(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1624/2005
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, महोबा द्वारा परिवाद संख्या-153/2003 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10.08.2005 के विरूद्ध)
1. महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड, मुम्बई, द्वारा मैनेजर, महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड, मुम्बई, महेन्द्रा टावर, बिले, मुम्बई।
2. महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड, कानपुर, द्वारा मैनेजर, महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड, दाल मिल, अरूण कालोनी, जी.टी. चौराहा, कानपुर सिटी, द्वारा लीगल आफिसर, श्री अनुज नारायण।
अपीलार्थीगण/विपक्षी संख्या-1 व 3
बनाम
1. श्रीमती शिव देवी (मृतक) पत्नी प्यारे लाल, ग्राम रीला, तहसील रथ, जिला हमीरपुर, हाल मुकाम सहकारी बैंक, पनवारी, परगना /तहसील कुलफारा, जिला महोबाद।
1/1. प्यारे लाल, पति।
1/2. शिव कुमार, पुत्र।
1/3. सुमन कुमारी, पुत्री।
1/4. साझ कुमारी, पुत्री।
प्रतिस्थापित उत्तराधिकारीगण
निवासीगण-ग्राम रीला तहसील रथ जिला हमीरपुर।
प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी/प्रतिस्थापित उत्तराधिकारीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार वर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 17.12.2020
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
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1. परिवाद संख्या-153/2003, श्रीमती शिव देवी बनाम महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लि0 व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10.08.2005 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने विपक्षी संख्या-1 व 3/अपीलार्थीगण को निर्देशित किया है कि वह परिवादिनी/प्रत्यर्थी को अंकन 2,30,285/- रूपये 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस करें साथ ही अंकन 10,000/- रूपये विशेष क्षति का भी आदेश पारित किया गया।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-2 से एक चार पहियां महेन्द्रा मैक्स, जिसका इंजन नं0-ए.बी. 14 जे. 77461 क्रय किया था और अंकन 3,25,000/- रूपये फाइनेन्स कराया था, जिसकी अदायगी 03 वर्षों में की जानी थी। परिवादिनी ने नियमित रूप से अदायगी करते हुए अंकन 1,68,954/- रूपये अदा किए बाद में एक लाख रूपये का ड्राफ्ट भी जमा किया, परन्तु विपक्षीगण ने लेने से इंकार कर दिया। विपक्षीगण के कर्मचारी वाहन को कानपुर के लिए भाड़े पर ले गए और अपने शोरूम में ले जाकर खड़ा कर दिया और वाहन चालक को इसी तिथि यानि दिनांक 01.09.2003 को वाहन प्राप्ति की रसीद प्रदान कर दिया। परिवादिनी एक लाख रूपये लेकर घूमती रही, लेकिन विपक्षीगण ने यह राशि प्राप्त नहीं की, तब उसने इलाहाबाद बैंक से अंकन 50,000/- 50,000/- रूपये के दो ड्राफ्ट बनवाए, परन्तु विपक्षीगण ने स्वीकार नहीं किया। विपक्षीगण अवैध रूप से वाहन को अपने कब्जे में लिए हुए है। अत: वाहन की मूल प्राप्ति और आर्थिक और मानसिक क्षति अंकन 2,00,000/- रूपये प्राप्ति के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3. विपक्षी संख्या-2 व 4, नटराज आटोमोबाइल्स लि0 का कथन है कि उन्हें गलत पक्षकार बनाया गया है, उनके द्वारा सद्भावपूर्वक वाहन परिवादिनी को विक्रय किया गया है।
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4. विपक्षी संख्या-1 व 3 का कथन है कि यह गाड़ी हायर परचेज संविदा के तहत परिवादिनी को दी गई थी, इसलिए इस गाड़ी के मालिक विपक्षी संख्या-1 व 3 हैं। परिवादिनी को अंकन 3,25,000/- रूपये का ऋण दिया गया था, जिस पर 9.25 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज एवं 0.75 प्रतिशत वार्षिक सर्विस टैक्स देना था। यह राशि 35 किस्तों में अदा करनी थी। 34 किस्त अंकन 12,072/- रूपये की थी और अंतिम किस्त अंकन 12,053/- रूपये की थी। स्वंय परिवादिनी ने हायर परचेज संविदा का उल्लंघन किया है। अंकन 1,00,000/- रूपये जमा करने की कहानी मनगढंत है। दिनांक 01.09.2003 को गाड़ी को कब्जे में लिया गया और परिवादिनी को सूचित किया गया कि यदि वह गाड़ी वापस चाहती है तो बकाया रशि जमा करे, परन्तु उनके द्वारा बकाया राशि जमा नहीं की गई। तब दिनांक 03.11.2003 को गाड़ी नीलाम कर दी गई। गाड़ी नीलाम होने के बाद भेजे गए ड्राफ्ट का कोई महत्व नहीं है।
5. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया है।
6. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय अवैध है तथा न्यायिक अवधारणा के विपरीत है तथा साक्ष्य की सही व्याख्या नहीं की गई है। सही समय पर किस्तों का भुगतान न करने के कारण वाहन कब्जे में लिया गया था। बकाया राशि के भुगतान का नोटिस दिनांक 20.10.2003 को प्रेषित किया गया था, इन सब तथ्यों पर कोई विचार नहीं किया गया।
7. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
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8. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि नजीर Suryapal Singh Vs. Siddha Vinayak Motors & Anr III (2012) CPJ 4 (SC) में व्यवस्था दी गई है। हायर परचेज अनुबंध के तहत वाहन का मालिक फाइनेन्सर होता है। किस्तों की न अदायगी पर वाहन का कब्जा लेना फाइनेन्सर का वैधानिक अधिकार है। उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में एक अन्य नजीर Pramod Kumar Rai Vs. Shriram Transport Finance Co. Ltd. III (2012) CPJ 553 (NC), Berar Finance Ltd Vs. Satish Kumar Prabhakarrao Borker I (2015) VPJ 228 (NC) प्रस्तुत की गई है। इन नजीरों में भी उपरोक्त नजीर के अनुसार विधि व्यवस्था प्रदत्त की गई है।
9. प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि वाहन को धोखे से कंपनी के कर्मचारियों द्वारा किराएदार बनकर प्राप्त किया गया है। वाहन को कब्जे में लेने से पूर्व बकाया राशि की मांग करते हुए कोई नोटिस नहीं दिया गया। धोखे से वाहन को अपने कब्जे में लेने के पश्चात् नोटिस दिया गया, जबकि परिवादिनी अंकन 1,00,000/- रूपये अदा करने के लिए हमेशा तैयारी रही और उसके द्वारा दो ड्राफ्ट भी बनवाए गए, यद्यपि यह ड्राफ्ट नटराज आटोमोबाइल्स के नाम से बन गए, जहां से वाहन क्रय किया गया था, परन्तु उनका आशय बकाया किस्तों का भुगतान करने का रहा है।
10. यह सही है कि हायर परचेज अनुबंध में जब तक सम्पूर्ण राशि अदा नहीं कर दी जाती तब तक वाहन का स्वामित्व विक्रेता के पास मौजूद रहता है। हायर परचेज अनुबंध दोनों पक्षकारों द्वारा निरस्त किया जा सकता है। प्रस्तावित क्रेता वाहन को वापस लौटाकर अनुबंध को निरस्त कर सकता है, जबकि वाहन मालिक शर्तों के उल्लंघन पर संविदा को भंग कर सकता है, परन्तु ऐसा केवल नोटिस देने के पश्चात् किया जा सकता है। प्रस्तुत केस में परिवादिनी ने सशपथपत्र साबित किया है कि कंपनी के कर्मचारी सवारी बनकर
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गाड़ी को फर्जी रूप से ले गए और विपक्षी संख्या-1 के शोरूम में ले जाकर खड़ा कर दिया और वाहन चालक को वाहन प्राप्ति की रसीद प्रदान कर दी गई। यदि प्रस्तावित क्रेता द्वारा समय पर किस्तों का भुगतान नहीं किया जा रहा था तब जिस व्यक्ति में वाहन का स्वामित्व निहित था यानि अपीलार्थीगण के लिए आवश्यक था कि वह प्रस्तावित क्रेता को इस आशय का एक नोटिस देते कि अनुबंध निरस्त कर दिया गया है और नोटिस देने के पश्चात् वाहन को अपने कब्जे में प्राप्त करते। बहस के दौरान अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता से पीठ द्वारा यह प्रश्न किया गया कि क्या वाहन प्राप्त करने से पूर्व प्रस्तावित क्रेता को कोई नोटिस दिया गया था, उनके द्वारा केवल दिनांक 20.10.2003 को दिए गए नोटिस का उल्लेख किया गया, इसमें उल्लेख है कि वाहन अधिग्रहीत कर लिया गया है और एक सप्ताह के अन्दर सम्पूर्ण राशि जमा नहीं कराई गई तब कानूनी कार्यवाही की जाएगी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अद्यतन नजीर मैसर्स मैगमा फाइनेन्स कारपोरेशन लिमिटेड बनाम राजेश कुमार तिवारी में व्यवस्था दी गई है कि यदि हायर परचेज अनुबंध के तहत क्रेता द्वारा नियमित रूप से किस्तों का भुगतान नहीं किया जाता है तब वाहन का कब्जा शारीरिक उपद्रव, आक्रमण, आपराधिक अभितास या गुण्डो को नियुक्त करते हुए प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस केस में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस बिन्दु पर विचार किया गया कि क्या वाहन प्राप्त करने से पूर्व नोटिस का तामीला कराया जाना आवश्यक है और यदि नोटिस तामीला नहीं कराया जाता तब उसके क्या परिणाम हैं ? माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि यदि अनुबंध में नोटिस दिया जाना अंकित है तब नोटिस आज्ञात्मक है। नोटिस वहां भी आवश्यक है जहां पक्षकारों के आचरण के अनुसार आवश्यक है और यदि अनुबंध में यह उल्लेख है कि यदि भाटक क्रेता किसी शर्त का उल्लंघन करता है, जिसके आधार पर कब्जा लिये जाने के लिए व्यवस्था दी गई है तब नोटिस दिया जाना आवश्यक नहीं है। पक्षकारों के मध्य
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निष्पादित अनुबंध की प्रतिलिपि पत्रावली पर अनेग्जर 2 के रूप में मौजूद है, इसकी शर्त संख्या-12 के अनुसार किसी उत्पाद के पुन: कब्जे में लिए जाने की व्यवस्था का उल्लेख है, परन्तु अपीलार्थीगण द्वारा वाहन का कब्जा सद्भावना के तहत प्राप्त नहीं किया गया है, बल्कि धोखा देकर और रिकवरी एजेंट के माध्यम से वाहन का कब्जा प्राप्त किया गया है, जो उपरोक्त वर्णित नजीर में दी गई व्यवस्था के विरूद्ध है। कब्जा प्राप्त करने के पश्चात् नोटिस देने का कोई वैधानिक महत्व नहीं है। परिवादिनी न केवल महिला है, अपितु समाज के बहुत गरीब तबके से ताल्लुक रखती है। उसके द्वारा दो ड्राफ्ट बनवाए गए, ड्राफ्ट में नाम का उल्लेख गलत होना ही उसकी अशिक्षा की ओर इशारा करता है, परन्तु उसकी सद्भावना को सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है, इसलिए प्रस्तुत केस में अपीलार्थीगण का कृत्य सद्भावी नहीं माना जा सकता। यदि उनके द्वारा परिवादिनी को नोटिस दिया जाता तब वह वाहन को सुपुर्द करने के बजाए उस राशि का सुगमता से प्रबंध कर सकती थी, जो उसने बाद में ड्राफ्ट बनवाते समय खर्च की है। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वार पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधिसम्मत है। अपील तदनुसार निरस्त होने योग्य है।
आदेश
11. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
12. अपील में उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे
13. उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2