(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2386/2006
आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा द्वारा सचिव
बनाम
श्रीमती सुशीला चतुर्वेदी पत्नी श्री भजन लाल
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर.के. गुप्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री मुजीब एफेण्डी।
दिनांक : 13.03.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-32/1997, श्रीमती सुशीला चतुर्वेदी बनाम आगरा विकास प्राधिकरण में विद्वान जिला आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 19.7.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आर.के. गुप्ता तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री मुजीब एफेण्डी को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के हक में प्लाट संख्या S/S 41 आवंटित किया गया। दिनांक 14.8.1986 को पंजीकरण शुल्क अंकन 1,000/-रू0 जमा किया गया। इस प्लाट की अनुमानित कीमत अंकन 9,700/-रू0 बतायी गयी। प्राधिकरण द्वारा मांगी गयी राशि अंकन 3700/-रू0 दिनांक 26.7.1990 को जमा कर दी गयी, परन्तु कब्जा परिवादिनी को नहीं दिया गया। दिनांक 26.3.1993 को
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अंकन 2,000/-रू0 अतिरिक्त जमा किये गये। शेष धनराशि त्रैमासिक किस्तों में 20 वर्ष तक जमा करनी थी। परिवादिनी बकाया धनराशि ब्याज सहित देने के लिए तैयार है।
3. विपक्षी प्राधिकरण का कथन है कि परिवादिनी स्वंय कब्जा लेने नहीं आयी, जबकि दिनांक 19.1.1993 एवं दिनांक 21.10.1994 को पत्र लिखे गये, इसलिए दिनांक 5.12.1994 को प्लाट का आवंटन निरस्त कर दिया गया।
4. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि निरस्तीकरण आदेश अनुचित है। परिवादिनी को आदेशित किया गया कि बकाया राशि प्राधिकरण में जमा करे और उसके पश्चात प्राधिकरण परिवादिनी के पक्ष में विक्रय पत्र निष्पादित करे।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि यह परिवाद पावर आफ अटॉर्नी श्री नफीस अहमद कुरेशी द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जबकि उपभोक्ता परिवाद अटॉर्नी के माध्यम से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था। यह तर्क विधि से समर्थित नहीं है। उपभोक्ता परिवाद भी पावर आफ अटॉर्नी के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। इस संबंध में स्वंय इस पीठ द्वारा पूर्व में निष्कर्ष दिया जा चुका है।
6. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या परिवादिनी वांछित अनुतोष प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, जिसका आदेश उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित किया गया है। विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि परिवादिनी अतिरिक्त धनराशि जमा करने के पश्चात ही आवंटित प्लाट का कब्जा प्राप्त करने एवं विक्रय
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पत्र निष्पादित कराने के लिए अधिकृत होगी, परन्तु अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रश्नगत प्लाट का आवंटन निरस्त हो चुका है तथा इसका आवंटन किसी हेम लता नामक महिला को किय जा चुका है, परन्तु पत्रावली पर ऐसी कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, जिससे यह साबित होता हो कि कब्जा प्राप्त करने के लिए प्राधिकरण द्वारा पत्र लिखे गये हों। पत्र प्रेषित करने की कोई डाक रसीद विद्वान जिला आयोग के समक्ष या इस पीठ के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गयी, इसलिए प्राधिकरण द्वारा प्लाट के आवंटन का निरस्तीगरण का आदेश विधि विरूद्ध है और इसकी कोई प्रभाव परिवादिनी के अधिकारों पर नहीं है, परन्तु यह स्पष्ट करना उचित होगा कि यदि इस प्लाट का आवंटन निरस्त किया गया है तब इसी परिक्षेत्र एवं मूल्य का दूसरा प्लाट परिवादिनी को प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध कराया जाय। इस टिप्पणी के साथ प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3