(सुरक्षित )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :380/2020
(जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद संख्या-141/2018 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 13-10-2020 के विरूद्ध)
- एच0डी0एफ0सी0 इरगो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 कारपोरेट आफिस प्रथम फ्लोर-165-166 बैकवे रेस्लेमेसन एच.टी. प्रकाश मार्ग चर्च गेट मुम्बई-400020
- एच0डी0एफ0सी0 इरगो जनरल इं0कं0लि0 पता द्धितीय फ्लोर 116 सिविल लाइन आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक बिल्डिंग बरेली 243001
अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 व 2
दोनों अपीलार्थीगण द्वारा मिस्टर शिव प्रकाश सिंह असिस्टेंट मैनेजर, लीगल, आफिस रतन स्क्वायर, विधान सभा मार्ग, लखनऊ।
बनाम्
श्रीमती सरोज पत्नी श्री स्व0 श्री अशोक कुमार निवास स्थल मकान संख्या-697 खन्ना बिल्डिंग वाली गली, सुभाष नगर जिला बरेली।
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री टी0जे0एस0 मक्कड़।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- मो0 इरफान।
दिनांक : 22-07-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-141/2018 श्रीमती सरोज बनाम एच0डी0एफ0सी0 इरगो जनरल इं0कं0लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम,
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बरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 13-10-2020 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है:-
‘’आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध बीमा क्लेम की धनराशि रूपये 17,10,755/- की वापसी के संबंध में स्वीकार किया जाता है। जिसे विपक्षीगण परिवादी को 30 दिन में अदा करेंगे। समय से अनुपालन न करने पर इस पर विपक्षीगण परिवादिनी को वाद दाखिल होने की तिथि से वसूली की तिथि तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी अदा करेंगे। इसके अलावा रूपये 3000/- खर्चा मुकदमा भी विपक्षीगण परिवादिनी को 30 दिन में अदा करेंगे।‘’
विद्धान जिला आयोग के निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति स्व0 अशोक कुमार ने मकान ऋण के संबंध में ‘’होम सुरक्षा प्लस’’ के अन्तर्गत बीमा पालिसी दिनांक 30-11-2016 को विपक्षी से ली थी जिसकी पालिसी संख्या-2918201574002100000 है तथा ऋण की 180 किश्ते देनीं थी जिसमें से 108 महीने तक रू0 17,885/- व 109 से 180 महीने के बीच रू0 8929/- मासिक किश्त के रूप में देना था इस प्रकार कुल 15 वर्षों में बीमा पालिसी की धनराशि किश्तों में अदा की जानी थी। यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी के पति बीमा की किश्तें
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नियमित रूप से अदा कर रहे थे, दिनांक 12-08-2017 को वह बीमार हो गये और विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज हुआ और अन्त में दिनांक 18-08-2017 को “Septic e ARF” से उनकी मृत्यु हो गयी, जिसका उल्लेख अस्पताल के कागजातों में किया गया है। परिवादिनी उनकी पत्नी व एक मात्र उत्तराधिकारिणी है जिस कारण वह बीमा पालिसी के क्लेम को पाने की हकदार है। विपक्षी द्वारा यह कहते हुए दिनांक 16-05-2018 को बीमा क्लेम खारिज कर दिया गया कि स्व0 अशोक कुमार की मृत्यु “Septicemia acute renal failure” से हुई जो पालिसी में कवर नहीं है। परिवादिनी द्वारा यह कहा गया कि विपक्षीगण की सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादिनी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित करते हुए पालिसी की धनराशि रू0 17,10,755/- व क्षतिपूर्ति आदि दिलाये जाने का अनुरोध किया है।
विपक्षी की तरफ से उत्तर पत्र 12 दाखिल करते हुए परिवादिनी के मृतक पति अशोक कुमार द्वारा दिनांक 30-11-2016 को होम सुरक्षा प्लस’’ प्लान के अन्तर्गत बीमा पालिसी लेना स्वीकार किया गया है तथा यह भी कहा गया कि उनकी मृत्यु “Septicemia acute renal failure” से होना बताया गया है जो बीमा पालिसी में कवर नहीं है। यह भी कहा गया कि संबंधित बैंक को पक्षकार नहीं बनाया गया है। परिवादिनी का ऋण बैंक के संबंध में है, ऋण के कागजात का संबंध बीमा कम्पनी से नहीं है। परिवादिनी ने बढ़ा चढ़ा कर खर्च दिखाया है, बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई कमी नहीं किया है परिवाद खारिज किये जाने का अनुरोध किया गया है।
उभयपक्ष को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन करने के पश्चात विद्धान जिला आयोग ने निम्नलिखित अवधारण बिन्दु अपने निष्कर्ष में उल्लिखित किये है :-
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- क्या विपक्षीगण ने परिवादिनी को बीमा क्लेम की धनराशि न देकर उपभोक्ता सेवा प्रदान करने में त्रुटि की है।
- क्या परिवादिनी कोई अनुतोष पाने की अधिकारिणी हैं।
परिवादिनी का कथन है कि उसने एच0डी0एफ0सी0 बैंक से आवास हेतु ऋण लिया था और इस संबंध में विपक्षीगण से ‘’होम सुरक्षा प्लस’’ के अन्तर्गत उसके पति मृतक अशोक कुमार ने दिनांक 30-11-2016 को बीमा कराया तथा परिवादिनी के पति दिनांक 12-08-2017 को बीमार हो गये और विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज हुआ, लेकिन वह ठीक नहीं हो सके और दिनांक 18-08-2017 को उनकी मृत्यु हो गयी। विपक्षीगण ने यह कहते हुए क्लेम खारिज कर दिया कि बीमा पालिसी में वह बीमारी जिससे मृतक की मृत्यु हुई है वह बीमारी कवर नहीं है।
इस संबंध में विपक्षीगण ने अपने उत्तर पत्र कागज संख्या-12 में स्व0 अशोक कुमार द्वारा दिनांक 30-11-2016 को ‘’होम सुरक्षा प्लस’’ प्लान के अन्तर्गत पालिसी लेना स्वीकार किया है तथा यह कहा है कि अशोक कुमार की मृत्यु “Septicemia acute renal failure” से हुई है जो बीमा पालिसी में कवर नहीं है। इस प्रकार परिवादिनी के मृतक पति अशोक कुमार द्वारा बीमा पालिसी लिया जाना तथा उनकी मृत्यु होना स्वीकार किया गया। विपक्षीगण ने यह आपत्ति भी उठायी है कि जिस बीमारी से मृतक अशोक कुमार की मृत्यु हुई है वह बीमा पालिसी में कवर नहीं है।
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अब देखा यह जाना है कि जिस बीमारी से मृतक अशोक कुमार की मृत्यु हुई है वह बीमा पालिसी में कवर है या नहीं।
इस संदर्भ में सर्वप्रथम बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा यह आपत्ति उठायी गयी कि परिवादिनी द्वारा चिकित्सा संबंधी कागजात दाखिल नहीं किये हैं जिन्हें दाखिल कराया जाये। इस संबंध में बीमा कम्पनी की तरफ से प्रार्थना पत्र कागज संख्या-14 व 16 दिया गया है जिसमें कागजात दाखिल कराने का अनुरोध किया गया है इसके विरूद्ध परिवादिनी की तरफ से आपत्ति कागज संख्या-17 दिया गया और उसके साथ-साथ चिकित्सा से संबंधित बिल आदि कागज संख्या-18/1 ता 18/28 व आपत्ति 21 दाखिल की गयी है। जिला मंच द्वारा दिनांक 03-04-2019 को आदेश करते हुए परिवादिनी से यह कहा गया कि उसके पास जो भी कागजात हैं वह दाखिल करें। परिवादिनी की तरफ से यह कहा गया कि जो भी कागजात थे वह बीमा कम्पनी को दे चुकी है और अब उसके पास और कोई मूल कागजात नहीं हैं।
दोनों पक्षों को सुनकर पुन: दिनांक 14-06-2019 को यह आदेश किया गया कि परिवादिनी के पास जो कागजात है उन्हें वह दाखिल करें अन्यथा अपना स्पष्टीकरण दें, विधि अनुसार इस पर उपधारणा की जायेगी। विपक्षीगण ने अपनी आपत्ति कागज संख्या-18/1 ता 18/28 दाखिल किया है जिसमें यह कहा गया कि जो कागजात उसके पास थे वह बीमा कम्पनी को दे चुकी है और उन्होंने संबंधित अस्पताल से जानकारी भी प्राप्त कर लिया है। बीमा कम्पनी के कहने पर उन्हें कागजात दिये गये थे और अब कोई कागजात उनके पास नहीं हैं। इस प्रकार न्यायालय के उक्त आदेश व दोनों पक्षों द्वारा दिये गये
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कागजात व रखे गये तथ्यों व साक्ष्य के संदर्भ में यह देखा जाना है कि परिवादिनी के पति स्व0 अशोक कुमार की मृत्यु किस बीमारी से हुई है। यह भी देखा जाना है कि क्या उक्त बीमारी बीमा पालिसी में कवर थी या नहीं। यह भी देखा जाना आवश्यक है कि क्या परिवादिनी ने अपने कागजात बीमा कम्पनी को दे दिये थे या नहीं दिये थे, इस संबंध में भी पत्रावली का अवलोकन किया गया।
पत्रावली पर कागज संख्या-8/25 संलग्न किया गया है जो बीमा कम्पनी ने परिवादिनी को लिखित रूप से दिया है इसमें लिखा है:-
“We refer to the above claim loged by you and all the documents received at our end. As per the Case Summary reccived, Late Mr. Ashok Kumar was diagnosed to be suffering from Septicemia, Acute Renal failure. The said ailments are not coverd under policy.” Hence claim is rejected.
इसमें यह लिखा हुआ है कि निम्नलिखित 05 बड़ी बीमारियॉं ही इसमें कवर होती हैं :-
1-First Heart Attack of Specified Severity:
2-Open Chest CABG:
3-Stroke resulting in Permanent symptoms:
4-Cancer of Specified Severity:
5-Permant Paralysis of Limbs:
विपक्षी के इस प्रपत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि विपक्षीगण को परिवादिनी को मेडिकल से संबंधित क्लेम व कागजात प्राप्त हो गये थे, और उन्होंने उसका अध्ययन भी कर लिया है और अध्यनोपरान्त यह पाया कि उसके पति मृतक अशोक कुमार की मृत्यु ‘’सैप्टीसीमिया
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एक्यूट रेनल फेलूयर’’ से हुई है। ऐसे में अन्य किसी कागजात की आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यता होती तो बीमा कम्पनी परिवादिनी का बीमा दावा/क्लेम निस्तारित न करती बल्कि परिवादिनी से पत्राचार करती। ऐसे में जिला मंच ने अपने आदेश दिनांकित 14-06-2019 के द्वारा जो आदेश किया है उसके अनुसार परिवादिनी के विरूद्ध किसी विपरीत उपधारणा का कोई औचित्य नहीं है।
विपक्षीगण के अनुसार मृतक अशोक कुमार की मृत्यु सैप्टीसीमिया, एक्यूट रेनल फेलूयर’’ से हुई है, जो बीमा पालिसी में कवर नहीं है और इसमें हार्ट अटैक, ओपिन चैस्ट सी.ए.बी.जी. स्ट्रोक, कैंसर तथा पैरालाइसिस को ही कवर किया गया है, किन्तु इस संबंध में बीमा कम्पनी ने बीमारी से संबंधित पालिसी दाखिल नहीं किया है जिससे यह ज्ञात हो सके कि इसमें क्या-क्या बीमारी कवर थीं। इसके अलावा भी परिवादिनी ने जो चिकित्सा से संबंधित मूल कागजात विपक्षीगण को दिये थे, जिसे प्राप्त करना स्वयं वह स्वीकार करते हैं, उसे या उसकी प्रतिलिपि भी विपक्षीगण द्वारा दाखिल नहीं की गयी है जब कि परिवादिनी के अनुसार अब उसके पास कोई कागजात नहीं रह गये हैं और जो कागजात थे उसे वह विपक्षीगण को दे चुकी है। चूंकि विपक्षीगण ने कागज संख्या-8/25 से कागजात मिलना स्वीकार कर लिया है और उसे दाखिल नहीं किया है इससे विपक्षीगण की लापरवाही की उपधारण की जायेगी कि उन्होंने साक्ष्य को छिपाने का प्रयास किया है।
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पत्रावली पर कागज सं0-8/1 बीमा से संबंधित ‘’होम्स सुरक्षा प्लस’’ का एक कागज परिवादिनी ने दाखिल किया है, जिसके अनुसार बीमा में निम्नलिखित 09 बीमारियॉं कवर है :-
2- End Stage Renal Failure.
3- Multiple Scirosis.
4-Major Organ Transplant.
5-Heart Valve Replacement.
6-Coronary Artery bypass Graft.
9-Myocardial Infarction.
इस प्रकार अन्य बीमारियों के अलावा किड़नी से संबंधित ‘’एण्ड स्टेज रेनल फेलूयर’’ भी बीमा पालिसी में सम्मिलित है। परिवादिनी के पति स्व0 अशोक कुमार की मृत्यु ‘’सैप्टीसीमिया, एक्यूट रेनल फेलूयर’’ से हुई।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ‘’एक्यूट रेनल फेलूयर’’ व इन्ड स्टेज रेनल फेल्योर में कोई अंतर है और यदि अंतर है तो क्या वह मृतक अशोक कुमार को बीमा लेते समय समझा दिया गया था। विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा इन्टरनैट का एक प्रपत्र, कागज संख्या 24 दाखिल करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि एण्ड स्टेज रेनल फेलूयर धीरे-धीरे किडनी फेल होने को कहते है जब कि एक्यूट रेनल फेल्योर, अचानक किडनी फेल होने को कहते हैं, परन्तु यह तो स्पष्ट है कि मृतक की मृत्यु किडनी फेल होने से हुई है, इसके अलावा उसको सैप्टीसीमिया भी हो गया था। अब
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विपक्षीगण को चाहिए था कि जिन चिकित्सीय कागजात को उन्होंने परिवादिनी से प्राप्त किया था और जिसके आधार पर निर्णय लिया था उन कागजातों को वह न्यायालय के सम्मुख दाखिल करते और उन कागजातों के आधार पर अपने पैनल के चिकित्सकों से रिपोर्ट लेते और न्यायलय में दाखिल करके साबित करते, इसके अलावा अपने अन्वेषक से अस्पताल से जॉंच कराके रिपोर्ट प्रस्तुत करते। हमारी राय में जब किड़नी फेल होने से संबंधित मृत्यु होना बीमा में कवर है तो सामान्य बीमा लेने वाला व्यक्ति यह कैसे जान पायेगा कि उसकी किडनी कब और कैसे फेल होगी तो बीमा कब मिलेगा और कब नहीं मिलेगा। अंग्रेजी में शर्तें लिखी है, इसे यदि किसी ने समझाया हो या अंतर स्पष्ट रूप से बताया हो तो उसे न्यायालय में आकर साबित करना होगा और बताना होगा कि एक व्यक्ति मकान के लिए ऋण लेता है और अपनी सुरक्षा में बैंक व बीमा कम्पनी के कहने पर उसका बीमा करा लेता है और निश्चिंत हो जाता है कि उसे कुछ हो जाने पर बच्चों पर कोई जिम्मेदारी नहीं आयेगी।
बीमा कम्पनी ने तो मात्र 05 ही बीमारियों का उल्लेख कागज संख्या-8/25 में किया है, जब कि बीमा कम्पनी के ही प्रपत्र कागज संख्या-8/1 में 09 बीमारियों का उल्लेख है। बीमा कम्पनी ने पालिसी भी दाखिल नहीं किया है जो उनके पास अवश्य होगी, जब कि परिवादिनी ने बीमा कम्पनी को समस्त कागजात दे दिये हैं। इन सभी परिस्थितियों में हमारी राय में बीमा पालिसी के रिस्क कवर के उद्देश्य
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से ‘’किडनी के फेल होने से मृत्यु होना’’ बीमा पालिसी के जोखिम में सम्मिलित है। इस संबंध में बीमा कम्पनी के तर्कों में बल नहीं है। बीमा कम्पनी द्वारा पारिवादिनी के पति मृतक अशोक कुमार की मृत्यु किडनी फेल होने व सैप्टीसीमिया से होने की स्थिति में बीमा पालिसी के क्लेम को न देकर उपभोक्ता सेवा में त्रुटि कारित की गयी है।
जहॉं तक बैंक को पक्षकार न बनाने का प्रश्न है परिवादिनी के पति ने बैंक से ऋण लिया और उसकी किश्तें वह देते रहे और उनकी मृत्यु हो जाने पर परिवादिनी वह किश्तें अदा कर रही है। किश्त माफ करने का कोई दावा नहीं किया गया है मात्र पति के मरने पर बीमा पालिसी में जो जोखिम कवर था उसकी मांग की गयी है। ऐसे में किश्त देने में छूट नहीं मांगी गयी है। बैंक ने किश्त अदायगी में लापरवाही का कोई आरोप नहीं लागया है। ऐेसे में संबंधित बैंक को पक्षकार न बनाने से परिवाद में कोई फर्क नहीं पड़ता है। परिवादिनी व बीमा कम्पनी के बीच बीमाधारक मृतक अशोक कुमार के बीमा क्लेम का विवाद है। ऊपर की गयी विवेचनाओं के अनुसार इस मामले में मृतक की मृत्यु पर जोखिम बीमा में कवर था और परिवादिनी उनकी पत्नी और उत्तराधिकारी है फलस्वरूप उसे बीमा क्लेम की धनराशि मिलना चाहिए।
ऊपर की गयी विवचनाओं से यह तय पाया गया कि परिवादिनी के पति स्व0 अशोक कुमार ने जो विपक्षीगण से बीमा लिया था और जिस बीमारी से उनकी मृत्यु हुई वह बीमा पालिसी में कवर थी,
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परिवादिनी उसकी विधवा/धर्मपत्नी/उत्तराधिकारिणी है, फलस्वरूप वह बीमा धनराशि पाने की अधिकारिणी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री टी0 जे0 एस0 मक्कड़ उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता मो0 इरफान उपस्थित आए।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है उनकी ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है परिवादिनी का बीमा दावा नियमानुसार निरस्त किया गया है। अत: अपील स्वीकार किये जाने की प्रार्थना उनके द्वारा की गयी है।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय विधि अनुसार है अत: अपील निरस्त किये जाने की प्रार्थना उनके द्वारा की गयी।
पीठ द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
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आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश 13-10-2020 की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
( न्यायमूर्ति अशोक कुमार ) ( सुशील कुमार )
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1