(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1651/2006
(जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या-124/2005 में पारित निणय/आदेश दिनांक 8.6.2006 के विरूद्ध)
निदेशक खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग क्षेत्रीय कार्यालय तेलियाबाग, वाराणसी, (उ0प्र0)।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. श्रीमती सुशीला देवी पत्नी श्री राम सिंह साकिन देवारा खास मुकाम चुनग पार, पोस्ट जियनपुर, जिला आजमगढ़।
2. प्रबन्धक यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा गेड़री पट्टी, जिला आजमगढ़, उ0प्र0।
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस.के. शुक्ला एवं
श्री अशोक कुमार सिंह।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 04.06.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-124/2005, श्रीमती सुशीला देवी बनाम निदेशक खादी ग्रामोद्योग आयोग तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, वाराणसी द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 8.6.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवतागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। यद्यपि प्रत्यर्थीगण पर आदेश दिनांक 13.10.2022 द्वारा तामीला पर्याप्त मानी जा चुकी है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए ब्याज की राशि अंकन 51 हजार रूपये एवं क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 50 हजार रूपये 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षी सं0-1 की योजना के अंतर्गत मशाला उद्योग हेतु विपक्षी सं0-2 से अंकन 5,00,000/-रू0 का ऋण प्राप्त किया गया। ऋणी की शर्त थी कि बैंक द्वारा ऋण का भुगतान कर दिए जाने पर सम्पूर्ण ऋण पर अंकन 1,50,000/-रू0 की छूट दी जाएगी और याची को अंकन 3,50,000/-रू0 ब्याज सहित विपक्षी सं0-2 को अदा करना होगा। अंकन 5,00,000/-रू0 ऋण प्राप्त करने के बाद परिवादी ने विपक्षी सं0-1 के कार्यालय में पत्र दिया कि छूट की राशि विपक्षी सं0-2 के भेजी जाए ताकि वह परिवादी से सब्सिडी की राशि ब्याज सहित न वसूले, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई, इसलिए परिवादी ने अंकन 1,50,000/-रू0, जो दिनांक 27.12.2002 तक जमा करना था, वह दिनांक 19.5.2004 को जमा किया गया, इसलिए अंकन 51,000/-रू0 का ब्याज अदा करना पड़ा, इसी राशि को वापस लौटाने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. विद्वान जिला आयोग ने एकतरफा सुनवाई करते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया, जिसे निदेशक खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि अपीलार्थी स्वंय किसी योजना को प्रायोजित नहीं करता। ऋणी द्वारा सर्टिफिकेट न देने के कारण सब्िसडी की राशि बैंक द्वारा स्वीकार नहीं की गई। प्रशिक्षण प्रमाण पत्र के पश्चात ही ऋण की दूसरी किस्त जारी करनी चाहिए थी, परन्तु बैंक द्वारा ऋणी के पक्ष में दूसरी किस्त जारी कर दी गई। यदि परिवादी द्वारा उद्यमिता प्रशिक्षण प्राप्त की गई होती तब नोडल बेंक से सीधे सब्सिडी की राशि बैंक द्वारा मंगाई जा सकती थी, इसमें आयोग का कोई हस्तक्षेप नहीं है। विद्वान जिला आयोग को इस संबंध में परिवाद सुनने का कोई अधिकार नहीं है। अपीलार्थी के साथ ऋण के संबंध में कोई करार नहीं हुआ है। यद्यपि बैंक अनुदान प्रदानकर्ता है, परन्तु अनुदान प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रमाण पत्र स्वंय परिवादी ने दाखिल नहीं किया। फिर यह भी कि अनुदान से संबंधित प्रकरण उपभोक्ता न्यायालय के अंतर्गत सुनने योग्य नहीं हैं।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बहस के दौरान स्वंय इस पीठ द्वारा अपील संख्या 997/2014 यूनियन बैंक आफ इण्डिया बनाम गीता देवी प्रोपराइटर जे.एस. ईंट उद्योग देवपालपुर वाराणसी तथा एक अन्य में पारित निर्णय/आदेश की प्रतिलिपि प्रस्तुत की गई, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि अनुदान प्राप्त करना एक सिविल उद्योषणा प्रवृत्ति का वाद है, जिसकी घोषणा केवल सिविल न्यायालय द्वारा की जा सकती है। अपीलार्थी के स्तर से अनुदान की राशि उपलब्ध कराई जाती है, जैसा कि स्वंय स्वीकार किया गया है, परन्तु आवश्यक शर्तों की पूर्ति के पश्चात ही अनुदान की राशि ऋण प्रदाता बैंक द्वारा नोडल बैंक से प्राप्त की जा सकती है, जहां पर अनुदान की राशि जमा रहती है, इसलिए प्रशिक्षण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का दायित्व स्वंय परिवादी पर था। परिवादी की ओर से यह कथन नहीं किया गया है कि उद्यमिता प्रशिक्षण प्रमाण पत्र बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया गया, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश क्षेत्राधिकार विहीन होने के कारण अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
6. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 8.6.2006 अपास्त किया जाता है तथा क्षेत्राधिकार विहीन होने के कारण परिवाद खारिज किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक 04.06.2024
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2