Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ। संख्या:1297/2017 (जिला उपभोक्ता आयोग, भदोही द्वारा परिवाद संख्या-02/2013 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 19-06-2017 के विरूद्ध) Force Motors Having its Office Akurdi Pune Maharastra-411035 through its Signatory AniketSrivastava. .....Appellant Versus - Smt. KirtanBarnwal@KirtanKokila Owner Tander Hurt School R/O BajarGhosia, Post& Thana Ourai, DisttSant Ravi Das Nagar, Bhadohi.
- Propritor/Managing Director Goyenka Force Agency D-65/319A-G.T. Road Lahartara Varanasi
- Devendra Kumar Misra G.T. Road ShuklaBhawan, AoraiBajar, Post and Tehsil Aorai, Distt. Bhadohi.
- Respondents
अपील संख्या:1285/2017 - Propritor/General Manager GoyenkaForce(Authorized dealer of Force Motors),Agency D-65/319A-G.T. Road Lahartara Varanasi
- Appellant
Versus - SmtKirtanBarnwal alias KirtanKokila owner of Tendor Heart School, r/o Bazar Ghosia, Post & Thana-Orai, Distt-Sant Ravi Das Nagar, Bhadohi.
- General manager/Manufacturer-Force Motors Ltd, Office- Plot no 3 Sector-1, Industrial Estate, Pitampur, Distt-Dhar, Madhya Pradesh.
- Devendra Kumar Mishra(D.K Mishra) Permanent address-in the north of G.T. Road, (in the west of roadways compound), Shuklabhawan, orai bazaar, Post-Orai, Tehsil-OraiDistt-Bhadohi
- Respondents
समक्ष :- - मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
उपस्थिति : अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री सुभाष चन्द्र श्रीवास्तव प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री अंशुल बरनवाल दिनांक :25.08.2021 मा0 श्रीविकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 जिला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भदोही द्वारा परिवाद संख्या 2/2013 श्रीमती किर्तन बर्नवाल प्रति मैनेजर डीलर गोयनका फोर्स तथा अन्य में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 19.06.2017 के विरूद्ध योजित किया गया है, जिसके माध्यम से अपीलार्थी को रूपये 3,00,465/- एवं अन्य व्यय प्रत्यर्थी को दिलाये जाने हेतु निर्देश दिया गया है।
- मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने उपरोक्त परिवाद इन आधारों पर प्रस्तुत किया है कि परिवादिनी अपने घर में डेण्टर हर्ट नामक स्कूल चलाती है उसके द्वारा अपनी व अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए उक्त विद्यालय खोला है जो एकमात्र स्रोत है। परिवादिनी ने स्कूल के बच्चों व स्टाफ ले जाने के लिए या वाहन क्रय किया जो विपक्षी सं0 1 जो विपक्षी सं0 2 के द्वारा बनाये जाने वाले वाहन का डीलर है उसके द्वारा भदोही में एजेण्ट के माध्यम से खरीदा। विपक्षी सं0 1 ने परिवादिनी को भरोसा दिलाया कि उसे एक मजबूत व विश्वसनीय वाहन प्रदान किया जायेगा और यह भी कहा कि उक्त वाहन को 6 माह तक चलाकर वह संतुष्ट हो जायेगी। जो उसे सेल लेटर, पंजीयन प्रमाण पत्र तथा बीमा प्रपत्र दिया जायेगा। परिवादिनी ने उपरोक्त वाहन रूपये 3,00,465/- को अदा करके विपक्षी सं0 1 को दिलाया, जुलाई 2011 में अदा किया। वाहन प्राप्त कर अपने भदोही स्थित स्कूल पर ले आयी। संचालन अपने चालक के जरिये करना आरंभ किया। वाहन संचालन के 10 दिन के अंदर ही वाहन में स्टार्टिंग व गति संबंधी समस्या पैदा हो गयी। गैर व क्लच बाक्स में भी परेशानी उत्पन्न हो गयी, उसके नट बोल्ट खराब थे। साइलेंसर एवं वाहन की खिड़की आदि में दोष थे। परिवादिनी ने बार-बार इसकी शिकायत की यदि एक वर्ष की अवधि के अंदर वाहन विपक्षी सं0 1 के वर्कशाप में भेजकर कई बार ठीक कराया। जिसका पैसा भी लिया गया। जबकि वाहन गारण्टी अवधि में खराब हुआ था। परिवादिनी के अनुसार वाहन में निर्माण की कमी थी। वाहन चलने फिरने लायक नहीं रहा तो उसे क्रैन से उठवाकर वर्कशाप में भेजवाया गया जहां वह वाहन आज भी खड़ा है। विपक्षीसं0 1 ने न तो वाहन का इंजन बदला और न ही इसकी त्रुटि दूर करी। परिवादिनी ने उक्त संबंध में एक विधिक नोटिस भेजा। शिकायत न दूर होने पर यह परिवाद योजित किया गया है। परिवादिनी ने मुकदमें के संबंध के दौरान एक संशोधन किया, जिसके जरिये उसने यह भी कथन जोड़ा कि विपक्षी सं0 1 का एजेण्ट विपक्षी सं0 3 देवेन्द्र कुमार मिश्र जनपद भदोही कार्य करता था और उसी के माध्यम से यह वाहन लिया गया। विपक्षी सं0 1 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह कथन किया गया कि परिवादिनी ने प्रश्नगत वाहन की कीमत पूर्ण रूप से अदा नहीं की, बार बार तकाजा करने पर थोड़ी थोड़ी धनराशि दी गयी। धनराशि के लिए कहने पर परिवादिनी वाहन मे कोई न कोई त्रुटि बताती रही और शेष रकम देने से इंकार कर दिया। वाहन में जो जो त्रुटि बतायी, वह सभी निराधार है। वाहन में ऐसी कोई त्रुटि नहीं है केवल धनराशि अदा न करना पड़े इसलिए यह परिवाद योजित किया है। विपक्षीसं0 1 ने दिनांक 15.12.2012 से लेकर दिनांकित 21.12.2012 को अपने कर्मचारी गुपशरण को परिवादिनी के पास अपना वाहन ले जाने के लिए कहकर भेजा किन्तु परिवादिनी ने वाहन लेने से इंकार कर दिया। विपक्षी के अनुसार परिवादिनी उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आती है क्योंकि उसमें उपरोक्त वाहन व्यापारिक उद्देश्य के लिए लिया है। वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष नहीं है। इस आधार पर परिवाद निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
- विपक्षी सं0 2 का कथन इस प्रकार आया है कि परिवादिनी द्वारा उपरोक्त् वाहन व्यापारिक उद्देश्य से क्रय किया गया है, जिसके अतिरिक्त विपक्षीगण का कोई घर भदोही में नहीं है इसलिए भदोही जिला उपभोक्ता आयोग को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। वाहन में कोई खराबी नहीं थी। वारण्टी सीमा के अंतर्गत यदि कोई त्रुटि नहीं थी। परिवादिनी द्वारा वाहन के निरीक्षण के उपरांत पूर्ण रूप से संतुष्ट होकर वाहन क्रय किया गया था। उभय पक्ष को सुनकर विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए एक माह के अंदर वाहन को बदलने का निर्देश दिया और विकल्प में वाहन की कीमत रूपये 3,00,465/- दिये जाने और वाहन के परिवहन हेतु रूपये 2,000/- मानसिक यातना के रूप में रूपये 2,000/- था। वाद व्यय रूपये 1,000/- अदा करने का निर्देश दिया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि परिवादिनी परिवादिनी द्वारा यह कथन किया गया है कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था। अपीलार्थी के वाहन अत्यंत कठिन, गुणवत्ता, परीक्षण से गुजरती हैं जो केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित लेब लेबोरेटरी से अप्रूव की जाती है। अत: वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष होने का कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता। प्रत्यर्थी को जो वाहन दिया गया है वह अत्यंत अच्छी स्थिति में था। परिवादिनी ट्रिप नाम का एक वाहन दिया गया जो एक व्यवसायिक वाहन है तथा व्यवसायिक उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है। परिवादिनी ने स्वयं का स्कूल का स्वामी बताया है। अत: यह वाहन व्यवसायिक उद्देश्य से स्कूल के स्टाफ ले जाने के लिए प्रयोग किया जा रहा था जो परिवादिनी के जीविकोपार्जन हेतु नहीं माना जा सकता है। परिवादिनी द्वारा स्कूल के चालन में शुल्क वसूल किया जाता था इसके अतिरिक्त वाहन को चलाने के लिए पृथक से ड्राइवर नियुक्त किया गया था। अत: निश्चित ही वाहन व्यवसायिक उद्देश्य से प्रयोग हो रहा था और इस कारण संव्यवहार के लिए परिवादिनी धारा 21डी उपभोक्ता अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है और इसलिए परिवाद पोषणीय नहीं है। प्रश्नगत वाहन सिंगल सिलिंडर का वाहन है और ओवरलोडिंग के कारण वाहन में दोष आ सकता है। परिवादिनी द्वारा वाहन की ओवरलोडिंग की गयी जिसका दोष आने की संभावना रही। वाहन की सर्विस रिकार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि वाहन केवल 9 बार सर्विस सेंटर पर प्रेषित की गयी, जिसमें से 4 बार सिडयूल सामान्य मेंटिनेंस सर्विस हेतु प्रेषित की गयी थी। वाहन सर्विस रिकार्ड से भी यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनीने 10 आवश्यक सर्विस में से केवल 4 सर्विस का उपयोग किया तथा उचित प्रकार से देखभाल न होने के कारण भी वाहन में दोष आने की संभावना है। वाहन के रखरखाव में स्वयं परिवादिनी द्वारा लापरवाही बरती गयी। वारण्टी की शर्तों के अनुसार सभी सर्विस का होना आवश्यक है जो परिवादिनी द्वारा उपभोग नहीं की गयी थी। परिवादिनी द्वारा झूठे और मिलावटी तथ्य के आधार यह परिवाद योजित किया है। साक्ष्य से यह सिद्ध नहीं होता है कि जब परिवाद योजित किया गया तो प्रश्नगत वाहन गारण्टी अवधि में था। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने बिना ये जाने की किस प्रकार की सर्विस प्रश्नगत वाहन को प्रदान की गयी थी तथा क्या क्या कमियां वाहन में थी यह परिवाद आज्ञप्त किया है, जब कि वाहन पूर्णता उचित स्थिति मे था। प्रश्नगत वाहन किसी स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञ से जांच नहीं किया गया है और बिना उक्त आधार के वाहन में तकनीकी दोष होना सिद्ध नहीं माना जा सकता है। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने बिना उक्त आधारों पर अपील निरस्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री सुभाष चन्द्र श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री अंशुल बरनवाल की बहस सुनी गयी। तत्पश्चात पत्रावली पर समस्त अभिलेख का परिशीलन किया गया।
- यह अपील एवं परिवाद के स्तर पर उभय पक्ष के अभिवचनों के आधार पर तीन बिन्दु उत्पन्न होते हैं, जिन को आधार लेते हुए विपक्षीगण ने परिवाद का विरोध किया है:-
- क्या परिवादिनी ने उक्त वाहन का व्यवसायिक प्रयोग हेतु क्रय किये जाने के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में आती है अथवा नहीं।
- क्या जनपद भदोही स्थित जिला उपभोक्ता आयोग को परिवाद का ग्रहण करने एवं विचारने का क्षेत्राधिकार है।
- परिवादिनी को जिला आयोग द्वारा प्रदान किये गये अनुतोष उचित है तथा परिवादिनी इस अनुतोष को पाने का अधिकारी है।
बिन्दु सं0 1:- अपीलार्थी की ओर से परिवाद के स्तर पर तथा अपील के स्तर पर यह अभिकथन किया गया है कि परिवादिनी प्रश्नगत वाहन का व्यवसायिक प्रयोग कर रही है क्योंकि परिवाद के अनुसार परिवादिनी ने स्वयं को डेण्टर हार्ट स्कूल नामक विद्यालय की स्वामिनी बताया है और वह स्कूल के बच्चों को ले जाने के लिए उक्त वाहन का प्रयोग कर रही है। अपीलार्थी के अनुसार वह स्कूल के बच्चों से वाहन हेतु शुल्क लिया जाता है। अत: यह वाहन का व्यवसायिक उद्देश्य माना जायेगा। दूसरी ओर परिवादिनी का कथन है कि परिवादिनी ने उक्त स्कूल अपने जीविकोपार्जन के लिए खोला है जो उसकी आय का एकमात्र स्रोत है। स्कूल के बच्चों व स्टाफ को ले जाने के लिए वाहन का प्रयोग होता है। स्वयं परिवादिनी ने व्यक्तिगत वाहन खरीदा है। अत: यह व्यवसायिक वाहन नहीं कहा जा सकता है। दोनों पक्षों के तर्क के संबंध में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(डी) में यह प्रदान किया गया है कि यदि किसी सेवा अथवा की खरीद का व्यवसायिक उपयोग होता है तो उक्त संव्यवहार उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के माध्यम का संव्यवहार नहीं माना जायेगा और परिवादिनी उपभोक्ता की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आयेगा। इस संबंध में परिवादिनी के अभिवचनों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है। इसमें परिवादिनी ने कथन किया है कि प्रश्नगत वाहन क्रय किये जाने के तुरंत बाद ही वाहन में कमियां आने लगी थी। वाद की पोषणीयता के संबंध में परिवादिनी के तथ्यों का देखा जाना आवश्यक है एवं परिवाद की पोषणीयता परिवादी के अभिवचनों पर निर्भर करती है एवं परिवादिनी ने वाहन क्रय किये जाने के समय से ही अर्थात वाहन की एक साल की वारण्टी के भीतर ही वाहन में त्रुटियां होने का कथन किया है। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय - इण्डोकेम इलेक्ट्रानिक एवं एक अन्य बनाम अपर कलेक्टर, सीमा शुल्क, आन्ध्रप्रदेश 2006(2) एस.सी.सी.डी. 683 (एस.सी.)।
- The Director Central Silk Board Minister of Textiles Versus R Jayalakshmi&Anr. 2007 (2) CPR 438 (NC).
- M/s Gulf Air Company VersusDilip shah &Ors. 2007(1) CPR 224 (NC).
- M/s Larsen and Toubro Ltd VersusKrishan Kumar Dhankar and Ors. 2009 (3) CPR 312 (NC).
इन सभी निर्णयों में यह माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि यदि कोई वाहन अथवा मशीनरी व्यवसायिक उद्देश्य से भी खरीदी गयी है तो यदि उक्त वाहन वारण्टी के दौरान खराब होता है तो उन वारण्टी के शर्तें लागू होने के कारण परिवादी/क्रेता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(डी) के अंतर्गत उपभोक्ता की परिभाषा मे माना जायेगा एवं वह उपभोक्ता संरक्षण के अंतर्गत परिवाद लाने का अधिकार रखता है इस संबंध में परिवादी की ओर से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मेसर्स कुर्जी फैमली एफ.ए. हास्पिटल प्रति मेसर्स बोहरिएंगर मैनहीम इण्डिया (23/2001) दिनांक 06.08.2007 पर आधारित किया गया है। इस मामले में लगभग 1 वर्ष के भीतर 9 बार वाहन अर्थात वारण्टी अवधि के अंदर मरम्मत हेतु गैराज में प्रेषित किया गया। अत: वाहन की सर्विसिंग वारण्टी अवधि के दौरान बार बार तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यद्यपि वाहन व्यवसायिक उद्देश्य से खरीदा गया है किन्तु वह वारण्टी अवधि के दौरान खराब हुआ है। तथा परिवाद उपभोक्ता संरक्षण उक्त में पोषणीय होगा। वारण्टी समय के अंदर क्रेता को उपभोक्ता ही माना जायेगा। - इस परिवाद के तथ्य के अनुसार उभय पक्ष के मध्य वाहन क्रय की वारण्टी के पालिसी के विरूद्ध पीठ के समक्ष प्रस्तुत की गयी, जिसकी धारा 3 में दिया गया है। उक्त वारण्टी के अनुसार वाहन के क्रय किये जाने के 360 दिन के लिए वारण्टी देरी उक्त नियम व शर्तो में यह प्रदान किया गया है कि विक्रेता का उत्तरदायित्व वाहन के पार्टस का बिना किसी शुल्क के दिलाना अथवा रिपेयरिंग करना होगा इस मामले में वाहन क्रय करने के 360 दिन के भीतर वाहन की मरम्मत की गयी अत: यह गाड़ी में आयी कमियां वारण्टी के समय के भीतर है इसलिए माननीय राष्ट्रीय आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के आधार पर यह पीठ इस मत की है कि परिवादिनी ने अपने अभिकथनों में यह कथन किया है कि वाहन क्रय करने के गारण्टी के समय के भीतर वाहन को मरम्मत हेतु गैराज में कई बार प्रेषित किया गया। उक्त मरम्मत के जॉब कार्ड की प्रतिलिपियां परिवादिनी/प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत की गयी है जो माह सितम्बर, 2011, अक्टूबर 2011 तदोपरांत 19.11.2011, 19.12.2012, 04 फरवरी 2012 तथा 28 फरवरी 2012 तक जिन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनी के अभिकथनों के अनुसार 2011 में प्रश्नगत वाहन क्रय किये जाने के 2 महीने के उपरान्त से फरवरी2012 तक लगभग 6 बार वाहन मरम्मत हेतु प्रेषित किया गया जो वारण्टी अवधि के भीतर है। अत: परिवाद के अभिकथनों एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के तथा परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी मे मानी जायेगी।
बिन्दु सं0 2 :- अपीलकर्ता की ओर से यह कथन आया है कि जनपद भदोही में विपक्षी सं0 1 तथा विपक्षी सं0 2 का कोई डीलर या एजेण्ट कार्यरत नहीं है। मुकदमें के लम्बन के दौरान परिवादिनी ने एक व्यक्ति श्री देवेन्द्र कुमार मिश्र को विपक्षी सं0 1 का एजेण्ट होना बताया था। परिवाद के विपक्षी सं0 1 व 2 का कोई परिवाद तथा सर्विस स्टेशन जनपद भदोही के क्षेत्र में नहीं आता है इसलिए धारा 11(2) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों परिवाद जनपद भदोही में ही जिला मंच द्वारा पोषणीय नहीं है। यह बिन्दु विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उठाया गया है किन्तु प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट है कि इस बिन्दु पर विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने मत दिया है कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से स्पष्ट है कि विपक्षी सं0 1 का स्थानीय एजेण्ट जनपद भदोही के क्षेत्र में निवास करता था, जैसा कि परिवादिनी ने अपने शपथ पत्रमें कथन किया है। परिवादिनी ने अपने शपथ से यह भी कहा कि उक्त श्री देवेन्द्र कुमार मिश्र को नोटिस की तामील करायी गयी तब उसने परिवादिनी को अवगत कराया कि विपक्षी सं0 1 ने कुछ वाहनों से कमीशन नहीं दिया था इसलिए कार्य करना छोड दिया था। उक्त साक्ष्य को आधार मानते हुए विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग भदोही में विपक्षी सं0 1 का रोजगार और लाभ के लिए व्यापार करना माना है। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी सं0 1 द्वारा लिखित पत्र दिनांकित 11.07.2011 का हवाला दिया गया है। जिसमें विपक्षी सं0 1 के द्वारा प्रमाणपत्र दिया गया है तब वह उपरोक्त वाहन वाराणसी तथा जनपद भदोही में डिमान्सट्रेशन के लिए भेज रहा है। उक्त पत्र का विपक्षी सं0 1 अर्थात् डीलर, द्वारा खण्डन नहीं किया गया। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने यह माना कि उक्त पत्र से स्पष्ट होता है कि परिवाद का विपक्षी सं0 1 अर्थात डीलर, रोजगार और लाभ के लिए जनपद भदोही में कार्य करता था यह तभी जनपद भदोही में डिमान्स्ट्रेशन हेतु वाहन भेजा और परिवादिनी के इस कथन की पुष्टि होती है कि विपक्षी सं0 1 डीलर ने अपने एजेण्ट के माध्यम से जनपद भदोही में वाहन व्यय का व्यापार किया था। विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग का उपरोक्त निष्कर्ष उचित प्रतीत होता है उपरोक्त वर्णित पत्र से स्पष्ट होता है कि जनपद भदोही में भी वाहन के डीलर द्वारा अपने लाभ हेतु वाहन का क्रय आदि किया जा रहा था और परिवादिनी द्वारा वर्णित एजेण्ट के माध्यम से वाहन का क्रय विक्रय हुआ। अत: यह निष्कर्ष उचित है कि धारा 11 (2ग) उपभोक्ता संरक्षण के अन्तर्गत वाद का कारण परिवाद के वाद का कारण पूर्णता अथवा अंशत: जनपद भदोही में उत्पन्न होता है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग भदोही में वाद पोषणीय मानना उचित है। बिन्दु सं0 3:- परिवादिनी की ओर से यह कथन किया गया है कि उक्त के प्रश्नगत वाहन क्रय करने की तिथि से ही बार-बार खराब होता रहा तथा उसमें निर्माण संबंधी दोष थे। अंतत: परिवादिनी ने विपक्षी सं0 1 के गैराज से वाहन मंगाने से इंकार कर दिया और परिवादिनी प्रश्नगत वाहन की सम्पूर्ण अथवा नये वाहन पाने की अधिकारिणी है। अपने कथन के संबंध में परिवादिनी की ओर से वाहन की मरम्मत के संबंध में 6 दस्तावेज प्रस्तुत किये गये हैं। उक्त 6 जॉब कार्ड को सूक्ष्मता से देखा जाना आवश्यक है। - परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत किये गये जॉब कार्ड जिसमें पहला जॉब कार्ड में वाहन की तीन सामान बदले जाने दर्शाये गये हैं, जिनका कुल मूल्य 77 रूपये 28 पैसे तथा जीएसटी सहित 87 रूपये 60 पैसे हैं जो छोटे मोटे उपकरण क्लिप और ऑयल सी जैसे उपकरण हैं इस जॉब कार्ड में तिथि दृष्टिगोचर नहीं होती है यद्यपि परिवादिनी ने यह माह सितम्बर 2011 का अर्थात वाहन क्रय करने के 2 महीने का बताया है। अगला जॉब कार्ड पर भी तिथि दृष्टिगोचर नहीं होती है। यह कुल मूल्य 1052 रूपये का है जिसमें ब्रेकऑयल इंजन कूलेण्ट सबसे अधिक मूल्य के हैं। साधारण सर्विस मे इंजन ऑयल और कूलेण्ट आदि बदला जाना साधारणतया आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी लगाये गये उपकरण लघु मूल्य के हैं। इस तिथि की मरम्मत एक साधारण सर्विसिंग प्रतीत होती है। अगला जॉब कार्ड दिनांकित 19.11.2011 का है, जिसमें रूपये 222 व्यय आया है इसमें लगाये गये 4 सामान से यह स्पष्ट होता है कि वाहन में कोई बड़ा दोष नहीं था। किसी प्रकार अगला जॉब कार्ड दिनांकित 19.12.2011 का है जिसमें कुल मूल्य 16 रूपये आया है। यह छोटी मोटी उपकरणों से संबंधित है जो अत्यंत छोटी कमी आने पर वाहन का दिखाया जाना परिलक्षित करता है। परिवादिनी की ओर से अगला जॉब कार्ड 04 फरवरी 2012 को प्रस्तुत किया गया है जिसमें रूपये 1110/- का व्यय आया है इसमें पुन: इंजन ऑयल, टर्बो इंजन ऑयल का व्यय है तथा फील्ड पम्प किट आदि मूल्यवान उपकरण लगाये गये हैं। तदोपरांत दिनांकित 28 फरवरी 2012 का जॉब कार्ड प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कुल व्यय 249/- रूपये आया है जिसमें एक टार्जन बार रूपये 3,024/- का बदला गया है।
- उपरोक्त जॉब कार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 19 दिसम्बर 2011 को की गयी मरम्मत में साइलेंसर रूपये 1,273/- रूपये का लगाया गया, जिसका कोई शुल्क नहीं लिया गया। इसके अतिरिक्त साइलेंसर एमटीजी की एसेम्बली रूपये 165.69 भी लगाया गया, जिसमें भी पूर्ण रूप से निशुल्क प्रदान किया गया। इसी प्रकार दिनांक 4 फरवरी 2012 को इक्जॉस्ट पाइप रूपये 506.43 का बदला गया एवं फीड पम्प किट रूपये 892.51 की लगायी गयी जो पूर्ण रूप से निशुल्क रिपलेस किया गया। दिनांक 28 फरवरी 2012 को टार्जन बार रूपये 3,024 रूपये .07 पैसे का भी बदला गया, जिसका कोई शुल्क विपक्षी की ओर से नहीं लिया गया। इस प्रकार स्वयं परिवादी द्वारा प्रस्तुत किये गये दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि वाहन में समय-समय पर अलग अलग भागों में वारण्टी अवधि के दौरान कमियां आयी। यह कमियां वाहन के दोषपूर्ण प्रयोग से भी आ सकती है अथवा वाहन के अत्यधिक प्रयोग के कारण भी आ सकती है, जैसी विपक्षी की ओर से कथन किया गया है दूसरी ओर प्रत्यर्थी/परिवादी ने किसी विशिष्ट तकनीकी विशेषज्ञ के माध्यम से यह नहीं दर्शाया है कि प्रश्नगत वाहन में कोई विशिष्ट तकनीकी निर्माण संबंधी दोष था, जिस कारण उक्त वाहन उपयोगी नहीं रह गया था। उक्त जॉब कार्ड के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वाहन के अलग-अलग भागों में कमी आयी थी। एक विशिष्ट भाग मे लगातार कमी बने रहने पर यह माना जा सकता है कि उक्त वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था किन्तु ऐसी कोई तकनीकी आख्या परिवादी की ओर से प्रस्तुत नहीं की गयी है अथवा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो कि वाहन के किसी विशिष्ट भाग ने ऐसा कोई दोष तथा जिसके आधार पर यह माना जा सके कि वाहन में निर्माण संबंधी कोई दोष था। जबकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 13 (1)(सी) के अनुसार परिवादी को किसी उपकरण में निर्माण संबंधी दोष सिद्ध करने के लिए किसी विशेषज्ञ की आख्या प्रस्तुत करनी होगी अथवा किसी तकनीकी साक्ष्य से यह तथ्य साबित करना होगा कि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष तथा उपरोक्त साक्ष्य के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि वाहन के विभिन्न भागों में अलग-अलग दोष आये, जिनको वारण्टी के अनुसार विपक्षी/अपीलार्थी ने समय-समय पर बिना किसी शुल्क लिये हुये बदला। इस प्रकार उसके द्वारा वारण्टी के शर्तों का पालन करते हुए संविदा का अनुपालन किया गया है दूसरी ओर परिवादिनी प्रश्नगत वाहन में किसी विशिष्ट निर्माण संबंधी दोष को साबित नहीं कर सकी है। अत: निर्माण संबंधी दोष होने के आधार वाहन का बदला जाना अथवा वाहन का पूरा मूल्य दिलाया जाना प्रस्तुत मामले में उचित प्रतीत नहीं होता है।
- इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय हरिराम गर्ग प्रति चित्तोसो मोटर्स व अन्य प्रकाशित 1 2020 सीपीजे पृष्ठ 500 (एनसी) उल्लेखनीय है। इस मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह पाया गया कि वाहन के पार्टस दोषपूर्ण थे, जिनको वारण्टी के अन्तर्गत बदल दिया गया,वारण्टी पार्टस के बदले जाने के संबंध में लागू थी। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया है कि यदि वाहन के कुछ पार्टस दोषपूर्ण है तो इस आधार पर सम्पूर्ण वाहन को दोषपूर्ण मान लेना और सम्पूर्ण वाहन को बदले जाने का उचित आधार नहीं है। वारण्टी की शर्त उस दशा मे संतुष्ट हो जाता है यदि दोषपूर्ण उपकरणों या पार्टस को नये उपकरणों से बदल दिया जाये असुविधा के लिए अलग से क्षतिपूर्ति दिलायी जा सकती है।
- माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्य निर्णय गोपाल अग्रवाल प्रति मेट्रो मोटर्स प्रकाशित 1 2020 सीपीजे पृष्ठ 85 (एन.सी.) भी इस संबंध में प्रासंगिक है इस मामले में भी वारण्टी अवधि के दौरान डीलर द्वारा वारण्टी की शर्तों का सम्मान करते हुए दोषपूर्ण उपकरणों को बदल दिया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह अवधारित किया गया कि यदि वाहन अथवा उपकरण में कोई दोष दर्शाना है तो यह किसी तकनीकी विशेषज्ञ के द्वारा परीक्षण के अन्तर्गत धारा 13(1)(सी)-जी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत दी गयी प्रक्रिया अपनाने के उपरान्त ही अवधारित किया जा सकता है। ऐसी दशा में बिना किसी तकनीकी विशेषज्ञ की रिपोर्ट के वाहन में विशिष्ट रूप से कोई तकनीकी तथा निर्माण संबंधी दोष तथा उपकरणों के बदले जाने पर वारण्टी का पालन माना जा सकता है।
- उपरोक्त सिद्धांत को छत्तीसगढ़ राज्य आयोग द्वारा पारित निर्णय फोर्ड इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड प्रति उत्तम चन्द्र जैन प्रकाशित वॉल्यूम 1 (एससीडीआरसी सीएन 5ए) में भी अनुसरित किया गया। इस मामले में भी वाहन की वारण्टी अवधि के दौरान आवश्यक पार्टस और उपकरणों को बदला गया। वाहन के इंजन में किसी प्रकार की कोई विसंगति या असामान्यत: नहीं पायी गयी। राज्य आयोग द्वारा यह माना गया कि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष सिद्ध नहीं है और सम्पूर्ण वाहन को धनराशि दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है।
- अपने समर्थन में परिवादिनी/प्रत्यर्थी की ओर से माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय आर राजाराव, अरविन्द कामथ बनाम मेसर्स मैसूर आटो एजेंसीज एफए नम्बर 455(1997) निर्णीत 27.07.2006 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि वाहन में निर्माण संबंधी दोष होने के बावजूद विपक्षी ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा वाहन का सम्पूर्ण मूल्य मय ब्याज दिलाये जाने का आदेश पारित किया।
- माननीय राष्ट्रीय आयोग का उपरोक्त निर्णय इस मामले में परिवादिनी/प्रत्यर्थी को लाभ नहीं देता है क्योंकि माननीय राष्ट्रीय आयोग के समक्ष के मामले में आटो मोबाइल एसोसिएशन सदन इण्डिया की एक रिपोर्ट दिनांक 16.03.2000 प्रस्तुत की गयी थी, जिसमें वाहन में निर्माण संबंधी दोष का निष्कर्ष दिया गया था किन्तु इस पीठ के समक्ष मामले में ऐसी कोई तकनीकी रिपोर्ट अभिलेख पर नहीं है, जिससे यह माना जा सके कि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष था।
- उपरोक्त् विवेचना से स्पष्ट है कि वाहन में निर्माण संबंधी दोष साबित नहीं होता है। वारण्टी अवधि के अंदर प्रश्नगत वाहन में आये विभिन्न पार्टस के दोषों का निराकरण करते हुए उन पार्टस को डीलर/अपीलार्थी द्वारा बदला गया है। अत: वारण्टी का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है किन्तु यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि वाहन में समय-समय पर विभिन्न भागों में दोष आते रहे, जिससे निश्चय ही वाहन के चलन चालन में बाधा उत्पन्न हुई और जिस कारण परिवादिनी को अवश्य ही असुविधा हुई जिसके लिए उसे क्षतिपूर्ति किया जाना आवश्यक है। प्रस्तुत मामले में रूपये 40,000/- उक्त असुविधा तक पर्याप्त प्रतीत होती है। अत: वाहन में उपरोक्त निरंतर आये दोषों के कारण होने वाली असुविधा के लिए रूपये 40,000/- की क्षतिपूर्ति से परिवादिनी/प्रत्यर्थी को क्षतिपूर्ति किया जाना आवश्यक है जो अपीलार्थीगण अपील सं0 1297/2017 तथा अपील सं0 1285/2017 (फोर्स मोटर्स व प्रापराइटर जनरल मैनेजर गोयनका फोर्स) वाहन निर्माता के संयुक्त एवं पृथक पृथक रूप से उत्तरदायित्व निर्भर करते हुए वसूला जा सकता है। इस धनराशि 40,000/- पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक रूपये 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी वाद योजन की तिथि से अर्द्धवार्षिक अदायगी तक दिया जाना उचित प्रतीत होता है। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश तद्नुसार परिवर्तित किया जाता है।
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। मूल प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए परिवादिनी का परिवाद इस प्रकार निस्तारित किया जाता है कि परिवादी के विपक्षीगण तथा अपील सं0 1297/2017 तथा अपील सं0 1285/2017 के अपीलार्थीगण संयुक्त व पृथक-पृथक रूप से उत्तरदायित्व रखते हुए रूपये 40,000/- क्षतिपूर्ति के रूप से परिवादिनी को प्रदान करें इस धनराशि पर रूपये 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद की तिथि से वास्तविक अदायगी तक देय होगा। उत्तरदायित्व अपीलार्थीगण के विरूद्ध संयुक्त व पृथक पृथक रूप से रहेगा। इस निर्णय की मूल प्रति अपील सं0 1297/2017 में रखी जाये तथा प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0 1285/2017 में रखी जाये। अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (गोवर्धन यादव) (विकास सक्सेना) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2 | |