(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 573/2019
उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा उपाध्यक्ष विपिन खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ व 06 अन्य
बनाम
श्रीमती गीता सिंह नेगी पत्नी स्व0 सुरेश सिंह नेगी निवासी-एम0आई0जी-1/731, विशाल खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ।
दिनांक :01-08-2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-254/2011 श्रीमती गीता सिंह नेंगी बनाम लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा उपाध्यक्ष व 06 अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 02-03-2019 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि वे परिवादिनी को भवन संख्या-एल-2/526 विनीत खण्ड गोमतीनगर, लखनऊ उसके पुराने मूल्य के अनुसार ही यदि राशि बकाया हो तो उसे लेकर उसका निबन्धन परिवादिनी के हक में परिवादिनी द्वारा सभी औपचारिकताऍं पूरी करने के 30 दिन के अंदर कर देंगे। परिवादिनी को निर्देश दिया जाता है कि वे परिवादिनी या उसके पति द्वारा जमा राशि की रसीदों को विपक्षीगण के कार्यालय में 30 दिन के अंदर प्राप्त करा देंगी, और यदि कोई राशि पुराने मूल्य के अनुसार परिवादिनी पर देय है तो विपक्षीगण की गणना के पश्चात उसके
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30 दिन के अंदर जमा करेंगी, एवं उसके 30 दिन के अंदर विपक्षीगण उसका निबन्धन परिवादिनी के हक में कर देंगे।‘’
विद्धान जिला आयोग के निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण व अन्य की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय अपास्त होने योग्य है क्योंकि सुरेश सिंह नेंगी आवंटी की मृत्यु दिनांक 10-08-1999 को होने के बाद आवंटित भवन के मूल्य की शेष राशि जमा नहीं की जा सकी। दिनांक 02-02-2009 को आवंटी (मृतक के स्थान पर) परिवादिनी का नाम दर्ज किया गया चूंकि परिवादी पर 1,54,000/-रू0 बकाया हो चुका था जिसका भुगतान नहीं किया जा सका इसलिए आवंटन विधि अनुसार निरस्त किया गया। परिवादिनी द्धारा आवेदन प्रस्तुत करने पर इस निरस्तीकरण के आदेश को प्राधिकरण के उपाध्यक्ष द्वारा इस शर्त के साथ बहाल किया गया कि वर्तमान में प्रचलित बाजरू भाव के अनुसार आवंटित भवन का मूल्य देय होगा, परन्तु जिला आयोग ने इन सब बिन्दुओं पर कोई विचार नहीं किया और भवन के मूल्य में दखलन्दाजी कर क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर निर्णय पारित किया है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री एस0 एन0 तिवारी उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री मालेश कुमार पाण्डेय उपस्थित आए।
उभयपक्षों के विद्धान अधिवक्तागण को सुना गया तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत केस में परिवादिनी के पति को भवन आवंटित किया गया और उनके द्वारा अपने जीवनकाल में भवन के मूल्य की अधिकांश राशि जमा भी की जा चुकी थी तथा प्राधिकरण द्वारा दिनांक 21-01-1997 को कब्जा प्रमाण पत्र भी जारी किया जा चुका था। भवन एक बार आवंटित हुआ और एक बार नवीन मूल्य अदा करने की शर्त पर पुन: बहाल किया गया अत: इन सब बिन्दुओं पर विस्तृत विवेचना करने की आवश्यकता नहीं है। इस अपील के निस्तारण के लिए एक मात्र विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या
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पुरातन मूल्य पर भवन आवंटित करने का आदेश देकर जिला आयोग ने भवन की कीमत में हस्तक्षेप किया है, तदनुसार स्वयं में निहित क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है।
परिवादिनी के पति श्री सुरेश सिंह नेगी (मृतक) को मकान संख्या-एल-2/526 विनीत खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ में आवंटित किया गया था। अपने जीवनकाल में प्राधिकरण की मांग के अनुसार उनके द्वारा समस्त धनराशि जमा की जाती रही। आवंटन पत्र के अनुसार मकान का मूल्य 1,19,400/-रू0 था और मृतक द्वारा 1,09,000/-रू0 जमा किये जा चुके हैं इस प्रकार बेसिक मूल्य की मामूली राशि बकाया रह गयी थी अत: मामूली रकम बकाया के स्थान पर नवीन मूल्य का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। नवीन मूल्य के आधार पर भवन को पुर्नजीवित करने से आवंटी के प्रति भवन के आवंटन का उद्देश्य ही विफल हो गया है। जब कोई आदेश अपास्त करते हुए पुन: भवन को पुर्नस्थापित किया जाता है तब पुर्नस्थापन का तात्पर्य यह है कि पुरातन शर्तों के आधार पर ही पुर्नस्थापन माना जायेगा। यदि तत्समय प्रचलित बाजारू मूल्य के अनुसार नवीन मूल्य के आधार पर भवन आवंटित किया जाता है तब भवन को निरस्त करने के आदेश को पुर्नस्थापन नहीं माना जा सकता अपितु नये आवंटी माना जायेगा और नये आवंटन हेतु परिवादी ने कोई अनुरोध नहीं किया है अत: जिला आयोग द्वारा भवन की कीमत में हस्तक्षेप नहीं किया गया है अपितु आवंटित भवन को निरस्त करने और पुर्नस्थापित करने की वैधानिकता की व्याख्या की गयी है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है और प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है कि वह पुरातन नियम/मूल्य के अनुसार परिवादी पर जो राशि देय है वह राशि पुरानी दर पर एक माह के अंदर परिवादिनी से जमा कराये जाने हेतु कार्यवाही करें और यदि परिवादिनी द्वारा पुरानी दर पर भवन की बकाया राशि एक माह के अंदर जमा नहीं की जाती है तब प्राधिकरण को नियमानुसार कार्यवाही करने का अधिकार प्राप्त होगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद स्वयं वहन करेंगे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
( न्यायमूर्ति अशोक कुमार ) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1