राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2237/2000
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या-95/1995 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.08.2000 के विरूद्ध)
1. कम्प्यूटर एसोसिएशन नेटवर्क (सीएएन)।
2. राजन गुलाटी, प्रेसिडेण्ट, कम्प्यूटर एसोसिएशन नेटवर्क।
3. श्रीमती नैना गुलाटी पत्नी श्री राजन गुलाटी, निवासीगण 152 ग्राम मोती बाग, द्वितीय, नई दिल्ली।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
श्रीमती रूकमणी अरोरा पत्नी डा0 आरएल अरोरा, निवासी ई 1060, राजेन्द्र नगर, जिला बरेली।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एम0एच0 खान, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 08.07.2016
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, परिवाद संख्या-95/1995, श्रीमती रूकमणी अरोरा बनाम कम्प्यूटर एसोसिएशन नेटवर्क व अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रथम बरेली द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.08.2000 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया गया है कि वह निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर रू0 31,800/- व मानसिक क्षति एवं वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/- अदा करें। तब परिवादिनी विपक्षीगण को कम्प्यूटर वापस करें। इसके अतिरिक्त यह भी आदेश पारित किया गया कि यदि विपक्षीगण उपरोक्त आदेश का अनुपालन एक माह की अवधि में नहीं करते हैं तो विपक्षीगण रू0 31,800/- की धनराशि पर दिनांक 03.03.1994 से भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत ब्याज भी अदा करेंगे।
प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी/प्रत्यर्थी ने विपक्षीगण/अपीलार्थीगण से पीसीएटी 386 एसएक्स का पूर्ण डिमास्टरेशन हाईवियर टेक्निक का एक कम्प्यूटर विभिन्न तिथियों व विभिन्न चेकों के माध्यम से कुल रू0 31,800/- की धनराशि का भुगतान करके क्रय किया था और विपक्षीगण ने उपरोक्त कम्प्यूटर दिनांक 04.03.1994 को परिवादिनी के घर में स्थापित किया था, परन्तु प्रश्नगत कम्प्यूटर शुरू से दोषपूर्ण था एवं उसमें मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट था, जो सही से कार्य नहीं कर रहा था, जिसकी शिकायत विपक्षीगण से की गयी, परन्तु विपक्षीगण ने उपरोक्त दोषपूर्ण कम्प्यूटर न तो सही किया और न ही उसे बदला गया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित किया गया।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण उपस्थित होकर अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें उनके द्वारा यह कहा गया कि विपक्षीगण की पंजीकृत संस्था है इसमें कम्प्यूटर या अन्य किसी वस्तु की बिक्री का कोई कारोबार नहीं होता है। विपक्षीगण ने परिवादिनी को कोई कम्प्यूटर नहीं बेचा है। परिवादिनी ने कम्प्यूटर क्रय की कोई रसीद प्रस्तुत नहीं की है, इस कारण जिला फोरम को वाद सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि प्रस्तुत प्रकरण खरीद-फरोक्त से संबंधित नहीं है। विपक्षीगण द्वारा परिवादिनी के खुशामद करने पर उसे रू0 30,000/- उधार के रूप में दिये गये थे, जिसका भुगतान परिवादिनी द्वारा विभिन्न तिथियों में चुकाया गया है, अत: परिवादिनी विपक्षीगण की उपभोक्ता नहीं है, इसलिए परिवाद निरस्त होने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्षों की बहस सुनने के पश्चात गुणदोष के आधार पर उपरोक्त निर्णय/आदेश पारित किया है, जिसके विरूद्ध अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, परन्तु उनकी ओर से लिखित आपत्ति पत्रावली पर उपलब्ध है। प्रस्तुत अपील पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से निस्तारण हेतु लम्बित है, अत: विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थीगण को एकल रूप से विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली का अनुशीलन व परिशीलन किया गया।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि अपीलार्थीगण की संस्था में कम्प्यूटर या अन्य किसी वस्तु की बिक्री का कोई कारोबार नहीं होता है। अपीलार्थीगण ने परिवादिनी को कोई कम्प्यूटर नहीं बेचा है। परिवादिनी ने कम्प्यूटर क्रय की कोई रसीद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत नहीं की है और न ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के संबंध में कोई साक्ष्य ही प्रस्तुत किया है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी तर्क किया गया कि अपीलार्थीगण ने परिवादिनी को रू0 30,000/- की धनराशि उधार दी थी, जिसे उसने विभिन्न तिथियों में थोड़ा-थोड़ा करके वापस किया है, अत: अपीलार्थीगण का परिवादिनी से कोई उपभोक्ता का संबंध नहीं है। इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जिला फोरम ने उपरोक्त निर्णय/आदेश पारित किया है, जो त्रुटिपूर्ण है एवं अपास्त होने योग्य है।
परिवादिनी/प्रत्यर्थी ने अपनी लिखित आपत्ति में यह तर्क लिया है कि उसने विपक्षीगण/अपीलार्थीगण से एक कम्प्यूटर विभिन्न तिथियों व विभिन्न चेकों के माध्यम से कुल रू0 31,800/- की धनराशि का भुगतान करके वर्ष 1994 में क्रय किया था, जिसमें शुरू से ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट था, जिसे ठीक कराने की शिकायत के बावजूद भी न तो ठीक किया गया और न ही उसे बदला गया। अपीलार्थीगण का यह कथन कि उसने कोई भी कम्प्यूटर परिवादिनी को नहीं बेचा है और न ही उसका परिवादिनी से कोई उपभोक्ता संबंध है, क्योंकि अपीलार्थीगण ने परिवादिनी को रू0 30,000/- की धनराशि बतौर उधार दी थी, जिसे परिवादिनी द्वारा थोड़ा-थोड़ा करके विभिन्न तिथियों पर लौटाया गया है। अपीलार्थीगण का कथन स्वीकार योग्य नहीं है, क्योंकि परिवादिनी ने कम्प्यूटर क्रय की कीमत रू0 31,800/- की धनराशि बतौर चेक विभिन्न तिथियों पर भुगतान की थी, जिसकी रसीद अपीलार्थीगण द्वारा नहीं दी गयी। जिला फोरम ने सभी तथ्यों पर विचार-विमर्श करने के उपरान्त उपरोक्त निर्णय/आदेश पारित किया है, जो विधि सम्मत है।
आधार अपील एवं सम्पूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह विदित होता है कि परिवादिनी/प्रत्यर्थी ने कम्प्यूटर क्रय की कोई भी रसीद दाखिल नहीं की है और न ही कम्प्यूटर के मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के संबंध में कोई साक्ष्य ही प्रस्तुत किया गया है। ऐसी स्थिति में अपीलार्थीगण एवं परिवादिनी के मध्य उपभोक्ता का संबंध नहीं बनता है। इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जिला फोरम ने जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह विधि सम्मत नहीं है एवं अपास्त होने योग्य है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम बरेली द्वारा परिवाद संख्या-95/1995, श्रीमती रूकमणी बनाम कम्प्यूटर एसोसिएशन नेटवर्क व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.08.2000 अपास्त किया जाता है।
(आलोक कुमार बोस) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2