Uttar Pradesh

StateCommission

A/922/2015

Uppcl - Complainant(s)

Versus

Smt. Umesh - Opp.Party(s)

Isarhussain, Shri. Qasim Zaidi

08 Sep 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/922/2015
( Date of Filing : 18 May 2015 )
(Arisen out of Order Dated 16/04/2015 in Case No. C/186/2005 of District Muzaffarnagar)
 
1. Uppcl
Muzaffarnagar
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Umesh
Muzaffarnagar
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Sep 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 922/2015

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद सं0- 186/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.04.2015 के विरुद्ध)

 

Executive Engineer through its Uttar Pradesh State Electricity Distribution Division I, Muzaffar nagar.

                                                                                ………Appellant

 

Versus

 

1. Smt. Umesh W/o Late Thakur Om Prakash.

2. Phulvendra sons of Late Thakur Om Prakash.

3. Jugvendra sons of Late Thakur Om Prakash.

    R/O Village Lakhan District, Muzaffarnagar.

                                                                           ……….Respondents

समक्ष:-

     माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

     माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

   

अपीलार्थी की ओर से    : श्री इसार हुसैन,

                         विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से        : कोई नहीं।  

 

दिनांक:- 21.10.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.        परिवाद सं0- 186/2005 ठाकुर ओम प्रकाश (मृतक) विधिक उत्‍तराधिकारीगण श्रीमती उमेश विधवा ठाकुर ओम प्रकाश व दो अन्‍य बनाम अधिशासी अभियंता द्वारा उ0प्र0 राज्‍य विद्युत वितरण खण्‍ड में जिला उपभोक्‍ता आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 16.04.2015 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है, जिसके माध्‍यम से विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद स्‍वीकार करते हुए उ0प्र0 राज्‍य विद्युत वितरण खण्‍ड प्रथम, मुजफ्फरनगर को आदेशित किया कि वे एक माह के अन्‍दर मृतक ठाकुर ओम प्रकाश से वसूली धनराशि 20,334/-रू0 मय 09 प्रतिशत ब्‍याज उनके उत्‍तराधिकारियों को वापस करें। इसके अतिरिक्‍त क्षतिपूर्ति के आदेश भी दिए गए।

2.        प्रत्‍यर्थी/परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विद्युत विभाग से एक नलकूप कनेक्‍शन सं0- 60/1513 स्‍वीकृत करा रखा था। प्रस्‍तुत कनेक्‍शन की आवश्‍यकता न होने के कारण दि0 11.05.1988 को आवश्‍यक प्रपत्र एवं शपथ पत्र देकर तथा आवश्‍यक फीस देकर स्‍थायी रूप से कनेक्‍शन कटवा दिया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को बाद में पता लगा कि उसके विरुद्ध विद्युत विभाग ने वसूली सार्टीफिकेट भेज रखा है तब प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने दि0 03.03.2004 को आर0सी0 को निरस्‍त किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया। अपीलार्थी/विपक्षी के अवर अभियंता ने दि0 15.09.2004 को निरीक्षण किया तो मौके पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कनेक्‍शन वर्ष 1988 से कटा हुआ पाया, लेकिन प्रत्‍यर्थी/परिवादी को आर0सी0 भेज दी गई है। मजबूरन प्रत्‍यर्थी/परिवादी को 20,334/-रू0 जमा करना पड़ा। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार विद्युत विभाग द्वारा बनाये गए गलत एस्‍टीमेट बकाया दिखाकर विद्युत विभाग ने दि0 27.04.2005 को वसूल किए थे जिसके विरुद्ध परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.        अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से परिवाद का विरोध करते हुए यह कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का स्‍थायी विद्युत विच्‍छेदन (फाइनल बिल) माह जून 1988 में अंकन 10,352/-रू0 का बनाया गया था जिसे प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने जमा कर दिया, किन्‍तु उक्‍त बकाया 2,03,335/-रू0 पी0डी0 (फाइनल बिल) बनने से पूर्व का था जिसके कलेक्‍शन चार्जेज के रूप में अंकन 20,334/-रू0 प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अदा किए थे। आर0सी0 की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी से वसूल नहीं की गई थी। अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। अत: परिवाद खारिज होने योग्‍य है।

4.        विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने यह निर्णीत किया है कि अंकन 20,334/-रू0 की धनराशि आर0सी0 के माध्‍यम से वसूल की गई है जिसे विद्युत विभाग ने नाजायज रूप से प्राप्‍त किया है। यह धनराशि ब्‍याज सहित वापस किए जाने योग्‍य है जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

5.        अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है, क्‍योंकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। धारा 14(1)(सी) में यह प्रदान किया गया है कि धनराशि की वापसी उपभोक्‍ता को प्रदान नहीं की जा सकती है। वास्‍तव में मृतक ओम प्रकाश विद्युत विभाग का उपभोक्‍ता था, किन्‍तु उनके उत्‍तराधिकारी उपभोक्‍ता नहीं कहे जा सकते। इसलिए वाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। विद्युत विभाग की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। आर0सी0 जारी होने के पहले अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से धारा 3 तथा धारा 5 के अंतर्गत प्रत्‍यर्थी/परिवादी को नोटिस दिया गया था, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। इस कारण आर0सी0 जारी हो गई थी। आर0सी0 की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी से वसूली नहीं की गई है, किन्‍तु आर0सी0 की सर्विस चार्ज रू0 20,334/- देने के लिए बाध्‍य है।

6.        हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।

7.        अपीलार्थी की ओर से मुख्‍य रूप से यह आपत्ति प्रस्‍तुत की गई है कि किसी भी आर0सी0 के विरुद्ध परिवाद अथवा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत कोई परिवाद पोषणीय नहीं होता है। अपने कथन के समर्थन में अपीलार्थी/विपक्षी ओर से मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय राजेन्‍द्र मोहन वर्मा बनाम ब्रांच मैनेजर, स्‍टेट बैंक आफ इंडिया प्रकाशित (II)2002 C.P.J. पृष्‍ठ 126 (एन0सी0) प्रस्‍तुत किया गया है। इस निर्णय में यह निर्णीत किया गया है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग को निर्णय में वर्णित वाद को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं था। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के निर्णय के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने इस आधार पर जिला उपभोक्‍ता आयोग का क्षेत्राधिकार नहीं माना है कि परिवादी ने 5,00,000/-रू0 से अधिक धनराशि का अनुतोष मांगा था, किन्‍तु जिला उपभोक्‍ता आयोग ने वित्‍तीय क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करते हुए वाद का श्रवण एवं निस्‍तारण किया। आर0सी0 चार्जेज के सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कोई भी अभिनिर्णय पीठ के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया गया है।

8.        मामले के तथ्‍यों से स्‍पष्‍ट होता है कि यह वाद प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने विद्युत विभाग द्वारा जारी किए गए रिकवरी सार्टीफिकेट जो विद्युत बिल बकाया के लिए देय के रूप में दिया गया उसके शुल्‍क के रूप में 20,334/-रू0 की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी से वसूल की गई। उक्‍त रिकवरी सार्टीफिकेट रू0 2,03,333/- के लिए थी जिसका शुल्‍क उपरोक्‍त 20,334/-रू0 था। विद्युत विभाग की ओर से स्‍वीकार किया गया है कि उक्‍त आर0सी0 गलत जारी हो गई थी, क्‍योंकि कनेक्‍शन का विच्‍छेदन वर्ष 1988 में हो चुका था एवं विच्‍छेदन के समय रू0 10,352/- का फाइनल बिल भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा दिया जा चुका था। विद्युत विभाग द्वारा यह स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि 2,03,333/-रू0 किस अवधि का था अथवा यह परमानेंट डिसकनेक्‍शन (स्‍थायी विच्‍छेदन) के पूर्व अवधि का था या नहीं, बल्कि यह स्‍वीकार किया है कि इस धनराशि की आर0सी0 गलत जारी हो गई थी। अत: यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादी आर0सी0 की धनराशि देने का उत्‍तरदायित्‍व नहीं रखता है तो वह आर0सी0 की शुल्‍क का भी देनदार नहीं है। यदि आर0सी0 गलत रूप में जारी की गई तो इसका उत्‍तरदायित्‍व विद्युत विभाग पर ही होगा एवं प्रत्‍यर्थी/परिवादी को आर0सी0 शुल्‍क देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है। इससे सम्‍बन्धित कोई विधि भी अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रस्‍तुत नहीं की गई। अत: ऐसी दशा में प्रत्‍यर्थी/परिवादी उक्‍त धनराशि वापिस प्राप्‍त करने का अधिकारी है, जो विद्युत विभाग देने का उत्‍तरदायित्‍व रखता है एवं जिसकी गलती से गलत आर0सी0 जारी हुई थी। प्रश्‍नगत निर्णय में इस धनराशि पर 09 प्रतिशत ब्‍याज लगाया है, किन्‍तु वर्तमान बैंक दर को देखते हुए इस धनराशि पर 07 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज वाद योजना की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक दिलाया जाना उचित है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने क्षतिपूर्ति के रूप में धनराशि दिलायी है, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ब्‍याज दिया जा रहा है। इसलिए अलग से क्षतिपूर्ति दिलाये जाने की आवश्‍यकता नहीं है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।             

आदेश

9.        अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश परिवर्तित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह 01 माह के अन्‍दर धनराशि 20,334/-रू0 मय 07 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज की दर से वाद योजना की तिथि से वास्‍तविक अदायगी तक प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अदा करें। शेष निर्णय अपास्‍त किया जाता है।  

          अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

          अपील में धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित इस निर्णय एवं आदेश के अनुसार जिला उपभोक्‍ता आयोग को निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।   

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

               

   (विकास सक्‍सेना)                              (सुशील कुमार)           

      सदस्‍य                                      सदस्‍य 

              

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0-2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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