राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-635/2021
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, हापुड़ परिवाद सं0-56/2017 में पारित आदेश दिनांक 13.10.2021 के विरूद्ध)
यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0, रीजनल आफिस, आरिफ चैम्बर्स कपूरथला काम्पलैक्स, अलीगंज, लखनऊ द्वारा रीजनल मैनेजर।
........... अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
- श्रीमती सुषमा जिन्दल पत्नी श्री रतनलाल अग्रवाल निवासी मं0नं0-580/15, गली नं0-2, कृष्णा नगर, स्वर्ग आश्रम रोड, हापुड़ तहसील व जनपद हापुड़।
- बैंक आफ महाराष्ट्रा, शाखा हापुड़, द्वारा शाखा प्रबन्धक।
…….. प्रत्यर्थीगण/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री तरूण कुमार मिश्रा।
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री शरद द्विवेदी।
दिनांक :- 10.08.2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख अपीलार्थी यूनाइटेड इण्डिया इंश्यारेंस कम्पनी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग हापुड़ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.10.2021 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी सुषमा जिन्दल ने विपक्षी सं0-3 बैंक आफ महाराष्ट्रा हापुड़ शाखा से गृह ऋण प्राप्त की थी जिसका खाता सं0 60056829037 है। परिवादिनी विपक्षी सं03 के यहॉ से उक्त गृह ऋण प्राप्त की
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गयी उक्त् ऋण सुविधा लेते समय विपक्षी बैंक द्वारा विपक्षी सं01 व 2 के यहॉ एक रिस्क कवर पालिसी करायी थी। जिसके अन्तर्गत ऋण धारक के भवन का मकान मालिक के रूप में परिवादिनी का व्यक्तिगत बीमा किया गया था जो आठ लाख रूपये की धनराशि तक सुरक्षित था। यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी के खाते से उक्त पालिसी बावत रू0 3537/- भी काटे गये थे जो विपक्षी सं01 व 2 से प्राप्त किये गये जिसमें परिवादिनी के पति के भवन एवं परिवार की पालिसी की गयी। उक्त पालिसी दिनांक 23.3.2011 से 22.03.2021 तक वैध एवं प्रभावी थी जिसका नं0 22200314 है।
दुर्भाग्य से दिनांक 04.2.2015 को उ0प्र0 राज्य सड़क परिवहन निगम की बस यू0पी0 17टी 1325 द्वारा परिवादिनी को मृत्युकारक चोट पहॅुची जिसमें परिवादिनी के कूल्हे, जांघ, घुटना, ऐड़ी, पंजा की हडिडयॉ क्षतिग्रस्त हो गयी पेट के नीचे का हिस्सा भी कुचल गया। उक्त घटना के बावत थाना हापुड़ कोतवाली नगर में मु0अ0सं0 73/2015 धारा 279, 338, आई.पी.सी. दि0 4.2.2015 को दर्ज किया गया। परिवादिनी का इलाज देवनन्दिनी अस्पताल हापुड़ एवं जय प्रकाश नारायण ऐपेक्स ट्रामा, दिल्ली, व आल इण्डिया मेडिकल सेंटर दिल्ली में हुआ। डॉक्टरो द्वारा परिवादिनी के 14 सफल आपरेशन किये गये जिसमें 25 लाख रूपये से अधिक का खर्च हुआ। यह भी कथन किया गया कि उसके इलाज के बावत जो खर्च हुआ उसकी क्षतिपूर्ति करने का दायित्व विपक्षी सं01 व 2 का है क्योंकि परिवादिनी दुर्घटना के समय उपरोक्त पालिसी के अनुसार सुरक्षित थी। उपरोक्त क्षतिपूर्ति की मॉग विपक्षी सं01 व 2 से की गयी लेकिन लेकिन उनके द्वारा कोई कार्यवही नहीं की गयी।
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परिवादिनी द्वारा दि0 7.09.2017 को भुगतान हेतु रजिस्टर्ड नोटिस भी प्रेषित की गयी लेकिन विपक्षीगण द्वारा नोटिस का कोई पालन नहीं किया गया। परिवादिनी को जानबूझकर तंग व परेशान किया जा रहा है जो विपक्षीगण की सेवा
में कमी है। विपक्षीगण के उक्त कृत्य से परिवादिनी को भारी आर्थिक नुकसान एवं मानसिक क्षति उठानी पड़ रही है। इस कारण मा0 न्यायालय के समक्ष वाद योजित करना पड़ा।
विपक्षीगण के विरूद्ध नोटिस निर्गत की गयी। विपक्षीगण ने उपस्थित होकर अपने अपने लिखित कथन दाखिल किये।
विपक्षी सं01 व 2 ने परिवादिनी के कथनों से इनकार किया है। लिखित कथन में कहा कि परिवादिनी के पति श्री रतनलाल अग्रवाल द्वारा विपक्षी सं01 व 2 की कम्पनी के यहॉ यूनी होम केयर एज इंश्योरेंस पालिसी नं0 222003/46/10/00000221 होना स्वीकार है जो एज पर यूनी होम केयर इंश्योरेंस पालिसी के अन्तर्गत आता है। जिसके अन्तर्गत Partial Disability Covered नहीं होता। विपक्षी सं01 व 2 अपने लिखित कथन सेक्सन 11 यूनी होम पालिसी शिडयूल के अन्तर्गत पर्सनल एक्सीडेन्ट टर्म एण्ड कन्डीशन बताया है जो निम्नवत है:- ‘’as Per Uni Home Care’’ As Per Uni Home care policy Section-II personal Accident terms & condition: ‘’Subject to the terms, exclusions, definitions and conditions contained herein or endorsed or otherwise expressd here on the Company will pay the insured as herein after mentioned. If at any time during the currency of this policy the insured’s borrower shall sustain bodily injury resulting solet\ly and directly from accident caused by external violent and visible means, then the company shall pay to the insured or the borrower;s legal personal injury shall ‘within twelve (2) calendar months of its occurrence be the sole and direct cause of the death of the insured’s borrower’.अर्थात इस संबंध में विपक्षी कम्पनी द्वारादिनांक 25.6.2017 द्वारा विधिवत सूचना रजिस्टर्ड डाक से इस आशय के साथ परिवादी को भेज दी है कि परिवादी की दुर्घटना परिवादी के द्वारा करायी
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गयी पालिसी के अन्तर्गत कवर नहीं होती है। अत: इस संबंध में विपक्षी इंश्योरेंस कम्पनी परिवादी को किसी भी प्रकार का क्लेम स्वीकार करने में अर्थात देने में असमर्थ है। यह भी कहा गया कि उसके उपरान्त भी परिवादिनी द्वारा दिनांक
07.09.2017 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से रजिस्टर्ड नोटिस देने के बाद विपक्षी सं02 द्वारा परिवादिनी को नोटिस के जवाब के माध्यम से विधिवत सूचित किया जा चुका है कि परिवादिनी के पति द्वारा करायी गयी पालिसी में Partial Disability Covered नहीं होती है। यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी किसी भी अनुतोष को प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। परिवादिनी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
विपक्षी सं03 बैंक आफ महाराष्ट्रा द्वारा अपने लिखित कथन में परिवादिनी के कथन से इंकार किया गया है। आगे कथन किया गया कि परिवाद पत्र की कण्डिका 1 में वर्णित कथन को इंकार किया है। आगे कहा गया कि यह सुविधा दिनांक 23.11.2010 को प्रदत्त की गयी थी और इसके उपरान्त यह खाता दिनांक 25.07.2017 को भुगतान प्राप्त करने के बाद बन्द कर दिया गया था और अब मौजूदा समय में बैंक की कोई शेष व बकाया नहीं निकलता है तब बैंक का लेना-देना मौजूदा क्लेम से नहीं है क्योंकि बैंक व परिवादिनी के मध्य संविदा खाता बन्द करते ही समाप्त हो गया और कोई निजा किसी प्रकार की शेष नहीं रही तथा कथित पालिसी विपक्षी सं01 व 2 के द्वारा की गयी थी। यदि कोई जोखिम अथवा डेमेज साबित होता है तो उसको अदा करने की जिम्मेदारी भी विपक्षी सं01 व 2 की है न कि विपक्षी सं03 बैंक आफ महाराष्ट्रा की, उसे गलत पक्षकार बनाया गया है।
आगे कथन किया गया कि यदि कोई दुर्घटना हुयी है तो उसके संबंध में वैधानिक रूप से बीमा अदायगी, यदि कोई बनती है तो उसकी जिम्मेदारी बीमा
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कम्पनी की है। यह भी कथन किया गया कि बैंक ने (विपक्षी सं0-3) समय समय पर सहयोग में कोई कमी नहीं की और पूर्ण रूप से योगदान किया और क्लेम का मंजूर या नामंजूर करना बीमा कम्पनी पर निर्भर है। इस संबंध में विपक्षी सं03
का कोई दायित्व क्लेम अदा करने के संबंध में नहीं है और न ही उसकी कोई वित्तीय जिम्मेदारी पर्सनल ऋण को अदा करने की है।
विपक्षी सं03 एक राष्ट्रीयकृत बैंक है जिसका कार्य नियमित रूप से ऋण प्रदान करना और संबंधित सम्मपत्ति का बीमा कराना है और इसके तहत सम्पति को सुरक्षित रखने के उददेश्य से समय समय पर खाते से अथवा ऋणी द्वारा किश्त राशि का भुगतान किया जाना अनिवार्य होता है जिसका निर्वाह बैंक द्वारा किया गया है। ऐसी स्थिति में बैंक को जिम्मेदार ठहराना और भुगतान करने के लिये दावा प्रस्तुत करना बेमानी और खण्डनीय है। परिवादिनी यह नहीं दर्शा पायी है कि बैंक किस रूप से राशि अदा करने की उत्तरदायी है। परिवादिनी का कोई वाद कारण बैंक विरूद्ध पैदा नहीं होता और न ही उसने किसी प्रकार की सेवा में कमी की है। परिवादिनी का परिवाद बैंक के विरूद्ध खण्डित किये जाने योग्य है। पालिसी के अनुसार भी अदा करने की जिम्मेदारी यदि बनती है तो वह विपक्षी सं0 1 व 2 की बनती है। प्रस्तुत परिवाद बैंक के विरूद्ध खण्डनीय है। विशेष हर्जा रू0 20,000/- दिलाने की मॉग की गयी।
परिवादिनी द्वारा अपने कथन के समर्थन में अनेकों दस्तावेज प्रस्तुत किये गये जिनका विवरण विद्वान जिला फोरम द्वारा अपने निर्णय के पृष्ठ संख्या 4 पर उल्लिखित किया है जो कुल प्रपत्रों की संख्या 13 वर्णित है।
विपक्षी सं01 व 2 की ओर से भी विद्वान जिला फोरम के सम्मुख दस्तावेज एवं प्रमाण प्रस्तुत किये गये जिनका विवरण जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय के पृष्ठ संख्या 4 व 5 में विस्तारपूर्वक उल्लिखित किया गया है। तदोपरान्त विद्वान
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जिला फोरम द्वारा उभय पक्ष के द्वारा प्रस्तुत कथनों एवं साक्ष्यों के परिशीलन के उपरान्त निष्कर्ष अंकित करते हुये परिवाद को निर्णीत किया।
जिला फोरम द्वारा यह तथ्य उल्लिखित किया गया कि परिवादिनी द्वारा विपक्षी बैंक के यहॉ से गृह ऋण की सुविधा लेने का आवेदन किया जिसे स्वीकार करते हुये विपक्षी बैंक ने रूपये 8,00,000/- का गृह ऋण सुविधा दिनांक 23.10.2010 को प्रदान किया। जिसके उपरान्त विपक्षी सं0 3 बैंक द्वारा परिवादिनी का पर्सनल एक्सीडेन्ट बीमा पालिसी संख्या 222003/46/10/90/00000221 जारी की गयी जिसमें बीमा की अवधि दिनांक 23.03.2011 से 22.03.2021 उल्लिखित किया।
दुर्भाग्यवश परिवादिनी दिनांक 04.02.2015 को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गयी जिससे परिवादिनी को 55 प्रतिशत तक की स्थायी विकलांगता आ गयी। परिवादिनी द्वारा समस्त लोन अदा कर बंधकशुदा मकान के कागजात विपक्षी से प्राप्त किये गये तथा जो घटना के कारण चोट पर उपचार में धनराशि खर्च हुयी उसकी क्षतिपूर्ति हेतु परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी संख्या 1 व 2 के समक्ष अपना क्लेम यह कहकर प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा देय है जिसे विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा नो क्लेम अंकित करते हुये यह तथ्य उल्लिखित किया गया कि परिवादिनी को आंशिक विकलांगता आयी है। अतएव ‘’Partial Disability Uni Home care ‘’ पालिसी के अन्तर्गत कवर नहीं होता है। परिवादिनी द्वारा विपक्षी सं0 1 व 2 बीमा कम्पनी को अवगत कराया गया कि यूनि होम केयर इंश्योरेंस पालिसी में उपरोक्त रिस्क कवर है तथा परिवादिनी का लाइफ टाइम कवर मकान मालिक के रूप में किया गया है जो दिनांक 23.03.2011 से 22.03.2021 तक वैध एवं प्रभावी है। विपक्षी सं0 1 व 2 बीमा कम्पनी द्वारा उपरोक्त तथ्यों को नकारा गया तथा कहा गया कि ‘’ Partial
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Disability’’ उपरोक्त UNI होम केयर इंश्योरेंस पालिसी के अन्तर्गत कवर नहीं है। जिसके संबंध में बीमा कम्पनी द्वारा कथन किया गया कि दि0 25.08.2017 के द्वारा परिवादिनी को उपरोक्त संबंध में सूचना प्राप्त करायी जा चुकी है अतएव
बीमा कम्पनी परिवादिनी का क्लेम स्वीकार करने में असमर्थ है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत पालिसी के बारे में विपक्षी द्वारा पालिसी की अवधि, वैधता के संबंध में कोई विवाद नहीं किया गया। तथा यह भी कि परिवादिनी बीमाधारक दुर्भाग्यवश दुर्घटना घटने के कारण लगभग 55 प्रतिशत स्थायी विकलांगता से पीडि़त है। तथा यह कि उसकी चिकित्सा देवनन्दिनी अस्पताल हापुड़ एवं जय प्रकाश नारायण ऐपेक्स ट्रामा, दिल्ली, व आल इण्डिया मेडिकल सेन्टर दिल्ली में किया गया। विकलांगता सर्टीफिकेट चीफ मेडिकल आफिसर, हापुड़ द्वारा जारी किया गया, इत्यादि- इत्यादि। बीमा कम्पनी द्वारा यह कथन किया गया कि पालिसी के अन्तर्गत धारा के लिये लागू बहिस्करण का कथन किया गया जिसके अनुसार पालिसी के तहत मौत की चोट या अक्षम भुगतान के संबंध में मुआवजे के भुगतान के लिये उत्तरदायी न होने का तथ्य अंकित किया गया। तथा यह कि जानबूकर आत्म चोट, आत्महत्या या नशे की लत, शराब या ड्रग के प्रभाव में आत्महत्या करने का प्रयास किया जाता है उस स्थिति में भी पालिसी में क्षतिपूर्ति देय नहीं है।
जिला फोरम द्वारा उपरोक्त तथ्यों को सुविचारित करते हुये यह पाया गया कि प्रस्तुत मामले में दिये हुये प्रमाण पत्र में जो विकलांगता परिवादिनी की दुर्घटना के परिणाम स्वरूप आयी है वह इस बात की पुष्टि करती है कि वह विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा उल्लिखित समस्त तथ्यों से परे है अर्थात न तो वह जानबूझकर आत्महत्या चोट है, न ही आत्महत्या का प्रयास, न ही नशे की लत, शराब या ड्रग के प्रभाव से आत्महत्या का प्रयास।
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जिला फोरम द्वारा विपक्षी सं03 बैंक आफ महाराष्ट्रा के संबंध में यह तथ्य निर्विवादित रूप से पाया गया कि परिवादिनी द्वारा सम्पूर्ण ऋण अदा किया जा चुका है तथा दिनांक 25.07.2017 को बैंक का खाता बन्द किया गया है तथा बैंक से किसी प्रकार का लेना-देना नहीं है एवं परिवादिनी व बैंक के मध्य हुये करार व
ऋण खाता दिनांक 25.07.2017 को बन्द किये जाने के उपरान्त समाप्त हो गया है अतएव बैंक की कोई जिम्मेदारी उक्त क्लेम राशि अदा करने की नहीं है।
जिला फोरम द्वारा यह भी तथ्य सुविचारित रूप से पाया एवं उल्लिखित किया गया कि किसी भी मामले में बीमा पालिसी इस कारण से करायी जाती है कि यदि कोई घटना अथवा दुर्घटना बीमाधारक के साथ होती है तो उसकी पूर्ति करने की जिम्मेदारी बीमा कम्पनी की होती है न कि बैंक की।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुये विद्वान जिला फोरम द्वारा परिवाद में वाद बिन्दु संख्या 1, 2 व 4 को निर्धारित किया गया तथा आदेशित किया कि परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सं0 1 प्रस्तुत अपील के अपीलार्थी यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड व अन्य को क्षतिपूर्ति राशि रू0 8,00,000/- (आठ लाख रूपये) परिवाद पत्र प्रस्तुत किये जाने की तिथि से धनराशि भुगतान करने की तिथि तक 5 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित 2 माह की अवधि में अदा किया जावे। साथ ही रू0 3000/- आर्थिक व मानसिक क्षति के रूप में व रू0 2000/- वाद व्यय के रूप में आदेश की तिथि से 2 माह की अवधि में परिवादिनी/पस्तुत अपील में विपक्षी सं01 को अदा किया जावे।
प्रस्तुत अपील को इस न्यायालय द्वारा दिनांक 11.03.2022 को विस्तृत रूप से सुना गया तथा विस्तृत आदेश पारित करते हुये बीमा कम्पनी को आदेशित किया गया कि वह सम्पूर्ण डिक्रीटल धनराशि जमा करे जिसमें से पूर्व में जमा
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धनराशि रू0 25,000/- को समाहित किया जावे जिसे राष्ट्रीयकृत बैंक की सावधि संचय जमा योजना में जमा किया जावे। उक्त आदेश का अनुपालन अपीलार्थी द्वारा सुनिश्चित किया गया अपेक्षित है, तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13.10.2021 पूर्णत: उचित पाया जाता है जिसका अनुपालन अपीलार्थी द्वारा 2 माह में किया जावे। अन्यथा ब्याज की देयता 5 प्रतिशत के स्थान पर 8 प्रतिशत निर्धारित की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
रामेश्वर, पी ए ग्रेड-2,
कोर्ट नं0-1