(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-271/2018
ग्रामीण बैंक आफ आर्यावर्त, (आर्यावर्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, दि अस्टवाइल बैंक) ब्रांच नवाटेड़ा, तहसील व जिला मैनपुरी, द्वारा रिजनल मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
1. श्रीमती तारा देवी पत्नी स्व0 शिव कुमार, निवासिनी महावीर पुरम, राठी मिल, मैनपुरी।
2. ब्रांच मैनेजर, बजाज एलियांस, मैनपुरी।
3. मैनेजर, बजाज एलियांस, चतुर्थ तल, हलवासिया हबीउल्लाह ईस्ट, 11, एम.जी. मार्ग, हजरतगंज, लखनऊ।
प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी/विपक्षी सं0-2 व 3
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विवेक सक्सेना।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री अखिलेश त्रिवेदी।
प्रत्यर्थी सं0-2 व 3 की ओर से उपस्थित : श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव।
दिनांक: 30.11.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-185/2016, श्रीमती तारा देवी बनाम शाखा प्रबन्धक, आर्यावर्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा दो अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.12.2017 के विरूद्ध यह अपील विपक्षी संख्या-1, बैंक द्वारा प्रस्तुत की गई है।
2. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री विवेक सक्सेना तथा प्रत्यर्थी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री अखिलेश त्रिवेदी एवं प्रत्यर्थी संख्या-2 व 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति शिव कुमार द्वारा विपक्षी संख्या-1 के माध्यम से विपक्षी संख्या-2 से सामूहिक बीमा योजना के
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तहत एक पालिसी प्राप्त की गई थी। बीमित राशि अंकन 2,50,000/- रूपये थी। परिवादिनी उक्त पालिसी में नामिनी थी। दिनांक 30.09.2015 को परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गई। इस पालिसी की प्रथम किश्त दिनांक 25.03.2013 को अदा होने के बाद अगली किश्त दिनांक 25.03.2014 को अदा होनी थी। विपक्षी संख्या-1 द्वारा आश्वासन दिया गया कि खाते से किश्तों की अदायगी कर दी जाएगी।
4. विपक्षी संख्या-1, यानी अपीलार्थी बैंक का यह कथन है कि स्वंय बीमाधारक द्वारा बीमा किश्त का भुगतान नहीं किया गया, जबकि किश्त अदा करने का उत्तरदायित्व उन्हीं का था।
5. विपक्षी संख्या-2 एवं 3, बीमा कंपनी का कथन है कि प्रथम किश्त की अदायगी के पश्चात दूसरी किश्त का भुगतान नहीं हुआ, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
6. सभी पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षी संख्या-1, बैंक द्वारा परिवादिनी के पति के खाते से बीमा किश्त के भुगतान के बारे में समुचित जवाब नहीं दिया गया, इसलिए बैंक तथा बीमा कंपनी को संयुक्त रूप से उत्तरदायी ठहराया गया।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा राशि के भुगतान का उनका कोई उत्तरदायित्व नहीं है, जबकि प्रत्यर्थी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि चूंकि बैंक द्वारा ही खाते से बीमा किश्त की कटौती करने के पश्चात बीमा कंपनी को भुगतान किया जाना था, इसलिए बैंक के स्तर से सेवा में त्रुटि कारित की गई है, इसलिए बैंक भी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है।
8. परिवाद पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि बैंक द्वारा ही बीमाधारक के खाते से किश्त की कटौती करने के पश्चात बीमा कंपनी को अदा करनी थी। विपक्षी संख्या-2 व 3 के संबंध में विपक्षी संख्या-1 का यह कथन है कि ग्रामीण बैंक आफ आर्यावर्त से उनकी संविदा है, परन्तु परिवाद में वर्णित इस
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तथ्य का खण्डन नहीं किया गया कि प्रथम किश्त की कटौती बीमाधारक के खाते से करने के पश्चात प्रीमियम का भुगतान बैंक द्वारा नहीं किया गया, इसलिए इस तथ्य का खण्डन न करने का परिणाम यह है कि बैंक को यह तथ्य स्वीकार है कि उनके द्वारा बीमाधारक के खाते से प्रथम किश्त की राशि का भुगतान किया गया, इसलिए दूसरी किश्त अदा करने के उद्देश्य से बीमाधारक के खाते से किश्त राशि निकालकर बीमा कंपनी को भुगतान करनी चाहिए थी। बैंक का यह भी कथन नहीं है कि बीमाधारक के खाते में प्रीमियम के भुगतान के लिए पर्याप्त राशि मौजूद नहीं थी।
9. बैंक का यह कथन भी असत्य है कि बीमा राशि का भुगतान बीमाधारक को ही करना होता है। चूंकि सामूहिक बीमा योजना के तहत बैंक के माध्यम से ली गई बीमा पालिसी का प्रीमियम बीमाधारक के खाते से कटौती करने के पश्चात बीमा कंपनी को भुगतान करने का उत्तरदायित्व बैंक का है। अत: स्पष्ट है कि अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध संयुक्त एवं एकल दायित्व के तहत जो आदेश विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित किया गया है, वह विधिसम्मत है, उसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। अपील तदनुसार निरस्त होने योग्य है।
आदेश
10. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष इस अपील का व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे।
अपीलार्थी द्वारा अपील प्रस्तुत करते समय अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार एक माह में संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2