राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-359/2022
लखनऊ विकास प्राधिकरण
बनाम
श्रीमती सत्यभामा एवं अन्य
समक्ष:-
1. मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
3. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलाथी की ओर से उपस्थित : श्री राजीव पाण्डेय, अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री मुजीब एफेन्डी, अधिवक्ता।
दिनांक 13.06.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद संख्या 236/2016 श्रीमती सत्यभामा बनाम लखनऊ विकास प्राधिकरण के विरूद्ध 03.02.2021 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया है कि 45 दिन के अंदर परिवादीगण को आवंटित प्लाट या उसके स्थान पर कोई वैकल्पिक प्लाट पूर्व के भूखंड के समतुल्य क्षेत्रफल एवं धनराशि का आवंटित किया जाना सुनिश्चित करें तथा उसके तीन माह में निबंधन(विक्रय विलेख) भी करें, साथ ही साथ मानसिक तथा आर्थिक क्षति के दृष्टिगत जमा की गयी धनराशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर संपूर्ण भुगतान की तिथि से अदा करना सुनिश्चित करें एवं वाद व्यय के रूप में रू. 10000/- भी अदा करेंगे। निर्धारित अवधि में अदा न करने पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देय होगा।
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परिवाद पत्र के तथ्यों के अनुसार परिवादीगण को प्लाट संख्या 4/791 बी टाइप प्लाट जिसका मूल्य रू. 967500/- था, का आवंटन किया गया। उक्त आवंटन के सापेक्ष विपक्षी द्वारा शेष बची हुई धनराशि रू. 93776/ को 12 किश्तों में दिनांक 31.03.2004 से भुगतान किया जाना था। परिवादी द्वारा समयान्तर्गत समस्त देय धनराशि का भुगतान कर दिया गया। इसके उपरांत विपक्षी द्वारा एक पत्र परिवादीगण को दिया गया जिसके अंतर्गत ले आउट प्लान में संशोधन करते हुए प्लाट का नम्बर 4/791 के स्थान पर प्लाट नम्बर 4/130 को आवंटित किया गया। परिवादीगण ने संपूर्ण धनराशि के भुगतान के बाद विपक्षी के अधिकारियों से कई बार संपर्क करने पर भी उक्त प्लाट का कब्जा प्राप्त नहीं हो सका।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजीव पाण्डेय एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री मुजीब एफेनडी को सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
जिला उपभोक्ता मंच द्वारा अपने निर्णय में यह पाया गया कि लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा तथ्यों को एवं वास्तविक स्थिति अपने उत्तर पत्र में छिपायी है और बिना स्पष्ट कब्जे के प्लाट आवंटन करना एक गलत निर्णय है, जो कानून के शासन के विपरीत है, क्योंकि प्लाट आवंटनधारक को बिना वजह संपूर्ण धनराशि के भुगतान के बाद भी दशकों तक कब्जा प्राप्त न करना/विक्रय विलेख संपन्न न करने में परेशानी हुई है, इसके लिए स्पष्ट रूप से विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण दोषी प्रतीत होता है।
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हमारे द्वारा पत्रावली का परीक्षण, जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश का परीक्षण और परिशीलन करने के उपरांत पाया गया कि विद्वान जिला फोरम का आदेश पूर्णतया सुसंगत एवं विधिनुकूल है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है, तदनुसार प्रस्तुत अपील रू. 5,00000/-(पांच लाख रूपये) हर्जे पर निरस्त की जाती है। आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थी लखनऊ विकास प्राधिकरण जिला आयोग एवं इस निर्णय का अनुपालन 45 दिवस में करना सुनिश्चित करें अन्यथा जमा धनराशि एवं हर्जाने की धनराशि पर 12 प्रतिशत ब्याज की देयता जमा की तिथि से कब्जे व पंजीकरण की तिथि तक एवं हर्जाने पर ब्याज की देयता इस निर्णय की तिथि से देय होगी। तदनुसार अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) अध्यक्ष सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-1