(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-80/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-1615/2019 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.10.2020 के विरूद्ध)
गाजियाबाद डेवलपमेंट अथॉरिटी, गाजियाबाद द्वारा वाइस चेयरमैन।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती निर्मला राठौर पत्नी ए.के. सिंह, निवासिनी सैनिक कालोनी, नगला दीना भोलेपुर पोस्ट, फतेहगढ़, जिला फर्रूखाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री पीयूष मणि त्रिपाठी, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 28.07.2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय/आदेश
. परिवाद संख्या-1615/2019, श्रीमती निर्मला राठौर बनाम गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.10.2020 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निम्नलिखित आदेश पारित किया गया :-
'' परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी की जमा धनराशि 75,000/- रूपये 09 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित 60 दिन के अन्दर अदा करें। ब्याज की गणना धनराशि जमा करने की तिथि से
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अदायगी की तिथि तक की जाएगी। विपक्षी परिवादिनी को मानसिक उत्पीड़न की मद में 5000/- रूपये तथा परिवाद व्यय की मद में 5000/- रूपये भी 60 दिन के अन्दर अदा करें। ''
प्रस्तुत प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी द्वारा विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित निवासीय कौशाम्बी अपार्टमेंट योजना में भवन के लिए आवेदन किया, जिस हेतु पंजीयन धनराशि अंकन 5,000/- रूपये विपक्षी के यहां जमा किया एवं समस्त औपचारिकताएं पूर्ण की। परिवादिनी के आवेदन पर विपक्षी द्वारा आरक्षण पत्र दिनांक 04.05.1988 जारी करते हुए उक्त योजना में परिवादिनी को आरक्षण की सूचना प्रेषित की गई तथा अनुमानित मूल्य अंकन 75,000/- रूपये बताया गया। परिवादिनी द्वारा आक्षरित भवन के भुगतान हेतु एच.डी.एफ.सी. बैंक से अंकन 65,000/- रूपये का ऋण लिया गया और आरक्षित भवन की सम्पूर्ण कीमत विपक्षी को अदा कर दी गई। परिवादिनी द्वारा भवन की सम्पूर्ण कीमत अदा करने के बावजूद भी विपक्षी द्वारा भवन का आवंटन नहीं किया गया। परिवादिनी द्वारा विपक्षी को नोटिस भेजी गई, परन्तु विपक्षी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। परिवादिनी द्वारा विपक्षी के कार्यालय में पता करने पर ज्ञात हुआ कि विपक्षी द्वारा भवन की कीमत बढ़ा दी गई है, परन्तु परिवादिनी बढ़ी हुई कीमत अदा करने में सक्षम नहीं थी, इसलिए परिवादिनी द्वारा विपक्षी को प्रार्थना पत्र देकर जमा धनराशि वापस मांगी गई, जो विपक्षी द्वारा वापस नहीं की गई, इसलिए वांछित अनुतोष की मांग करते हुए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष विपक्षी प्राधिकरण द्वारा कथन किया गया कि परिवाद कालबाधित होने के कारण खारिज होने योग्य है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद मनगढ़ंत एवं बनावटी असत्य कथनों के आधार पर योजित किया गया है। विपक्षी का कथन है कि परिवादिनी
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की कुल जमा धनराशि अंकन 75,000/- रूपये 50 प्रतिशत निमयानुसार कटौती कर मूल अभिलेख प्रस्तुत करने पर शेष धनराशि परिवादिनी को प्रदान की जा सकती है। अत: परिवादिनी का परिवाद निरस्त होने योग्य है।
जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथनों एवं प्रपत्रों पर विचार करने के उपरांत यह माना कि परिवादिनी द्वारा अंकन 75,000/- रूपये की धनराशि विपक्षी के यहां जमा की गई है, जिसे विपक्षी प्राधिकरण द्वारा स्वीकार किया गया। विपक्षी द्वारा प्रश्नगत भवन की कीमत बढ़ाने के कारण परिवादिनी उक्त बढ़ी हुई कीमत अदा करने में असमर्थ थी, इसलिए उसने विपक्षी के सम्मुख दिनांक 26.10.1994 को प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करते हुए जमा की गई धनरशि की वापसी की मांग की गई, जिसके विपरीत विपक्षी द्वारा केवल 50 प्रतिशत धनराशि अदा करने की बात कही गई। परिवादिनी के प्रश्नगत भवन की कीमत पंजीकरण के समय अंकन 75,000/- रूपये थी, परन्तु विपक्षी द्वारा इसकी कीमत अंकन 1,25,000/- रूपये कर दी गई, जिसको अदा करने हेतु परिवादिनी असमर्थ थी। अत: उसके द्वारा जमा की गई धनराशि वापस करने की प्रार्थना की गई, परन्तु विपक्षी द्वारा 50 प्रतिशत की कटौती किया जाना सरासर अन्यायपूर्ण है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विपक्षी की सेवा में कमी मानते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया।
अपीलार्थी/प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता श्री पीयूष मणि त्रिपाठी उपस्थित हैं। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.10.2020 के विरूद्ध विलम्ब देरी क्षमा प्रार्थना पत्र के साथ दिनांक 04.02.2021 को प्रस्तुत की गई। अपील में अंगीकरण के समय मात्र
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी को पंजीकृत डाक से नोटिस प्रेषित किए जाने का आदेश दिनांक 08.02.2021 को पारित किया गया। तदोपरांत अनेकों तिथियों को अपील सूचीबद्ध हुई, परन्तु सुनवाई संभव न होने के कारण अपील स्थगित हुई। दिनांक 24.01.2022 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से अधिकृत प्रतिनिधि अथवा अधिवक्ता की अनुपस्थिति के कारण विलम्ब देरी क्षमा प्रार्थना पत्र स्वीकृत किया गया और साथ ही अपीलार्थी को आदेशित किया गया कि वे प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दस्ती माध्यम से प्रस्तुत अपील से संबंधित समस्त प्रपत्रों को 04 सप्ताह में प्राप्त कराते हुए कार्यवाही सुनिश्चित करें। तदनुसार अपील 08 सप्ताह पश्चात सूचीबद्ध किए जाने हेतु आदेशित किया गया। अगली निश्चित तिथि पर अपील स्थगित हुई, तदोपरांत दिनांक 15.06.2022 को पुन: सूचीबद्ध हुई। कार्यालय की आख्या दिनांक 19.04.2022 के अनुसार अपीलार्थी द्वारा दस्ती नोटिस की पैरवी नहीं किया जाना पायी गई।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.10.2020 का समुचित परिशीलन किया गया तथा यह पाया गया कि वास्तव में अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा की गई सेवा में कमी के कारण परिवादिनी द्वारा वर्ष 1988 में जमा की गई धनराशि, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक धनराशि परिवादिनी द्वारा ऋण के रूप में बैंक से प्राप्त की गई थी, के फलस्वरूप भी आवंटित भवन परिवादिनी को नहीं प्राप्त कराया गया तथा लगभग 06 वर्ष की अवधि बीतने के उपरांत प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित आवंटित भवन हेतु बढ़ी हुई धनराशि अर्थात 1,25,000/- रूपये (1,25,000/- रूपये जो पूर्व में 75,000/- रूपये मांगे गए, जो परिवादिनी द्वारा पूरे जमा किए गए) को मांगने तथा जमा कराए जाने का
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आदेश देना पूर्णत: अविधिक एवं अपीलार्थी प्राधिकरण के द्वारा अनैतिक कार्यवाही इंगित करता है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक आंकलन करते हुए जो आदेश पारित किया गया है, वह जहां तक परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि 75,000/- रूपये 09 प्रतिशत साधारण ब्याज की देयता से संबंधित है, वह हमारे द्वारा पूर्णत: सही पायी जाती है, जिसकी पुष्ट की जाती है। तदनुसार उपरोक्त परिवादिनी द्वारा जमा की गई मूल धनराशि 75,000/- रूपये पर 09 प्रतिशत साधारण ब्याज अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा 02 माह की अवधि में परिवादिनी को प्राप्त करायी जावे, जिसमें ब्याज की गणना धनराशि जमा करने की तिथि से धनराशि अदायगी की तिथि तक की जावेगी। यदि उपरोक्त 02 माह की अवधि में भुगतान सुनिश्चित नहीं किया जावेगा तब ब्याज की देयता जमा धनराशि 75,000/- रूपये पर 12 प्रतिशत की दर से आंकलित की जावेगी।
जहां तक प्राधिकरण द्वारा परिवादिनी को मानसिक उत्पीड़न की मद में 5,000/- रूपये तथा परिवाद व्यय की मद में 5,000/- रूपये अदा करने का आदेश, का प्रश्न है। हमारे विचार से मानसिक उत्पीड़न एवं परिवाद व्यय की मद में परिवादिनी को अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा कुल धनराशि 5,000/- रूपये 02 माह की अवधि में प्राप्त कराया जावेगा, अन्यथा की स्थिति में यदि अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त धनराशि उपरोक्त समयावधि में प्राप्त नहीं कराई जावेगी तब उस स्थिति में दण्ड स्वरूप 5,000/- रूपये का ब्याज भी अदा किया जावेगा। तदनुसार अपील अंतिम रूप से निस्तारित की जाती है।
अपीलार्थी द्वारा अपील प्रस्तुत करते हुए अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को एक माह की अवधि में विधि अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1