(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
(जिला मंच जौनपुर द्वारा परिवाद सं0 202/1994 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 09/10/1996 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1702/1996
स्टेट बैंक आफ इंडिया, ब्रांच किराकत, जिला जौनपुर द्वारा ब्रांच मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1- श्रीमती गायत्री देवी पत्नी श्री कैलाश नाथ।
2- श्रीमती निर्मला देवी पत्नी श्री बृजभूषण पाठक।
3- बृज भूषण पाठक पुत्र श्री कमला प्रसाद पाठक।
4- राकेश कुमार पाठक पुत्र श्री पारस नाथ पाठक।
5- कैलाश नाथ पाठक पुत्र श्री अम्बिका प्रसाद पाठक।
6- कमला प्रसाद पाठक पुत्र श्री रधुनाथ पाठक।
सभी निवासीगण व मौजा- कनौनी, किराकत, जिला जौनपुर। प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:
1. मा0 श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, पीठा0 सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य ।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 202/94 श्रीमती गायत्री देवी बनाम स्टेट आफ उत्तर प्रदेश जरिए जिलाधिकारी जिला फोरम जौनपुर के निर्णय/आदेश दिनांक 09/10/96 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है।
जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया कि मु0 500/ रूपये बतौर क्षतिपूर्ति परिवादी को तीन माह के अंदर अदा करे और परिवादीगण के विरूद्ध किसी भी प्रकार के उत्पीड़न कार्यवाही करके तथा कथित विवादित ऋण व ब्याज की वसूली के लिए गिरफ्तारी तथा उनकी संपत्ति की कुर्क व नीलामी न करें।
परिवादी का कथन संक्षेप में इस प्रकर है कि परिवादी एक स्कार्ट ट्रैक्टर कृषि कार्य हेतु 1986 में अग्रवाल आटो मोबाइल्स शेखपुर जौनपुर से खरीदा था तथा विपक्षी सं0 4 के यहा रूपया मु0 80,000/ की रकम पर फाइनेन्स कराया था। एग्रीमेन्ट का कागज बैंक विपक्षी सं0 4
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से अपने पास रख लिया था परिवादी के पास आठ-दस एकड़ भूमिधरी जमीन थी। विपक्षी नं0 4 से अपने पक्ष में बंधक करा लिया है तथा इसका भी कागजात विपक्षी सं0 4 ने अपने पास रख लिया है। विपक्षी ने फर्जी रकम मु0 40,160/- रूपये बकाया रकम व सूद के बकाया दिखाते हुए आर0सी0 की कार्यवाही परिवादीगण के विरूद्ध शुरू कर दिया है। परिवादीगण की जो भूमि विपक्षीगण के यहां बंधक शुदा है उसकी भी कार्यवाही शुरू कर दिया है। परिवादीगण के कथनानुसार परिवादीगण के भूमि की नीलामी की कार्यवाही चालू करा दिया जैसे कि आदेश दिनांक 03/09/91 से जाहिर होगा। परिवादीगण के कथनानुसार अपनी जायदाद की कार्यवाही के बाद विभिन्न तारीखों में कुल मु0 41,676/ रूपये विपक्षीगण के यहां जमा कर दिया है, रूपया जमा करनेका पूर्ण विवरण परिवादी के दफा-5 में दिया गया है। इस प्रकार परिवादीगण कहना है कि जिसमें कोई भी रकम देना नहीं है। फिर भी विपक्षी सं0 4 बिना कोई नोटिस जारी किये और बिना कोई स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट भेजे परिवादीगण के विरूद्ध बिलकुल विधि विरूद्ध तरीके से परिवादीगण से जबरजस्ती धांधली करके रकम मजबूर कर वसूलने के इरादे से उसके दरवाजे पर अपशब्दों का प्रयोग किये। परिवादीगण सामान्य परिवार के लोग हैं जिनका मौजा में अच्छी साख है अच्छी प्रतिष्ठ है। विपक्षीगण के नाजायज गिरफ्तारी की धमकी देने के कारण मौके पर काफी लोग एकत्रित हो गये और उत्तेजना फैली जिससे वे लोग वापस चले गये । वे लोग धमकी दिये कि परिवादीगण को बिना जेल भेजे चैन नहीं लेगे और उनको अपमानित करेंगे। ट्रैक्टर भी जबरदस्ती पुलिस की सहायता से खिचवा लेंगे।
विपक्षी सं0 4 ने अपना जवाब दाखिल किया जिसमें यह कहा कि परिवाद संधारणीय नहीं है एवं सबज्यूडिश है। ऋण की अदायगी छमाही किस्तों में जमा करनी थी परन्तु परिवादीगण ने अदायगी संविदा के शर्तों के अनुसार नहीं किया। फलस्वरूप संपूर्ण बकाये को वसूली हेतु जिलाधिकारी को वसूली प्रमाण पत्र भेजे गये थे जिसमें परिवादीगण के जिम्मे कुल बकाया 119160/ रूपये था जिसमें ब्याज दिनांक 21/04/89 तक ही शामिल था। परिवादीगण से बकाये की वसूली नियमानुसार की जा रही है। परिवादीगण किसी भी मद में कोई क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी नहीं है। परिवादीगण विपक्षी सं0 4 द्वारा वसूली प्रमाण पत्र जारी करने के पश्चात वसूली से बचने के लिए एक किता दावा मुन्सिफ शाहगंज में मुकदमा नं0 802/94 प्रस्तुत किया है जब वसूली प्रमाण पत्र के विरूद्ध स्थगन आदेश नहीं मिला तो परिवादीगण ने स्थगन आदेश प्राप्त करने हेतु अपील मा0 जिला न्यायाधीश के न्यायालय में प्रस्तुत किया जो आज भी जेर
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कार्यवाही है। इसके पश्चात वसूली से बचने के लिए एक याचिका मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दाखिल किया जिस पर मा0 उच्च न्यायालय ने संपूर्ण बकाया मय ब्याज किस्तों में अदा करने का आदेश दिया परन्तु परिवादीगण के मुताबिक आदेश संपूर्ण बकाया की अदायगी नहीं किया। परिवादी उत्तर प्रदेश कृषि उधार अधिनियम 11 से बाधित है। परिवाद उत्तर प्रदेश लोक धन वसूली अधिनियम की धारा 3 (4) (5) से बाधित है। परिवाद धारा 38 व 41 विशिष्ट अनुतोष अधिनियम से बाधित है। परिवाद धारा 183 भू राजस्व अधिनियम से बाधित है।
विपक्षी सं0 1 लगायत 3 की तरफ से जवाबदेही दाखिल करने हेतु कई बार मौका लिया गया लेकिन जवाबदेही दाखिल नहीं किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के बहस को विस्तार से सुना। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह मामला ऋण वसूली प्रमाण पत्र जारी करने से संबंधित है। परिवादी ऋण की धनराशि भुगतान करने में असफल रहा। यह मामला उपभोक्ता श्रेणी के अंतर्गत नहीं आता है। यह मामला सब ज्यूडिस है। परिवादी ने सिविल कोर्ट में नं0 802/1994 सिविल मुन्सिफ जौनपुर में दाखिल किया जिसमें स्थगन आदेश प्राप्त करने की याचना की। जो सिविल जज द्वारा खारिज कर दिया गया उसके पश्चात परिवादी ने जिला जज के समक्ष अपील प्रस्तुत की जो अभी तक विचाराधीन है। पहले से ही परिवादी ने रिट याचिका सं0 निल/1991 अपीलार्थी के विरूद्ध दाखिल किया जो मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के आदेश दिनांक 30/09/1991 को इस निर्देश के साथ शर्त उक्त आदेशित किया गया कि परिवादी चार किस्तों में देय धनराशि जमा करे। लेकिन परिवादी ने मा0 उच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किया। ऋण की धनराशि जमा नहीं किया। इसके बाद ऋण वसूली प्रमाण पत्र जारी हुआ परन्तु परिवादी ने ऋण की धनराशि नहीं जमा किया तथा जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया। जिला फोरम ने सभी तथ्यों की नजरअंदाज करते हुए निर्णय/आदेश दिया है जो विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
आधार अपील एवं संपूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया जिससे यह प्रतीत होता है कि परिवादी ने स्कार्ट ट्रैक्टर कृषि कार्य हेतु खरीदा था जो विपक्षी सं0 4 एसबीआई से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के बाद खरीदा था। परिवादी ने ऋण की देय धनराशि जमा नहीं कर सका
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जिसके खिलाफ ऋण वसूली की कार्यवाही शुरू की गई। ऋण की धनराशि न जमा करने के लिए सिविल कोर्ट में परिवाद दाखिल किया जो खारिज हो गया। तत्पश्चात जिला जज के समक्ष अपील प्रस्तुत किया जिसमें परिवादी को स्थगन आदेश प्राप्त नहीं हुआ। परिवादी ने एक रिट याचिका मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया। मा0 उच्च न्यायालय ने रिट याचिका इस शर्त के साथ निस्तारित करते हुए स्थगन आदेश जारी किया कि ऋण की धनराशि चार किस्तों में जमा की जाय। परिवादी ने मा0 उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया। जिला फोरम के सभी तथ्यों पर गंभीरता से विचार कर जो निर्णय दिया है विधि अनुकूल नहीं है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने टैक्सपो ट्रेडिंग लि0 बनाम दि फेडरल बैंक लि0, । (2002) सी0पी0जे0 31 (एन0सी0) में यह अवधारित किया है कि:-
On filing of this complaint on 17.4.2001 we issued notice to the bank for this day i.e. 15.10.2001. Written version of the bank has been filed. Admittedly the bank filed a suit for recovery of over Rs. 82.00 lakhs from the complainant which suit was filed on 31.8.2001 and is pending before the Debt Recovery tribunal under the Recovery of Debts Due to Banks & Financial Institutions Act, 1993 (for short “Act”) Mr. Krishnamani, learned senior Advocate for the complainant submitted that so far complainant has not filed written statement in the suit. Under section 18 of the Act jurisdiction of this commission is barred where the bank has filed suit. Defendant in that suit can claim set off or even counter claim against the bank under section 19 of the Act. Complainant would have ample opportunity to raise all the issues presented in the present complaint. That apart when we examined the complaint it raises complex questions both of facts and law which is not possible to decide in our summary jurisdiction. Then we also feel that this complaint has been filed more as a counter blast to the proposed action of the bank. No doubt this complaint has been filed four months earlier of filing of the suit by the bank before the Debt Recovery tribunal. But from that we cannot lose sight of the fact that the bank
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would have threatened the complainant for filing a suit and when such suit was imminent, complainant chose to file this complaint. We therefore, decline to entertain this complaint and return the same to the complainant to seek remedy, if any, elsewhere. This complainant is disposed of accordingly. Opposite party-bank shall be entitled to costs of these proceedings which we quantify at Rs. 5,000/-.
उपरोक्त विधि व्यवस्था के आलोक पर विचार करते हुए तथा तथ्य एवं परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि प्रश्नगत प्रकरण ऋण वसूली से संबंधित है। परिवादी के खिलाफ ऋण वसूली की कार्यवाही शुरू हो चुकी है तथा मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद (उ0प्र0) ने ऋण को चार किस्तों में जमा करने का आदेश दिया है जो विधि अनुकूल है। ऋण वसूली के खिलाफ परिवाद पोषणीय नहीं है। अपीलार्थी के अपील में बल पाया जाता है, जो स्वीकार करने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच जौनपुर द्वारा परिवाद सं0 202/1994 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 09/10/1996 निरस्त किया जाता है। उभय पक्ष अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे। इस निर्णय/आदेश की एक एक सत्य प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाय।
(चन्द्रभाल श्रीवास्तव) (संजय कुमार)
पीठा0 सदस्य सदस्य
सुभाष कोर्ट 2