सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 692/2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, मैनमुरी द्वारा परिवाद संख्या- 125/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19-02-2018 के विरूद्ध)
दि न्यू इण्डिया एस्योरेंश कम्पनी लि0, 94 महात्मा गांधी मार्ग, हजरतगंज, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती रीना देवी, पत्नी स्व0 सुबोध कुमार, निवासिनी ग्राम परौख, थाना कोतवाली मैनपुरी, जिला मैनपुरी।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा
दिनांक- 29-11-2019
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या- 125/2016 श्रीमती रीना देवी बनाम दि न्यू इण्डिया एस्योरेंश कम्पनी लि0, में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 19-02-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
" परिवादिनी का परिवाद पत्र विरूद्ध विपक्षी आंशिक रूप से निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है:
विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को 2,00,000/-रू० (दो लाख रूपये) बीमा धन के प्रतिकर के रूप में प्रदान करें। विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को उपरोक्त बीमा धनराशि मृतक सुबोध कुमार की मृत्यु के दिनांक 13-09-2015 से वास्तव में वसूल होने की दिनांक तक 07 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित प्रदान करें।
विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादिनी को मानसिक व शारीरिक कष्ट के रूप में 2000/-रू० व वाद व्यय के रूप में 500/-रू० प्रदान करें।
विपक्षी उपरोक्त धनराशि इस निर्णय एवं आदेश के उपरान्त एक माह के अन्दर प्रदान करें। यदि विपक्षी ऐसा न करे तो परिवादिनी को अधिकार होगा कि वह इस फोरम के माध्यम से प्राप्त कर ले। "
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी, दि न्यू इण्डिया एस्योरेंश कम्पनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज और प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार शर्मा उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसके पति सुबोध कुमार मारूति वैन संख्या- यू०पी० 80/डी.सी.7243 के पंजीकृत स्वामी थे और उन्होंने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 के कार्यालय से दिनांक 28-12-2014 से दिनांक 27-12-2015 तक की अवधि हेतु वाहन कम्प्रेहिन्सव पैकेज पालिसी के अन्तर्गत बीमा कराया था जिसमें वाहन स्वामी चालक का दुर्घटना बीमा प्रीमियम लिया गया था जिसके लिए बीमित धनराशि 2,00,000/-रू० थी।
परिवाद पत्र के अनुसार दिनांक 13-09-2015 को लगभग 6 बजे सुबह प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति अपने मित्र के परिवारीजनों के साथ व्यवहार में मातम पोशी में शामिल होने के लिए फिरोजाबाद जा रहे थे तभी मैनपुरी औछा रोड पर ज्योति भट्टा के पास गांव के कुछ लोग मिले जिनसे वह सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी करके बाते करने लगे। उसी समय एक स्विफ्ट डिजायर कार के चालक ने तेजी व लापरवाही से कार चलाकर उसके पति व मारूति वैन में टक्कर मार दी जिससे उसकी मृत्यु हो गयी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसने ओ०डी० क्लेम लेने के लिए ओ०डी० क्लेम तथा अपने पति की पर्सनल दुर्घटना बीमा पालिसी का दावा लेने हेतु बीमा दावा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के यहॉं प्रस्तुत किया परन्तु सर्वेयर व बीमा कम्पनी के कर्मचारियों द्वारा अनुचित धनराशि की मांग की गयी जिसके लिए वह तैयार नहीं हुयी। अत: उसका बीमा दावा स्वीकार नहीं किया गया और उसे जानबूझकर परेशान किया गया। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने सेवा में कमी की है। अत: उसने
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अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और पर्सनल एक्सीडेंट पालिसी के अन्तर्गत बीमित धनराशि की मांग वर्तमान परिवाद में की है साथ मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय भी मांगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करने का कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उपलब्ध कराए गये अभिलेखों का अवलोकन करने पर यह पाया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति बीमित वाहन का प्रयोग बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन करते हुए कर रहे थे। अत: बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन किये जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा दिनांक 30-08-2016 को अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने नो-क्लेम किया है और इसकी सूचना पंजीकृत डाक से प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिनांक 05-09-2016 को प्रेषित की है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिस वाहन के सम्बन्ध में परिवाद दायर किया है वह वाहन संख्या- यू0पी0 80 डी०सी०/7243 होना अंकित किया गया है और इस पंजीयन नम्बर के वाहन का जो रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उपलब्ध कराया गया है उसके अनुसार वाहन की सीटिंग कैपसिटी ड्राइवर सहित
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कुल आठ होना अंकित है। परन्तु प्रश्नगत दुर्घटना के समय वाहन में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति व बीमा धारक सुबोध के अलावा मकरन्द, राजवीर, श्रीमती सत्यवती, श्रीमती संगम, रनपाल, श्रीमती निर्मला, कालीचरन, शिवम, श्रीमती अनीता, श्रीमती रन्नो देवी, विनय कुमार भी बैठे थे अर्थात् कुल 12 व्यक्ति बैंठे थे, जबकि वाहन की कैपसिटी आठ व्यक्तियों की थी। अत: वाहन बीमा पालिसी की शर्तों एवं मोटर वाहन अधिनियम के प्राविधान के विरूद्ध चलाया जा रहा था। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने कहा है कि दुर्घटना के सम्बन्ध में जांचकर्ता राजीव कुमार गुप्ता से जांच करायी गयी तो पाया गया कि दुर्घटना के समय वाहन में चालक को छोड़कर 11 व्यक्ति बैठे थे।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से कहा गया है कि वाहन का प्रयोग कामर्सियल वाहन के रूप में होने के कारण बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन हुआ है। अत: बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा नो-क्लेम किया जाना विधि सम्मत है।
जिला फोरम ने उभय-पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपने पति बीमा धारक वाहन स्वामी की पर्सनल एक्सीडेंट दुर्घटना बीमा पालिसी के अन्तर्गत बीमित धनराशि पाने की अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रश्नगत वाहन की सीटिंग कैपसिटी आठ व्यक्तियों की थी परन्तु
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दुर्घटना के समय मृतक चालक प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति 11 अन्य व्यक्तियों को बैठाकर वाहन का टैक्सी के रूप में प्रयोग कर रहे थे। अत: वाहन बीमा पालिसी की शर्तों के विरूद्ध चलाया जा रहा था। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी बीमा कम्पनी को प्रत्यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा अस्वीकार करने का अधिकार है और ऐसा कर बीमा कम्पनी ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दोषपूर्ण है अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम का निर्णय अपास्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती रीना देवी ने एम०ए०सी०पी० नं० 478/2015 मोटर वाहन अधिनियम के अन्तर्गत अपर जिला जज मैनपुरी के न्यायालय में प्रस्तुत किया था जिसमें इसी दुर्घटना के सम्बन्ध में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति की मृत्यु हेतु प्रत्यर्थी/परिवादिनी उसके पुत्र एवं पुत्री और उसके पति की माता को क्षतिपूर्ति प्रदान की जा चुकी है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि एवं बीमा पालिसी की शर्तों के अनुकूल है। जिला फोरम के निर्णय में किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
मैंने उभय-पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
वाहन स्वामी का व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा होना अविवादित है। कथित दुर्घटना के समय प्रश्नगत वाहन प्रत्यर्थी/परिवादिनी का पति चला रहा था जो स्वयं वाहन स्वामी था। परिवाद-पत्र के अनुसार कथित दुर्घटना के समय
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी का पति रास्ते में गाड़ी खड़ी कर रास्ते में मिले गांव के लोगों से बात कर रहा था तभी यह दुर्घटना हुयी है, जबकि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति प्रश्नगत वाहन पर किराये की 11 सवारियां बैठाकर वाहन चला रहे थे जबकि वाहन की सीटि़ंग क्षमता चालक सहित आठ है। अत: वाहन मोटर वाहन अधिनियम के प्राविधान के विरूद्ध चलाया जा रहा था और बीमा कम्पनी किसी धनराशि की अदायगी हेतु प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत उत्तरदायी नहीं है। परन्तु जिला फोरम ने बीमा कम्पनी के कथन को प्रमाणित नहीं माना है। जिला फोरम का निर्णय साक्ष्य की विधिक विवेचना पर आधारित है जो विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह तथ्य निर्विवाद है कि इसी दुर्घटना के सम्बन्ध में दूसरे वाहन के स्वामी व बीमा कम्पनी के विरूद्ध मोटर दुर्घटना अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत क्लेम वाद संख्या- 478/2015 श्रीमती रीना देवी आदि बनाम न्यू इण्डिया इश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य मोटर दुर्घटना अधिकरण ने स्वीकार कर प्रत्यर्थी/परिवादिनी आदि को प्रतिकर दिलाया है और दुर्घटना दूसरे वाहन के चालक की लापरवाही का परिणाम माना है। अत: प्रश्नगत दुर्घटना प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति चालक की लापरवाही से होना नहीं कहा जा सकता है। अत: बीमा कम्पनी प्रश्नगत पालिसी के अन्तर्गत वाहन स्वामी चालक अर्थात प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति की व्यक्तिगत दुर्घटना राशि देने से इन्कार नहीं कर सकती है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसके पति की व्यक्तिगत दुर्घटना धनराशि का भुगतान प्रश्नगत बीमा पालिसी के अनुसार न कर सेवा में कमी की है।
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अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर गलती नहीं की है। अपील बल रहित है, अत: निरस्त की जाती है।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा 25,000/-रू० अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01