Uttar Pradesh

StateCommission

A/1999/2733

Meerut Development Authority - Complainant(s)

Versus

Smt. Alka Goel - Opp.Party(s)

B P Dubey

21 Dec 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1999/2733
( Date of Filing : 06 Oct 1999 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Meerut Development Authority
Meerut
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt. Alka Goel
Meerut
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 21 Dec 2021
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

 

अपील संख्‍या :2733/1999

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-528/1997 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 31-08-1999 के विरूद्ध)

 

मेरठ विकास प्राधिकरण, मेरठ द्वारा सचिव।

.....अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

 

श्रीमती अल्‍का गोयल पत्‍नी श्री संजीव कुमार गोयल निवासी-52, बाग मदरसा, प्रभात नगर, जिला मेरठ।

  •  

     समक्ष  :-

  1. मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार,      अध्‍यक्ष।

उपस्थिति :

     अपीलार्थी की ओर से उपस्थित-        कोई नहीं।

     प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित-              कोई नहीं।

 

दिनांक : 21-12-2021

 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष  द्वारा उदघोषित निर्णय

 

       परिवाद संख्‍या-528/1997 श्रीमती अल्‍का गोयल बनाम् मेरठ विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनां‍क 31-08-1999 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

 

 

 

2

      आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है :-

       ‘’एतद् द्वारा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी राशि जमा करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 15 प्रतिशत ब्‍याज के साथ एक माह में अदा करें। इसके अतिरिक्‍त पॉंच सौ रूपये इस परिवाद का खर्चा अदा करें। ‘’

       विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी मेरठ विकास प्राधिकरण की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की है।

       अपील की सुनवाई के समय उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण अनुपस्थित है। यह अपील इस न्‍यायालय के सम्‍मुख विगत 22 वर्षों से लम्बित है। अत: इस अपील का निस्‍तारण गुणदोष के आधार पर उभयपक्ष की अनुप‍स्थिति में किया जा रहा है।

       मेरे द्वारा जिला आयोग द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

       संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादिनी ने शताब्‍दी नगर योजना में एक भवन हेतु आवेदन किया और आवेदन के समय दिनांक 14-08-1989 को तीन हजार रूपये जमा किये। परिवादिनी  ने दिनांक 08-11-1989 को चार हजार रूपये आरक्षण राशि के रूप में जमा की। परिवादिनी को भवन संख्‍या-सी-185 सेक्‍टर, एक में आवंटित किया गया। परिवादिनी ने दिनांक 30-05-1992 को चार हजार रूपये जमा किये। परिवादिनी को विपक्षी का पत्र दिनांक 09-06-1992 प्राप्‍त हुआ  किन्‍तु उस पत्र में परिवादिनी द्वारा दिनांक 08-11-1989 को जमा की राशि चार हजार रूपये को दर्शित नहीं किया गया। परिवादिनी ने वर्ष 1993 में विपक्षी को सूचित किया कि उसके द्वारा चार हजार रूपये की राशि जमा की गयी है। परिवादिनी ने विपक्षी से भवन का कब्‍जा मांगा जिस पर विपक्षी ने परिवादिनी द्वारा जमा की गयी राशि को स्‍वीकार किया और दिनांक 28-07-1993 को 2010/-रू0 जमा कराये और चार किश्‍तें दिनांक 06-02-1996 को जमा करायी जिनमें ब्‍याज की राशि भी शामिल थी। इन्‍द्राजों में एक किश्‍त अंकन 7,432/-रू0 की, दूसरी किश्‍त 6,157/-रू0 की, तीसरी किश्‍त 6776/-रू0 की तथा चौथी किश्‍त अंकन 5547/-रू0 की थी। परिवादिनी  ने उक्‍त किश्‍तों

 

 

-3-

की राशि जमा करने के पश्‍चात आवंटन जारी रखने की प्रार्थना की और यह भी प्रार्थना की, कि आवंटन उनके स्‍थान पर उनके पति के नाम कर दिया जावे, किन्‍तु विपक्षी द्वारा कोई उत्‍तर नहीं दिया गया। परिवादिनी  ने स्‍थल पर जाकर देखा तो पाया कि वहॉं कोई  विकास कार्य नहीं किया गया है और वहॉं पर धास खड़ी है तथा मकान में कोई रह नहीं रहा है और मकानों पर नाजायज कब्‍जा कर लिया गया है और उसे आवंटित भवन रहने लायक नहीं है। अत: परिवादी ने अपनी जमा धनराशि वापस मांगे जाने तथा क्षतिपूर्ति व वाद व्‍यय दिलाये जाने  हेतु यह परिवाद प्रस्‍तुत किया है। 

  विपक्षी ने अपने लिखित वादोत्‍तर में परिवादिनी  द्वारा जमा की गयी राशि को स्‍वीकार किया है। विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादिनी ने अपने पति का नाम बदलवाने के लिए औपचारिकताऍं पूरी नहीं की इसलिए भवन उनके पति के नाम आवंटित नहीं किया जा सका। आवंटित भवन पूर्णरूप से विकसित है और परिवादिनी  को कब्‍जा लेने हेतु सूचना दी गयी है किन्‍तु परिवादिनी ने इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की और परिवादिनी जानबूझकर कब्‍जा लेना नहीं चाहती है और यदि परिवादिनी अपनी जमा धनराशि वापस चाहती है तो आवश्‍यक कटौती करने के पश्‍चात वह अपनी जमा धनराशि वापस प्राप्‍त कर सकती है।

       विद्धान जिला आयोग ने उभयपक्ष को विस्‍तार से सुनकर तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध प्रपत्रों का परिशीलन करने के पश्‍चात निर्णय पारित किया है।

       हमने विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय का अवलोकन किया।

       हमारे विचार से विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में कोई त्रुटि नहीं है किन्‍तु विद्धान जिला आयोग द्वारा जो 15 प्रतिशत ब्‍याज की देयता विपक्षी प्राधिकरण पर निर्धारित की है वह अत्‍यधित है और मेरे विचार से उसे संशोधित करते हुए 09 प्रतिशत किया जाना न्‍यायोचित है।

   तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार  किये जाने योग्‍य है।

आदेश

       अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को संशोधित करते हुए ब्‍याज

 

-4-

 

की देयता 15 प्रतिशत ब्‍याज के स्‍थान पर 09 प्रतिशत की जाती है। निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।

       उक्‍त आदेश का अनुपालन विपक्षीगण द्वारा एक माह की अवधि में किया जावे।

  अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

    अध्‍यक्ष

प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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