सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 265/2016
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या- 369/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18-11-2015 के विरूद्ध)
श्रीराम जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 E-8, EPIP, RIICO इण्डस्ट्रियल एरिया, सीतापुर जयपुर (राजस्थान) 302022 ब्रांच आफिस 16, चिन्तल हाउस, स्टेशन रोड लखनऊ द्वारा इट्स मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती वीना यादव, पत्नी श्री बाबू सिंह, निवासी- राजेन्द्र नगर, पुखरांया वार्ड नं. 17 जिला रमाबाई नगर वर्तमान निवासी-फायर स्टेशन, घाटमपुर कानपुर नगर।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
माननीय सदस्य, श्री गोवर्धन यादव
माननीय सदस्य, श्री विकास सक्सेना
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार के सहयोगी
श्री आनन्द भार्गव
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री प्रमेन्द्र वर्मा
दिनांक- 10-11-2020
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या– 369 सन् 2012 श्रीमती वीना यादव बनाम मेसर्स श्रीराम जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0, में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक- 18-11-2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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जिला आयोग ने आक्षेपित निर्णय के द्वारा परिवाद एकपक्षीय एवं आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय एवं आंशिक रूप से इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अन्दर विपक्षी परिवादिनी को अभिकथित बीमित वाहन की धनराशि रू० 1,95,000/-(रू० एक लाख पन्चानवे हजार मात्र) तथा रू0 5000/- वाद व्यय के रूप में अदा करें। ‘’
जिला आयोग के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी श्रीराम जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0, ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार के सहयोगी श्री आनन्द भार्गव और प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रमेन्द्र वर्मा उपस्थित आए है।
हमने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभय-पक्ष की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया है। हमने उभय-पक्ष की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी श्रीराम जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0, के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह वाहन संख्या- यू०पी० 77 ई-4680 की पंजीकृत स्वामी है और उसका यह वाहन अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी संख्या- 108025 /31 /11/ 017085 से दिनांक 30-11-2010 से 29-11-2011 तक की अवधि हेतु बीमित था। बीमा अवधि में ही दिनांक 29-03-2011 को उसका
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यह वाहन उसकी अनुमति के बिना चालक मोहम्मद साईद व उसका भाई लेकर चला गया और बाद में यह सूचित किया कि प्रश्नगत वाहन चोरी हो गया है। अत: सन्देह के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपने ड्राइवर मोहम्मद साईद के विरूद्ध दिनांक 30-03-2011 को धारा 406 भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज करायी और घटना की सूचना अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को दिया। बाद में पंजीकृत डाक के माध्यम से दिनांक 02-04-2011 को लिखित रूप से सूचना अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को भेजा।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसका उपरोक्त वाहन 2,60,000/-रू० के मूल्य पर बीमित था। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने उसकी क्षति की भरपायी नहीं की। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी परन्तु वह उपस्थित नहीं हुआ है। अत: जिला आयोग ने अपीलार्थी, जो परिवाद में विपक्षी है पर नोटिस का तामीला पर्याप्त मानते हुए परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी को नोटिस नहीं मिली । इस कारण अपीलार्थी/विपक्षी जिला आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ है। बाद में सूचना मिलने पर अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला आयोग के समक्ष उपस्थित होने का प्रयास किया गया परन्तु जिला आयोग ने आदेश दिनांक 23-06-2015 के द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को सुनवाई का अवसर देने से इन्कार कर दिया।
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अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 02-04-2011 को जो लिखित सूचना बीमा कम्पनी को देना बताया है उसको उसने साबित नहीं किया है। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय पालिसी की शर्त और नियम के विरूद्ध है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने चोरी की कथित घटना दिनांक 29-03-2011 के बाद दिनांक 30-03-2011 को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराया है और बीमा कम्पनी को भी सूचना उसी दिन दिया है। उसके बाद लिखित सूचना बीमा कम्पनी को दिनांक 02-04-2011 को रजिस्टर्ड डाक से भेजा है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बिना किसी उचित आधार के बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया है। जिला आयोग का निर्णय व आदेश तथ्य और विधि के अनुसार उचित है। अपील बल रहित है और निरस्त किये जाने योग्य है।
हमने उभय-पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी का प्रश्नगत वाहन अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से संगत तिथि पर बीमाकृत होना अविवादित है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद पत्र में प्रश्नगत वाहन की कथित चोरी की घटना दिनांक 29-03-2011 की बतायी है जबकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 30-03-2011 को 15.20 बजे घटना की रिपोर्ट थाना छावनी कानपुर नगर में दर्ज करायी है जिसमें उल्लेख है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का चालक मोहम्मद सईद दिनांक 29-03-2011 को दोपहर 3.00 बजे गाड़ी लेकर स्टेशन कैण्ट बता कर गया और उसने व उसके भाई ने उसकी गाड़ी गायब कर दी। पूछने पर चोरी जाने का बहाना कर रहे हैं। पुलिस
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ने वाद विवेचना आरोप-पत्र प्रत्यर्थी/परिवादिनी के चालक मोहम्मद सईद व एक अन्य के विरूद्ध न्यायालय प्रेषित किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी के चालक व उसके भाई प्रत्यर्थी/परिवादिनी के प्रश्नगत वाहन को उसकी अनुमति के बिना लेकर गये हैं और वापस आकर वाहन चोरी होना बताया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में कथित विवरण के आधार पर वाहन की चोरी मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कथित घटना के दूसरे दिन पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का वाहन उपरोक्त प्रकार से गायब होने पर पहले उसके द्वारा वाहन की तलाश किया जाना और उसके बाद पुलिस में रिपोर्ट दर्ज किया जाना स्वाभाविक है। अत: प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में जो एक दिन का विलम्ब हुआ है उसका पर्याप्त कारण दिखता है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने लिखित तर्क में कहा है कि बीमा कम्पनी को कथित घटना की सूचना नहीं दी गयी है। अत: बीमा कम्पनी ने न तो प्रत्यर्थी/परिवादिनी का क्लेम रेप्युडिएट किया है और न ही बन्द किया है। इसके साथ ही लिखित तर्क में बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट धारा- 406 भारतीय दण्ड संहिता के अपराध हेतु दर्ज करायी गयी है चोरी के अपराध हेतु नहीं। अत: बीमा कम्पनी प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत वाहन की क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी नहीं है। परन्तु उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि कथित ढंग से वाहन गायब किया जाना धारा-378 के अन्तर्गत चोरी की परिधि में आता है। हमारा यह निष्कर्ष माननीय राष्ट्रीय
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आयोग द्वारा जागरूक नागरिक एवं एक अन्य बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 के वाद में दिये गये निर्णय जो ।। (2018) सी०पी०जे० 158 एन.सी. पर आधारित है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 02-04-2011 को बीमा कम्पनी को रजिस्टर्ड डाक से सूचना प्रेषित किया जाना परिवाद पत्र में अभिकथित किया है परन्तु जिला आयोग के समक्ष रजिस्ट्री रसीद प्रस्तुत नहीं किया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला आयोग के समक्ष बीमा कम्पनी को भेजी गयी नोटिस दिनांक 31-03-2011 की प्रति प्रस्तुत किया है जैसा कि जिला आयोग के निर्णय से स्पष्ट है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व एक अन्य 2018 (1) CPR 907 (SC) के निर्णय में स्पष्ट मत व्यक्त किया है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब से सूचना के आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-
“It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid ground. Rejection of the claims on purely technical
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grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason of delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.”
आई0आर0डी0ए0 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक 20.09.2011 में भी निम्न दिशा निर्देश दिये गये हैं:-
“The insurers’ decision to reject a claim shall be based on sound logic and valid grounds. It may be noted that such limitation clause does not work in isolation and is not absolute. One needs to see the merits and good spirit of the clause, without compromising on bad claims. Rejection of claims on purely technical grounds in a mechanical fashion will result in policy holders losing confidence in the insurance industry, giving rise to excessive litigation.
Therefore, it is advised that all insurers need to develop a sound mechanism of their own to handle such
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claims with utmost care and caution. It is also advised that the insurers must not repudiate such claims unless and until the reasons of delay are specifically ascertained, recorded and the insurers should satisfy themselves that the delayed claims would have otherwise been rejected even if reported in time.”
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने युनाईटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 व एक अन्य बनाम राहुल कादियान 2018 (1) CPR 772 (NC) के निर्णय में आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर के आधार पर माना है कि वास्तविक क्लेम को मात्र विलम्ब से सूचना के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है;
“From the guidelines of the IRDA, it is clear that genuine claims are not to be repudiated on the basis of delay in intimation to the insurance company. In the instant case the specific condition in case of theft that police must be immediately informed, has been complied with and therefore the veracity of the incident cannot be questioned. Thus, the claim seems to be a genuine claim and therefore the above mentioned IRDA Circular seems to be applicable in the instant case.”
माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णयों एवं IRDA द्वारा जारी सकुर्लर दिनांक- 20-09-2011 को देखते हुए हम इस मत के हैं कि वास्तविक क्लेम को मात्र बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना देने के आधार पर नकारा नहीं जा सकता है। उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के प्रश्नगत वाहन की बीमित धनराशि 2,60,000/-रू० है। जिला आयोग ने 25 प्रतिशत की कटौती कर नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 1,95,000/-रू० बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत रूपया दिलाया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला आयोग के निर्णय के विरूद्ध अपील प्रस्तुत नहीं किया है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि जिला आयोग ने जो प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसके वाहन की क्षतिपूर्ति हेतु 1,95,000/-रू० अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत दिलाया है उसे अनुचित व अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।
जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय और आदेश को मात्र एकपक्षीय होने के आधार पर अपास्त किया जाना उचित नहीं है।
जिला आयोग ने जो प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 5,000/-रू० वाद व्यय दिलाया है वह भी उचित है।
इस स्तर पर यह उल्लेख करना आवश्यक है कि आदेशित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिये जाने के पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत वाहन का सब्रोगेशन लेटर बीमा कम्पनी के पक्ष में निष्पादित किया जाना एवं अन्य औपचारिकताएं पूरी किया जाना आवश्यक है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपील आंशिक रूप से इस प्रकार स्वीकार की जाती है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसके उपरोक्त वाहन हेतु जिला आयोग द्वारा आदेशित धनराशि 1,95,000/-रू० का भुगतान उसके द्वारा सब्रोगेशन लेटर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के पक्ष में निष्पादित किये जाने व अन्य औपचारिकताएं पूरी किये जाने के पश्चात किया जाएगा।
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अपीलार्थी बीमा कम्पनी जिला आयोग द्वारा आदेशित वाद व्यय की धनराशि 5000/-रू० का भुगतान भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को करेगा।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा धनराशि 25,000/-रू० अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाएगी।
अपील में पारित अन्तरिम आदेश दिनांक 04-05-2016 के अनुपालन में जिला आयोग के समक्ष यदि कोई धनराशि जमा की गयी है तो उक्त धनराशि व उस पर अर्जित ब्याज का निस्तारण भी इस निर्णय के अनुसार किया जाएगा।
अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि व उस पर अर्जित ब्याज से इस निर्णय के अनुसार आदेशित धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी को करने के पश्चात् यदि कोई धनराशि अवशेष बचती है तो वह धनराशि अपीलार्थी को वापस कर दी जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (गोवर्धन यादव) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01.