मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता मंच प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद संख्या 47 सन 2006 श्रीमती रेहाना खातून बनाम मै0 अशोका लीलैण्ड में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.09.2006 के विरूद्ध)
अपील संख्या 2906 सन 2006
मै0 अशोका लीलेण्ड फाइनेंस कं0 एवं अन्य । .......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
श्रीमती रेहाना खातून ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य ।
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री अदील अहमद।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री उमेश कुमार शर्मा ।
दिनांक:-09.02.2021
श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता मंच प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद संख्या 47 सन 2006 श्रीमती रेहाना खातून बनाम मै0 अशोका लीलैण्ड फाइनेंस कं0लि0 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.09.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है । जिसके अन्तर्गत जिला उपभोक्ता मंच द्वारा विपक्षी/अपीलार्थी को निर्देशित किया है कि वह परिवादी से अंकन 3,92,354.00 रू0 वाहन को जबरिया खीचने के कारण अदा करे। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह भी आदेश दिया गया है कि निर्धारित अवधि में धनराशि अदा न करने 06 प्रतिशत वार्षिक भी ब्याज देय होगा तथा दिनांक 01.06.2006 से 500.00 रू0 प्रतिदिन के हिसाब से क्षतिपूर्ति अदा करने का भी आदेश भी दिया गया है।
वाद-पत्र के अनुसार वादिनी ने हायर परचेज स्कीम के अन्तर्गत वाहन संख्या यू0पी0 25 जी 9432 क्रय किया था। परिवादिनी तथा उसके पति को धोखे में रखकर विपक्षी ने उससे अंकन 39,000.00 रू0 अधिक वसूल लिया और दिनांक 01.01.06 की सायंकाल को बलपूर्वक वाहन खिचवा लिया जिसके बावत उसी दिन प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखायी गयी।
विपक्षी जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष उपस्थित नहीं हुए अत: उनके द्वारा परिवाद में उलिलखित किसी तथ्य का खण्डन नहीं किया गया ।
परिवादपत्र में वर्णित तथ्य एवं साक्ष्य के आधार पर उपरोक्त निर्णय पारित किया गया जिसे इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है और उसके द्वारा व्यापारिक उद्देश्यों के लिए वाहन क्रय किया गया था । यह भी उल्लेख किया गया कि परिवादी पर अपीलार्थी द्वारा दी गयी ऋण राशि अवशेष थी इसलिए नोटिस देने के पश्चात वाहन को कब्जे में लिया गया, किंतु जिला उपभोक्ता मंच द्वारा इन तथ्यों पर कोई विचार नहीं किया गया ।
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्को को सुना एवं प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का प्रथम तर्क यह है कि चूंकि परिवादी ने व्यापारिक उद्देश्य के लिए वाहन क्रय किया था, इसलिए वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। व्यापारिक उद्देश्य का तात्पर्य है कि परिवादी वाहन क्रय करने के पश्चात अन्य व्यक्तियों को वाहन बेंचने के कार्य में संलग्न हो। यदि कोई व्यक्ति अपने जीविकोपार्जन के उद्देश्य से वाहन क्रय करता है तब यह नही कहा जा सकता है कि परिवादी ने व्यापारिक उद्देश्य के लिए वाहन क्रय किया है, इसलिए अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क विधि-सम्मत नहीं है कि परिवादी ने व्यापारिक उद्देश्य के लिए वाहन क्रय किया था।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्न उद्धरण प्रस्तुत किए हैं :-
1- Messrs. Trojan &Co. V. RM.N.N. Nagappa Chettiar. AIR 1953 SC 235 (Relied)
2_ Krishna Priya Ganguly etc.etc.v. Universityof Lucknow & Ors. etc., AIR 1984 SC 186 (Relied)
3- Om Prakash & Ors. V. Ram Kumar& ors., AIR 1991 SC 409. (Relied)
4- Bharat Amratlal Kothari V. dosukhan Samadkhan Sindhi & Ors. ,VIII (2009)SLT 455=IV (2009) CCR 522 (sc) =IV (2009) DLT (Crl.) 673 (sc) = Air 2010 SC 475 (Relied)
5- Fertilizer Corportion of india LTD & Anr. V. Sarat Chandra Rath & Ors., AIR 1996 SC 2744 (Relied)
उक्त सभी नजीरों के देखने मात्र से स्पष्ट हो जाता है कि इन नजीरों के तथ्य यप्रस्तुत केस क तथ्यों से भिन्न हैं, इसलिए प्रस्तुत केस में लागू नहीं की जा सकती हैं।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी पर 67000.00 रू0 बकाया था। यह राशि अदा न करने के कारण, नोटिस देने के पश्चात वाहन को कब्जे में लिया गया है, लेकिन पत्रावली में ऐसी कोई नोटिस या उसको भेजने की डाक रसीद उपलब्ध नहीं है । अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील संख्या 682/06 में नोटिस की प्रति उपलब्ध है। यद्यपि निर्णय के उददेश्य से केवल उन्हीं दस्तावेजो को विचार में लिया जा सकता है जो पत्रावली में शामिल किए गए हों। परन्तु चूंकि अपील संख्या 682/06 भी पत्रावली भी इस पीठ के समक्ष आज उपलब्ध है, अत: इस पत्रावली का भी निर्णय लिखाते समय अवलोकन किया गया उसमें नोटिस की प्रति उपलब्ध है, परन्तु डाक रसीद उपलब्ध नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस प्रश्न का कोई सारवान उत्तर नहीं दिया गया कि यह कैसे माना जाए कि परिवादी पर नोटिस की तामीली हुई है ,जबकि डाक रसीद संलग्न नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि केवल यह दर्शित करने के उद्देश्य से कि वाहन जब्त करने से पूर्व परिवादी को नोटिस दी गयी, नोटिस की प्रति पत्रावली पर दाखिल कर दी गयी, जिससे किसी वैधानिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है । अत: माना जा सकता है कि परिवादी को नोटिस दिए वगैर ही वाहन अपने कब्जे में ले लिया गया । यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी द्वारा अंकन 2,90,000.00 का ऋण प्राप्त किया गया था और परिवादी द्वारा 04,30,000.00 रू0 जमा कराए गए है। दोनों पक्षों के मध्य विवाद यह है कि अंकन 01 लाख रू0 डीलर के पास जमा कराए गए थे, न कि उनके पास। मार्जिन मनी स्वतंत्र रूप से जमा करायी जाती है। यह धन ऋण का भाग नहीं माना जा सकता है।
परिवादी को यह स्थिति स्वीकार है कि 167,000.00 रू0 उसके समक्ष बकाया थे जब अपीलार्थी द्वारा वाहन बलपूर्वक अपने कब्जे में लिया गया। इसी प्रकार अपीलार्थी को मार्जिन मनी के रूप में दिए गए अंकन 01 लाख रू0 भी ऋण वापसी मद में शामिल नहीं किए जा सकते । इस प्रकार परिवादी पर अंकन 1,67,000.00 रू0 बकाया थे, अत: जिस राशि को अदा करने का आदेश दिया गया है, उसमें से 167,000.00 रू0 घटाते हुए अवशेष अंकन 2,25,354.00 रू0 की राशि वापस करने का आदेश पारित करना विधि-सम्मत होता।
जिला मंच ने अपने निर्णय में आगे लिखा है कि वाहन को जबरिया छीने जाने की तिथि 01.01.06 से 500.00 रू0 प्रति दिन के हिसाब से क्षतिपूर्ति अदा की जाए। इसके साथ ही 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अदा करने का भी आदेश दिया गया है। 06 प्रतिशत ब्याज एवं 500.00 रू0 प्रतिदिन की क्षतिपूर्ति यानि दो बार अपीलार्थी/विपक्षी को दण्डित करना अनुचित है। अत: 500.00 रू0 प्रतिदिन की क्षतिपूर्ति का आदेश अपास्त करना उचित प्रतीत होता है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.09.2006 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी केवल 2,25,354.00 रू0 तथा इस राशि पर परिवाद में पारित निर्णय के दिनांक 14.09.2006 से अंतिम अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज प्राप्त करेगा ।
पक्षकार इस अपील का अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(सुशील कुमार) (गोवर्धन यादव)
सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(Subol)