राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-469/2016
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, झॉसी द्वारा परिवाद संख्या-30/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14-01-2016 के विरूद्ध)
- M/s Ansal Housing and Construction Ltd., Through its Managing Director Registered Office : 15 U.G.F., Indra Prakash 21, Barah Khamba Road, New Delhi.
- M/s Ansal Housing and Construction Ltd., Site Office : Shop No. 6, First Floor, Opposite Medical College, Distt. Jhansi Through its Manager.
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम्
Smt. Sangeeta Verma W/o Shri Naresh Kumar Verma R/o A.M.240, Veerangana Nagar, Veerangana, District-Jhansi.
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री संजीव सिंह।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री आलोक सिन्हा।
दिनांक : 19-04-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय :
परिवाद संख्या-30/2015 श्रीमती संगीता वर्मा बनाम् प्रबंध निदेशक, अंसल हाउसिंग एण्ड कन्ट्रक्शन लि0 15 यू0जी0एफ0 इन्द्रा प्रकाश, 21 बारह खम्बा रोड, न्यू दिल्ली एवं प्रबंध निदेशक अंसल हाउसिंग एण्ड कन्ट्रक्शन लि0 दुकान नं0-6 प्रथम मंजिल अपोजिट मेडिकल कालेज, झॉसी में जिला उपभोक्ता फोरम, झॉसी द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 14-01-2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण M/s Ansal Housing and Construction Ltd., Through its Managing Director Registered Office : 15 U.G.F., Indra Prakash 21, Barah Khamba Road, New Delhi एवं M/s Ansal Housing and Construction Ltd., Site Office : Shop No. 6, First Floor, Opposite Medical College, Distt. Jhansi Through its Manager की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि इस निर्णय की तिथि से एक माह के भीतर प्रश्नगत यूनिट संख्या-ए-038 की रजिस्ट्री परिवादिनी के पक्ष में निष्पादित करें, तथा अनुबंध की शर्तों के अनुसार पूर्ण निर्मित यूनिट का भौतिक कब्जा उसे प्रदान करें। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी आदेशित किया है कि विपक्षीगण प्रत्यर्थी/परिवादिनी से रजिस्ट्री के समय मात्र अवशेष धनराशि 92,953/-रू0 प्राप्त करेंगे। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी आदेशित किया है कि विपक्षीगण प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 20,000/-रू0 क्षतिपूर्ति और 5,000/-रू0 वाद व्यय भी अदा करें अथवा विलम्ब के रूप में अवशेष धनराशि 92,953/-रू0 में समायोजित करें।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री संजीव सिंह तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र की धारा-2 से ही स्पष्ट है कि प्रश्नगत बिला का अनुबंधित विक्रय मूल्य रू0 30,70,448.89 है। अत: परिवाद जिला फोरम की आर्थिक क्षेत्राधिकारिता से परे है। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन में भी यह स्पष्ट कथन किया है कि परिवाद जिला फोरम की आर्थिक क्षेत्राधिकारिता से परे है, फिर भी जिला फोरम ने इस बिन्दु पर विचार किये बिना आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है जो पूर्णतया अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त विधि के अनुसार निर्णय पारित किया है तथा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत परिवाद की धारा-2 में स्पष्ट कथन किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा आवेदन किये जाने के पश्चात् उसे विपक्षीगण ने यूनिट नम्बर-ए-038 बिला जिसका क्षेत्रफल-2093 है कुल रू0 30,70,448.89/-रू0 में विक्रय करने का अनुबंध किया और परिवादिनी को कैश डाउन डिस्काउण्ट के तहत रू0 3,07,044.89 पैसे की छूट दी। इस प्रकार परिवादिनी को कुल 27,63,404/-रू0 का भुगतान विपक्षीगण को करना था।
परिवादिनी ने परिवाद में निम्न अनुतोष चाहा है।
1- यह कि आवंटित बिला-ए-038 का 92,953/-रू0 प्राप्त करके परिवादिनी के पक्ष में आवंटित बिला की रजिस्ट्री की जाए एवं बिला का भौतिक कब्जा दिलाया जाए।
2- यह कि जमासुदा धनराशि 26,70,451/-रू0 पर दिनांक 07-07-2014 से भौतिक कब्जा बिला का न प्रदान करने तक 21 प्रतिशत ब्याज दिलाया जावे।
3- यह कि दिनांक 13-11-2014 के पजेशन आफर पत्र में स्टाम्प ड्यूटी को छोड़कर शेष धनराशि निरस्त की जाए।
4- यहकि मानसिक कष्ट के तहत 2,00,000/-रू0 दिलाये जाए तथा परिवाद खर्चें के तहत 50,000/-रू0 दिलाया जाए।
5- यहकि अन्य मुआवजा जो न्यायालय की राय में उचित हो दिलाया जाए।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन की धारा-14 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परिवाद में उठाया गया विवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।
धारा-11 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अनुसार जिला फोरम को ऐसे परिवादों को ग्रहण करने की अधिकारिता है, जहॉं माल या सेवा का मूल्य और दावा प्रतिकर 20,00,000/-रू0 से अधिक न हो। परन्तु परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि प्रश्नगत बिला का मूल्य 20,00,000/-रू0 से अधिक है जिसके संबंध में परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है और अपीलार्थी/विपक्षीगण ने जिला फोरम की अधिकारिता को अपने लिखित कथन में चुनौती भी दी है फिर भी जिला फोरम ने इस संदर्भ में अपने अधिकार क्षेत्र पर विचार किये बिना परिवाद ग्रहण किया है और परिवाद में आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अत: उभयपक्ष के अभिकथन एवं सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर परिवाद ग्रहण किया है और आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने अम्बरीश शुक्ला आदि बनाम् फेरस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड 2016 (4) सी0पी0आर0 83 के वाद में स्पष्ट रूप से मत व्यक्त किया है कि परिवाद का मूल्यांकन सेवा या वस्तु के मूल्य और याचित क्षतिपूर्ति के आधार पर निर्धारित किया जायेगा। मात्र याचित अनुतोष के आधार पर नहीं।
चूंकि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है अत: ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र में उठाये गये विवाद के संबंध में गुणदोष के आधार पर इस अपील में कोई निर्णय पारित किया जाना उचित नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर हम इस मत के हैं कि अपील स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त किया जाना तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उसे इस छूट के साथ निरस्त किया जाना उचित है कि वह विधि के अनुसार सक्षम न्यायालय/फोरम में परिवाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
आदेश
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उसे इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह विधि के अनुसार सक्षम न्यायालय/फोरम के समक्ष पुन: शिकायत प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1,
प्रदीप मिश्रा