(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0- 2249/2009
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0- 134/2000 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27/08/2009 के विरूद्ध)
मारूति सुजुकी इंडिया लिमिटेड (फार्मली नॉन एस मारूति उद्योग लिमिटेड) प्लाट नं0 1, नेलसन मण्डेला रोड, बसन्त कुंज न्यू दिल्ली- 110070
………….अपीलार्थी
1. श्रीमती वीना डुडेजा पत्नी श्री विजय डुडेजा निवासी विशाल इलेक्ट्रिकल्स मानपुर, थाना कोतवाली मुरादाबाद (यू0पी0)।
2. मेसर्स रोहन मोटर्स लिमिटेड, 432 मुकन्द नगर, जी0टी0 रोड गाजियाबाद (यू0पी0)।
3. मेसर्स आकांक्षा आटोमोबाइल्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली रोड़ मझोला, मुरादाबाद, (यू0पी0)।
4. मेसर्स भण्डारी आटोमोबाइल्स लिमिटेड बी-24 ओखला फेज-1, न्यू दिल्ली।
समक्ष
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री वी0एस0 बिसारिया, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर : श्री संजय कुमार वर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0 3 की ओर : श्री आलोक सिन्हा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 17.11.2021
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 जिला उपभोक्ता आयोग प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0 134/2000 में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 27.08.2009 के विरूद्ध मारूति सुजुकी इंडिया लिमिटेड कार निर्माता द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा उपरोक्त परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 कार आदि वाहनों का निर्माता है तथा प्रत्यर्थी सं0 2 लगायत 4/विपक्षी सं0- 2 लगायत 4 कम्पनी के अथराइज्ड डीलर हैं। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0 2 से एक जेन क्लासिक कार रूपये 3,65,442/- में दिनांक 25.08.1999 को खरीदी, जिसकी डिलीवरी दिनांक 27.08.1999 को मिली। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के अनुसार उक्त मारूति कार के इंजन में निर्माण संबंधी त्रुटि थी जिस कारण कार चलने में आवाज करती थी, टायर के रिम इतने गरम हो जाते थे जिससे कई बार कार के टायर बर्स्ट हो गये। इसके अतिरिक्त कार मात्र 8 से 10 किलोमीटर प्रति लीटर का एवरेज देती थी जब कि यह एवरेज अपीलार्थी/विपक्षी सं0 1 के अनुसार 18 से 20 किलोमीटर प्रति लीटर आना चाहिए था। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने अनेकों बार विपक्षीगण से कार में उत्पन्न उपरोक्त शिकायतों को दूर करने के लिए कहा किन्तु सुनवाई नहीं हुई। विपक्षीगण के कहने पर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने दिनांक 6.06.2000 व दि0 10.06.2000 को प्रत्यर्थीगण सं0- 3 व 4/विपक्षीगण सं0 3 व 4 के यहां ले गयी किन्तु वे कार को ठीक करने में असमर्थ रहे। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा अनेकों पत्र अपीलार्थी/विपक्षी को उन त्रुटियों को दूर करने के लिए दिये गये किन्तु त्रुटियों को दूर नहीं किया गया। अंतत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने उपरोक्त परिवाद योजित किया, जिसमें कार की कीमत रूपये 3,65,442/- मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज क्रय की तिथि से वास्तविक अदायगी तक दिलाये जाने की प्रार्थना की एवं अन्य क्षतिपूर्ति की मांग भी की गयी।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने अपने प्रतिवाद पत्र में कार इंजन में निर्माण संबंधी दोष होने से इंकार किया एवं कथन किया कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा दिनांक 10.06.2000 का जॉब कार्ड प्रस्तुत किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि वाहन 22,431 किलोमीटर चल चुका है यदि इंजन में निर्माण संबंधी कोई दोष होता तो वह इतनी अधिक नहीं चल सकती थी एवं कार 10 माह तक लगातार चली है, जिसके उपरान्त प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने इसकी शिकायत की है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह भी कथन किया गया है कि वाहन क्रय करते समय पेट्रोल का एवरेज 18 से 20 किलोमीटर प्रति लीटर में बताया गया था। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का यह भी कथन स्वीकार किया गया है कि शहर में वाहन चलने पर कोई आवाज अथवा वाहन के रिम व टायर अत्यधिक गरम हो जाते हैं तो वाहन की सर्विस कराते समय प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने ऐसा कुछ नहीं बताया था।
दोनों पक्षों को सुनकर विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का परिवाद इन आधारों पर आज्ञप्त किया कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को परिवाद में बतायी गयी सभी कमियों को दर्शाते हुए विविध पत्र लिखे गये व नोटिस दिये किन्तु उनकी ओर से ऐसा कोई कथन नहीं किया गया है, जिससे ऐसा स्पष्ट हो कि इन पत्रों एवं नोटिस के उपरान्त इन्होंने वाहन को किसी सर्विस इंजीनियर से चेक कराया हो, जिससे स्पष्ट हो कि इंजन में निर्माण संबंधी त्रुटि नहीं है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से श्री प्रेम रतन सूद, इंजीनियर सर्वेयर एवं लॉस एसेसर की रिपोर्ट दिनांकित 20.05.2001 प्रस्तुत की गयी। उक्त सर्वेयर/इंजीनियर ने प्रश्नगत कार का परीक्षण करने के उपरान्त अपनी आख्या में उल्लेख किया कि कार को आदर्श गति पर चलने पर उसका एवरेज 10 किलोमीटर प्रति लीटर आता है जो निर्माता कम्पनी द्वारा निर्धारित एवरेज से काफी कम है इसके अतिरिक्त इंजन का कम्प्रेशर, मैनुअल में की गयी मानक से कम पाया गया, वाहन का पिकअप ए0सी0 यूनिट चलने के उपरान्त गिर जाता है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने निष्कर्ष दिया कि अपीलार्थी/प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 4/विपक्षीगण ने उक्त रिपोर्ट को कोई चुनौती नहीं दी है एवं अपीलार्थी/प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 4/विपक्षीगण द्वारा किसी इंजीनियर अथवा सर्वेयर की रिपोर्ट प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत इंजीनियर/सर्वेयर रिपोर्ट को खण्डित करने अथवा वाहन का परीक्षण करने के उपरान्त नहीं दी गयी है। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी/प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 4/विपक्षीगण ने इस आशय का कोई प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया कि उक्त वाहन का निरीक्षण किसी विशेषज्ञ से करा लिया जाये, जिससे वाहन की वास्तविकता का पता चल सके। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने वारण्टी अवधि 1 वर्ष के भीतर ही वाहन के संबंध में पत्र देना आरंभ कर दिया था। प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0 3 ने पत्र दिनांकित 10.04.2001 प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को दिया था, जिसमें उन्होंने वाहन को पार्किंग में खड़ा होना स्वीकार किया। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये इंजीनियर/सर्वेयर की रिपोर्ट को अखण्डित होने के आधार पर आज्ञप्त किया है। उक्त आदेश से व्यथित होकर यह अपील कार निर्माता मारूति उद्योग द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
अपील में मुख्यत: यह कथन किया गया है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 एवं उनके डीलर प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0 2 जिसके द्वारा प्रश्नगत वाहन का विक्रय किया गया। उनके वाहन के सम्बन्ध में एक डीलरशिप अनुबंध निष्पादित हुआ है, जिसके क्लॉज 5 में यह अंकित है कि डीलर द्वारा बेचे गये किसी वाहन के संबंध में मारूति उद्योग लिमिटेड का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा तथा मारूति उद्योग लिमिटेड डीलर द्वारा बेचे गये किसी प्रोडक्ट के संबंध में उत्तरदायित्व नहीं रखता है। उपरोक्त अनुबंध के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का कोई उत्तरदायित्व वाहन के संबंध में बनता है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह भी कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0- 2 रोहन मोटर्स लिमिटेड, गाजियाबाद से उक्त प्रश्नगत वाहन क्रय किया था। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के अनुसार प्रश्नगत वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष नहीं था। मारूति उद्योग लिमिटेड द्वारा वाहन के निर्माण के समय खड़े मानकों के अनुसार बार-बार चेकिंग की जाती है और कड़ी जांच के उपरान्त वाहन को ‘’Ok’’ अर्थात पूर्णत: दुरूस्त होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह भी कथन किया गया है कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय व मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णयों के अनुसार मैनुफैक्चर या वाहन के निर्माणकर्ता एवं उपभोक्ता के मध्य वारण्टी की शर्तें दोनों पक्षों पर लागू होती हैं, जिसके अनुसार वाहन का स्वामी वारण्टी के अधीन निर्माणकर्ता से दोषपूर्ण पार्ट एवं उपकरणों को बदले जाने की प्रार्थना कर सकता है। सम्पूर्ण वाहन को बदला जाना अथवा वाहन का सम्पूर्ण मूल्य वाहन को दुरूस्त होने पर लाया जाना न्यायोचित नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह भी कथन किया गया कि वाहन स्वामी स्वयं लापरवाह था, क्योंकि उसके द्वारा वाहन की पहली जांच 2145 किलोमीटर चलने के उपरान्त करायी गयी, जब कि उसे यह जांच 500 किलोमीटर पर ही करानी थी। इस प्रकार दूसरी व तीसरी जांच भी अधिक किलोमीटर चलने के उपरान्त एवं अधिक समय के उपरान्त करायी गयी। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के अनुसार प्रश्नगत वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष नहीं था। दिनांक 06.06.2000 तथा दिनांक 10.06.2000 के जॉब कार्ड जो स्वयं प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रस्तुत किया है, के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि वाहन 8-9 महीनों में 22,000 किलोमीटर से अधिक चलाया गया था यदि वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष होता तो वह पहले ही दृष्टिगोचर हो जाता।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह आपत्ति भी उठाई गयी है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग प्रथम, मुरादाबाद को परिवाद के श्रवण एवं निस्तारण का क्षेत्राधिकार नहीं है, क्योंकि प्रश्नगत वाहन के निर्माता गुड़गांव में हैं तथा पंजीकरण/क्रय नई दिल्ली में हुआ है। वाहन जनपद गाजियाबाद में प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0 2 मै0 रोहन मोटर्स से खरीदा गया है। वाहन को मुरादाबाद स्थित प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 से ठीक करवाया गया था। प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 को जानबूझकर मुरादाबाद में क्षेत्राधिकार उत्पन्न करने के लिए पक्षकार बनाया गया है इस कारण भी परिवाद विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, मुरादाबाद में पोषणीय नहीं है। इन आधारों पर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील के विरूद्ध प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा आपत्ति दिनांकित 15.04.2015 प्रस्तुत की गई जिसमें कहा गया है कि आरंभ से ही प्रश्नगत वाहन में आवाज आ रही थी तथा वाहन के टायर एवं रिम गरम हो रहे थे, जिस कारण वाहन को चलाना संभव नहीं था तथा इस कारण प्रश्नगत वाहन के टायर बार-बार बर्स्ट हुए इसके अतिरिक्त वाहन का एवरेज 8 से 10 किलोमीटर प्रति लीटर जब कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा इस वाहन का एवरेज 18 से 20 किलोमीटर प्रति लीटर क्लेम किया गया था, जिसकी शिकायत बार-बार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 से की गयी, किन्तु उनकी ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया। प्रश्नगत वाहन को वारण्टी समय-सीमा के भीतर दिनांक 27.05.2000 को प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0 3 मै0 आकांक्षा आटो मोबाइल से ठीक करवाया गया तथा दिनांक 18.05.2001 को मै0 आकांक्षा आटो मोबाइल पर गाड़ी खड़ी हो गयी जो 11 महीनों तक खड़ी रही। इसके अतिरिक्त श्री प्रेम रतन सूद इंजीनियर/सर्वेयर द्वारा प्रश्नगत वाहन का निरीक्षण करके रिपोर्ट दी गयी कि वाहन का एवरेज 10 किलोमीटर प्रति लीटर है जो बहुत कम है तथा इंजन का कम्प्रेशर भी मानकों से था, जिस कारण वाहन का पिकअप बहुत कम हो जाता था, इसी पर आधारित करते हुए उचित प्रकार से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने निर्णय दिया है जो सर्वथा उचित है, जिसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है अत: अपील निरस्त किये जाने योग्य है तथा प्रश्नगत निर्णय पुष्ट होने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी सं0 3 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा उपस्थित हुये। उक्त विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया, जिसके आधार पर पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
प्रश्नगत निर्णय व आदेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से व्यक्तिगत रूप से कराए गए प्रश्नगत वाहन के निरीक्षण की रिपोर्ट को प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष होने का आधार माना है। प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 27.08.2009 के पृष्ठ 07 पर इस सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है-
''……………….जब कि इस सम्बन्ध में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से श्री प्रेम रतन सूद, इंजीनियर, सर्वेयर एवं लॉस एसेसर की रिपोर्ट दिनांकित 20.05.2001 प्रस्तुत की गई है। उक्त इंजीनियर एवं सर्वेयर ने वर्णित कार का परीक्षण करने के उपरांत अपनी आख्या में यह उल्लेख किया है कार आदर्श गति पर चलने पर उसका एवरेज 10 कि0मी0 प्रति लीटर आता है जो कि निर्माता कम्पनी द्वारा निर्धारित एवरेज से काफी कम है। इसके अतिरिक्त इंजन का कम्प्रेशर मैनुअल में निर्धारित मानक से कम पाया गया है। वाहन का पिकअप ए0सी0 यूनिट के चलने पर गिर जाता है।''
उक्त लिखित रिपोर्ट में ऐसा कोई तथ्य नहीं दर्शाया गया है जिससे प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि होने की पुष्टि होती हो। इंजीनियर महोदय की रिपोर्ट से भी यह स्पष्ट नहीं है कि इन आधारों पर निर्माण सम्बन्धी दोष माना गया है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का कथन है तथा इंजीनियर महोदय द्वारा रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वाहन का एवरेज 10 कि0मी0 प्रति लीटर है जो निर्माता कम्पनी द्वारा निर्धारित एवरेज से कम है। इस सम्बन्ध में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से ऐसा कोई प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया गया है कि विक्रेता कम्पनी द्वारा उभयपक्ष के मध्य हुए करार में ऐसा कोई उल्लेख किया गया हो। प्रश्नगत वाहन का एवरेज कितना आयेगा, दूसरी यह भी पुष्टि कारक प्रमाण नहीं है कि प्रश्नगत वाहन का एवरेज कितना किलोमीटर प्रति लीटर था। अत: मात्र इंजीनियर महोदय की रिपोर्ट में उल्लेख कर देने से कि वाहन का एवरेज निर्माता कम्पनी द्वारा निर्धारित एवरेज से काफी कम है। प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं माना जा सकता है।
पीठ के समक्ष यह प्रश्न भी है कि उक्त रिपोर्ट को आधार मानकर प्रश्नगत वाहन में त्रुटि मानी जा सकती है अथवा नहीं। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय राकेश गौतम बनाम संघी ब्रदर्स लि0 तथा अन्य प्रकाशित III (2010) C.P.J. पृष्ठ 105 (N.C.) इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देशन देता है। निर्णय के तथ्य प्रस्तुत मामले के तथ्यों से मिलते-जुलते हैं। मा0 राष्ट्रीय आयोग के समक्ष मामले में वाहन के क्रेता द्वारा एशिया डीजल वर्कशाप के मो0 रफीक नामक का शपथ-पत्र लिया गया, एस0सी0 गुप्ता, मैकेनिकल इंजीनियर की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिस आधार पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग तथा राज्य आयोग द्वारा परिवाद को आज्ञप्त किया गया था। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्त निर्णय के प्रस्तर 7 में यह निष्कर्ष दिया गया कि उक्त दोनों रिपोर्टें स्वतंत्र विशेषज्ञ का साक्ष्य नहीं मानी जा सकती हैं, क्योंकि उक्त रिपोर्टें प्रकृति में स्वपोषण की रिपोर्टें हैं। ये आख्यायें विपक्षी की सहभागिता के बिना उसकी पीठ पीछे बनायी गई हैं। अत: इन आख्याओं को सर्वथा सत्य मान लेना उचित नहीं है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह भी निष्कर्ष दिया गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार यह प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का उत्तरदायित्व था कि वह जिला उपभोक्ता आयोग से एक स्वतंत्र विशेषज्ञ को नियुक्त करने का प्रतिवेदन करता। इसके आधार पर प्रश्नगत वाहन की स्थिति तथा इसमें निर्माण सम्बन्धी त्रुटियों का आंकलन किया जा सकता था। ऐसी स्वतंत्र विशेषज्ञ आख्या पर आधारित करके जिला उपभोक्ता आयोग अपना निष्कर्ष दे सकता था।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने अपने पूर्व निर्णय स्वरूप माजदा लि0 बनाम पी0के0 चक्करपोर व अन्य II (2005) CPJ पृष्ठ 72 (N.C.) तथा हिन्दुस्तान मोटर्स लि0 बनाम पी0 वासुदेवा तथा अन्य IV (2006) C.P.J. पृष्ठ 167 (N.C.) पर आधारित करते हुए यह दिया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा स्वतंत्र रूप से नियुक्त विशेषज्ञ की राय पर इस आशय का निष्कर्ष दिया जा सकता था कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी कोई दोष है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निष्कर्ष प्रस्तुत मामले पर भी लागू होता है। इस मामले में भी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से नियुक्त श्री प्रेम रतन सूद, इंजीनियर/सर्वेयर की रिपोर्ट पर पूर्णत: आधारित करते हुए प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं माना जा सकता है। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि उक्त इंजीनियर महोदय ने भी एवरेज कम होने और कम्प्रेशर वाहन के मैनुअल में निर्धारित मानक से कम पाये जाने का उल्लेख किया गया है, किन्तु उसका पूर्ण विवरण अभिलेख पर नहीं आया है। कम्प्रेशर मूलत: ए0सी0 यूनिट में लगाया जा सकता है जो वाहन में लगाया गया एक पार्ट है जिसकी शिकायत होने पर विक्रेता/निर्माता द्वारा इस भाग को बदला जा सकता था, किन्तु ऐसी कोई चुनौती प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से अपने पत्रों में नहीं की गई है न ही कार का रिपेयर होने के दौरान ए0सी0 के कम्प्रेशर अथवा एयर कंडीशनर में कोई त्रुटि होने का उल्लेख आया है। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से नियुक्त विशेषज्ञ आख्या से भी यह तथ्य परिलक्षित नहीं होता है कि वाहन में ऐसी कोई त्रुटि थी जिसके आधार पर सम्पूर्ण वाहन को बदला जाये।
वाहन में त्रुटि दर्शाने के लिए प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से वाहन का जॉब कार्ड दिनांकित 06.06.2000 की प्रतिलिपियां प्रस्तुत की गई हैं। दि0 06.06.2000 के जॉब कार्ड के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इसमें कार्बूरेटर की पैकिंग, गैसकेट तथा पावर वाल्ब बदला गया है। कार्बूरेटर की ओवरहालिंग हुई है, ब्रेक पैड की सफाई/स्थानांतरण हुआ है तथा हैण्ड ब्रेक दुरुस्त किया गया है। इसी प्रकार दि0 10.06.2000 के जॉब कार्ड में पेट्रोल टैंक की सफाई, कार्बूरेटर की चेकिंग मय बम्पर की फिटिंग, हेड लैम्प फोकस का एडजस्टमेंट, पावर विंडो तथा सेन्ट्रल लॉकिंग की चेकिंग एवं व्हील आदि की चेकिंग हुई है। उक्त दोनों जॉब कार्ड में ऐसी कोई कमी परिलक्षित नहीं होती है जो श्री प्रेम रतन सूद, इंजीनियर द्वारा दर्शायी गई हो। इन दोनों जॉब कार्ड में कम्प्रेशर की कोई कमी नहीं दर्शायी गई है।
परिवाद में तथा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा मारूति उद्योग गुड़गांव को प्रेषित किए गए पत्रों में एक तथ्य का अत्यधिक वर्णन है कि कार की रिम तथा टायर गर्म हो जा रहे हैं, किन्तु इन दोनों जॉब कार्ड में इस तथ्य का कोई वर्णन नहीं किया गया है न ही ऐसी कोई त्रुटि दुरुस्त की गई है। उल्लेखनीय है कि पहले पत्र में इन दोनों जॉब कार्ड को संलग्नक के रूप में प्रेषित किया गया है जिससे यह स्पष्ट है कि यह पत्र इन दोनों सर्विसिंग के उपरांत प्रेषित किए गए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि पहले जॉब कार्ड में वाहन 21587 कि0मी0 चलना तथा दूसरे जॉब कार्ड में वाहन का 22431 कि0मी0 चलना दर्शाया गया है। ये दोनों जॉब कार्ड लगभग वाहन क्रय करने के 11 महीने बाद के हैं जिससे स्पष्ट होता है कि वाहन लगभग 21,000 कि0मी0 तथा 11 महीने तक चलने के समय तक इस प्रकार की कोई शिकायत वाहन स्वामी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा नहीं की गई। यदि वाहन में इतना निर्माण सम्बन्धी दोष होता और इसे बदले जाने की आवश्यकता होती एवं यह मार्ग पर चलने योग्य नहीं होता तो वाहन लगभग 21-22,000 कि0मी0 नहीं चल सकता था। अत: तथ्यों एवं परिस्थितियों से भी प्रश्नगत वाहन में ऐसा निर्माण सम्बन्धी दोष परिलक्षित नहीं होता है जिसके आधार पर वाहन को बदले जाने की आवश्यकता हो।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 की ओर से यह तर्क दिया गया है कि उभयपक्ष के मध्य जो वारण्टी प्रदान की गई थी उसमें भी निर्माता/अपीलार्थी को यह उत्तरदायित्व था कि वाहन में वारण्टी अवधि के दौरान किसी भाग में त्रुटि पाये जाने पर उसको नये पार्ट से बदला जायेगा जिसके लिए वाहन स्वामी को कोई अतिरिक्त व्यय नहीं देना पड़ेगा। सम्पूर्ण वाहन को बदले जाने की कोई संविदा नहीं हुई थी। इस सम्बन्ध में उभयपक्ष के मध्य हुए करार के अनुसार वारण्टी की शर्तों को देखा जाना आवश्यक है जो शर्त सं0- 3 में निम्नलिखित प्रकार से अंकित है:-
"Maruti's Warranty Obllgation:
If any defect(s) should be found in a Maruti vehicle within the term stipulated above, Maruti's only obllgation is to repair or replace at its sole discretion any part shown to be defective, with a new part or the equivalent at no cost to the owner for part or labour. When Maruti acknowledges that such a defect is attributable to faulty material or workmanship at the time of manufacture. The owner is responsible for any repair of replacements which are not covered by this warranty."
अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने उपरोक्त तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय मारूति उद्योग लि0 बनाम अतुल भारद्वाज तथा अन्य प्रकाशित I (2009) CPJ पृष्ठ 270 (N.C.) पर आधारित किया। इस मामले में वारण्टी की अवधि में प्रश्नगत वाहन दस बार त्रुटि निवारण हेतु विक्रेता के गैरेज में भेजा गया था जिसके आधार पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने वाहन में निर्माण सम्बन्धी त्रुटि होना मान लिया, किन्तु मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया कि ऐसी दशा में वाहन के जिस उपकरण में त्रुटि है वह संविदा के अनुसार बदली जा सकती है। सम्पूर्ण वाहन का बदला जाना उचित नहीं है।
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय मारूति उद्योग लि0 बनाम सुशील कुमार गबगोत्रा तथा अन्य प्रकाशित II (2006) CPJ पृष्ठ 3 (S.C.) पर आधारित किया गया जिसमें यह निर्णीत किया गया कि वाहन के निर्माता विक्रेता का उत्तरदायित्व वाहन के दोषपूर्ण उपकरणों को वारण्टी के अनुसार बदलना है तथा संविदा के अनुसार उक्त दोषपूर्ण उपकरणों के सम्बन्ध में वाहन के क्रेता से उनका मूल्य नहीं लिया जायेगा, किन्तु मात्र इस आधार पर सम्पूर्ण वाहन को बदला जाना अथवा सम्पूर्ण वाहन का मूल्य दिलाया जाना उचित नहीं है, यह तभी सम्भव है जब कि वाहन में निर्माण सम्बन्धी ऐसा दोष होता हो जिससे वाहन सड़क पर चलने योग्य प्रतीत न होता हो।
मा0 राष्ट्रीय आयोग तथा मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय इस मामले में भी पूर्णत: लागू होते हैं। इस मामले में एक और स्वतंत्र विशेषज्ञ को नियुक्त करवाकर उनकी आख्या से ऐसा कोई तथ्य साबित नहीं हुआ है कि प्रश्नगत वाहन में निर्माण सम्बन्धी कोई दोष था। दूसरी ओर जो दोष दर्शाये गए हैं वे वाहन के उपकरणों के दोष प्रतीत होते हैं जिनको प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के आवेदन पर बदला जा सकता था तथा ऐसी परिस्थितियों में सम्पूर्ण वाहन को नये वाहन से बदला जाना अथवा सम्पूर्ण वाहन का मूल्य दिलाया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। प्रस्तुत मामले में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने सम्पूर्ण वाहन को बदले जाने एवं विकल्प में सम्पूर्ण वाहन का मूल्य दिलाये जाने का निष्कर्ष दिया है वह उपरोक्त विवेचना के आधार पर उचित प्रतीत नहीं होता है। यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि स्वीकार्य रूप से वाहन का एवरेज कम आ रहा था। अभिलेख से स्पष्ट है कि उक्त त्रुटि को दूर करने के लिए कार्बूरेटर के पैकिंग, गैसकेट आदि बदले गए, किन्तु वाहन की संतुष्टि के अनुसार वाहन मानकों के अनुसार नहीं आ सका। अत: इसके लिए प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति प्रदान किया जाना आवश्यक है। न्यायहित में यह उचित होगा कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के रूप में दिलवाया जाए एवं वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक इस धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 अदा करे। इन आधारों पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश परिवर्तित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को निर्देशित किया जाता है कि वह क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000/-रू0 तथा इस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को अदा करें।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार निस्तारण हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-1