अपील संख्या– 3147/2017
मैग्मा एच०डी०आई० जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम सोबरन सिंह
आदेश
दिनांक- 09-11-2021
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 181 सन 2016 सोवरन सिंह बनाम शाखा प्रबन्धक, मैग्मा जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, औरैया द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 23-08-2017 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है और अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है।
अपीलार्थी की ओर से एक प्रार्थना-पत्र दिनांक 21-11-2017 अपील प्रस्तुत करने में हुए 53 दिन के विलम्ब को क्षमा करने के लिए दिया गया है जिसके साथ शपथ-पत्र भी संलग्न है।
हमने विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी को सुना और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
अपीलार्थी ने अपने शपथ-पत्र में कहा है कि प्रश्नगत निर्णय दिनांक 23-08-2017 उसके संज्ञान में दिनांक 30-08-2017 को आया और उसी दिन उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त की गयी। अपीलार्थी ने अपने अधिवक्ता से अभिलेख दिनांक 05-09-2017 को प्राप्त किये और फिर अपने दावे के बारे में विभाग को सूचित किया। अपीलार्थी ने दिनांक 15-09-2017 के आदेश को विचारार्थ प्रेषित किया और उच्च अधिकारियों ने इसमें कुछ त्रुटियां पायीं और उन्होंने शपथी को दिनांक 20-09-2017 को विधि विशेषज्ञ की राय लेने के लिए कहा। शपथी ने दिनांक 27-09-2017 को अपने अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी
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को पूर्ण पत्रावली विधिक राय हेतु प्रेषित की। अधिवक्ता महोदय ने कुछ अन्य अभिलेखों की मांग की जो ओ०डी० क्लेम विभाग द्वारा व्यवस्था की जानी थी और फिर इन अभिलेखों की व्यवस्था करने के उपरान्त उन्हें दिनांक 23-10-2017 को अधिवक्ता महोदय को प्रेषित किया। अधिवक्ता महोदय ने दिनांक 30-10-2017 को विस्तृत विधिक राय प्रस्तुत की जो दिनांक 31-10-2017 को उच्च अधिकारियों को प्रेषित की गयी।
उच्च अधिकारी ने दिनांक 06-11-2017 को शपथी को न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया। इसके पश्चात 25,000/-रू० के ड्राफ्ट के लिए लिखा-पढ़ी हुयी जो दिनांक 17-11-2017 को प्राप्त हुआ। उसके पश्चात ड्राफ्ट प्राप्त होने के बाद दिनांक 20-11-2017 को अधिवक्ता महोदय को ड्राफ्ट प्राप्त कराया गया जिन्होंने ड्राफ्ट प्राप्त किया और अपील प्रस्तुत किया। इस कार्य में 53 दिन का विलम्ब हुआ है जो दुराशय नहीं था बल्कि आकस्मिक हुआ है। अत: अपील को प्रस्तुत करने में हुआ विलम्ब जानबूझकर नहीं किया गया है। न्यायहित में उचित है कि अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना और पत्रावली का परिशीलन किया।
वर्तमान मामले में विद्वान जिला आयोग में दिनांक 23-08-2017 को निर्णय उद्घोषित हुआ जिसकी प्रति दिनांक 30-08-2017 को जारी हुयी। विद्वान जिला आयोग के समक्ष बीमा कम्पनी उपस्थित हुयी थी। उसके बावजूद नकल लेने में सात दिन का विलम्ब हुआ है। प्रत्यर्थी की ओर से आपत्ति की गयी कि विलम्ब जानबूझकर किया गया है और यह अपीलार्थी के
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विभाग की लापरवाही का द्योतक है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि विभागीय प्रक्रिया में समय लगता है, इसलिए विलम्ब हुआ है।
यहॉं पर प्रश्न यह उठता है कि क्या विभागीय कार्यवाही में विलम्ब होने का आधार अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने के लिए विधिक रूप से मान्य है ? नियम प्रत्येक के लिए वही लागू होता है जो नियम में दिया हुआ है। शपथपत्र में दिया गया आधार उचित और संतोषजनक नहीं है। विलम्ब को क्षमा किये जाने हेतु प्रत्येक दिवस का सुसंगत स्पष्टीकरण सहित प्रार्थना पत्र दिया जाना चाहिए और हर दिन के विलम्ब को स्पष्ट करना चाहिए यही विधि की मंशा है, परन्तु इस मामले में ऐसा नहीं है।
इस सम्बन्ध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक विशिष्ट अधिनियम है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को त्वरित सेवा प्रदान करना है। यहॉं पर अगर लिखित कथन भी निश्चित समय अर्थात 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत नहीं किया जाता है या न्यायालय 15 दिन का अतिरिक्त समय नहीं देता है तब लिखित कथन विलम्ब से प्रस्तुत करने पर स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी कारण से इस अधिनियम का उद्देश्य व्यापक है। अत: विलम्ब क्षमा नहीं किया जाना चाहिए।
विलम्ब के सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक सिद्धांतो को भी देखना आवश्यक है।
In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that "condonation cannot be a matter of routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation". In the instant matter, the appellants have not given any explanation of delay for each and every day. In U.P. Avas
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Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandey, IV (2009) CPJ 217 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation." In the instant matter, the cause shown by the appellants has been vehemently denied by the respondent on cogent reasons. Furthermore, In Anshul Agarwal Vs. New Okhla Industrial Development Authority, IV (2011) CPJ 62 (SC), it was observed by the Hon'ble Apex Court that
"it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind
that special period of limitation has been prescribed in the Consumer Protection Act for filing appeals and revisions in consumer matter and the objection of expeditious adjudication of consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition against the orders of Consumer Fora."
उपरोक्त स्थिति में हम इस निष्कर्ष पर पहॅुचते हैं कि इस मामले में विलम्ब का कोई सन्तोषजनक और समुचित स्पष्टीकरण देने में अपीलार्थी असफल रहे हैं। अत: प्रस्तुत अपील में विलम्ब क्षमा होने योग्य नहीं है तथा यह अपील कालबाधा के आधार पर निरस्त होने योग्य है।
वर्तमान अपील, कालबाधित होने के कारण निरस्त की जाती है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा-आशु०
कोर्ट नं०2.