(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-495/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-1179/2012 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.08.2018 के विरूद्ध)
लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी, द्वारा सेक्रेटरी, नवीन भवन, विपिन खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ 226010 ।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती निगहत राशिद पत्नी श्री आर.एस.के. हुसैन, निवासिनी 36 क, तकिया जंग अली शाह, विक्टोरियागंज, पुलिस थाना बाजारखाला, राजेन्द्र नगर, लखनऊ।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री निन्नी श्रीवास्तव, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0वी0 त्रिपाठी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 25.08.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 28.08.2018 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने कानपुर रोड योजना में एक भूखण्ड लेने हेतु आवेदन किया था। लाट्री ड्रा द्वारा भूखण्ड संख्या-एसएस 903/एच खण्ड 2 आवंटित किया गया था। परिवादिनी को आवंटित भूखण्ड की कीमत मु0 2,700/- रूपये बतायी गई थी और उसकी मासिक किश्त रू0 17.55 पैसे थी, जो अनुबंध के अनुसार 20 वर्षों में जमा करनी थी। परिवादिनी दिनांक 17.08.1987 से लगातार दिनांक 07.12.1998 तक किश्तें
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जमा करती रही। परिवादिनी द्वारा कुल 3,002/- रूपये जमा किया गया। परिवादिनी को विपक्षी द्वारा दिनांक 16.05.1990 को भूखण्ड का कब्जा देने हेतु एक पत्र दिया गया, लेकिन कब्जा नहीं दिया गया और उक्त भूखण्ड को किसी तीसरे पक्ष को आवंटित कर दिया गया। इस प्रकार विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई है, इस कारण परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी द्वारा लिखित कथन प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि परिवादिनी को उक्त भूखण्ड दिनांक 15.07.1987 को आवंटित किया गया था तथा रजिस्ट्रेशन मनी मु0 250/-रू0 और रू0 460.85 पैसे वर्ष 1990 में जमा करना भी माना है। विपक्षी ने परिवादिनी को शेष धनराशि जमा करने हेतु नोटिस भेजा, लेकिन परिवादिनी ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादिनी द्वारा वर्ष 1989 से कोई धनराशि जमा नहीं की गई, इसलिए नियमानुसार उसका आवंटन निरस्त किया गया और उनके स्थान पर श्री जगदीश प्रसाद को उक्त भूखण्ड आवंटित कर दिया गया।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त विवेचना के उपरांत विपक्षी, लखनऊ विकास प्राधिकरण के विरूद्ध आदेश पारित किया गया कि वह परिवादिनी को निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के अन्दर आवंटित भूखण्ड की रजिस्ट्री करके उसे कब्जा दे अथवा दूसरा भूखण्ड उसी मूल्य का उसे दे अथवा वर्तमान सर्किल रेट पर उसके भूखण्ड की कीमत उसे 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ वाद दाखिल करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक अदा करे। इसके अतिरिक्त मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु मु0 50,000/-रू0 व मु0 10,000/-रू0 भी अदा करे।
प्रस्तुत अपील, विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गई है।
हमारे सम्मुख अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता सुश्री निन्नी श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री वी0वी0 त्रिपाठी को सुना गया।
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अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्वारा हमारा ध्यान अपील की पत्रावली के साथ संलग्न प्रपत्रों की ओर आकर्षित किया गया, जिसके परिशीलन से यह तथ्य स्पष्ट रूप से पाया गया कि परिवादिनी को आवंटित भूखण्ड परिवादिनी द्वारा मासिक किश्तों का नियमित भुगतान न करने के परिणामस्वरूप अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा नोटिस दिनांक 12.11.1991 पत्र संख्या-4212/J.S.(P) के माध्यम से सूचित किया गया कि परिवादिनी विपक्षी द्वारा देय धनराशि मु0 2415/-रू0 का भुगतान यदि एक माह की अवधि दिनांक 30.11.1991 तक किया जावेगा तब भूखण्ड का आवंटन उसके पक्ष में जारी रहेगा, अन्यथा की स्थिति में यह माना जावेगा कि वह भूखण्ड/भवन लेने में इच्छुक नहीं है तथा आवंटन निरस्त कर प्रतीक्षारत प्रार्थी को आवंटित कर दिया जावेगा साथ ही भूखण्ड का आवंटन स्वत: निरस्त माना जावेगा।
उक्त नोटिस से पूर्व बकाया धनराशि जमा करने हेतु पूर्व में दिनांक 04.01.1991 को भी अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा नोटिस प्रेषित किया गया, परन्तु परिवादिनी द्वारा न तो उत्तर ही प्रस्तुत किया गया और न ही अपेक्षित धनराशि/देय धनराशि ही जमा की गई। अंततोगत्वा अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा प्रतीक्षारत प्रार्थी के पक्ष में विक्रय विलेख पत्र तैयार किया गया, जिसके द्वारा देय सम्पूर्ण धनराशि जमा की गई। उक्त विक्रय विलेख पत्रावली पर उपलब्ध है, जो कि अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा विलेखित किया गया।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि प्रस्तावित भूखण्ड/भवन हायर पर्चेज एग्रीमेंट, जो कि अपील की पत्रावली के पृष्ठ संख्या-16 पर संलग्न है, के अनुसार आवंटित किया गया, जिसकी शर्तों का उल्लंघन परिवादिनी द्वारा किए जाने को दृष्टिगत रखते हुए विधिनुसार कार्यवाही सुनिश्चित की गई तथा यह कि आवंटित भूखण्ड/भवन 30 वर्ष पूर्व ही प्रतीक्षा रत प्रार्थी को प्राप्त कराया जा चुका है, अतएव विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश 28.08.2018 अनुचित है, जिसे अपास्त किया जाता है तथा प्रस्तुत अपील तदनुसार स्वीकार की जाती है।
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अपीलार्थी द्वारा अपील प्रस्तुत करते समय अपील में जमा धनराशि अपीलार्थी को विधि अनुसार 01 माह की अवधि में अर्जित ब्याज सहित वापस की जाए साथ ही परिवादिनी द्वारा प्राधिकरण में जमा धनराशि को 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की गणना कर दो माह में प्राप्त करायी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश
को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1