(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-38/2001
यू.पी. सहकारी आवास संघ लिमिटेड, 6, पार्क रोड, लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर तथा एक अन्य
बनाम
अखिलेश कुमार श्रीवास्तव पुत्र श्री पारस नाथ श्रीवास्तव, छोटी बाजार, बहराइच तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री पीयूष मणि त्रिपाठी।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 12.02.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-485/1999, श्रीमती कृष्णा पाठक बनाम राजकुमार जायसवाल, सचिव, आनन्द सहकारी आवास समिति लिमिटेड तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, बहराइच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 1.11.2000 के विरूद्ध उ0प्र0 सहकारी आवास संघ लिमिटेड की ओर से प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पीयूष मणि त्रिपाठी को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने विपक्षी सं0-1, आनन्द सहकारी आवास समिति लि0 के सचिव के समक्ष अंकन 69,000/-रू0 का ऋण लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत
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किया था तथा समिति के पक्ष में अपना भूखण्ड बंधक रखा था। समिति द्वारा अंकन 69,000/-रू0 का भुगतान चेक के माध्यम से किया गया। परिवादिनी द्वारा समय पर किस्त जमा न करने का ब्याज अदा किया गया। कुल राशि वापस लौटाने के पश्चात अदेयता प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया गया, परन्तु विपक्षी सं0-2 एवं 3 नोटिस भेजकर ऋण की वसूली के लिए धमकी दे रहे हैं। अदेयता प्रमाण पत्र दिखाने पर भी ऋण की अदायगी नहीं मानते, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी सं0-1 का कथन है कि परिवादिनी को ऋण प्रदान किया गया था, जिसकी अदायगी हो चुकी है। आगे उल्लेख किया गया कि आनन्द सहकारी आवास समिति लिमिटेड का कार्यकाल दिनांक 9.7.1998 को समाप्त हो चुका है। नये चुनाव होने तक सहायक आवास आयुक्त/सहायक निबंधक सहकारी समितियां द्वारा आनन्द सहकारी आवास समिति लि0 का कार्यभार संभाला हुआ है, उनके द्वारा उत्तर प्रदेश सहकारी आवास संघ लि0, शाखा फैजाबाद को प्रबंधक नियुक्त किया गया है। श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को विपक्षी संख्या-1 के कार्यालय का चार्ज दे दिया गया। दिनांक 12.5.1999 को चार्ज लेते समय रू0 63,125.15 पैसे भी श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को प्राप्त कराए गए तथा उसकी एक रसीद भी प्राप्त की गयी। दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया गया कि समिति के कार्यों के लिए प्रशासक से सम्पर्क किया जाय। यह भी कथन किया गया कि परिवादिनी द्वारा धनराशि जमा करते समय उन्हें रसीद उपलब्ध करा
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दी गयी। यह धनराशि नगद में जमा की गयी थी, जिसे प्रशासक श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को प्राप्त करा दिया गया।
4. विपक्षी सं0-2 एवं 3 का कथन है कि सदस्य की बंधक सम्पत्ति दिनांक 22.4.1989 को समिति द्वारा संघ को अभ्यर्पित कर दी गयी थी। संघ द्वारा बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से ऋण की किस्त जारी की गयी थी। परिवादिनी द्वारा त्रैमासिक किस्त की धनराशि वापस नहीं की गयी और आनन्द सहकारी आवास समिति लि0 से अदेयता प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया गया था। परिवादिनी के लिए आवश्यक था कि ऋण में ब्याज की धनराशि उत्तर प्रदेश सहकारी आवास संघ, लखनऊ अथवा उसके क्षेत्रीय कार्यालय फैजाबाद के कार्यालय में जमा करते हुए अदेयता प्रमाण पत्र प्राप्त करते। परिवादिनी द्वारा जो राशि जमा करायी गयी है, उसका समायोजन परिवादिनी के ऋण खाते में जमा किया जा चुका है। परिवादिनी द्वारा कुल रू0 11,853.07 पैसे जमा किये गये हैं। परिवादिनी पर दिनांक 31.1.2000 तक कुल रू0 2,12,791.25 पैसे बकाया थे। परिवादिनी ने कभी भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि जिस संस्था ने ऋण दिया है, उसी संस्था में ऋण की अदायगी की जा रही है या नहीं। अत: चूंकि बंधक सम्पत्ति उत्तरदायी विपक्षीगण के पास है, इसलिए उन्हें अपना ऋण वसूलने का अधिकार प्राप्त है।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादिनी द्वारा लिये गये ऋण की अदायगी पूर्ण रूप से की जा चुकी है। परिवादिनी से कोई ऋण वसूल नहीं किया जा सकता। यद्यपि विपक्षी सं0-1 से
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धनराशि की वसूली की जा सकती है। तदनुसार परिवादिनी से कोई राशि न मांगने के लिए भी निषेधित किया गया।
6. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि चूंकि ऋण अपीलार्थी द्वारा दिया गया है और आवंटित भूखण्ड अपीलार्थीगण के पक्ष में बंधक किया गया है। परिवादिनी द्वारा जो राशि जमा की गयी है, उसे समायोजित कर लिया गया है। अन्य किसी राशि को अदा करने का कोई सबूत मौजूद नहीं है। समिति के सचिव, राजकुमार जायसवाल को यदि कोई राशि अदा की गयी है तब इस स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि ऋण की अदायगी परिवादिनी द्वारा की जा चुकी है, क्योंकि ऋण अपीलार्थीगण द्वारा जारी किया गया है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुनने तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं सम्पूर्ण पत्रावली का अवलोकन करने के पश्चात निम्नलिखित स्थितियां प्रकट होती हैं :-
(1.) यह सही है कि परिवादिनी द्वारा ऋण विपक्षी सं0-1 के माध्यम से प्राप्त किया गया, परन्तु ऋण की स्वीकृति/अदायगी अपीलार्थीगण द्वारा की गयी।
(2.) परिवादिनी का यह कथन है कि विपक्षी सं0-1 के समक्ष ही सम्पूर्ण ऋण की अदायगी की गयी है, परन्तु विपक्षी सं0-1 के खाते में ऋण राशि जमा करने का जितना उल्लेख मिलता है, वह राशि अपीलार्थीगण द्वारा अपने ऋण खाते में समायेजित कर ली गयी है, जो रू0 11,853.07 पैसे है।
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(3.) विपक्षी सं0-1 ने लिखित कथन में स्वीकार किया है कि परिवादिनी द्वारा नगद धनराशि जमा करायी गयी थी, जो समिति भंग होने पर प्रशासक श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को उपलब्ध करा दी गयी थी। श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को इस केस में पक्षकार नहीं बनाया गया है, उनका पक्ष नहीं सुना जा सका कि उन्हें कोई राशि उपलब्ध करायी गयी थी या नहीं। खाली श्री राजकुमार जायसवाल के इस कथन को सत्य मान लिया गया कि श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव को जो तत्समय समिति के प्रशासक का कार्य देख रहे थे, उनको नगद धनराशि उपलब्ध करायी गयी है। किसी ऐसे व्यक्ति जिसे धनराशि उपलब्ध करायी गयी है, को पक्षकार न बनाये जाने के कारण तथा उसका पक्ष न सुनने के कारण यह निर्णय/आदेश दिया जाना अनुचित है कि धनराशि की अदायगी हो चुकी है।
8. उपरोक्त सभी विवरणों से स्पष्ट हो जाता है कि पक्षकारों के मध्य यथार्थ में उपभोक्ता विवाद मौजूद नहीं है, अपितु ऋण की प्राप्ति, ऋण की अदायगी, ऋण की बकाया राशि के उत्तरदायित्व का प्रश्न निहित है, जो सिविल न्यायालय द्वारा साक्ष्य की विस्तृत विवेचना के पश्चात ही निर्धारित किया जा सकता है। अत: गैर उपभोक्ता परिवाद पर पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 1.11.2000 अपास्त किया जाता है। यद्यपि परिवादिनी को यह अधिकार प्राप्त रहेगा कि वह
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सिविल सूट सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर अपने ऋण की देयता के तथ्य को साबित करे तथा विद्वान जिला आयोग के समक्ष या इस आयोग के समक्ष जो समय व्यतीत हुआ है, उस समय की समयावधि की गणना सिविल सूट प्रस्तुत करते समय नहीं की जाएगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भर स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3