कर दिया गया जो वाणिज्यिक संयोजन है जिसका क्षेत्राधिकार मंच को प्राप्त नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने विभाग को देय बिल जमा नहीं किया तथा उसके द्वारा जमा 25,000/-रू0 संशोधित बिल में जमा कर दिया गया है। बिल दि0 25.02.2013 से दि0 25.11.2016 तक संशोधित कर दिया गया जिससे सम्बन्धित बकाया बिल जमा नहीं किया गया। दि0 08.09.2016 को मु0 50,000/-रू0 का बकाया बिल आंशिक रूप से भुगतान किया गया है। पूर्ण बिल जमा होने पर ही संयोजन विच्छेदन की कार्यवाही की जा सकती है। प्रत्यर्थी/परिवादी बिल बिना रीडिंग के आधार पर बनाये जा रहे हैं तथा माह 11/2016 तक संशोधित धनराशि 121979/-रू0 बकाया है, लेकिन प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा नहीं किया गया। पूर्ण बिल जमा होने के बाद विच्छेदन की कार्यवाही सम्भव है। अत: परिवाद निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गई है।
अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रश्नगत निर्णय पूर्णत: अवैध, अविधिक एवं मनमाना है तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एवं विद्युत अधिनियम के प्राविधान को नजरंदाज करते हुये प्रश्नगत निर्णय दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह अभिकथन किया था कि उसे विद्युत कनेक्शन 4301/055274 ट्यूबवेल चलाने हेतु दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने रू0 25,000/- का बिल दि0 29.01.2016 को दिया। इसके अतिरिक्त दि0 08.09.2016 को 50,000/-रू0 का बिल अदा किया था। अपीलार्थी/विपक्षी ने परिवाद के समय वादोत्तर में यह कथन किया कि उक्त कनेक्शन आरम्भ में प्रत्यर्थी/परिवादी को ट्यूबवेल के लिए दिया गया था, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ट्यूबवेल से कनेक्शन को बदलकर व्यावसायिक आटा चक्की चलाने हेतु आवेदन किया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी ने दि0 29.01.2016 को बकाया बिल 25,000/-रू0 अदा कर दिया, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी पर अधिक धनराशि बकाया थी जिसे आठ महीने से अधिक समय से अदा नहीं किया गया था। यद्यपि दि0 08.09.2016 को प्रत्यर्थी/परिवादी ने रू0 50,000/- भी जमा किये, किन्तु समस्त बकाया अदा नहीं हुआ। प्रत्यर्थी/परिवादी पर रू0 1,21,919/- बकाया था जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी ने जमा नहीं किया। यह बकाया प्रत्यर्थी/परिवादी के कनेक्शन की मीटर रीडिंग के अनुसार था। अपीलार्थी/विपक्षी के अनुसार विद्युत उपभोग की धनराशि विद्युत अधिनियम 2003 के अनुसार दी जाती है। इस कारण विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया निर्णय उचित नहीं है जो अपास्त किये जाने योग्य है। इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी/परिवादी का कनेक्शन औद्योगिक है जिस कारण वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। इस आधार पर भी परिवाद पोषणीय नहीं है एवं निरस्त किये जाने योग्य है। इन आधारों पर अपील स्वीकार किये जाने की प्रार्थना की गई है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मुख्य रूप से परिवाद में यह कथन किया गया है कि उसने आरम्भ में ट्यूबवेल हेतु कनेक्शन लिया था जिसको बदलकर व्यावसायिक आटा चक्की का कनेक्शन परिवर्तित करने का आवेदन दिया। दूसरी ओर अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग का कथन यह है कि उक्त ट्यबवेल के कनेक्शन में धनराशि रू0 1,21,919/- बकाया थी जिसकी अदायगी न किये जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के पूर्व का कनेक्शन समाप्त नहीं हो सका और इस कारण उसका कनेक्शन परिवर्तित नहीं किया गया। प्रस्तुत मामले में इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड, 2005 के क्लाज 4.40 में प्रक्रिया प्रदान की गई है जिसमें विद्युत उपभोक्ता एक टेरिफ शिड्यूल से दूसरे प्रकार से टेरिफ शिड्यूल में आवेदन कर सकता है जिसके लिए पूर्व के कनेक्शन का बन्द होना एवं नया कनेक्शन भिन्न वर्गीकरण का दिया जायेगा तथा पूर्व के कनेक्शन को बन्द कराने के लिए बकाया बिल उपभोक्ता द्वारा जमा किया जाना आवश्यक है। पूर्व के बिल को पूर्णत: बन्द कराने हेतु प्रक्रिया इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड 4.38 में दी गई है। 4.38 में किसी कनेक्शन को पूर्ण रूप से बन्द किये जाने हेतु प्रक्रिया है, जिसमें धारा सी में उपभोक्ता के आवेदन पर कनेक्शन बन्द कराये जाने की प्रक्रिया का विवरण 4.14जी में दिया गया है जो निम्नलिखित प्रकार से है:-
“A Consumer may terminate the agreement after giving a notice in the specified format. The notice period shall be 30 days for all consumers. Upon service of the said notice, the licensee shall arrange to take reading, disconnect the supply, remove meter, cable etc., deliver final bill including all arrears upto the date of disconnection with in 30 days from the date of said application. Upon payment, the Licensee shall issue receipt with FINAL BILL stamped on it, which shall be treated as No Dues Certificate.”
उपरोक्त प्रावधान के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उक्त प्रक्रिया में उपभोक्ता द्वारा आवेदन करने पर उसको विद्युत विभाग से नो ड्यूज सार्टीफिकेट अपने पूर्व कनेक्शन के सम्बन्ध में लाना होगा जिसके लिए पूर्ण बकाया की धनराशि जमा होना आवश्यक है। प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी/विपक्षी विभाग द्वारा 1,21,919/-रू0 का बकाया प्रत्यर्थी/परिवादी पर दर्शाया गया है, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने दि0 29.01.2016 को रू0 25,000/- तथा दि0 08.09.2016 को 50,000/-रू0 की धनराशि अदा कर दिया था। अत: उस पर कोई भी बकाया नहीं था, किन्तु एक ओर प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने पर बकाया धनराशि और इसके विपरीत स्वयं द्वारा विभिन्न तिथियों पर धनराशि जमा करने का पूर्ण विवरण नहीं दिया है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि प्रत्यर्थी/परिवादी पर कोई धनराशि उसके पूर्व के कनेक्शन ट्यूबवेल पर बकाया नहीं थी। दूसरी ओर अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग ने स्पष्ट रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी पर उपरोक्त धनराशि बकाया दर्शायी है जिसको प्रत्यर्थी/परिवादी विवादित कह रहा है। इसके अतिरिक्त यदि प्रत्यर्थी/परिवादी इस बकाया को गलत बताता हो तो भी प्रत्यर्थी/परिवादी को यह धनराशि जमा करके इस सम्बन्ध में कोई परिवाद लाना चाहिए। यह प्रावधान भी ‘’THE UTTAR PRADESH GOVERNMENT ELECTRICAL UNDERTAKINGS (DUES RECOVERY) ACT, 1958 (U.P. ACT No. XVI of 1958) Amended by U.P. no. XXVII of 1963’’ में स्पष्ट किया गया है।
उक्त अधिनियम की धारा 4 यह प्रदान करती है कि यदि विद्युत का उपभोक्ता किसी बकाया धनराशि से इंकार करता है जो विद्युत परिषद द्वारा बतायी जा रही है तो वह इस धनराशि को जमा करके इस सम्बन्ध में वाद ला सकता है। प्रावधान में यह भी स्पष्ट किया गया है कि विद्युत विभाग द्वारा मांगे गये बकाया प्रथम दृष्टया रूप से सही माने जायेंगे तथा इसको गलत साबित करने का भार प्रत्यर्थी/परिवादी पर है। धारा 4(1) निम्नलिखित प्रकार से है:-
“Where a notice of demand has been served on the consumer, or his authorized agent, under section 3, he may, if he denies his liability to pay the dues or any part there of , and upon deposit there of with the prescribed authority under protest in writing, institute a suit for the refund of the dues or part there of so deposited.
The suit referred to in sub-section (1) may be instituted at any time within six months from the date of deposite with the prescribed authority in the Court having jurisdiction, but subject to the result of the suit the notice or demand shall be conclusive proof of the dues mentioned therein.”
प्रस्तुत मामले में उक्त प्रावधान लागू होते हैं। प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्युत विभाग द्वारा बतायी गई बकाया धनराशि 1,21,919/-रू0 को गलत दर्शाया है, किन्तु एक ओर न तो यह धनराशि प्रावधानों के अनुसार जमा की गई है न ही इसको खण्डित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है। अत: यह धनराशि वर्तमान परिस्थिति में उचित मानी जायेगी। उपरोक्त धनराशि जमा न किये जाने और बकाया रहने के कारण अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत परिषद द्वारा उचित प्रकार से पूर्व नलकूप के कनेक्शन को स्थायी रूप से बन्द नहीं किया गया है और इस कारण इसको व्यावसायिक कनेक्शन के रूप में परिवर्तित भी नहीं किया गया है। अत: विद्युत परिषद अपीलार्थी द्वारा लिया गया निर्णय उचित है। प्रश्नगत मामले में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने बिना किसी आधार के नलकूप विद्युत संयोजन की बकाया धनराशि के स्थान पर औसत खपत के स्थान पर प्रत्यर्थी/परिवादी से धनराशि लिये जाने और तदनुसार पूर्व संयोजन बन्द करके नया संयोजन दिये जाने के निर्देश दिये हैं जो उपरोक्त प्रावधानों के प्रकाश में उचित नहीं कहा जा सकता है। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-2