(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 427/2019
1. Electricity Urban distribution division, Kanpur road, Indralok colony, Lucknow through its Executive engineer.
2. Uttar Pradesh Power corporation limited 4, Vikramaditya marg, Lucknow through its General Manager.
……….. Appellants
Versus
1. Smt. Beena mishra wife of Late Rajesh mishra.
2. Mohit mishra son of Late Rajesh mishra.
3. Tushar mishra son of Late Rajesh mishra.
Opposite party no. 1 to 3 are the resident of D-1384, EWS, Indira nagar, District-Lucknow.
4. Lucknow Development authority, Gomti Nagar, Lucknow through its Vice president.
5. Directorate electricity safety, Near-Pick-UP Building, Lucknow through its Sub-Divisional Officer.
……… Respondents
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री सुशील कुमार सदस्य।
एवं
अपील सं0- 382/2019
1. Smt. Beena mishra, W/o Late Rajesh mishra
2. Mohit mishra, S/o Late Rajesh mishra,
3. Tushar mishra, S/o Late Rajesh mishra, C/o D-1384, EWS, Indira nagar, Lucknow.
……….. Appellants
Versus
1. Upadyaksh, Lucknow Development authority, Vipin khand, Gomti Nagar, Opp. Fun Repuiblic mall, Lucknow.
2. Mahaprabandhak, U.P. Power corporation, 4- Vikrmaditya marg, Lucknow.
3. Upkhand adhikari, Nideshak, Vidhyt Suraksha nideshalaya, Near Pic UP Bhawan, Vibhuti khand, Gomti nagar, Lucknow.
4. Adhisashi abhiyantra, Vidyut nagariay vitran khand, Kanpur-road, Indra lok colony, Lucknow.
……Respondents
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री सुशील कुमार सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 4 की ओर : श्री संतोष कुमार मिश्रा,
से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 22.10.2020
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 09/2008 श्रीमती बीना मिश्रा व दो अन्य बनाम उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण गोमती नगर, लखनऊ व तीन अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 22.02.2019 के विरुद्ध उपरोक्त अपील सं0- 382/2019 परिवादगण श्रीमती बीना मिश्रा आदि ने और उपरोक्त अपील सं0- 427/2019 इलेक्ट्रिसिटी अर्बन डिस्ट्रिब्यूशन डिवीजन व एक अन्य बनाम श्रीमती बीना मिश्रा आदि परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 और 4 की ओर से धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या- 2, 3 एवं 4 को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादीगण को मुबलिग 10,00,000/-क्षतिपूर्ति 09 प्रतिशत ब्याज के साथ वाद दायर करने की तिथि से 60 दिन के अन्दर अदा करेंगे। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो सम्पूर्ण राशि 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करेंगे। विपक्षी संख्या- 01 के विरुद्ध वाद खारिज किया जाता है।‘’
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से परिवादीगण संतुष्ट नहीं हैं और उन्होंने उपरोक्त अपील प्रस्तुत कर जिला फोरम द्वारा प्रदान की गई क्षतिपूर्ति की धनराशि में बढ़ोत्तरी करने तथा ब्याज और वाद व्यय दिलाने का निवेदन किया है।
परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 और 4 ने उपरोक्त अपील प्रस्तुत कर जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त किये जाने का निवेदन किया है।
दोनों अपील में परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव और उपरोक्त विपक्षीगण सं0- 2 ता 4 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार मिश्रा उपस्थित आये हैं।
दोनों अपील में परिवाद के विपक्षी सं0- 1 उपाध्यक्ष लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है, जब कि उन्हें नोटिस रजिस्टर्ड डाक से दोनों अपील में भेजी गई है जो अदम तामील वापस नहीं आयी है अत: 30 दिन का समय पूरा होने के पश्चात नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है।
उपरोक्त अपील सं0- 382/2019 में प्रत्यर्थी सं0- 3 उपखण्ड अधिकारी निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय की ओर से भी विद्वान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार उपस्थित हुए हैं।
उपरोक्त अपील सं0- 427/2019 में प्रत्यर्थी सं0- 5 को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजी गई है जो अदम तामील वापस नहीं आयी है, अत: उस पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है, परन्तु प्रत्यर्थी सं0- 5 Directorate electricity safety की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
हमने दोनों अपील में परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव और परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 व 4 के विद्वान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार मिश्रा के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
दोनों अपील में परिवादीगण और परिवाद के उपरोक्त विपक्षीगण की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया है। हमने लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरुद्ध प्रस्तुत की गई हैं। अत: दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ संयुक्त निर्णय के द्वारा किया जा रहा है।
दोनों अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादीगण श्रीमती बीना मिश्रा, मोहित मिश्रा और तुषार मिश्रा ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण, महाप्रबंधक उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन, उपखण्ड अधिकारी निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय और अधिशासी अभियंता विद्युत नगरीय वितरण खण्ड के विरुद्ध जिला फोरम प्रथम, लखनऊ के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादिनी सं0- 1 के पति एवं परिवादीगण सं0- 2 व 3 के पिता श्री राजेश मिश्रा ने लखनऊ विकास प्राधिकरण की शारदा नगर योजना के अंतर्गत रजनी खण्ड के भवन सं0- 2/31 को भवन स्वामी से किराये पर रहने हेतु लिया था और वे दि0 20.09.2002 को बच्चों के साथ रहने आये, परन्तु उस दिन सामान अस्त-व्यस्त होने के कारण रात में प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति श्री राजेश मिश्रा को रात में छत पर सोना पड़ा और जब वह रात में पेशाब करने जा रहे थे तभी मकान के ऊपर से गुजर रही अवैध हाईटेंशन विद्युत के तारों में चिपकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई जिसकी सूचना थाना आसियाना में दी गई और मृतक राजेश मिश्रा के शव का शव विच्छेदन दि0 21.09.2002 को के0जी0एम0सी0 में कराया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादिनी सं0- 1 के पति व परिवादीगण सं0- 2 व 3 के पिता श्री राजेश मिश्रा मे0 पारस इण्टरप्राइजेज के प्रोपराइटर थे और मे0 पारस इण्टरप्राइजेज उ0प्र0 आवास विकास परिषद उ0प्र0, लखनऊ में श्रेणी- 3 के कार्य कराने हेतु पंजीकृत थी। श्री राजेश मिश्रा की ठेकेदारी से होने वाली मासिक आय 10,000/-रू0 थी।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि मकान के ऊपर से गुजर रही अवैध हाईटेंशन विद्युत तारों को हटाने के लिए विपक्षी सं0- 1 उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण को दि0 28.08.2002 को कालोनी वासियों ने प्रार्थना पत्र दिया था, परन्तु तारा हटाया नहीं गया। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादिनी सं0- 1 के पति व परिवादीगण सं0- 2 व 3 के पिता श्री राजेश मिश्रा की मृत्यु के बाद सूचना परिवाद के विपक्षीगण को दी गई और क्षतिपूर्ति की मॉंग की गई तब निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय, लखनऊ द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण को दोषी मानते हुए क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया गया। परिवादिनी सं0- 1 ने अन्य विपक्षीगण से भी क्षतिपूर्ति की मॉंग की, परन्तु कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी गई तब विवश होकर परिवादीगण ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
क. यह कि प्रतिवादीगणों से परिवादीगणों को रूपया 12 लाख क्षतिपूर्ति राशि दिलायी जाने का आदेश पारित करने।
ख. यह कि प्रतिवादी के विरुद्ध तथा परिवादीगणों के पक्ष में
ग. यह कि अन्य कोई अनुतोष जो न्यायालय श्रीमान उचित समझें पारित करें।
जिला फोरम के समक्ष परिवाद के विपक्षी सं0- 1 उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है जिसमें कहा गया है कि परिवादीगण ने जिस भवन सं0- 2/31 रजनी खण्ड के आवंटी से भवन किराये पर लेने की बात की है उसका नाम नहीं बताया है और न ही अनुबंध पत्र दाखिल किया है। लिखित कथन में विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कहा है कि परिवादिनी जिस भवन को किराये पर लेने की बात कर रही है उस पर कोई हाईटेंशन लाईन नहीं है। उस भवन से 7 भवनों के बाद भवन सं0- 2/23 से 2/25 के मध्य हाईटेंशन लाईन गुजर रही थी यह हाईटेंशन लाईन विकास प्राधिकरण ने निर्मित नहीं की थी। निर्माण करने के पूर्व से यह लाईन थी। इसके साथ ही विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कहा है कि यदि हाईटेंशन लाईन इतने नीचे से गुजरती तो वहॉं पर भवन सं0- 2/31 व अन्य भवनों का निर्माण नहीं कराया जा सकता था।
लिखित कथन में विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कहा है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण का कार्य विद्युत, सुरक्षा निदेशालय में पंजीकृत ठेकेदारों से कराया जाता है और कार्य सम्पादन के उपरांत यू0पी0पी0सी0एल0 को सुपरवीजन चार्ज के भुगतान के उपरांत विद्युत सुरक्षा की जॉंच के बाद कार्य हस्तगत कराया जाता है। लिखित कथन में विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कहा है कि परिवादीगण ने परिवाद पत्र में घटना दि0 20/21.09.2009 की गलत अंकित की है। घटना 2002 की है और परिवाद वर्ष 2008 में दाखिल किया गया है, अत: परिवाद कालबाधित है। इसके साथ ही विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से कहा गया है कि परिवादीगण उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं।
परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 क्रमश: महाप्रबंधक उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन, उपखण्ड अधिकारी निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय और अधिशासी अभियंता विद्युत नगरीय वितरण खण्ड की ओर से संयुक्त लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवाद पत्र में कथित दुर्घटना भवन सं0- 2/31 में नहीं हुई है जैसा कि विद्युत सुरक्षा निदेशालय की रिपोर्ट से स्पष्ट है। विद्युत सुरक्षा निदेशालय की रिपोर्ट में दुर्घटना स्थल मकान सं0- 2/23 अंकित है।
लिखित कथन में विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 ने यह भी कहा है कि वाद का कारण दि0 20.09.2002 को पैदा हुआ है जब कि परिवाद वर्ष 2008 में प्रस्तुत किया गया है। अत: परिवाद कालबाधित है। लिखित कथन में उन्होंने यह भी कहा है कि भवन सं0- 2/31 के स्वामी श्री अनिल कुमार सिंह राठौर हैं उनके द्वारा स्पष्ट किया गया है कि श्रीमती बीना मिश्रा को वह नहीं जानते हैं और उनके मकान में वह कभी नहीं रही हैं। इसके साथ ही विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 ने लिखित कथन में यह भी कहा है कि परिवादीगण उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं और उपभोक्ता फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि परिवादीगण उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं और दुर्घटना हेतु विद्युत विभाग उत्तरदायी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने जो 10,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रदान की है वह कम है। जिला फोरम का निर्णय संशोधित करते हुए परिवाद पत्र में याचित क्षतिपूर्ति प्रदान की जाए और आदेशित धनराशि पर ब्याज दिलाया जाए। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 और 4 की ओर से प्रस्तुत अपील बलरहित है और निरस्त किये जाने योग्य है।
परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 व 4 की ओर से प्रस्तुत अपील में उनके विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य एवं विधि के विरुद्ध है। प्रश्नगत दुर्घटना हेतु अपीलार्थी विपक्षीगण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। प्रश्नगत दुर्घटना अपीलार्थी विपक्षीगण की लापरवाही का परिणाम नहीं है। अपीलार्थी विपक्षीगण की हाईटेंशन लाईन पहले से स्थापित थी और उसके नीचे निर्माण विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा कराया गया है जिसके लिए अपीलार्थी विपक्षीगण उत्तरदायी नहीं हैं।
अपीलार्थी विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्युत सुरक्षा निदेशालय द्वारा की गई जॉंच में भी दुर्घटना हेतु लखनऊ विकास प्राधिकरण को उत्तरदायी माना गया है। अत: जिला फोरम ने जो अपीलार्थी विपक्षीगण के विरुद्ध आदेश पारित किया है उसे अपास्त किया जाए।
हमने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं कृते निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय की जॉंच आख्या से स्पष्ट है कि यह तथ्य अविवादित है कि दि0 20/21.09.2002 की रात में प्रत्यर्थी/परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति और प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3 के पिता श्री राजेश मिश्रा की मृत्यु हाईटेंशन विद्युत लाईन के स्पर्श होने के कारण करण्ट लगने से हुई है। निदेशक विद्युत सुरक्षा उ0प्र0 शासन की जॉंच से यह स्पष्ट है कि यह दुर्घटना लखनऊ विकास प्राधिकरण की शारदा नगर योजना के अंतर्गत रजनी खण्ड की भवन सं0- 2/23 की छत पर हुई है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति श्री राजेश मिश्रा ने भवन सं0- 2/31 लखनऊ विकास प्राधिकरण की शारदा नगर योजना के रजनी खण्ड में किराये पर रहने हेतु लिया था और उक्त भवन में रहने हेतु गये थे, परन्तु सामान अस्त-व्यस्त होने के कारण वह ऊपर छत पर सोने गये थे और रात में जब पेशाब करने उठे तब हाईटेंशन लाईन से स्पर्श होने के कारण करण्ट लगने से उनकी मृत्यु हो गई। परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 और 4 जो अपील सं0- 427 वर्ष 2019 के अपीलार्थीगण हैं के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क किया है कि भवन सं0- 2/31 के स्वामी अनिल कुमार सिंह राठौर ने लिखित रूप से दिया है कि वह मकान नं0- 2/31 रजनी खण्ड, शारदा नगर योजना के मालिक हैं। उनके इस मकान में श्रीमती बीना मिश्रा कभी न रही हैं और न वह उन्हें जानते हैं न उनके मकान के ऊपर हाईटेंशन लाईन थी। अत: भवन सं0- 2/31 श्रीमती बीना मिश्रा या उनके पति द्वारा किराये पर लिये जाने का कथन गलत है।
हमने अपीलार्थीगण जो परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 व 4 हैं अर्थात विद्युत विभाग के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र में भवन सं0- 2/31 रजनी खण्ड शारदा नगर योजना परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति श्री राजेश मिश्रा द्वारा किराये पर लिया जाना अभिकथित है। भवन किराये पर लिये जाने का कोई साक्ष्य परिवादीगण ने प्रस्तुत नहीं किया है। निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय की जॉंच से स्पष्ट है कि परिवादिनी सं0- 1 के पति श्री राजेश मिश्रा की मृत्यु शारदा नगर योजना रजनी खण्ड के भवन सं0- 2/23 की छत पर हाईटेंशन वायर्स के स्पर्श होने के कारण करण्ट लगने से हुई है। मृतक राजेश मिश्रा के शव का पंचनामा भी कराया गया है और पोस्टमार्टम भी कराया गया है। अत: परिवाद पत्र में कथित दुर्घटना के समय परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति श्री राजेश मिश्रा के भवन सं0- 2/23 छत पर होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह अभिकथित नहीं है कि परिवादिनी सं0- 1 के पति श्री राजेश मिश्रा दुर्घटना के समय भवन सं0- 2/23 की छत पर अनाधिकृत रूप से फ्लैट स्वामी की अनुमति या सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध गये थे। अन्यथा साबित न किये जाने पर यह माना जायेगा कि मृतक श्री राजेश मिश्रा भवन सं0- 2/23 की छत पर दुर्घटना के समय मकान मालिक की स्वीकृति, सहमति या अनुमति से गये थे और छत का प्रयोग कर रहे थे। परिवाद में विपक्षीगण ने ऐसा कोई साक्ष्य या भवन सं0- 2/23 के स्वामी का शपथ पत्र प्रस्तुत कर यह साबित नहीं किया है कि मृतक राजेश मिश्रा भवन सं0- 2/23 की छत पर भवन स्वामी की अनुमति या सहमति से नहीं गया था। वह Trespasser था। न ही ऐसा कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन में किया गया है।
उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(7) और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)d दोनों में उपभोक्ता की समान परिभाषा दी गई है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)d और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(7) दोनों के द्वितीय भाग से स्पष्ट है कि प्रतिफल के बदले सेवा प्राप्त करने वाले व्यक्ति के साथ ही उक्त सेवा का कोई Benificiary भी उपभोक्ता होगा।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम एम0के0 गुप्ता (1994) 1 S.C.C. 243 के निर्णय में यह माना है कि भवन निर्माण कर बिक्री किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)(O) के अंतर्गत सेवा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(42) में भी सेवा को उसी प्रकार परिभाषित किया गया है जैसे धारा 2(1)O उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में।
शारदा नगर योजना रजनी खण्ड के प्रश्नगत फ्लैट लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा निर्मित है और विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधीन व देखरेख में इन फ्लैटों का निर्माण किया गया है तथा लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा ही इन फ्लैटों को प्रतिफल के बदले आवंटियों को दिया गया है। अत: इन फ्लैटों को आवंटियों (क्रेताओं) की अनुमति या सहमति या स्वीकृति से प्रयोग करने वाले व्यक्ति भी लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपभोक्ता माने जायेंगे। ऐसी स्थिति में परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति मृतक राजेश मिश्रा भी विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण की सेवा के उपभोक्ता थे और माने जायेंगे। निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय की जॉंच एवं परिवाद में विपक्षी लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन के अभिकथन से स्पष्ट है कि प्रश्नगत फ्लैट 2/23 की छत के ऊपर से हाईटेंशन लाईन प्रश्नगत छत के निर्माण के पहले से थी और उस हाईटेंशन लाईन के हटाये बिना फ्लैट का निर्माण किया गया है और फ्लैट आवंटित कर बिक्री किया गया है। छत पर गये परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति श्री राजेश मिश्रा का हाईटेंशन वायर से स्पर्श होना ही इस बात का प्रमाण है कि हाईटेंशन तार की ऊँचाई छत से अधिक नहीं थी और छत पर गये व्यक्ति के तार से स्पर्श होने की सम्भावना थी, फिर भी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने फ्लैट का निर्माण कर आवासीय उद्देश्य से उसे आवंटियों को हस्तगत किया है। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने प्रश्नगत फ्लैट के निर्माण हेतु विद्युत विभाग का कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत लखनऊ विकास प्राधिकरण की सेवा में कमी मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है। निदेशक विद्युत सुरक्षा निदेशालय ने जॉंच में लखनऊ विकास प्राधिकरण को जो प्रश्नगत दुर्घटना हेतु दोषी माना है वह आधारयुक्त और उचित है। निदेशक विद्युत सुरक्षा ने पत्र दि0 17.06.2004 सचिव विकास प्राधिकरण लखनऊ को सुरक्षा निदेशक की जॉंच में लखनऊ विकास प्राधिकरण को दोषी पाये जाने के कारण मृतक की पत्नी परिवादिनी को क्षतिपूर्ति का अधिकारी मानते हुए प्रेषित किया है, परन्तु लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कोई क्षतिपूर्ति परिवादीगण को नहीं दी है और न ही सुरक्षा निदेशक की आख्या अस्वीकार करने की सूचना परिवादीगण को दी है। अत: परिवाद काल बाधित नहीं है।
उपरोक्त विवेचना और सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत हम इस मत के हैं कि प्रश्नगत दुर्घटना लखनऊ विकास प्राधिकरण की लापरवाही और चूक का परिणाम है। लखनऊ विकास प्राधिकरण की सेवा में कमी के कारण परिवादिनी सं0- 1 श्रीमती बीना मिश्रा के पति श्री राजेश मिश्रा जो दुर्घटना के समय भवन सं0- 2/23 रजनी खण्ड शारदा नगर योजना की छत पर गये थे हाईटेंशन वायर के सम्पर्क में आये हैं और उनकी मृत्यु हुई है। अत: हम इस मत के हैं कि जिला आयोग ने जो परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 ता 4 की अर्थात विद्युत विभाग की लापरवाही और सेवा में कमी कथित दुर्घटना का कारण माना है वह उचित नहीं है। वास्तव में यह दुर्घटना लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी जो परिवाद में विपक्षी सं0- 1 और अपील सं0- 427/2019 में प्रत्यर्थी सं0- 4 एवं अपील सं0- 382/2019 में प्रत्यर्थी सं0- 1 है की सेवा में कमी और चूक के कारण घटित हुई है। अत: परिवादीगण को मृतक राजेश मिश्रा की मृत्यु हेतु क्षतिपूर्ति लखनऊ विकास प्राधिकरण से दिलाया जाना और विद्युत विभाग को क्षतिपूर्ति के भुगतान के दायित्व से उन्मुक्त किया जाना विधि की दृष्टि से उचित है।
जिला आयोग ने जो परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 अर्थात विद्युत विभाग को क्षतिपूर्ति देने हेतु आदेशित किया है वह उपरोक्त विवेचना के अनुसार उचित और विधि सम्मत नहीं दिखता है।
पन्ना लाल बनाम स्टेट आफ बाम्बे A.I.R. 1963 S.C. 1516 के निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश 41 नियम 33 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपीलीय न्यायालय के अधिकार के सम्बन्ध में निम्न मत व्यक्त किया है;
“Appellate court can make what ever order it thinks fit not only as between appellants and respondents but also as between respondents and respondents“
आदेश 41 नियम 33 के व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधान एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए हम इस मत के हैं कि परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2 और 4 की ओर से प्रस्तुत अपील सं0- 427/2019 को स्वीकार किया जाए और परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 को क्षतिपूर्ति की धनराशि परिवादीगण को अदा करने के दायित्व से उन्मुक्त करते हुए क्षतिपूर्ति की धनराशि परिवादीगण को परिवाद के विपक्षी सं0- 1 लखनऊ विकास प्राधिकरण जो इस अपील में प्रत्यर्थी सं0- 4 है से दिलायी जाए। हमारी राय में विद्युत विभाग की अपील सं0- 427/2019 तदनुसार स्वीकार किये जाने योग्य है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश तदनुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
परिवादीगण ने परिवाद पत्र में कुल क्षतिपूर्ति 12,00,000/-रू0 मॉंगा है जब कि जिला आयोग ने आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा 10,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रदान की है। परिवादीगण द्वारा याचित क्षतिपूर्ति को देखते हुए जिला आयोग द्वारा प्रदान की गई धनराशि 10,00,000/-रू0 उचित प्रतीत होती है।
परिवाद वर्ष 2008 में परिवादीगण ने प्रस्तुत किया है। 12 वर्ष बीतने के बाद भी उन्हें क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं हुई है। अत: उचित प्रतीत होता है कि परिवादीगण को क्षतिपूर्ति की धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया जाए। अत: परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत अपील सं0- 382/2019 तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है और जिला आयोग द्वारा पारित आदेश तदनुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
जिला आयोग ने जो 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अपने निर्णय से 60 दिन के अन्दर भुगतान न करने पर दिया है उसे अपास्त करते हुए ब्याज उपरोक्त प्रकार से दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील सं0- 427/2019 इलेक्ट्रिसिटी अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन व एक अन्य बनाम श्रीमती बीना मिश्रा आदि स्वीकार की जाती है और जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश संशोधित करते हुए इस अपील के अपीलार्थीगण सं0- 1 व 2 एवं प्रत्यर्थी सं0- 5 अर्थात परिवाद के विपक्षीगण सं0- 2, 3 व 4 को जिला आयोग द्वारा आदेशित क्षतिपूर्ति की धनराशि के भुगतान के दायित्व से उन्मुक्त किया जाता है और अपील के प्रत्यर्थी सं0- 4 लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी अर्थात परिवाद के विपक्षी सं0- 1 को आदेशित धनराशि के भुगतान हेतु उत्तरदायी ठहराया जाता है।
परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत अपील सं0- 382/2019 श्रीमती बीना मिश्रा आदि बनाम उपाध्यक्ष लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी आदि आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला आयोग का आदेश संशोधित करते हुए आदेशित किया जाता है कि उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण जो इस अपील में प्रत्यर्थी सं0- 1 हैं और परिवाद में विपक्षी सं0- 1 हैं, इस अपील के अपीलार्थीगण अर्थात परिवाद के परिवादीगण को 10,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज के साथ अदा करें।
दोनों अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील सं0- 427/2019 में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज के साथ इस अपील के अपीलार्थीगण को वापस की जायेगी।
इस निर्णय की मूल प्रति अपील सं0- 427/2019 में रखी जाए एवं इसकी प्रमाणित प्रति अपील सं0- 382/2019 में रखी जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1