राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-869/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, औरैया द्वारा परिवाद संख्या 93/2014 में पारित आदेश दिनांक 29.01.2015 के विरूद्ध)
सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया शाखा मिहौली, परगना, तहसील व जिला औरैया द्वारा शाखा प्रबन्धक ...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती सन्तोष कुमारी .................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री राम चरन चौधरी, सदस्य।
माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री जफर अजीज,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री शिव प्रकाश गुप्त,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07-10-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-93/2014 श्रीमती सन्तोष कुमारी बनाम सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, औरैया द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29.01.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध 2,30,000/-रुपया की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। इस धनराशि पर वादयोजन की तिथि
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02.05.2014 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा करे।''
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शिव प्रकाश गुप्त उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया की शाखा मिहौली में उसका बचत खाता संख्या-2289643222 प्रचलित है। मिहौली शाखा के कैशियर ने गबन किया है यह सूचना पाकर वह दिनांक 06.06.2012 को अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की शाखा मिहौली गयी और अपने खाते का मुआयना कराया तो पता चला किे उसके खाते से 2,27,000/-रू0 फर्जी तरीके से निकाल लिए गए हैं और बैंक कर्मचारियों ने बताया कि दिनांक 13.02.2012 को 1,23,000/-रू0 व दिनांक 24.02.2012 को 60,000/-रू0 निकाले गए हैं, जो पासबुक में दर्ज नहीं है। कर्मचारियों के कथनानुसार 1,83,000/-रू0 का गबन किया गया है, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के खाते से 2,27,000/-रू0 निकाला गया है।
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परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि पासबुक की प्रविष्टि के अनुसार उसका 2,29,701/-रू0 निकलता है। अत: उसने परिवाद प्रस्तुत कर उसकी अपनी जमा धनराशि दिलाए जाने की मांग की है और साथ ही क्षतिपूर्ति भी मांगा है।
अपीलार्थी बैंक की ओर से विपक्षीगण ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर स्वीकार किया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का खाता उनकी उपरोक्त शाखा में है, परन्तु जितनी धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी कह रही है उतनी धनराशि का गबन नहीं हुआ है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया कि बैंक के कैशियर गंगा प्रसाद ने गबन किया है। उनके विरूद्ध मुकदमा दायर हुआ है, जो लम्बित है।
उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के खाते से 2,27,000/-रू0 फर्जी विड्राल भरकर निकाला गया है। अत: जिला फोरम ने उक्त धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करने हेतु विपक्षीगण के बैंक को आदेशित किया है। साथ ही 2000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु व 1000/-रू0 वाद व्यय दिलाया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि दिनांक 13.02.2012 को 1,23,000/-रू0 और दिनांक 24.02.2012 को 60,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा विड्राल फार्म के द्वारा निकाला गया है। अत: जिला फोरम ने 2,30,000/-रू0 के भुगतान का आदेश जो बैंक को दिया है वह उचित नहीं है और निरस्त किए जाने योग्य है।
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बैंक ने उपरोक्त धनराशि का विड्राल गलत दिखाया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह विड्राल नहीं किया है और न विड्राल फार्म पर उसका हस्ताक्षर है। अत: जिला फोरम ने जो निर्णय और आदेश पारित किया है, वह उचित है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी बैंक ने प्रश्नगत विवादित धनराशि का विड्राल फार्म जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर यह साबित नहीं किया है कि वास्तव में यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के हस्ताक्षर से विड्राल फार्म के द्वारा निकाली गयी है। विड्राल फार्म अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रस्तुत न किए जाने से प्रतिकूल अवधारणा अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध बनती है। अत: जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/परिवादिनी की जमा धनराशि के भुगतान हेतु आदेशित किया है, वह उचित है। जिला फोरम ने जो 1000/-रू0 वाद व्यय दिलाया है वह भी उचित है। जिला फोरम ने जो 2000/-रू0 की धनराशि मानसिक कष्ट हेतु प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान की है वह उचित नहीं प्रतीत होती है क्योंकि स्वीकृत रूप से बैंक के कैशियर गंगा प्रसाद पर गबन का आरोप है। अत: ऐसी स्थिति में कर्मचारी द्वारा गबन की गयी धनराशि को अदा करने हेतु बैंक की Vicarious Liability बनती है। अत: हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को मानसिक कष्ट हेतु प्रदान की गयी 2000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि को अपास्त किया जाना उचित है।
इसके साथ ही उचित प्रतीत होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी को उसकी प्रश्नगत धनराशि पर ब्याज उसी दर पर दिया जाए जिस दर पर
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उसके खाते में जमा धनराशि पर ब्याज देय है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को मानसिक कष्ट हेतु प्रदान की गयी 2000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि अपास्त की जाती है तथा जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादिनी की जमा धनराशि 2,27,000/-रू0 उसके खाते में जमा धनराशि पर देय ब्याज की दर से परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्याज सहित प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करे। इसके साथ ही अपीलार्थी बैंक प्रत्यर्थी/परिवादिनी को जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी 1000/-रू0 वाद व्यय की धनराशि भी अदा करेगा।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (राम चरन चौधरी) (संजय कुमार)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1