अपील संख्या– 1836/2017
बजाज एलायंज लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य बनाम श्रीमती राजकुमारी व एक अन्य
आदेश
दिनांक- 01-09-2021
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 157 सन 2013 श्रीमती राजकुमारी बनाम बजाज एलायंज लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 15-07-2017 के विरूद्ध धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है और अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया है।
अपीलार्थी द्वारा यह अपील विलम्ब से प्रस्तुत की गयी है और विलम्ब को क्षमा करने के लिए उसकी ओर से एक प्रार्थना-पत्र दिनांक 22-11-2017 दिया गया है जिसके साथ शपथ-पत्र भी संलग्न है।
हमने विलम्ब माफी प्रार्थना-पत्र पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस०बी० श्रीवास्तव को सुना। प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अमित कुमार श्रीवास्तव का वकालतनामा पत्रावली पर उपलब्ध है किन्तु वे उपस्थित नहीं हुए हैं, जबकि प्रत्यर्थी संख्या-2 पर आदेश दिनांक 07-02-2020 के द्वारा नोटिस का तामीला पर्याप्त माना जा चुका है।
हमने पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
अपीलार्थी की ओर से विलम्ब क्षमा किये जाने हेतु प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र में कहा गया कि वर्तमान अपील एक माह 17 दिन के विलम्ब से प्रस्तुत की गयी है। यह विलम्ब श्री अश्विनी कुमार अस्थाना जो अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विधिक मामलों को देखते हैं, के अचानक कार्य छोड़ देने के फलस्वरूप उत्पन्न
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हुआ है। उनका कार्य देखने के लिए कोई अन्य नहीं था। इसके पश्चात जब शपथकर्ता ने कार्यभार ग्रहण किया तब उसने विधिक आवश्यकताओं को देखा। इस तरह जो 47 दिन का विलम्ब हुआ है वह न तो जानबूझकर किया गया है और न ही किसी आशय के अन्तर्गत किया गया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने कथन किया कि यदि विलम्ब क्षमा नहीं किया जाता है तब अपीलार्थी को अत्यधिक क्षति होगी। अत: निवेदन है कि इस मामले में विलम्ब को क्षमा किया जाए।
हमने जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय दिनांक 15-07-2017 का अवलोकन किया।
विद्वान जिला आयोग के समक्ष विपक्षी संख्या-1 और 2 उपस्थित हुए थे और उन्होंने अपना प्रतिवाद पत्र भी प्रस्तुत किया है। निर्णय दिनांक 15-07-2017 को उद्घोषित हुआ जिसकी प्रतिलिपि दिनांक 24-07-2017 को जारी की गयी।
अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि विलम्ब इस कारण हुआ कि उसके विधिक मामलों को देखने वाले श्री अश्विनी कुमार अस्थाना ने कार्य छोड़ दिया था और दूसरे की नियुक्ति में समय लगा। बीमा कम्पनी काफी बृहद स्तर पर कार्य करती है और उनके पास अनुभवी लोगों की एक टीम होती है। किसी एक विशिष्ट व्यक्ति के ऊपर सब कुछ निर्भर नहीं रहता है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह स्पष्टीकरण कि किसी ने कार्य छोड़ दिया जिसके कारण विलम्ब हुआ है, उचित नहीं है और न ही विश्वास किये जाने योग्य है। विलम्ब से वाद प्रस्तुत करने पर हर दिन विलम्ब का समुचित कारण दिया जाना आवश्यक है। मात्र एक सामान्य कथन करना विलम्ब को क्षमा करने का आधार
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नहीं होता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक विशिष्ट अधिनियम है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को त्वरित सेवा प्रदान करना है। यहॉं पर अगर लिखित कथन भी निश्चित समय अर्थात 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत नहीं किया जाता है या न्यायालय 15 दिन का अतिरिक्त समय नहीं देता है तब लिखित कथन विलम्ब से प्रस्तुत करने पर स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी कारण से इस अधिनियम का उद्देश्य व्यापक है।
विलम्ब के सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक सिद्धांतो को भी देखना आवश्यक है।
In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that "condonation cannot be a matter of routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation". In the instant matter, the appellants have not given any explanation of delay for each and every day. In U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandey, IV (2009) CPJ 217 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation." In the instant matter, the cause shown by the appellants has been vehemently denied by the respondent on cogent reasons. Furthermore, In Anshul Agarwal Vs. New Okhla Industrial Development Authority, IV (2011) CPJ 62 (SC), it was observed by the Hon'ble Apex Court that "it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind
that special period of limitation has been prescribed in the Consumer Protection Act for filing appeals and revisions in consumer matter and the objection of expeditious adjudication of consumer disputes will
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get defeated if this court was to entertain highly belated petition against the orders of Consumer Fora."
The Forum below considered all facts and circumstances before passing the impugned order. There is no illegality and irregularity in the order. The courts of law cannot permit frivolous appeals. It cannot also force the respondent to play a second fiddle in the hands of the builders. The appeal is highly belated and no cogent or sufficient cause has been assigned by the appellants for condonation. The object of expeditious adjudication of consumer disputes will certainly get defeated if such highly belated and frivolous appeals are entertained. There is no merit in the application and no irreparable loss will be caused to the appellants, nor there will be any failure of justice if the appeal is dismissed at the admission stage on the ground of limitation. In fact, the balance of convenience rests with the respondent.
इस तरह हम इस निष्कर्ष पर पहॅुचते हैं कि इस मामले में विलम्ब का कोई सन्तोषजनक और समुचित स्पष्टीकरण देने में अपीलार्थी असफल रहे हैं। अत: यह अपील कालबाधित होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील, कालबाधित होने के कारण निरस्त की जाती है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
कृष्णा-आशु० कोर्ट नं०2.