राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-3600/1999
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 276/96 में पारित निर्णय दिनांक 19.11.99 के विरूद्ध)
यूनियन आफ इंडिया एवं अन्य। ......अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
श्रीमती सुनीता सिंह एवं अन्य ......प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश चंद्र यादव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी0एच0 नकवी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 11.12.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 276/96 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 19.11.99 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी परिवादिनी के कथनानुसार दि. 19.05.95 को परिवादिनी के घर में शादी पड़ी थी उसी शादी के सिलसिले में परिवादिनी के पति स्व0 श्री राजेश को सूरत से टिकट संख्या 787254 से दि. 29.04.95 को गाड़ी संख्या 4295 डाउन ताप्ती गंगा एक्सप्रेस से रिजर्वेशन कराकर बर्थ संख्या एम.एस.-8 संख्या 33 पर बनारस के लिए रवाना हुए। अपीलकर्ता रेलवे विभाग का दायित्व था कि मृतक राजेश को सुरक्षित गंतव्य स्थान तक पहुंचाए। अपीलकर्ता के कर्मचारियों की लापरवाही एवं दुर्व्यवहार के कारण राजेश की उचेहरा जिला सतना मध्यप्रदेश के पहले मृत्यु हो गई। मृतक की लाश दि. 13.05.94 को उचेहरा रेलवे
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स्टेशन पर पाई गई। अपीलार्थीगण के कर्मचारियों ने जानबूझकर मृतक की दुर्घटना की सूचना दर्ज नहीं कराई और न ही उच्चाधिकारियों को सूचित किया। मृतक की जेब में उसकी कंपनी का कार्ड होने के कारण उचेहरा की पुलिस ने कंपनी को सूचित किया। कंपनी के जरिए परिवादिनी को मृतक राजेश की मृत्यु की जानकारी हुई, अत: क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्ता के कथनानुसार मृतक की मृत्यु गाड़ी में कदापि नहीं हुई न ही मृतक की मृत्यु रेलवे अधिकारियों अथवा कर्मचारियों की किसी लापरवाही के कारण हुई। अपीलकर्ता का यह भी कथन है कि प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता परिवादी को प्राप्त नहीं था।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि अपीलार्थीगण रू. 202500/- निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित निर्णय की तिथि से 2 माह के अंदर परिवादिनी को भुगतान करें। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश चंद्र यादव तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0एच0 नकवी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवाद के अभिकथनों के अनुसार परिवादिनी के पति ने दि. 29.04.95 को सूरत से बनारस के लिए यात्रा प्रारंभ की। परिवादिनी के पति का शव दि. 13.05.95 को उचेहरा रेलवे स्टेशन पर पाया गया। इस प्रकार
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परिवादिनी के पति द्वारा यात्रा प्रारंभ करने की तिथि से 14 दिन बाद उसका शव पाया गया। इस प्रकार यात्रा प्रारंभ की तिथि से अधिकतम 2 दिन के अंदर परिवादिनी के पति द्वारा यात्रा पूर्ण कर ली जाती। तदनुसार अधिकतम पहली अथवा दूसरी मई 1995 तक परिवादिनी के पति गंतव्य स्थान तक पहुंच जाते। यदि इस यात्रा के मध्य परिवादिनी के पति की मृत्यु होती तो इसके बावजूद 14 दिन के अंतराल में उनका शव शिनाख्त योग्य नहीं रह जाता। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13, 15, 28 के अंतर्गत बाधित है। प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल को प्राप्त है, उपभोक्ता मंच को नहीं। उल्लेखनीय है कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 13, 15, 28 के अंतर्गत प्रावधानित किया गया है कि:-
“13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal.- (1) The Claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exerciseable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railway Act,-
Relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under Chapter VII of the Railways Act in respect of claims for-
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(i) Compensation for loss, destruction, damage, deterioration or non-delivery of animals or goods entrusted to a railway administration for carriage by railway;
(ii) Compensation payable under section 82A of the Railway Act or the rules made there under; and
(b) In respect of the claims for refund of fares or part thereof or for refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted to a railway administration to be carried by railway.
[(1A) The Claims Tribunal shall also exercise, on the from the date of commencement of the provisions of Section 124A of the Railways Act, 1989 (24 of 1989), all such jurisdiction, powers and authority as we are exercisable immediately before that date by any civil court in respect of claims for compensation now payable by the railway administration under section 124A of the said Act or the rules made there under.]
(2) The provisions of the [Railway act 1989 (24 of 1989) an the rules made there under shall, so far as may be, by applicable to the inquiring into or determining, any claims by the claims Tribunal under this Act.
15. Bar of jurisdiction.- On or from the appointed day, no court or other authority shall have, or be entitled to, exercise
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any jurisdiction, powers or authority in relation to the matters referred to in [sub-section (1) and (1A)] of section 13.”
28. Act to have overriding effect.- The provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith contained in any other law for the time being in force or in any instrument having effect by virture of any law other than this Act.”
उपरोक्त प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता मंच को प्राप्त नहीं था। प्रश्नगत निर्णय क्षेत्राधिकार के अभाव में पारित होने के कारण अपास्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2