Uttar Pradesh

StateCommission

A/770/2019

Kanpur Development Authority - Complainant(s)

Versus

Smt. Geeta Sadana - Opp.Party(s)

Surya Kant Singh

08 Jun 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/770/2019
( Date of Filing : 17 Jun 2019 )
(Arisen out of Order Dated 27/04/2019 in Case No. C/500/2011 of District Kanpur Nagar)
 
1. Kanpur Development Authority
Through its Vice Chairman Motijheel Kanpur Nagar
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Geeta Sadana
W/O Late Darshan Kumar R/O 118/241 Kaushal Puri Kanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 08 Jun 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(सुरक्षित)                                                                                  

अपील संख्‍या:-770/2019

कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा उपाध्‍यक्ष

........... अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम              

श्रीमती गीता सडाना पत्‍नी स्‍व0 दर्शन कुमार, निवासिनी 118/241 कौशलपुरी, कानपुर।

…….. प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य                     

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता         : श्री सूर्य कान्‍त सिंह

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता           : श्री काशी नाथ शुक्‍ला

दिनांक :- 04.7.2023

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, अपीलार्थी/ कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा इस आयोग के सम्‍मुख धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्‍तर्गत जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-500/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.4.2019 के विरूद्ध योजित की गई है।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति (मृतक दौरान मुकदमा) को, जब अपीलार्थी/विपक्षी कानपुर विकास प्राधिकरण अस्तित्‍व में नहीं था, उस समय कानपुर नगर महापालिका द्वारा घोषित काकादेव स्‍कीम में प्‍लॉट को बुक कराने की स्‍कीम के अन्‍तर्गत प्‍लॉट प्राप्‍त करने हेतु मु0 400.00 रू0 आवंटन हेतु दिनांक 31.01.1964 में द्वारा बन्‍नो हाउसिंग सोसाइटी कौशलपुरी कानपुर नगर के माध्‍यम से जमा किया था। तत्‍पश्‍चात उपरोक्‍त भूमि को आवंटन के सम्‍बन्‍ध में सूचित किया गया था कि जिन व्‍यक्तियों ने प्‍लॉट आवंटन हेतु धनराशि नगर महापालिका में जमा की है, वह कानपुर विकास

-2-

प्राधिकरण के अस्तित्‍व में आने से पंजीकरण हेतु रू0 1100/- जमा करके पंजीकरण करा सकते हैं। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा उपरोक्‍त सूचना का अनुपालन करते हुए मु0 1100/- रू0 रसीद सं0-281 दिनांकित 22.8.1977 के द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी कानपुर विकास प्राधिकरण के कार्यालय में जमा की गई। परन्‍तु आज तक प्‍लॉट के आवंटन की सूचना प्राप्‍त नहीं हुई और न ही उक्‍त के सम्‍बन्‍ध में कोई पत्र अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रेषित किया गया।

तदोपरांत अपीलार्थी/विपक्षी कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा एक स्‍कीम निकाली गई, जिसमें यह प्रकाशित कराया गया कि वर्ष 1960 से 1975 के मध्‍य जिन जमाकर्ताओं ने प्‍लॉट आवंटन हेतु धनराशि जमा की है और अपना पंजीकरण कराया है, उनको प्‍लॉट आवंटित नहीं कर सके, उन्‍हें इस स्‍कीम के तहत भूमिखण्‍ड देने हेतु अतिशीघ्र प्‍लॉट उपलब्‍ध कराये जायेगें। जिस हेतु ऐसे अ‍भ्‍यर्थियों को रू0 1300.00 की धनराशि अतिरिक्‍त रूप से जमा करनी होगी। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा उपरोक्‍त सूचना के अनुपालन में रू0 1300.00 जरिये बैंक ड्राफ्ट सं0-टी-56283 दिनांक 20.12.1986 को भारतीय स्‍टेट बैंक शाखा मोतीझील, कानपुर नगर से जमा करा दिये गये। इस प्रकार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा अब तक रू0 2800.00 अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय में प्‍लॉट आवंटन हेतु जमा किये गये।

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति के प्‍लॉट आवंटन हेतु पूर्व स्‍कीम का परिवर्तन नयी स्‍कीम वर्ष-1960 से 75 के मध्‍य भूमिखण्‍ड हेतु अग्रिम धन जमाकर्ताओं के भूमिखण्‍ड हेतु अंकित कर दी गई। उपरोक्‍त स्‍कीम के अंतर्गत प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी प्‍लॉट पाने की अधिकारिणी है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति को काकादेव में भूमिखण्‍ड उपलब्‍ध कराने की व्‍यवस्‍था करायी गई थी, परन्‍तु परिवर्तित स्‍कीम के अनुसार

-3-

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति को डब्‍लू-1 व डब्‍लू-2 जूही में प्‍लॉट आवंटित करने हेतु स्‍कीम जारी की गई। उपरोक्‍त धनराशि जमा करने के बावजूद भूमिखण्‍ड का आवंटन नहीं किया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने एक पूर्व पत्र संयुक्‍त सचिव, कानपुर विकास प्राधिकरण को दिनांक 28.7.1992 को इस आशय का प्रेषित किया कि दैनिक समाचार पत्र की प्रकाशित विज्ञप्ति के अनुसार पुराने जमाकर्ताओं सहित उन्‍हें डब्‍लू-1 जूही स्‍कीम में भूमि आवंटन हेतु कहा गया और वे उक्‍त स्‍कीम के अंतर्गत आवंटन हेतु तत्‍पर व तैयार है। उक्‍त पत्र का अपीलार्थी/विपक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया न ही आवंटन सम्‍बन्‍धी कोई कार्यवाही की गई। तदोपरांत प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्‍तर्गत एक पत्र प्रेषित किया, जिसमें उपरोक्‍त आवंटन की सूचना मॉगी, जिसके उत्‍तर में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पत्र सं0-1892 दिनांकित 28.9.2010 दी गई, जिसमें प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति को सम्‍बोधित करते हुए कहा गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति पुराने जमाकर्ताओं की श्रेणी में आते है और उसके द्वारा जो धनराशि जमा की गई है वह विकास प्राधिकरण में जमा है, इस प्रकार वह भूमि आवंटन हेतु एक मात्र व्‍यक्ति है। तदोपरांत प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा पुन: एक पत्र सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्‍तर्गत अपीलार्थी/विपक्षी को भेजा गया जिसके उत्‍तर में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पत्र सं0-1305 दिनांकित 28.6.2010 इस आशय का प्रेषित किया गया कि विकास प्राधिकरण बोर्ड के निर्णय दिनांकित 12.02.1990 के अनुसार पुराने जमाकर्ताओं को भूलधन मय ब्‍याज डाकखाने की ब्‍याज दर सहित वापस पाने का अधिकार होगा। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी चाहे तो डाकखाने के ब्‍याज दर के हिसाब से अपना मूलधन वापस ले सकती है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा पुन: सूचना का अधिकार अधिनियम,

-4-

2005 के तहत अपीलार्थी/विपक्षी को पत्र भेजा गया, जिसके जवाब में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पत्र सं0-247 दिनांक 25.01.2011 इस आशय का दिया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा जमा की गई धनराशि ब्‍याज सहित वापस लौटायी जा सकती है। चूंकि बोर्ड के निर्णय के अनुसार पुराने जमाकर्ताओं को प्‍लांट नहीं दिया जायेगा। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा एक पूर्व नोटिस जरिये अधिवक्‍ता दिनांक 24.7.1999 को प्‍लॉट आवंटन की याचना करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को प्रेषित किया था। परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गई। अत: विवश होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख प्‍लॉट आवंटित किये जाने हेतु प्रस्‍तुत किया गया।

अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत कर परिवाद पत्र के कथनों को अस्‍वीकार करते हुए यह कथन किया गया कि चूंकि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा यह स्‍वीकार किया गया है कि उसे अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा कोई भूखण्‍ड आवंटित नहीं किया गया, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की कोई भी नोटिस अपीलार्थी/विपक्षी को प्राप्‍त नहीं हुई, न ही उसके द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी से सम्‍पर्क ही किया गया। यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी जमा धनराशि से सम्‍बन्धित मूल जमा रसीदें अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉ जमा करती है तब सम्‍यक सत्‍यापन के पश्‍चात प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को उसके द्वारा जमा धनराशि वापस कर दी जायेगी। परिवाद अत्‍यधिक कालबाधित है, अत्एव निरस्‍त होने योग्‍य है।

 

 

-5-

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍य पर विस्‍तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को आंशिक रूप से स्‍वीकार कर निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

"उपरोक्‍त कारणों से परिवादिनी का प्रस्‍तुत परिवाद, विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से इस आशय से स्‍वीकार किया जाता है कि प्रस्‍तुत निर्णय/आदेश पारित करने के 30 दिन के अन्‍दर विपक्षी, परिवादिनी को 200 वर्ग गज का भूखण्‍ड (Plot) वर्ष-1964 से 1987 के मध्‍य जारी स्‍कीमों के मुताबिक व उसी दर पर जूही W-1 कानपुर में यदि आज की तिथि में कोई स्‍कीम प्रचिलित न हो तो, कानपुर नगर की सीमा के अन्‍तर्गत वर्तमान में प्रचिलित स्‍कीम में उपलब्‍ध करावे तथा रू0 5,000.00 (पॉच हजार रू0) बतौर परिवाद व्‍यय अदा करें।" 

जिला उपभोक्‍ता आयोग के प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा प्रस्‍तुत अपील योजित की गई है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि वर्ष-1964 में प्रत्‍यर्थी द्वारा हाउसिंग सोसाइटी से मात्र प्‍लॉट बुक कराया गया था।

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि चूंकि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पक्ष में आवंटन पत्र जारी नहीं किया गया है, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है। यह भी कथन किया गया कि वर्ष-1964 में मात्र 400.00 रू0 बुकिंग धनराशि जमा किये जाने के आधार पर प्रश्‍नगत आवंटन को अब विचार में नहीं लिया जा सकता है। यह भी कथन किया गया कि परिवाद कालबाधित है

-6-

एवं इस तथ्‍य पर विचार न करते हुए जो निर्णय/आदेश जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित किया गया है, वह अनुचित है।

यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि के सम्‍बन्‍ध में मूल रसीदें अपीलार्थी को उपलब्‍ध नहीं करायी गई, जिससे कि उसके उपरोक्‍त आवंटन पर विचार किया जाता। अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा अपील स्‍वीकार कर जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्‍त किये जाने की प्रार्थना की गई।

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश तथ्‍य और विधि के अनुकूल है। यह भी कथन किया कि प्रत्‍यर्थी द्वारा वर्ष-1964 में 400.00 रू0 बुकिंग धनराशि के रूप में जमा किये गये तदोपरांत उसी योजना के अन्‍तर्गत समय-समय पर वर्ष-1977 में 1100/- रू0 जमा किये गये।

यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा एक स्‍कीम निकाली गई जिसमें यह प्रकाशित कराया गया कि वर्ष 1960 से 1975 के मध्‍य जिन जमाकर्ताओं ने प्‍लॉट आवंटन हेतु धनराशि जमा कर अपना पंजीकरण कराया है, उनको प्‍लॉट आवंटित नहीं हो सके है, उन्‍हें इस स्‍कीम के अन्‍तर्गत भूखण्‍ड/प्‍लॉट शीघ्र उपलब्‍ध कराये जायेगें, जिस हेतु 1300.00 रू0 की अतिरिक्‍त धनराशि वर्ष-1986 प्रत्‍यर्थी द्वारा जमा की गई। परन्‍तु फिर भी अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा आवंटन पत्र जारी नहीं किया गया।

यह भी कथन किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश जो कि वर्ष-2019 में पारित किया गया है और तब से आज तक प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश का अनुपालन अपीलार्थी

 

-7-

प्राधिकरण द्वारा सुनिश्चित नहीं किया गया है, जिससे प्रत्‍यर्थी को आर्थिक, मासिक एवं शारीरिक कष्‍ट झेलना पड़ रहा है।

हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍ता द्व्‍य तर्कों को विस्‍तार पूर्वक सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

प्रस्‍तुत प्रकरण में यह तथ्‍य निर्विवादित रूप से पाया जाता है कि प्रत्‍यर्थी द्वारा वर्ष-1964 में एक प्‍लॉट बुकिंग धनराशि जमा कर आवंटित कराया गया था और समय-समय पर उक्‍त प्‍लॉट के संदर्भ में प्रत्‍यर्थी द्वारा रूपया जमा किया जाता रहा, परन्‍तु अपीलार्थी प्राधिकरण द्वारा उक्‍त प्‍लॉट के आवंटन हेतु आवंटन पत्र प्रत्‍यर्थी के पक्ष में जारी नहीं किया गया, अत: विवश होकर प्रत्‍यर्थी द्वारा परिवाद प्रस्‍तुत किया गया। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपीलार्थी प्राधिकरण की सेवा में कमी को दृष्टिगत रखते परिवाद को आंशिक रूप से स्‍वीकार हुए 200 वर्ग गज का भूखण्‍ड जूही W-1 कानपुर में यदि आज की तिथि में कोई स्‍कीम प्रचिलित न हो तो, कानपुर नगर की सीमा के अन्‍तर्गत वर्तमान में प्रचिलित स्‍कीम के अन्‍तर्गत उपलब्‍ध कराये जाने हेतु आदेशित करते हुए वर्ष-2019 में निर्णय/आदेश पारित किया गया, जिसका अनुपालन अपीलार्थी/प्राधिकरण द्वारा सुनिश्चित न करते हुए प्रस्‍तुत अपील योजित कर दी गई।

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा मुख्‍य रूप से यह कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पक्ष में आवंटन पत्र जारी नहीं किया गया है, इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है। उपरोक्‍त तर्क के संदर्भ में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय प्रवीण कुमार बनाम देहली विकास प्राधिकरण (निगरानी सं0-3649/2014 आदेश दिनांक 18.3.2014) प्रासंगिक है, निर्णय के प्रस्‍तर-11 में मा0 राष्‍ट्रीय

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आयोग द्वारा यह दिया गया है कि बिल्‍डर द्वारा भवन का आवंटी तथा वह व्‍यक्ति जो पंजीकरण कराके आवंटन की प्रतीक्षा कर रहा है, धारा-2 (1) (d) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है।  

वर्तमान प्रकरण में यह पाया जाता है कि चूंकि अपीलार्थी द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का अनुपालन  विगत लगभग 58 वर्ष से अधिक का समय व्‍यतीत होने के उपरांत भी सुनिश्चित नहीं किया गया है, जो कि अपीलार्थी/प्राधिकरण द्वारा अपनायी गयी अनुचित व्‍यापार पद्धति एवं त्रुटिपूर्ण सेवाओं को प्रदर्शित करता है।

हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के कथनों को सुनने तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: विधि अनुकूल है तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा जो अनुतोष अपने प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को प्रदान किया गया है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपीलीय स्‍तर पर इंगित नहीं की जा सकी है, तद्नुसार अपील निरस्‍त की जाती है।

साथ ही अपीलार्थी/विकास प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है कि वह विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के उपरोक्‍त निर्णय/आदेश का शत-प्रतिशत रूप से अनुपालन एक माह की अवधि में सुनिश्चित करें, अन्‍यथा अपीलार्थी/विकास प्राधिकरण द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को

 

-9-

उपरोक्‍त आदेश का अनुपालन निर्धारित समयावधि में सुनिश्चित न किये जाने पर रू0 20,000.00 (बीस हजार रू0) विलम्‍ब हेतु हर्जाना भी देय होगा।

प्रस्‍तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित सम्‍बन्धित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

         (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)               (विकास सक्‍सेना)     

                  अध्‍यक्ष                                          सदस्‍य                                                                                       

 

हरीश सिंह,

वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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