(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 890/2003
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद सं0- 32/2001 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 16.12.2001 के विरुद्ध)
Bareilly Development Authority, P.S. Premnagar, Bareilly, through its Secretary.
………Appellant
Versus
Smt. Rajrani W/o Late Sri Baijnath, through Sri M.K. Anand, R/o C-237/2, Rajendra Nagar, Bareilly.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :श्री वी0पी0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक:- 06.09.2023
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 32/2001 श्रीमती राजरानी बनाम बरेली विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग प्रथम, बरेली द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 16.12.2001 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद आज्ञप्त करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद विपक्षी के विरुद्ध आज्ञप्त किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादिनी को आदेश के एक महीने के अन्दर रामपुर रोड आश्रयविहीन योजना में एक भवन योजना की शर्तों के अनुसार आवंटित करे और यदि भवन उक्त योजना में उपलब्ध न हों तो परिवादिनी को 5000/-रूपये प्रतिकर के रूप में देवें और परिवादिनी की सहमति लेकर हरूनगला अथवा गोविन्दपुरम में योजना की शर्तों के अनुसार ही भवन आवंटित करें और यदि परिवादिनी सहमति नहीं देती है तो उसे प्रतिकर के 5000/-रूपये व उसकी पंजीयन राशि नियमानुसार ब्याज सहित वापस करें तथा विपक्षी परिवादिनी को 1000/-रूपये वाद व्यय के रूप में भी अदा करें।‘’
प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति (एक रिक्शा चालक) ने वर्ष 1980 में दुर्बल श्रेणी के भवन क्रय हेतु बरेली विकास प्राधिकरण में 1000/-रू0 वांछित शुल्क जमा करके पंजीकरण ई-954 करवाया था, परन्तु उसे न पा सका। बार-बार प्राधिकरण के कार्यालय में सम्पर्क करने पर उसे यही आश्वासन मिलता रहा कि भविष्य में आने वाली योजनाओं में उसे भवन मिल जायेगा। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का पंजीकरण बरकरार है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के शुभचिंतक श्री एम0के0 आनंद द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को ज्ञात हुआ कि अब प्राधिकरण ने निराश्रय श्रेणी के लिए कुछ भवन बनाये हैं जिनके एलाटमेंट की प्रक्रिया चल रही है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा इस योजना की जानकारी नहीं दी गई न ही उसे उक्त योजना में सम्मिलित किया गया। अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण ने दैनिक जागरण पत्र के माध्यम से दि0 05.02.2001 तक योजना के सम्बन्ध में वैधानिक आपत्तियां कार्यालय में जमा करने का ज्ञापन दिया, जिसके उत्तर में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दि0 03.02.2001 को अपनी आपत्ति अपने उक्त शुभचिंतक के द्वारा उप सचिव महोदय को सौंपी, जिन्होंने आपत्ति पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया। इसके बाद उक्त शुभचिंतक ने दो बार सचिव से भी उनके कार्यालय में जाकर व्यक्तिगत रूप से न्याय हेतु प्रार्थना की, जिस पर उन्होंने भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उचित हकदार ठहराते हुए आवंटन में न्याय प्रदान करने का आश्वासन दिया और दि0 03.03.2001 को भी एक पत्र पंजीकृत डाक द्वारा भेजा गया तथा अन्तिम बार प्रत्यर्थी/परिवादिनी के शुभचिंतक ने दि0 17.04.2001 को सचिव से उसके कार्यालय में जाकर योजना में आवंटन नहीं किया गया है कहा तो उन्हें सूचित किया गया कि आवंटन का कार्य पूरा हो चुका है प्रत्यर्थी/परिवादिनी को इस योजना में आवंटन नहीं किया गया और अब भविष्य में आने वाली योजना में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भवन अवश्य ही आवंटित किया जायेगा। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा, प्राधिकरण द्वारा किया गया आवंटन रद्द करने तथा अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण से एक भवन दिलाये जाने के लिए व 1,00,000/-रूपये मानसिक उत्पीड़न के लिए तथा हर्जाना दिलाये जाने हेतु यह परिवाद योजित किया गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र में परिवाद पत्र का खण्डन करते हुए कथन किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने एक भूखण्ड के लिए प्राधिकरण में पंजीकरण कराया था और उसका नाम प्राधिकरण में पंजीकृत है। अपीलार्थी/विपक्षी का कहना है कि यू0पी0 शासन आवास अनुभाग -2 की अधिसूचना सं0- 6083/37-2-107 डी0ए0 180 में प्रकाशित आवंटन नियमावली के तहत करता है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा एक नोटिस अपने अधिवक्ता के माध्यम से प्राधिकरण को दी गई थी जिसका उत्तर उन्हें भेजा गया और उनसे अनुरोध किया गया कि यदि वह अपना पंजीकरण शुल्क वापस चाहती हैं तो नियमानुसार प्रार्थना पत्र दें तो उनका शुल्क मय ब्याज के जो नियमानुसार देय है वापस कर दिया जायेगा, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा ऐसा नहीं किया गया और वाद दायर कर दिया गया। आवंटन नियमावली के नियम-8 के अनुसार पंजीकृत व्यक्ति को प्राधिकरण भूखण्ड या भवन देने के लिए बाध्य नहीं है और यदि किसी आवेदक को वांछित सम्पत्ति नहीं मिल पाती है तो इसके लिए वह प्राधिकरण से किसी प्रकार का प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होगा। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। अपीलार्थी/विपक्षी ने नई बरेली आवासीय योजना के पश्चात गोविन्द पुरम आवासीय योजना, तुलापुर आवासीय योजना, बिहार मान नगला आवासीय योजना का पंजीकरण खोला तो उसमें भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी की सहमति मांगी गई थी, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने उसमें भवन आवंटन कराने के लिए अपनी कोई सहमति नहीं दी, जिस कारण उसे भवन नहीं मिल सका। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसकी अपनी गलती के कारण ही भवन नहीं मिल सका। अपीलार्थी/विपक्षी ने नियमानुसार कार्य किया है और कोई त्रुटि नहीं की है। यदि प्रत्यर्थी/परिवादिनी नियमानुसार धनराशि जमा करने को तैयार है तो अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा गोविन्दपुरम हरूनगला में भवन आवंटित किया जा सकता है, परिवाद कालबाधित है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 श्रीवास्तव को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
पत्रावली का अवलोकन करने के उपरांत पीठ इस मत की है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा भवन आवंटन हेतु जमा पंजीकरण धनराशि 1,000/-रू0 जिसे जमा किया जाना अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा स्वीकार किया गया, उसे मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज वाद योजन की तिथि से अदायगी की तिथि तक अपीलार्थी/विपक्षी से प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 16.12.2001 इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा भवन आवंटन हेतु जमा पंजीकरण धनराशि 1,000/-रू0 (एक हजार रू0) मय 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज वाद योजन की तिथि से अदायगी की तिथि तक अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को देय होगी। वाद व्यय हेतु आदेशित धनराशि यथावत रहेगी। शेष निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3