Uttar Pradesh

StateCommission

A/3055/2017

Central Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Somir Kumar Bagchi - Opp.Party(s)

Sharad Kumar Shukla

09 Apr 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/3055/2017
( Date of Filing : 07 Nov 2017 )
(Arisen out of Order Dated 19/09/2017 in Case No. C/274/2015 of District Lucknow-I)
 
1. Central Bank Of India
Branch Faizbad Road Lucknow Through Branch Manager
...........Appellant(s)
Versus
1. Somir Kumar Bagchi
S/O Late Sri Poorash Chandra Bagchi R/O House No. 18 Amaltash Enclave Sector 8 Indira Nagar Lucknow
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 09 Apr 2019
Final Order / Judgement

सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                                                                                          अपील संख्‍या- 3055/2017

 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, प्रथम लखनऊ  द्वारा परिवाद संख्‍या- 274/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-09-2017 के विरूद्ध)

 

सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच फैजाबाद रोड, लखनऊ द्वारा सीनियर ब्रांच मैनेजर, डिस्ट्रिक लखनऊ।

                                                                                                                          अपीलार्थी/विपक्षी

                              बनाम 

सोमीर कुमार बागची, पुत्र स्‍व० श्री पुवास चन्‍द्र बागची, निवासी हाउस नं० 18  अमलताश इन्‍क्‍लेव, सेक्‍टर 8, इन्दिरा नगर, लखनऊ।

                                                                                                                         प्रत्‍यर्थी/परिवादी

मक्ष:-

 माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री शरद कुमार शुक्‍ला

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित :    विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश्‍वर मेहरोत्रा

 

दिनांक- 24-05-2019.

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

                                                                                                             निर्णय

 

परिवाद संख्‍या– 274 सन् 2015 सोमीर कुमार बागची बनाम सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच फैजाबाद रोड लखनऊ में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रथम लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक              19-09-2017 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

2

 

आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुये निम्‍न आदेश पारित किया है:- ‍ 

" परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह 45 दिन के अन्‍दर परिवादी को नो ड्यूज सर्टिफिकेट एवं उसके द्वारा जमा सारे कागजात उनको वापस करावें एवं परिवादी से कोई अतिरिक्‍त भुगतान नहीं लेगे। विपक्षी, परिवादी को 50,000/-रूपये मानसिक, शारीरिक क्षति के लिए तथा 5000/-रू० वाद व्‍यय के रूप में अदा करेंगे। विपक्षी अनुचित व्‍यापार प्रथा के लिए भी परिवादी को 20,000/-रूपये अदा करेंगे।

जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री शरद कुमार शुक्‍ला और प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश्‍वर मेहरोत्रा उपस्थित आए हैं।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

     अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से 5,52,250/- रू० का गृह ऋण लिया था जिसका खाता संख्‍या- 3008670454 है और निश्चित ब्‍याज  दर 10.75 प्रतिशत वार्षिक है। यह ऋण 93 माह में 7,566/-रू० प्रतिमाह की दर से वापस करना था।

3

 

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि वह हिन्‍दुस्‍तान एरोनाटिक्‍स लखनऊ का कर्मचारी था और उसके उपरोक्‍त ऋण की सारी किस्‍तें उसके वेतन से कटती थी। उसकी कटौती में कोई चूक नहीं हुयी है। लोन की किस्‍तें दिनांक 30-06-2015 को समाप्‍त होनी थी। परन्‍तु इस बीच अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने उसे पत्र दिनांक 13-08-2014 के द्वारा सूचित किया कि मासिक किस्‍तें बदलकर 7566/-रू० से 8,766/-रू० प्रतिमाह हो गयी हैं। परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने इसका कोई कारण नहीं बताया कि मासिक किस्‍तों में 1200/-रू० प्रति माह की बढ़ोत्‍तरी क्‍यों की गयी है। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी का यह कृत्‍य अनुचित व्‍यापार प्रथा एवं सेवा में कमी है। परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहता था इसलिए उसने 1200/-रू० प्रति माह के हिसाब से  पत्र पाने के बाद भी भुगतान शुरू कर दिया और सारी किस्‍तों को अदा करने के बाद प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपना लोन एकाउन्‍ट बन्‍द कर सारे कागजात वापस लेने का प्रयास अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से किया परन्‍तु विपक्षी बैंक ने नहीं दिया और उसे परेशान किया जाता रहा। तब उसने दिनांक 11-05-2015 को विधिक नोटिस अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को भेजा जिसका कोई जवाब नहीं दिया गया। अत: विवश होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

     जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है और कहा है कि परिवाद भ्रामक एवं तथ्‍यहीन कथन के साथ प्रस्‍तुत

 

 

4

किया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है।

     लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि पक्षों के बीच समझौता हुआ था। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विरूद्ध 1,37,472/-रू० एवं ब्‍याज

अभी बकाया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने 1,37,472/-रू० अभी अदा नहीं किया है। समझौते के अनुसार नो आब्‍जेक्‍शन सर्टिफिकेट देने के बाद ही उसके सारे कागजात वापस होंगे।

     जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने निश्चित ब्‍याज दर बढ़ाकर गलती की है जो अनुचित व्‍यापार प्रथा है। जिला फोरम ने यह भी माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी को नो ड्यूज सर्टिफिकेट एवं जमा कागजात वापस न देकर सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।

     अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने 5,52,250/-रू० का गृह ऋण अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से लिया था और दिनांक 02-08-2008 को ऋण करार पत्र निष्‍पादित किया है। ऋण करार पत्र की शर्त से प्रत्‍यर्थी/परिवादी बाधित है। ऋण करार पत्र के क्लाज-2 में स्‍पष्‍ट प्राविधान है कि बैंक ब्‍याज दर या ईएमआई में संशोधन कर सकता है। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि करार पत्र के किसी प्राविधान के पालन के सम्‍बन्‍ध में जिला फोरम हस्‍तक्षेप नहीं कर सकता है।

अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपीलार्थी बैंक वित्‍तीय संस्‍था है और रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के गाइड लाइन एवं गर्वनमेंट्स आफ इण्डिया के निर्देश से नियंत्रित है।

5

 

अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि एवं नियम के विरूद्ध है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने ऋण करार पत्र के अनुसार सम्‍पूर्ण ऋण की धनराशि का भुगतान कर दिया है। अत: उसके जिम्‍मा अब कोई धनराशि अवशेष नहीं है।

     मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

     ऋण करार पत्र की प्रति अपील में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने प्रस्‍तुत किया है जिसमें ब्‍याज दर 10.75 प्रतिशत (Fix) अंकित है। अत: इस ब्‍याज दर में बैंक किसी भी आधार पर बढ़ोत्‍तरी नहीं कर सकता है। इस सम्‍बन्‍ध में जिला फोरम का निर्णय उचित है।

     पत्र दिनांक 13-08-2014 के द्वारा ऋण की मासिक किस्‍त 7566/-रू० बढ़ाकर 8,766/-रू० किये जाने का कारण अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता ने यह बताया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी वर्ष 2015 में रिटायर होने जा रहा था। अत: बैंक ने मासिक किस्‍त की धनराशि इसलिए बढ़ायी कि ऋण धनराशि की वसूली उसके सेवा काल में हो जाए। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने मासिक किस्‍त बढ़ाने का कोई विवाद नहीं किया है और बढ़ी किस्‍त जमा कर दिया है। अत: अब इसका विवाद नहीं है।

     प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने तय ब्‍याज दर पर निर्धारित किस्‍तें जमा कर दिया है और बैंक को करार पत्र के विरूद्ध ब्‍याज दर बढ़ाने का अधिकार नहीं है। अत: जिला फोरम ने जो निर्णय व आदेश नो ड्यूज सर्टीफिकेट जारी करने एवं

 

 

6

कागजात वापस करने हेतु पारित किया है वह उचित है। उसमें किसी हस्‍तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।

     जिला फोरम ने जो मानसिक एवं शारीरिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति 50,000/-रू० प्रदान किया है उसे कम कर 30,000/-रू० किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो अनुचित व्‍यापार प्रथा हेतु 20,000/-रू० दिया है उसे अपास्‍त किया जाना उचित है।

     जिला फोरम ने जो 5000/-रू० वाद व्‍यय दिया है वह उचित है।

     उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम ने जो प्रत्‍यर्थी/परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति 50,000/-रू० प्रदान किया है उसे कम कर 30,000/-रू० किया जाता है और जो अनुचित व्‍यापार प्रथा हेतु 20,000/-रू० प्रदान किया है उसे अपास्‍त किया जाता है।

     उपरोक्‍त संशोधन के साथ जिला फोरम का शेष निर्णय व आदेश कायम रहेगा।

     अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

     धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

 

                                         (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                                                   अध्‍यक्ष                                                             

         

कृष्‍णा, आशु0

कोर्ट नं01

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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