मौखिक
उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2574/2007
चीफ पोस्ट मास्टर व अन्य
बनाम
श्रीमती विद्यावती
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री कृष्ण पाठक, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री ओ0 पी0 दुवेल, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :20.02.2024
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी चीफ पोस्ट मास्टर की ओर से विद्वान जिला आयोग, कानपुर देहात द्वारा परिवाद संख्या- 30/2006, श्रीमती विद्यावती बनाम सी0 पी0 एम0 जी0 आदि में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28.05.2007 के विरूद्ध योजित की गयी है।
परिवादिनी का कथन है कि उसके पति ने एक पोस्टल जीवन बीमा पालिसी 25 वर्ष के लिये ली थी जिसमे अंकन 50,000.00 लाभ के रूप में प्राप्त होने थे। उक्त पालिसी दिनांक 30.04.1996 को जारी हुई थी जिसमे जीवन का जोखिक भी शामिल था। परिवादिनी के पति द्धारा दिनांक 18.04.1996 से 19.07.2003 तक प्रीमियम की धनराशि जमा की गई। दिनांक 20.07.2003 को परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के उपरान्त मृत्यु प्रमाण पत्र एवं प्रीमियम के भुगतान की रसीद व अन्य अभिलेखों के साथ बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया जिसे विपक्षी द्धारा दिनांक 10.01.2005 को यह कहते हुये निराकृत कर दिया गया कि उक्त पालिसी वर्ष 1997 में समाप्त हो गई थी क्योंकि उसके पति द्धारा प्रीमियम जमा नहीं किया गया था। परिवादिनी का कथन है कि उसके पति द्धारा दिनांक 08.04.1996 से 19.07.2003 तक बराबर प्रीमियम की किश्तों को जमा किया था। उसके पति द्धारा दिनांक 30.01.1997 से 30.12.1997 तक की प्रीमियम की किश्तें ब्याज सहित दिनांक 17.12.1997 को अदा कर दी गयी थी। इस प्रकार उसके पति की पालिसी कभी समाप्त नहीं हुई थी और विपक्षी द्धारा दिनांक 19.07.2003 तक प्रीमियम की किश्तें स्वीकार की गई थी। इस प्रकार विपक्षी द्धारा सेवा में कमी की गई है।
विपक्षी द्धारा प्रतिवाद पत्र में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति द्धारा दिनांक 18.04.1996 से 19.07.2003 तक निरंतर प्रीमियम जमा करना अस्वीकार किया है। विपक्षीगण का कथन है कि परिवादिनी के पति ने दिनांक 12.12.1996 को नियमित किश्त जमा की परन्तु जनवरी 1997 से वर्ष 2003 तक उसने निरन्तर नियमित रूप से किश्तों को जमा नहीं किया अत: पालिसी की शर्तो के अनुसार नियमित किश्तें जमा न होने के कारण उसकी पालिसी दिनांक 01.01.1997 को समाप्त हो गई थी अत: परिवादिनी जमा की गई किश्तों की धनराशि अंकन 14,636.00 प्राप्त करने की अधिकारिणी है। उसे उक्त धनराशि के भुगतान हेतु सूचित किया गया परन्तु उसके द्धारा यह भुगतान स्वीकार नहीं किया गया। चूंकि परिवादिनी के पति द्धारा बिना किसी सक्षम अधिकारी के अनुमति के बिना 12 महीने की किश्तें एक साथ जमा की गई। अत: उसे जीवन जोखिम का लाभ नहीं दिया जा सकता है। परिवादिनी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के उपरान्त विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद स्वीकार करते हुये परिवादिनी को निर्णय की तिथि से दो माह के अंदर अंकन 50,000.00 रूपये जीवन बीमा की धनराशि वाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित तथा अंकन 1,000.00 वाद व्यय अदा करने का आदेश दिया है
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर विद्धान अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ओ0 पी0 दुवेल उपस्थित है। उभय पक्षों के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख एंव प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थी द्धारा यह कथन किया गया है कि जीवन बीमा की किश्तें परिवादिनी के पति द्धारा विलम्ब शुल्क के साथ वर्ष में एक बार जमा किया जाता रहा। यदि बीमा पालिसी दिनांक 01.01.1997 को समाप्त हो गई थी तो विभागीय कर्मचारियों द्धारा प्रीमियम प्राप्त करते समय ही आपत्ति की जानी चाहिये थी। इस प्रकार विपक्षीगण की मौन स्वीकृति/प्रीमियम स्वीकार करने से पालिसी निरंतर जीवित समझी जायेगी। अत: परिवादिनी पालिसी के आधार पर जीवन जोखिम लाभ पाने की अधिकारी है। तद्नुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्धारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि राज्य आयोग के समक्ष जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित नियमानुसार वापस की जावेगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
रंजीत, पी0 ए0,
कोर्ट-03