(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-47/2022
असिस्टण्ट इंजीनियर (प्रापर्टी) आगरा डेवलपमेंट अथॉरिटी, आगरा।
पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी
बनाम
श्रीमती कान्ता देवी पत्नी श्री हीरा लाल, निवासिनी बी-8 ई.डब्ल्यू.एस. शास्त्री नगर, सिकंदरा आगरा।
विपक्षी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री ओम प्रकाश पाण्डेय, विद्वान
अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 05.08.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-06/2022, श्रीमती कान्ता देवी बनाम सहायक अभियन्ता आगरा विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, द्वितीय आगरा द्वारा पारित आदेश दिनांक 01.07.2022 के विरूद्ध यह पुनरीक्षण वाद प्रस्तुत किया गया। इस आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने समन की तामील होने के पश्चात 45 दिन की अवधि तक लिखित कथन प्रस्तुत न करने पर लिखित कथन दाखिल करने का अवसर समाप्त कर दिया है।
2. इस आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विधि विरूद्ध आदेश पारित किया है। दिनांक 06.01.2022, 22.02.2022, 11.03.2022, 04.05.2022, 17.05.2022
-2-
तथा दिनांक 24.06.2022 लिखित कथन दाखिल करने के लिए नियत की गई थीं, परन्तु कुछ परिस्थितियों के कारण लिखित कथन दाखिल नहीं हो सका। दिनांक 01.07.2022 को लिखित कथन तैयार कर न्यायालय के सम्मुख दाखिल किया जाना था, परन्तु न्यायालय द्वारा शामिल मिसिल किए जाने से इंकार कर दिया गया।
3. पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता को अंगीकरण के स्तर पर ही सुना गया तथा प्रश्नगत आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 38 (3) के अन्तर्गत विपक्षी को लिखित कथन 30 दिन की अवधि में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। आयोग द्वारा भी 15 दिन का समय प्रदान किया जा सकता है। कुल मिलाकर 45 दिन का समय प्रदान किया जा सकता है। 45 दिन के पश्चात समयावधि बढ़ाए जाने का विवेकाधिकार किसी उपभोक्ता मंच/आयोग में निहित नहीं है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेकों वादों में यह निर्धारित किया जा चुका है कि 45 दिन के पश्चात लिखित कथन शामिल मिसिल करने का आदेश देने का अधिकार उपभोक्ता मंच में निहित नहीं है। प्रस्तुत केस में भी लिखित कथन समयावधि से बाधित है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश विधिसम्मत रूप से पारित किया गया है, जिसमें हस्तक्षेप किए जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त किया जाता है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश
को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1