(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1240/2019
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कासगंज द्वारा परिवाद सं0- 06/2019 में पारित निर्णय और आदेश दि0 08.08.2019 के विरूद्ध)
Adhishashi abhiyanta, Dakchhinanchal vidyut vitran nigam ltd., Vidyut vitran khand, Kasganj.
…….Appellant
Versus
Som dutt, Son of Sri Nepal singh, Resident of Raipur Patna, Post Nawabganj, District Kasganj.
…….Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार वर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 12.10.2020
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 06/2019 सोमदत्त बनाम अधिशासी अभियंता दक्षिणांचल विद्युत वितरण खण्ड में जिला फोरम, कासगंज द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 08.08.2019 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’प्रस्तुत वाद वादी विरुद्ध विपक्षी सव्यय आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह दो माह के अन्दर मृत दोनों गायों के संदर्भ में क्षतिपूर्ति 160000/-रूपया (एक लाख साठ हजार रूपया) तथा मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति व वाद व्यय के एवज में 10000/-रूपया (दस हजार रूपया) अदा किया जाना सुनिश्चित करे।
उपरोक्त निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन न करने की स्थिति में 7% (सात प्रतिशत) वार्षिक साधारण ब्याज, क्षतिपूर्ति धनराशि पर वाद योजित करने की तिथि 4/1/2019 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक अदा करना होगा।‘’
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा उपस्थित आये हैं।
हमने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरुद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसके गॉंव में लगे विद्युत पोल में कई दिनों से करण्ट आ रहा था जिसकी शिकायत उसने अपीलार्थी/विपक्षी से दूरभाष से और व्यक्तिगत रूप से की, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत लाइन ठीक कराने हेतु सुविधा शुल्क मॉंग रहे थे जिसे वह नहीं दे सका और अपीलार्थी/विपक्षी ने विद्युत पोल में आ रही विद्युत करण्ट को सही नहीं किया। इसी बीच प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा क्रय की हुई दो गायें गॉंव से बाहर खेत पर चर रही थीं जो विद्युत पोल से आ रहे विद्युत करण्ट के लगने से मर गईं। उसने तुरंत सूचना अपीलार्थी/विपक्षी व थाना सोरों को दिया और दोनों गायों का पोस्टमार्टम कराया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि वह दोनों गायों की कीमत 1,60,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के रूप में अपीलार्थी/विपक्षी से पाने का अधिकारी है, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने उसे कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी को दि0 22.12.2018 को नोटिस भेजा, फिर भी कोई क्षतिपूर्ति उसे अदा नहीं की गई तब उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है:-
अ. यह कि परिवादी की उपरोक्त मृत दोनों गायों की क्षतिपूर्ति मु0 1,60,000/-रू0 विपक्षी से 12 प्रतिशत ब्याज के साथ परिवादी को दिलाये जाने की कृपा की जाये।
ब. यह कि परिवादी को विपक्षी के बैलफेजा के कारण हुई शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति व वाद व्यय की पूर्ति हेतु मु0 20,000/-रू0 विपक्षी से परिवादी को दिलाये जाने की कृपा की जाये।
स. यह कि राय फोरम में जो भी अन्य अनुतोष मुफीद हो वह भी विपक्षी से परिवादी को दिलाये जाने की कृपा की जाये।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा गया है कि गॉंवों में लगे पोल में आ रही करण्ट की किसी ने लिखित शिकायत नहीं की थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने गाय का मरना गॉंव के बाहर बताया है और करण्ट गॉंव के पोल में आना बताया है। अत: उसके दोनों कथन में विरोधाभास है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि औपचारिकतायें पूर्ण कराकर प्रपत्र जमा कर दिया गया है विभागीय आदेश पाते ही भुगतान कर दिया जायेगा। लापरवाही स्वयं परिवादी की है जिसके लिए वादी उत्तरदायी है।
लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि कथित घटना एक्सीडेंट की श्रेणी में आती है। गाय व विद्युत विभाग एक-दूसरे के उपभोक्ता नहीं हैं। अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत परिवाद स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य एवं साक्ष्य के विरुद्ध है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है और न ही परिवाद पत्र में ऐसा अभिकथित है। अत: परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित दुर्घटना गॉंव के बाहर इलेक्ट्रिक पोल से होना बताया गया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश दोषपूर्ण है और निरस्त होने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता है और उसकी दोनों गायें अपीलार्थी/विपक्षी की लापरवाही के कारण करण्ट लगने से मरी हैं। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी क्षतिपूर्ति अपीलार्थी/विपक्षी से पाने का अधिकारी है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य है। जिला फोरम का निर्णय उचित है और इसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Andhra pradesh eastern power distribution co. ltd. (APEPDCL) Versus Janni suramma & Ors. के वाद में दिया गया निर्णय जो I (2016) CPJ 558 (NC) में प्रकाशित है संदर्भित किया है जिसमें मृतक गॉंव के बाहर आम के बाग में लकड़ी काटने हेतु गया था और वहीं पर वह हाईटेंशन इलेक्ट्रिक वायर्स के नीचे जाने के कारण छू गया और करण्ट लगने से मर गया। ऐसी स्थिति में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने इस वाद में यह माना है कि मृतक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विद्युत विभाग का उपभोक्ता नहीं है। अत: परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने अपने इस निर्णय में Shankar sitaram jadhav V. Maharashtra state electricity board III (1994) CPJ 50 (NC) के वाद में पारित अपने पूर्ण निर्णय का उल्लेख किया है और उक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत पर विश्वास व्यक्त किया है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत किया जा रहा है:-
Learned Counsel for petitioners has placed reliance on judgment of this Commission in III (1994) CPJ 50 (NC) Shankar sitaram jadhav V. Maharashtra state electricity board, in which it was observed that complainant’s son who was electrocuted and died during providing help to someone else who had touched live electrical wire on the public road does not fall within the purview of ‘consumer’ as line which got snapped was not the supply line to complainant’s residence but was general transmission line. In the case in hand’ admittedly, complainant went outside the village for cutting firewood and accidentally touched hi-tension live electrical wire and died on the spot and there is nothing on record to prove that this line was near deceased’s residence or supply to deceased’s residence was provided by this line and in such circumstances, deceased does not fall within the purview of ‘consumer’.
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह नहीं कहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी का विद्युत कनेक्शन उसके पास है और वह अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी का कनेक्शन होने और अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता होने के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किया है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि वह अपनी दोनों गायों को गॉंव के बाहर खेत पर चरा रहा था तभी उसकी दोनों गायें विद्युत पोल से आ रही विद्युत करण्ट लगने से मर गईं। अत: यह स्पष्ट है कि दोनों गायों को करण्ट लगने की दुर्घटना गॉंव के बाहर खेत पर हुई है।
धारा 161 विद्युत अधिनियम 2003 के अंतर्गत इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर द्वारा की गई जॉंच की जॉंच आख्या की जो प्रति अपील की पत्रावली में पृष्ठ 17 और 18 पर संलग्न है के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर की जॉंच में यह पाया गया है कि ग्राम रायपुर में श्री गजेन्द्र सिंह पुत्र श्री विजय सिंह की खाली जगह में लगे पी0सी0सी0 पोल के सर्विस कनेक्शन बाक्स में आ रही केबल का इंसुलेशन क्षतिग्रस्त हो जाने व क्षतिग्रस्त इंसुलेशन वाला भाग सर्विस केबल बाक्स के सम्पर्क में आ जाने से दि0 27.07.2018 को पोल के साथ लगे जी0आई0 अर्थ वायर के माध्यम से बारिश के कारण पोल के आसपास की गीली जमीन चार्ज हो गई जिससे पोल के पास खाली जगह में बंधी श्री सोमदत्त पुत्र श्री नेपाल सिंह निवासी ग्राम रायपुर पोस्ट नवाबगंज जिला कासगंज की दो गाय की मृत्यु करण्ट लगने से हो गई है।
इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर की आख्या में यह उल्लेख नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का कोई विद्युत कनेक्शन है और उक्त कनेक्शन की विद्युत आपूर्ति करने वाली लाइन में कमी के कारण यह दुर्घटना घटित हुई है। इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर की उपरोक्त आख्या में अपीलार्थी/विपक्षी के अधिष्ठान में त्रुटि पायी गई है और उसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी के अनुरक्षण स्टाफ को उत्तरदायी माना गया है। अत: इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर ने अपीलार्थी/विपक्षी को पत्र लिखकर प्रत्यर्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति प्रदान करने की कार्यवाही की संस्तुति प्रदान की है। अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन में भी कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु नियम के अनुसार विभागीय कार्यवाही की जा रही है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना और परिवाद पत्र के कथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह मानने उचित आधार नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता है और उसको आपूर्ति की जा रही विद्युत लाइन के आरक्षण में दोष के कारण यह घटना घटित हुई है। अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद ग्राह्य नहीं है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश अधिकार रहित है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम कोई विद्युत कनेक्शन होना और प्रत्यर्थी/परिवादी का विद्युत विभाग का उपभोक्ता होना न तो अभिकथित है और न ही इसका कोई साक्ष्य प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने Paramount Digital Colour Lab & Others Vs Agfa India pvt. Ltd & Others III (2018) CPJ 12 (SC) के निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि
“There cannot be any dispute that the intial burden is on the appellants (Complainants) to prove that they fall within the definition of consumer.”
मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत से यह स्पष्ट है कि यह साबित करने का भार प्रत्यर्थी/परिवादी का है कि वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में आता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य है, परन्तु उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने न तो परिवाद पत्र में अपने को विद्युत विभाग का उपभोक्ता होना अभिकथित किया है न ही विद्युत विभाग का उपभोक्ता होने के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है। ऐसी स्थिति में मा0 राष्ट्रीय आयोग एवं मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवाद, प्रत्यर्थी/परिवादी को इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह सक्षम न्यायालय या अधिकारी के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरुद्ध विधि के अनुसार कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र है।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाए।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0 कोर्ट नं0- 1