Chhattisgarh

StateCommission

FA/13/570

Nice Teach Computer Education Centre & Anr. - Complainant(s)

Versus

Smt. Sunita Dewangan - Opp.Party(s)

Shri Devendra Pratap Singh

27 Feb 2015

ORDER

Chhattisgarh State Consumer Disputes Redressal Commission Raipur
Final Order
 
First Appeal No. FA/13/570
(Arisen out of Order Dated in Case No. CC/13/79 of District Bilaspur)
 
1. Nice Teach Computer Education Centre & Anr.
Mukut Nagar Front of B.S.N.L.Office Raigarh
Raigarh
Chhattisgarh
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Sunita Dewangan
Ravi Computer Naya Kosta Para Raigarh
Raigarh
Chhattisgarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma PRESIDENT
 HONABLE MS. Heena Thakkar MEMBER
 HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar MEMBER
 
For the Appellant:Shri Devendra Pratap Singh , Advocate
For the Respondent: Present In Person, Advocate
ORDER

छत्तीसगढ़ राज्य

उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, पण्डरी, रायपुर

 

                                    अपील क्रमांकः FA/13/570

                                     संस्थित दिनांकः 07.10.13

1. नाईस टेक कम्प्यूटर एजुकेशन सेन्टर,

मुकुट नगर, बी.एस.एन.एल आफिस के सामने,

रायगढ़(छ.ग.)

 

2. नाईस टेक कम्प्यूटर एजुकेशन सेन्टर,

ईदगाह चैक,

बिलासपुर(छ.ग.)                                                                                                                                                      .....अपीलार्थीगण

विरूद्ध

श्रीमती सुनीता देवांगन,

पति श्री रवि कुमार देवांगन,

द्वारा- रवि कम्प्यूटर, नया कोष्टा पारा,

रायगढ़(छ.ग.)                                                                                                                                                  .....उत्तरवादी

समक्षः

माननीय न्यायमूर्ति श्री आर. एस. शर्मा, अध्यक्ष

माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

माननीय श्री डी. के. पोद्दार, सदस्य

 

पक्षकारों के अधिवक्ता

अपीलार्थीगण की ओर से श्री देवेन्द्र प्रताप सिंह, अधिवक्ता।

उत्तरवादी स्वतः उपस्थित।

 

आदेश

दिनांकः27/02/2015

द्वाराः माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

 

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, रायगढ़ (छ.ग.) (जिसे आगे संक्षिप्त में ’’जिला फोरम’’ संबोधित किया जाएगा) द्वारा प्रकरण क्रमांक 79/2013 ’’श्रीमती सुनीता देवांगन विरूद्ध नाईस टेक कम्प्यूटर एजूकेशन सेन्टर व अन्य’’ में पारित अंतरिम आदेश दिनांक 16.09.2013 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा अपीलार्थी/वि.प. द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र ’’बाबत् परिवाद पत्र निरस्त किए जाने हेतु’’ को खारिज किया गया जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील की गई है।

 

2.            उत्तरवादिनी की परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत परिवाद का सार संक्षेप यह है कि उत्तरवादिनी द्वारा वि.प.गण संस्थान ने डिप्लोमा एंड कम्प्यूटर्स का कोर्स करने हेतु यह कोर्स इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय  ¼IGNOU½ द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है एवं इंदिरागांधी मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा ही परिक्षाएं संचालित कर अंकसूची जारी की जाती है। परिवादिनी द्वारा दिनांक 07.12.2010 को प्रवेश लिया गया था व रू 1,100/- शुल्क जमा किया गया था। परिवादिनी 2011 में उत्तीर्ण हो चुकी थी परन्तु फिर भी दो वर्ष तक वि.प.गण द्वारा अंकसूची/ प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया था। अतः परिवादिनी ने सेवा में निम्नता के आधार पर परिवादपत्र प्रस्तुत कर मानसिक संताप हेतु रू 1,00,000/- एवं प्रमाणपत्र, वि.प.गणों से दिलाए जाने की प्रार्थना की है।

 

3.            वि.प.गणों द्वारा जिला फोरम के समक्ष अभिकथन प्रस्तुत न कर जिला फोरम के समक्ष दिनांक 03.09.2013 को आवेदन पत्र अंतर्गत् आदेश 07 नियम 11 एवं धारा 151 व्यवहार प्रक्रिया संहिता एवं धारा 26 उपभोक्ता संरक्षण विधि का प्रस्तुत कर यह निवेदन किया है कि परिवादी का परिवाद निरस्त किया जावे। उक्त आवेदन का सार संक्षेप इस प्रकार है कि नाईस टेक कम्प्यूटर एजुकेशन सेन्टर ईदगा बिलासपुर जो कि ¼IGNOU½ (वि.प.क्र.2) द्वारा नाइस टेक कम्प्यूटर एजुकेशन सेन्टर रायगढ़ (वि.प.क्र.1) को अधिकृत किया गया । परिवादिनी द्वारा जून 2011 में वि.प.क्र.1 के केन्द्र में प्रवेश लिया गया। वि.प.क्र.1 व 2 ¼IGNOU½ के कम्युनिटी प्रोग्राम द्वारा छात्रों को मात्र कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान करने का कार्य करते हैं एवं अंकसूची व प्रमाणपत्र प्रदान करने का पूर्ण दायित्व ¼IGNOU½ का है। कम्युनिटी प्रोग्राम के अंतर्गत मूल अंकसूची का वितरण नहीं किया जा सकता था। परन्तु ¼IGNOU½ के वेबसाइट में देखा जा सकता था। सामुदायिक कॉलेज योजना का पुनर्विलोकन किया जा रहा था इस योजना के अंतर्गत् समस्त क्रियाकलापों को रोका गया था। अतः अंकसूची व प्रमाणपत्र जारी नहीं किए जा सकते थे जिसकी समस्त जानकारी ¼IGNOU½ वेबसाइट पर उपलब्ध है। विश्वविद्यालय की समिति की जिन सामुदायिक कॉलेजों को परीक्षा संचालित करने के लिए निर्धारित मानकों के अनुरूप पाया उनका परीक्षा परिणाम घोषित करने के लिए दिनांक 10.12.2012 को एक स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया गया। ¼IGNOU½ द्वारा वेबसाइट पर दिनांक 13.12.2012,  14.12.2012, 27 जनवरी, 23 फरवरी को सूचना का प्रकाशन किया गया था। छात्रों को सूचित किया गया था कि मार्कशीट व प्रमाणपत्र को इंटरनेट से डाउनलोड कर प्राप्त कर लें, जिसकी वही वैधता होगी जो कि मूल प्रमाणपत्र की होती है। यह भी आपत्ति की गई की प्रमाणपत्र को बनाने का प्रेषण का दायित्व व अधिकार ¼IGNOU½ का है। परन्तु प्रकरण में ¼IGNOU½ को पक्षकार नहीं बनाया गया है। अतः इस आधार पर परिवाद प्रचलन योग्य नहीं है। विश्वविद्यालय के स्वयं की पुनर्विलोकन प्रक्रिया के कारण मूल अंकसूची के वितरण की प्रक्रिया रोकी गई थी परन्तु वेबसाइट में प्रकाशन कर दिया गया था ताकि छात्रों को कोई नुकसान न हो। परिवादी द्वारा जानबूझकर बिना किसी वाद कारण आधे अधूरे तथ्यों के आधार पर जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया है जो कि निरस्त किए जाने के योग्य है। चूंकि अंकसूची व प्रमाणपत्र जारी करने का दायित्व व अधिकार ¼IGNOU½ का है, जिसका मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। अतः जिला फोरम को परिवाद के विचारण का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादपत्र निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।

                परिवादिनी/उत्तरवादिनी द्वारा उक्त आवेदनपत्र का जवाब प्रस्तुत कर आवेदनपत्र का प्रतिरोध किया व विशिष्ट रूप से कथन किया कि परीक्षा परिणाम घोषित कर अंकसूची देने की जिम्मेदारी फ्रेंचाइज़ी की होती है वि.प.गण अपने दायित्व से बचना चाहते हैं। परिवादिनी द्वारा यह भी आपत्ति की गई कि वि.प. संस्था के संचालक शैलेश सिंह द्वारा नेट के माध्यम से प्रमाणपत्र की प्रति पर संस्था की सील लगाकर व हस्ताक्षर कर प्रमाण पत्र की प्रति प्रदान की गई थी उसमें जून 2011 मुद्रित है जबकि परिवादिनी/ उत्तरवादिनी ने दिसम्बर 2010 में प्रवेश लिया था। परिवादिनी के उक्त प्रमाणपत्र को अनेक विभागों ने अमान्य कर दिया। वि.प.क्र.1 द्वारा जारी अंकसूची व मूल अंकसूची के अंकों में भिन्नता है अर्थात् पूर्व में जारी अंकसूची फर्जी थी। समय पर प्रमाणपत्र व अंकसूची प्रदान न किए जाने के परिणामस्वरूप परिवादिनी कई सेवाकार्य पदों से वंचित हो गई व वि.प.गण के आवेदन को निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।

 

4.            जिला फोरम द्वारा आवेदनपत्र का निराकरण इस आधार पर किया है कि परिवाद की प्रचलनशीलता /क्षेत्राधिकार के संबंध में पृथक से निराकरण नहीं किया जाता है बल्कि प्रकरण के गुण-दोष के आधार पर निराकरण किया जाता है व विनिश्चय किया कि वि.प.गण द्वारा उत्तर, शपथपत्र व दस्तावेज प्रस्तुत न कर प्रकरण में अनावश्यक विलंब कारित करने के आशय से आवेदन पत्र प्रस्तुत किया है। रू 500/- व्यय पर आवेदन पत्र निरस्त किया गया।

 

5.            हमारे समक्ष अपीलार्थीगण की ओर से श्री देवेंद्र प्रतापसिंह व उत्तरवादिनी (स्वयं) द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए।

 

6.            अभिलेख का सूक्ष्म अध्ययन किया गया।

 

7.            अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क किया गया कि अंकसूची व प्रमाणपत्र बनाने व देने का दायित्व पूर्णतः विश्वविद्यालय का होता है। अपीलार्थीगण मात्र कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान करने का कार्य करते हैं। पूरे भारतवर्ष में किसी भी विद्यार्थी को कम्यूनिटी कॉलेज कार्यक्रम के अंतर्गत मूल अंकसूची का वितरण नहीं किया जा सका था, जिसकी सूचना ¼IGNOU½ द्वारा अपनी वेबसाइट में दी गई थी व आम सूचना का प्रकाशन भी किया गया था। परिवादिनी ने जानबूझकर परेशान करने के उद्देश्य से परिवादपत्र प्रस्तुत किया था जबकि वेबसाइट से अंकसूची डाउनलोड कर सकती थी। इस प्रकार अपीलार्थीगण परिवादिनी को प्रमाणपत्र या अंकसूची प्रदान करने हेतु दायित्वधीन नहीं है न ही अपीलार्थीगण द्वारा सेवा में कमी या कोई निम्नता की गई है। अपील स्वीकार कर जिला फोरम द्वारा पारित अंतरिम आदेश दिनांक 16.09.2013 अपास्त करने की एवं परिवाद पत्र निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।

 

8.            अपील के न्यायोचित निराकरण हेतु हमें सर्वप्रथम इस प्रश्न का निराकरण करना है कि क्या आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता व धारा 151 व्यवहार प्रक्रिया संहिता एवं धारा 26 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत् जिला फोरम किसी परिवाद प्रकरण को प्रारंभिक स्तर पर निरस्त कर सकती है? उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 13(4)के अनुसार जिला मंच को वही शक्ति होगी जो कि व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत् दीवानी न्यायालय में निहित होती है एवं इसी अधिनियम की धारा 3 के अनुसार :-

’’धारा 3. किसी अन्य कानून की कमी में अधिनियम नहीं.- समय के क्रियान्वयन के लिए इस अधिनियम के उपबंध किसी अन्य कानून के उपबंधों के अतिरिक्त में होंगे और न कि कमी में।’’

 

अधिनियम की धारा 13 में यह प्रावधान है कि जिला फोरम परिवाद प्राप्त होने पर एवं ग्रहण करने के पश्चात् किस प्रक्रिया का अनुसरण करेगा। अनुसरण करते हुए प्रकरण का निराकरण करेगाः-

’’धारा 13(1) (क) शिकायत में वर्णित विपक्षी पक्षकार को इसकी स्वीकृति के 21 दिन के भीतर इस शिकायत की एक प्रति उसे अपना प्रतिवेदन 30 दिन के भीतर या जिला मंच द्वारा प्रदान ऐसी बढ़ी हुई अवधि जो 15 दिन से ज्यादा नहीं हो, के भीतर देने का निर्देश देते हुए, सौंपेंगे

(ख) खण्ड (क) के अन्तर्गत उसको निर्दिष्ट की गई शिकायत की प्राप्ति पर जब विपरीत पक्षकार शिकायत में समाविष्ट आरोपों को अस्वीकृत करता है अथवा विवादित करता है, अथवा जिला मंच द्वारा दिये गये समय के भीतर उसके मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई कार्यवाही करने में असफल होता है अथवा कुछ छुपा लेता है, खण्ड (ग) से (छ) में समझाये बताये तरीके में उपभोक्ता विवाद का निपटारा करने के लिए जिला मंच कार्यवाही करेगा’’

 

इस प्रकार जिला फोरम इस अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही परिवाद का विचारण व निराकरण कर सकता है। व्यवहार प्रक्रिया के उपबंध व प्रावधान जिला फोरम की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से लागू नहीं किए जा सकते। धारा 13 में ही विशिष्टतः अभिव्यक्त है कि व्यवहार प्रक्रिया संहिता के कौन से उपबंध जिला फोरम की विचारण प्रक्रिया में लागू होंगे। अधिनियम की धारा 26 निम्नानुसार हैः-

 

’’धारा 26. तुच्छ और कष्टप्रद शिकायतों की अस्वीकृति.- जब जिला मंच, राज्य आयोग अथवा राष्ट्रीय आयोग, जो भी मामला हो, के समक्ष स्थापित की गई शिकायतें तुच्छ और कष्टप्रद पाई जाती है, तो ये लिखित में रिकॉर्ड किये गये कारणों के लिए शिकायत को अस्वीकृत करेंगे और आदेश देंगे कि शिकायतकर्ता विपरीत पक्षकार को उन खर्चों को अदा करे जो कि आदेश में समझाया जा सकता है, लेकिन 10,000रू. से ज्यादा नहीं।’’

 

उक्त प्रावधान के अनुसार जिला फोरम को यह अधिकार है कि जो शिकायतें तुच्छ व निराधार पाई जाती हैं उन्हें अस्वीकृत/निरस्त करने के साथ-साथ प्रतिकारात्मक व्यय परिवादी पर निरोपित कर सकता है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि जिला फोरम अपने समक्ष परिवाद प्रस्तुत किए जाने पर व ग्रहण करने के उपरांत प्रारंभिक स्तर पर ही प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना परिवाद को निरस्त कर दे। अपितु धारा 13 के अनुसार जिला फोरम परिवाद ग्रहण करने के उपरांत विहित प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए ही प्रकरण का निराकरण कर सकता है। अपीलार्थीगण/वि.प.गण अपने अभिकथन में प्रतिरक्षा व समस्त आपत्ति का उल्लेख कर सकता है। अपने अभिकथन प्रस्तुत करने के पूर्व ही परिवाद पत्र को निरस्त किए जाने की मांग करना अनुज्ञेय नहीं है। अतः अपीलार्थीगण/वि.प.गण द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र अंतर्गत् आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता व धारा 151 व्यवहार प्रक्रिया संहिता एवं धारा 26 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम स्वीकार योग्य नहीं था। अतः जिला फोरम द्वारा पारित अंतरिम आदेश दिनांक 16.09.2013 पारित कर आवेदन पत्र को खारिज कर उचित ही किया है एवं अपीलार्थीगण/वि.प.गण द्वारा प्रावधानिक अवधि में जिला फोरम के समक्ष अपना उत्तर, अभिकथन प्रस्तुत नहीं किया था, जो कि अनुज्ञेय नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप प्रकरण के शीघ्र निराकरण में विलंब कारित हुआ। अतः जिला फोरम द्वारा अपीलार्थीगण/वि.प.गण पर रू 500/- व्यय अधिरोपित कर आवेदन पत्र निरस्त कर उचित विनिश्चय ही लिया है। परिवाद पत्र का निराकरण गुण-दोष के आधार पर ही किया जाना विधि संगत व न्यायसंगत है।

 

9.            इस प्रकार विचारोपरांत हम इस विनिश्चय पर पहुंचते हैं कि अपीलार्थीगण/वि.प.गण द्वारा प्रस्तुत अपील सारहीन व आधारहीन होने से निरस्त की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आदेश उचित व सही होने से संपुष्ट किया जाता है एवं अपीलार्थीगण को निर्देशित किया जाता है कि इस आदेश दिनांक से 30 दिनों की अवधि के अंदर परिवादिनी/उत्तरवादिनी को रू 1,000/- अपील व्यय प्रदान करें। कार्यालय को निर्देशित किया जाता है कि मूल अभिलेख जिला फोरम रायगढ़ को यथाशीघ्र प्रेषित किया जावे एवं जिला फोरम को निर्देशित किया जाता है कि उभयपक्षकारों की उपस्थिति उपरांत प्रकरण का गुणदोष के आधार पर निराकरण यथाशीघ्र करें। उभयपक्षकारों को निर्देशित किया जाता है कि 16.03.2015 को जिला फोरम के समक्ष उपस्थित हों।

 

 

(न्यायमूर्ति आर. एस. शर्मा)          (सुश्री हीना ठक्कर)          (डी. के. पोद्दार)

       अध्यक्ष                                   सदस्या                         सदस्य

        /02/2015                            /02/2015                         /02/2015

 
 
[HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma]
PRESIDENT
 
[HONABLE MS. Heena Thakkar]
MEMBER
 
[HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar]
MEMBER

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