Uttar Pradesh

StateCommission

A/1997/1590

L I C - Complainant(s)

Versus

Smt. Rajnesh Bala Goel - Opp.Party(s)

Viks Agarwal

20 Jul 2000

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1997/1590
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. L I C
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Rajnesh Bala Goel
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1590/1997

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-573/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 23-07-1997 के विरूद्ध)

 

शाखा प्रबन्‍धक, भारतीय जीवन बीमा निगम, मवाना जिला मेरठ।

                               अपीलार्थी/विपक्षी                                          

बनाम्

श्रीमती रजनीश गोयल पत्‍नी स्‍व0 डा0 श्री भगवान गोगयल निवासी रामनगर मेट, परीक्षितगढ, मेरठ।

                                          प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष :-

1-   मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य।

2-   मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

1-  अपीलार्थी की ओर से उपस्थित -   श्री विकास अग्रवाल।

2-  प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित -     श्री एस0 के0 शर्मा।

 

दिनांक : 21-08-2015

मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य द्वारा उदघोषित निर्णय

अपीलार्थी ने प्रस्‍तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-573/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 23-07-1997 से क्षुब्‍ध होकर अपील होकर अपील योजित की है जिसमें विद्धान जिला मंच ने निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया है :-

''एतद् द्वारा यह परिवाद स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादिनी को अंकन-5000/-रू0 की रकम इस परिवाद को प्रस्‍तुत करने की तिथि दिनांक 21-08-1995 से ताअदायगी अन्तिम भुगतान 12 प्रतिशत ब्‍याज सहित एक मास की अवधि में अदा करें। इसके अतिरिक्‍त इस परिवाद का व्‍यय अंकन-500/-रू0 भी अदा करें।''

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादिनी के पति श्री भगवान गोयल ने जुलाई, 1986 को अपना बीमा प्रत्‍यर्थी/विपक्षी से कराया था। बीमे की वार्षिक किश्‍त 151.25 रू0 थी इस किस्‍त में एक प्रतिशत किस्‍त जीवन दुर्घटना पर जमा की जातीथी। बीमे में दुर्घटना से मृत्‍यु होने पर 5000/-रू0 अलग से दिये जाने का प्राविधान था। परिवादिनी के पति का दिनांक 20-09-1994 को स्‍वर्गवास हो गया। जिसकी सूचना बीमा कम्‍पनी को दी गयी।

 

2

सूचना दिये जाने पर बीमा कम्‍पनी ने अंकन 12,502.50 रू0 का भुगतान दिनांक 15-03-1995 को कर दिया, परन्‍तु बीमा कम्‍पनी ने दुर्घटना से मृत्‍यु होने के कारण जो 5000/-रू0 दिये जाने थे का भुगतान नहीं किया। परिवादिनी का कथन है कि उसके पति का दिनांक 26-08-1994 जीने से गिर जाने के कारण बाये हाथ व कूल्‍हे में फैक्‍चर हो गया था  और वह तभी से बिस्‍तर पर लेटे रहते थे। दिनांक 20-09-1994 को दोपहर 2.00 बजे हृदय गति रूक जाने के कारण उनका स्‍वर्गवास हो गया। परिवादिनी का यह भी कथन है कि उसके पति की मृत्‍यु यघपि दुर्घटनावश हुई थी किन्‍तु विपक्षी ने जानबूझकर पालिसी के अनुसार 5000/-रू0 का भुगतान नहीं किया। परिवादिनी बीमा कम्‍पनी के बार-बार चक्‍कर काटती रही किन्‍तु शाखा प्रबन्‍धक बार-बार टालमटोल करते रहे और दिनांक 10-08-1995 को दुर्घटना बीमे की धनराशि देने से इंकार कर दिया। इन परिस्थितियों में परिवाद परिवादिनी ने प्रस्‍तुत किया। उसने अंकन 5000/-रू0 दुर्घटना से हुई मृत्‍यु के कारण तथा उस पर ब्‍याज व इस परिवाद के व्‍यय की मांग की है।

अपीलार्थी/विपक्षी ने वादोत्‍तर दाखिल किया और कहा कि परिवादिनी ने 12,502/-रू0 पूर्ण संतुष्टि में प्राप्‍त कर लिये है अब वह और कोई भी धनराशि प्राप्‍त करने की अधिकारिणी नहीं है। उन्‍होंने यह भी कहा है कि परिवादिनी उपभोक्‍ता शब्‍द की परिभाषा में नहीं आती है और यह परिवाद उपभोक्‍ता विवाद से संबंधित नहीं है। उन्‍होंने यह भी कहा है कि परिवादिनी ने कोई ऐसा कागजी सबूत जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया है जिससेयह पता चल सके कि उसके पति की मृत्‍यु जीने से गिरनेके कारण दुर्घटनावश हुई थी। विपक्षी/अपीलार्थी ने यह भी कहा कि इसके विपरीत परिवादिनी/प्रत्‍यर्थी ने क्‍लेम फार्म में मृत्‍यु का कारण टाइफाईड, फीवर व हार्ट अटैक लिखा था। अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि इन परिस्थितियों में परिवादिनी/प्रत्‍यर्थिनी अन्‍य कोई अनुतोष पाने की अधिकारिणी नहीं है।

पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री एस0 के शर्मा उपस्थित आए।

हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण के विस्‍तारपूर्वक तर्क सुने तथा पत्रावली पर मौजूद साक्ष्‍य एवं विद्धान जिला मंच द्वारा पारित आदेश का गंभीरतापूर्वक परिशीलन किया।

अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि  परिवादिनी/प्रत्‍यर्थिनी ने पूर्ण संतुष्टि में अपने क्‍लेम को प्राप्‍त कर लिया है इसलिए अब वह कोई धनराशि पाने की अधिकारिणी नहीं है और यह भी कहा गया कि परिवादिनी ने कोई ऐसा साक्ष्‍य नहीं प्रस्‍तुत किया कि उसके पति की मृत्‍यु जीने से गिर जाने के कारण व बाये हाथ व कूल्‍हे में फैक्‍चर हो जाने के कारण हुई है

 

3

और न ही परिवादिनी ने हास्पिटल में पति को भर्ती कराने व इलाज कराये जाने का ही पर्चा दाखिल किया है। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का कथन है कि उसके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अत: अपील स्‍वीकार कर विद्धान जिला मंच द्वारा पारित आदेश निरस्‍त किया जाए। 

प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है कि विद्धान जिला मंच द्वारा जो निर्णय पारित किया गया है वह विधि अनुरूप है और अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी की गयी है और 5000/-रू0 मय ब्‍याज मृत्‍यु होने पर जो अलग से दिये जाने का प्राविधान था वह नहीं अदा किया गया है इसलिए अपील खारिज की जाए।

पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्‍य प्रकाश में आता है कि परिवादिनी/प्रत्‍यर्थिनी ने अपने पति के क्‍लेम की धनराशि अंकन 12,502/-रू0 अपनी पूर्ण संतुष्टि में दिनांक 15-03-1995 को अपने हस्‍ताक्षर कर प्राप्‍त कर ली थी। इस परिस्थिति में परिवादिनी/प्रत्‍यर्थिनी और कोई धनराशि पाने की अधिकारिणी नहीं है, इसके अलावा परिवादिनी/प्रत्‍यर्थी ने पत्रावली पर अपने पति की मृत्‍यु दुर्घटना में हुई ऐसा कोई साक्ष्‍य भी प्रस्‍तुत नहीं किया है और न ही परिवादिनी यह साबित कर सकी कि विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा किस प्रकार सेवा में कमी की गयी है। जब कि परिवादिनी ने स्‍वयं क्‍लेम फार्म पर अपने पति की मृत्‍यु का कारण टाइफाईड, फीवर व हार्ट अटैक लिखा है। सिर्फ एक प्रार्थना पत्र पर यह लिखकर देने से कि उसके पति जीने से गिर गये थे और उनके बाये हाथ तथा कूल्‍हे में फैक्‍चर हो गया था उसी से परिवादिनी के पति की मृत्‍यु हुई यह स्‍पष्‍ट करने में भी परिवादिनी/प्रत्‍यर्थी सफल नहीं हुई है, क्‍योंकि पत्रावली पर ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्‍य नहीं है जो यह सिद्ध कर सके कि परिवादिनी/प्रत्‍यर्थिनी के पति जीने से गिरने और उन्‍हें फैक्‍चर हो जाने के कारण उनकी मृत्‍यु हुई। अत: विद्धान जिला फोरम द्वारा जो आदेश पारित किया गया है वह विधि अनुकूल नहीं है जो अपास्‍त किये जाने योग्‍य है। तद्नुसार अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

 अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-573/1995 में पारित आदेश दिनांक 23-07-1997 निरस्‍त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍ययभार स्‍वयं वहन करेंगे।

पक्षकारों को निर्णय की प्रतिलिपि नियमानुसार प्राप्‍त करायी जाए।

  ( आलोक कुमार बोस )                     ( बाल कुमारी )

  पीठासीन सदस्‍य                              सदस्‍य

कोर्ट नं0-4 प्रदीप मिश्रा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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