राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-1324/2005
(जिला उपभोक्ता फोरम, बुलंदशहर द्वारा परिवाद संख्या-20/2001 में पारित निर्णय दिनांक 05.03.2005 के विरूद्ध)
उ0प्र0 आवास एवं विकास परिषद द्वारा आवास आयुक्त 104 महात्मा
गांधी मार्ग, लखनऊ। .........अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
श्रीमती माया देवी पत्नी श्री कल्यान भारती निवासी 103 सराय गुसायवार्ड
नं0 14 जिला बुलंदशहर। ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री चंद्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एन0एन0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 23.07.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला फोरम बुलंदशहर द्वारा परिवाद संख्या 20/2001 में पारित निर्णय/आदेश दि. 05.03.2005 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच का आदेश निम्न प्रकार है:-
'' पक्षकार उपस्थित। सुना गया। मा0 राज्य आयोग के अनुपालन में प्रतिवादी को आदेशित किया जाता है कि वह वादी के ऊपर लगाये गये दंडित ब्याज पर साहानभूतिपूर्वक विचार कर दंडित ब्याज में 50 प्रतिशत की रियायत देने का आदेश करें और रियायत मिलते ही देय धनराशि जमा कर रजिस्ट्री कराये।
उक्त आदेश मा0 राज्य आयोग के आदेश एवं वादी की आर्थिक दयनीय स्थिति को देखते हुए सहानुभूतिपूर्वक दिया गया है। पत्रावली अग्रिम आदेश हेतु 05.04.05 को पशे हो।''
जिला मंच का उपर्युक्त आदेश अंतरिम आदेश है, जिसके विरूद्ध निगरानी प्रस्तुत की जानी चाहिए थी, परन्तु अपील प्रस्तुत की गई है, जिसे न्याय हित में निगरानी मानते हुए निर्णीत किया जाता है।
-2-
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी द्वारा एक फ्लैट आवंटन के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया और अपीलार्थी द्वारा उसे एक फ्लैट आवंटित किया गया। परिवादी के अनुसार उसके द्वारा भुगतान किया गया, जबकि अपीलार्थी के अनुसार उसके द्वारा समय से मांगी गई धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी द्वारा एक परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जिला मंच द्वारा इस परिवाद में अपना आदेश दि. 02.02.2001 पारित किया। इस आदेश के विरूद्ध उभय पक्षों द्वारा अपील संख्या 687/2001 और अपील संख्या 846/2001 दाखिल की गई है, जो इस आयोग द्वारा अपने आदेश दि. 26.11.2002 द्वारा कतिपय निर्देश के साथ निस्तारित की गई है। जिला मंच द्वारा अपील में दिए गए निर्देशों के क्रम में उपर्युक्त आदेश दि. 05.03.2005 दिया गया है।
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों व साक्ष्यों का परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
राज्य आयोग द्वारा अपने आदेश दि. 26.11.2002 में स्पष्ट निर्देश पारित किया है। जिला मंच को इन निर्देर्शों के क्रम में अग्रिम कार्यवाही करनी थी, परन्तु जिल मंच का आदेश राज्य आयोग द्वारा दिए गए निर्देर्शों के अनुपालन में नहीं किया गया है, अत: जिला मंच का आदेश निरस्त किए जाने योग्य है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच का आदेश दि. 05.03.2005 निरस्त करते हुए जिला मंच को यह निर्देश दिया जाता है कि जिला मंच इस आयोग के आदेश दि. 26.11.2002 का अनुपालन करते हुए नियमानुसार गुणदोष के आधार पर कार्यवाही सुनिश्चित करें।
(चंद्र भाल श्रीवास्तव) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-2