(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या:1394/2017
मुख्य चिकित्सा अधिकारी बनाम श्रीमती संतोषी
समक्ष :-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री सुशील कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 16.08.2023
माननीय सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा उदघोषित
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी मुख्य चिकित्साधिकारी की ओर से विद्वान जिला आयोग महोबा, द्वारा परिवाद संख्या 97/2012 श्रीमती संतोषी बनाम मुख्य चिकित्सधिकारी में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 06.07.2013 के विरूद्ध योजित की गयी है।
वाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करती है। परिवादिनी के तीन बच्चे हैं। इनके पालन-पोषण में परिवादिनी को दिक्कत हो रही थी, इसलिए परिवादिनी द्वारा विपक्षी के यहां दिनांक 29.12.2009 को अपना नसबन्दी ऑपरेशन विपक्षी के अस्पताल में सेवारत डॉक्टर से कराया गया था। नसबन्दी ऑपरेशन
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को सफल घोषित किया गया था। यथा भविष्य में गर्भ न ठहरने का पूर्ण आश्वासन भी दिया गया था। परिवादिनी को विपक्षी के डाक्टरों द्वारा नसबंदी ऑपरेशन करने के बाद पुन: गर्भ ठहरने की आशंका हुई, तब परिवादिनी के उपकेन्द्र प्रा0 स्वा0 केन्द्र पनवाड़ी में दिखाया। जहां उसे जानकारी दी गयी वह गर्भवती है और बाद में परिवादिनी ने एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया। विपक्षी के डॉक्टरों द्वारा दिनांक 29.12.2009 को लापरवाही पूर्वक गलत ऑपरेशन किया गया और भविष्य में बच्चा न होने का गलत आश्वासन भी दिया गया, जिससे परिवादिनी को आर्थिक परेशानी से गुजरना पड़ रहा है और उसे मानसिक कष्ट है। विपक्षी द्वारा नसबंदी आपॅरेशन के संबंध में अपने उत्तरदायित्व से बचने हेतु शासनादेश के अनुपालन में प्रत्येक नसबन्दी कराये जाने वाले व्यक्ति का बीमा कराया जाता है, जिस कारण परिवादिनी द्वारा बीमा धनराशि प्रदान किये जाने हेतु विपक्षी से अनुरोध किया गया, तो विपक्षी द्वारा कुछ आवेदन प्रपत्रों पर अक्टूबर 2010 में हस्ताक्षर कराये गये तथा क्षतिपूर्ति देने का आश्वासन दिया गया, लेकिन विपक्षी द्वारा बीमा धनराशि नहीं प्रदान की गयी। विपक्षी द्वारा उसे क्षतिपूर्ति देने से स्पष्ट मना कर दिया गया। अत: परिवादिनी द्वारा मा0 फोरम के समक्ष यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी को जरिये रजिस्ट्री नोटिस भेजी गयी, पर्याप्त तामीला के उपरांत विपक्षी द्वारा एक बार उपस्थित होकर स्थगन प्रार्थना पत्र दिया गया। उसके उपरांत परिवाद की सुनवाई में भाग नहीं लिया गया। अत: उसके विरूद्ध परिवाद की सुनवाई एकपक्षीय रूप से की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादिनी को सुनने के उपरांत निम्न निर्णय व आदेश पारित किया:- परिवादिनी का परिवाद खिलाफ
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विपक्षी एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को बतौर क्षतिपूर्ति धनराशि मु0 70,000/-रू0 प्रदान करें। इसके अलावा परिवादिनी मानसिक व शारीरिक क्षतिपूर्ति के एवज में मु0 25,000/-रू0 तथा वादव्यय के एवज में 2,500/-रू0 विपक्षी से पाने की हकदार होगी। उपरोक्त समस्त धनराशि विपक्षी परिवादिनी को इस निर्णय के अन्दर एक माह प्रदान करे। अन्यथा परिवादिनी विपक्षी से उपरोक्त धनराशि पर 09 प्रतिशत सलाना की दर से ब्याज भी पाने की अधिकारी होगी।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वार पारित उक्त निर्णय व आदेश से व्यथित होकर परिवाद के विपक्षी के द्वारा यह अपील दाखिल की गयी।
अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिया गया है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 06.07.2013 अवैध है एवं बिना विधिक मस्तिष्क का प्रयोग किये पारित किया गया है तथा वाद के गुण-दोष पर भी सम्यक विचार नहीं किया गया है। परिवादिनी अपीलकर्ता की उपभोक्ता नहीं है क्योंकि स्वयं उसने स्वीकार किया है कि विपक्षी द्वारा कोई भी प्रतिफल सेवा के बदले में उससे नहीं लिया गया था। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी राजकीय सेवा के अन्तर्गत अपनी सेवाएं दी है और वह परिवादिनी के लिए सेवा प्रदाता नहीं है। परिवादिनी के नसबंदी का ऑपरेशन भारत सरकार के स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण योजना के अन्तर्गत किया गया है, किन्तु प्रस्तुत मामले में नसबंदी असफल होने की कोई सूचना प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को नियमानुसार नहीं दी गयी थी। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा इस तथ्य पर भी विचार नहीं किय गया
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है कि नसबंदी का ऑपरेशन शत-प्रतिशत सफल होना नहीं माना जा सकता है तथा परिवादिनी ने जो आवेदन पत्र दिया था उसमें भी स्पष्ट रूप से अंकित था किह नसबंदी का ऑपरेशन शत-प्रतिशत सफलता की गारन्टी नहीं की जा सकती है और इस ऑपरेशन के असफल होने की संभावना है। परिवादिनी ने इस पर भी हस्ताक्षर किये थे कि नसबंदी ऑपरेशन असफल होने पर किसी भी न्यायालय में वाद योजन नहीं किया जायेगा। इस आधार पर अपील प्रस्तुत की गयी है एवं प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 06.07.2013 को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य व जिला आयोग का निर्णय अपास्त किये जाने योग्य है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्माको सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध सभी अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
परिवाद पत्र के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादिनी द्वारा कथन किया गया है कि नसबंदी का ऑपरेशन पूर्णत: लापरवाही एवं गैर जिम्मेदराना ढंग से किया गया है, जिसके कारण सैकड़ो ऑपरेशन असफल हो गये । इस प्रकार परिवादपत्र में स्पष्ट रूप से चिकित्सकों की लापरवाही के कारण नसबंदी आपरेशन असफल होने का आक्षेप करते हुए क्षतिपूर्ति हेतु वाद योजित किया गया है।
विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय व आदेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने भी इस आधार पर परिवाद आज्ञप्त किया है कि सैकड़ो ऑपरेशन असफल हुए है, जिसमें से यह
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नसबंदी का ऑपरेशन भी है एव इस आधार पर चिकित्सक की लापरवाही मानते हुए परिवाद आज्ञप्त किया है।
इस संबंध में अपीलार्थी का यह तर्क आया कि नसबंदी के ऑपरेशन असफल होने के अनेक कारण हो सकते हैं, एवं मात्र नसबंदी ऑपरेशन असफल होने पर यह मान लेना उचित नहीं है कि चिकित्सक की ओर से लापरवाही हुयी थी। अपीलार्थी के इस तर्क में बल है। इस संबंध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय स्टेट ऑफ पंजाब बनाम शिवराम तथा अन्य प्रकाशित iv (2005) CPJ 14 (SC) इस संबंध में दिशा निर्देश देता है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णित किया गया है कि केवल इस कारण कि किसी महिला ने नसबंदी का ऑपरेशन करवाया है और ऑपरेशन के बाद वह गर्भवती हो गयी है और उपरोक्त ऑपरेशन असफल हो गया है ऐसी दशा में नसबंदी करने वाला सर्जन क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं हो जाता है, जब तक कि पूर्ण रूप से यह साबित न हो कि यह ऑपरेशन सर्जरी में किसी कमी के कारण ही असफल हुआ है।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के प्रस्तर 25, 26, 27, 28 में यह निर्णित किया गया है कि नसबंदी ऑपरेशन के असफल होने के अनेक कारण होते हैं ऐसा प्रत्येक मामले में नसबंदी का आपरेशन शत-प्रतिशत सुरक्षित नहीं होता है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णित किया गया है कि नसबंदी का ऑपरेशन करने वाला सर्जन, सर्जरी में लापरवाही के लिए उत्तरदायी होगा न कि केवल गर्भधारण के कारण उत्तरदायी होगा। प्रस्तुत मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू होता है, इस मामले में परिवादिनी की ओर से विशिष्ठ रूप में नसबंदी की सर्जरी में किसी
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लापरवाही को साबित नहीं किया गया है, बल्कि मात्र नसबंदी के उपरांत गर्भधारण के आधार पर ही संबंधी चिकित्सक को दोषी मानते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा क्षतिपूर्ति का आदेश दिया है जो मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के विपरीत है।
इस मामले में परिवादी ने स्वीकार किया है कि उसके द्वारा इस सर्जरी में कोई धनराशि प्रतिफल के रूप में नहीं दी गयी है। अत: इस आधार पर भी परिवादिनी को राजकीय चिकित्सक/विपक्षी का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है। इस कारण भी यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय नहीं है। इस संबंध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय- इंडियन मेडिकल एसोशिएशन बनाम वी.पी. शान्था प्रकाशित iii (1995) CPJ Page 1 (S.C.) का उल्लेख करना भी उचित होगा, जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णित किया गया है कि सरकारी चिकित्सालय जहां बिना किसी शुल्क के चिकित्सा करवायी गयी हो, यह चिकित्सक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत (सेवा) की श्रेणी में नहीं आया और सेवा का लाभ उठाने वाला व्यक्ति अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आया। अत: वाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत संधारणीय नहीं है। प्रस्तुत मामले में परिवादिनी द्वारा यहां निश्चित शुल्क देकर ऑपरेशन कराना नहीं कहा गया है। अत: मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार भी यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय नहीं है।
उल्लेखनीय है कि परिवादिनी यह वाद बीमा कंपनी आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड के विरूद्ध नहीं लायी है, जिसके द्वारा नसबंदी के
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उक्त ऑपरेशन का बीमा किया गया था एवं संविदा सेवा भी बीमा कंपनी के मध्य हुयी थी। जिसकी लाभार्थी परिवादिनी थी। परिवादिनी द्वारा परिवाद सीधे चिकित्सकीय उपेक्षा के आधार पर लाया गया जो उपरोक्त कारणों से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत पोषणीय न होने के कारण एवं गुण-दोष के आधार पर स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा उपरोक्त् तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए निर्णय आज्ञप्त किया गया है।
अत: जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किये जाने योग्य है एवं प्रस्तुत अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग का निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
शोभना त्रिपाठी- आशु0 कोर्ट नं0 1