Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :-636/2007 (जिला उपभोक्ता आयोग, जे0पी0 नगर (अमरोहा) द्वारा परिवाद सं0-82/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17/02/2007 के विरूद्ध) - Life Insurance Corporation of India, through its Branch manager, Life Insurance Corporation of India, Station Road, Amroha, District Jyotiba Phule nagar.
- Chairman, Life Insurance Corporation of India, Yogekshema, Jeewan Beema Marg, Post Box No. 19953 Mumbai 400002.
- Divisional Manager (Claim), Life Insurance Corporation of India Jeewan Prakash, Prabhat nagar, Post Box No. 69, Meerut-250001.
- Appellants
Versus Smt. Vimla Jain, Wife of Late Sri Abhinandan Kumar Jain, R/O Bazar jat Amroha, District Jyotiba Phule nagar. समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री अरविन्द तिलहरी प्रत्यर्थी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री अशोक मेहरोत्रा एवं श्री आलोक सिन्हा दिनांक:- 25.10.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, जे0पी0 नगर (अमरोहा) द्वारा परिवाद सं0-82/2001 श्रीमती विमला जैन बनाम जीवन बीमा निगम में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17/02/2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमाधारक की मृत्यु पर देय बीमा राशि 06 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है, परंतु जो राशि अंकन 82,538/-रू0 अदा कर दी गयी है, उस पर कोई ब्याज देय नहीं होगा। मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 10,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 1,500/-रू0 अदा करने के लिए भी आदेशित किया जाता है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति मृतक अभिनन्दन कुमार जैन द्वारा दिनांक 28.05.1985 को 75,000/-रू0 की एक पॉलिसी प्राप्त की थी। यह पॉलिसी परिवादी तथा श्रीमती निरूपमा जैन द्वारा लिये गये गृह ऋण की सुरक्षा में गिरवी रखी गयी, इसलिए जे0पी0 नगर में प्रीमियम का भुगतान रोक दिया गया और गाजियाबाद में भुगतान ऋण की किश्त के भुगतान के साथ किया गया तथा यह भुगतान दिनांक 29.01.1999 तक कर दिया गया है, परंतु परिवादिनी के पति अरविन्द कुमार जैन को एलआईसी द्वारा बताया गया कि गाजियाबाद की फाइनेंस यूनिट ने प्रीमियम की राशि को क्रेडिट नहीं किया है, इसलिए पॉलिसी लैप्स हो चुकी है। परिवादिनी के पति द्वारा अनेक बार प्रीमियम समायोजन के लिए प्रयास किया गया। परिवादिनी के पति अपनी मृत्यु दिनांक 20.03.2000 से पूर्व ही प्रीमियम अदा करने के लिए हमेशा तत्पर एवं क्षुब्ध रहे, परंतु विपक्षी द्वारा न ही प्रीमियम जमा कराया गया न ही कम्प्यूटर के डाटा को ठीक किया, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- विपक्षी का कथन है कि मई 1993 से जनवरी 1999 तक का प्रीमियम गाजियाबाद में जमा करना बताया गया। दिनांक 04.05.1999 को अभिनन्दन कुमार जैन को सूचना दी गयी, परंतु उसके द्वारा कोई सम्पर्क नहीं किया गया, इसलिए कम्प्यूटर में FUP फीड किया गया और तदनुसार पॉलिसी लैप्स हो गयी तथा परिवादी द्वारा 82,538/-रू0 भी प्राप्त कर लिया गया, इसलिए अब कोई क्लेम देय नहीं है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादिनी पॉलिसी की समस्त लाभ 06 प्रतिशत ब्याज के साथ प्राप्त करने के लिए अधिकृत है तथा अंकन 82,538/-रू0 की जो राशि अदा की गयी है, उसको समायोजित करते हुए अवशेष राशि 06 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा की जाए।
- इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है। प्रश्नगत पॉलिसी लैप्स हो चुकी थी और आशयपूर्वक अद्यतन नहीं की गयी।
- विपक्षी बीमा निगम का कथन है कि स्वयं परिवादी ने स्वीकार किया है कि पॉलिसी गृह ऋण के एवज में गाजियाबाद में बंधक रखी गयी थी और लोन के ऋण के भुगतान के पश्चात पॉलिसी अपीलार्थी सं0 1 को प्रेषित कर दी गयी थी, जहां पर फरवरी, मार्च और अप्रैल 1999 का प्रीमियम देय था, परंतु फरवरी 1999 तक का प्रीमियम अदा नहीं किया गया, इसलिए पॉलिसी लैप्स हो चुकी थी और अंकन 82,538/-रू0 का भुगतान कर दिया गया था। जिला उपभोक्ता आयोग का यह निष्कर्ष साक्ष्य के विपरीत है कि कम्प्यूटर में प्रीमियम की तारीख सुनिश्चित नहीं की गयी थी, जिसकी वजह से प्रीमियम का भुगतान नहीं हो सका और पॉलिसी लैप्स हो गयी। जिला उपभोक्ता आयोग ने अंतिम रूप से तथा स्वैच्छा के साथ भुगतान की गयी बीमित राशि के बिन्दु पर भी कोई विचार नहीं किया। विपक्षीगण की ओर से बहस की गयी कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधिसम्मत है। परिवादी बीमा धारक की मृत्यु बीमा पॉलिसी के सभी लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकृत है क्योंकि परिवादिनी के पति द्वारा प्रीमियम की राशि के भुगतान का अनेक बार प्रयास किया गया।
- अपीलार्थीगण/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत लिखित कथन में स्वयं स्वीकार किया गया कि कम्प्यूटर में इंद्राज अद्यतन नहीं किया गया था, इसलिए कम्प्यूटर में अद्यतन इंद्राज न होने के लिए बीमाधारक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। कम्प्यूटर डाटा अद्यतन न होने के कारण ही पॉलिसी को लैप्स माना गया, जो स्वयं अपीलार्थी की लापरवाही का कारण रहा है, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप का आधार नहीं है।
- अपीलार्थी की ओर से नजीर Max New York Life Insurance Co. Ltd. & Anr. Versus Reena Singh & Anr. I (2015) CPJ 214 (NC) प्रस्तुत की गयी है, जिसमें पॉलिसी लैप्स होने के कारण केवल तत्समय देय Paid up Value के लिए अधिकृत माना गया है, परंतु प्रस्तुत केस की स्थिति भिन्न है। प्रस्तुत केस में स्वयं अपीलार्थी द्वारा अपने कम्प्यूटर को अद्यतन नहीं किया गया, जिसमें बीमाधारक का कोई दोष नहीं है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए। उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2 | |