राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३१०/२००८
(जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-४७/२००४ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १५-१२-२००७ के विरूद्ध)
मारूति सुजूकी इण्डिया लिमिटेड (पूर्व में मारूति उद्योग लिमिटेड), ग्यारहवॉं तल, जीवन प्रकाश बिल्डिंग, २५, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली-११०००१.
............. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
१. श्रीमती रीता जैन पत्नी श्री सतेन्द्र कुमार जैन, निवासी २१३/५, सिविल लाइन्स, स्टेशन रोड, बरेली (यू.पी.)। ............ प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
२. कविशा आटोमोबाइल्स प्रा0लि0, ०४ किलोमीटर रामपुर रोड, सी0बी0 गंज, बरेली (यू.पी.)।
३. डिप्टी जनरल मैनेजर (सर्विस-३), सर्विस डिवीजन, मारूति उद्योग लिमिटेड, पालम गुड़गॉंव रोड, गुड़गॉंव (हरियाणा)।
४. मैनेजर, मारूति उद्योग लिमिटेड, रीजनल आफिस सेण्ट्रल, ग्राउण्ड फ्लोर, बी-१ ब्लॉक, पिकअप बिल्डिंग, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ (यू.पी.)।
............ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
अपील सं0-५२/२००८
(जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-४७/२००४ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १५-१२-२००७ के विरूद्ध)
श्रीमती रीता जैन पत्नी श्री सतेन्द्र कुमार जैन, निवासी २१३/५, सिविल लाइन्स, स्टेशन रोड, बरेली, यू.पी.। ............ अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम
१. मारूति उद्योग लिमिटेड (फैक्ट्री) पालम गुड़गॉंव रोड, गुड़गॉंव, हरियाणा, रजिस्टर्ड कार्यालय ग्यारहवॉं तल, जीवन प्रकाश, २५, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
२. डिप्टी जनरल मैनेजर, सर्विस डिवीजन, मारूति उद्योग लिमिटेड, पालम गुड़गॉंव रोड, गुड़गॉंव, हरियाणा।
३. मैनेजर, मारूति उद्योग लिमिटेड, रीजनल आफिस सेण्ट्रल, ग्राउण्ड फ्लोर, बी-ब्लॉक, पिकअप बिल्डिंग, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ यू.पी.।
४. कविशा मोटर्स प्रा0लि0, ०४ किलोमीटर रामपुर रोड, सी0बी0 गंज, बरेली, यू.पी. द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर। ............ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी मारूति सुजुकी इण्डिया लि0 की ओर से उपस्थित: श्री वी0एस0 बिसारिया
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
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प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से उपस्थित : श्री एन0एन0 पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-३ व ४ की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
दिनांक :- १७-०५-२०१८.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपीलें, जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-४७/२००४ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १५-१२-२००७ के विरूद्ध योजित की गई हैं। दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित की गई हैं। अत: दोनों अपीलें साथ-साथ निर्णीत की जा रही हैं। अपील सं0-३१०/२००८ अग्रणी होगी।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने एक आल्टो कार बी0एक्स-एच0आर0-२९/के0/२४७४ अल्फा आटोमोबाइल्स १४/५, मथुरा रोड, फरीदाबाद, हरियाणा से ३,५२,३९१.७८ रू० में दिनांक २०-०९-२००२ को क्रय की थी। क्रय करने के समय से ही इस कार में उत्पादन दोष था। वाहन का ए0सी0 व एवरेज ठीक नहीं था। सस्पेंशन खराब था। प्रथम फ्री सर्विस में फ्रण्ट ड्राइव साफ्ट एसेम्बली बदला गया था। दिनांक ०१-०८-२००३ को ल्यूकस सेल्फ सोलनाइट स्विच बदला गया। कार प्रत्येक गेयर में बिना एक्सीलेटर दबाए चलती थी। चौथी पेड सर्विस में फ्रण्ट सपोर्ट स्ट्रट बदला गया। कुछ ही महीनों बाद प्रश्नगत वाहन के आगे के टायर खराब होने लगे। परिवादिनी कार को प्रत्यर्थी सं0-४ अपीलार्थी द्वारा अधिकृत सर्विस सेण्टर में निरीक्षण हेतु ले गई जहॉं उन्होंने बताया कि टायर में कोई क्षति नहीं हुई है। प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा दिए गये आश्वासन के आधार पर परिवादिनी यात्रा पर गई किन्तु वापस आने पर आगे के टायर गम्भीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गये। प्रत्यर्थी/परिवादिनी तत्काल प्रत्यर्थी सं0-४ के पास गई तथा इस सन्दर्भ में शिकायत की जिन्होंने कार में कोई त्रुटि होना नहीं बताया तथा कार को चौथी सर्विस हेतु छोड़ने के लिए कहा किन्तु परिवादिनी इस पर सहमत नहीं हुई तथा अपीलार्थी से इस सम्बन्ध में शिकायत करने को कहा जिस पर प्रत्यर्थी सं0-२ के कर्मचारी शान्त हो गये तथा उनके
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द्वारा आश्वस्त किया गया कि कार की त्रुटियों को सर्विस के मध्य ठीक किया जायेगा, जिस पर परिवादिनी ने सर्विस हेतु वाहन छोड़ दिया किन्तु जॉब कार्ड में इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया, बल्कि समस्या के रूप में जॉब कार्ड में चेसिस चेक उल्लिखित कर दिया गया। परिवादिनी द्वारा इस सन्दर्भ में ध्यान दिलाए जाने पर उसे सूचित किया गया कि टाइपिंग मिस्टेक के कारण यह अंकित हो गया है बाद में हाथ से यह समस्या जोड़ दी जायेगी किन्तु सर्विसिंग के बाद कार प्राप्त होने पर परिवादिनी को ज्ञात हुआ कि जॉब कार्ड में टायर खराब होने का तथ्य उल्लिखित नहीं है। परिवादिनी द्वारा इस तथ्य के विषय में सूचित किए जाने पर उसे सूचित किया गया कि व्हील एलाइनमेण्ट सही न होने के कारण टायर खराब हो रहे हैं। परिवादी द्वारा सहमति न दिए जाने के कारण व्हील एलाइनमेण्ट चेक नहीं किया गया। परिवादी से २,०२०.३९ रू० बसूला गया। टायर की खराबी को परिवादिनी की लापरवाही के कारण होना बताया गया। परिवादिनी जब कार ले कर जा रही थी तब प्रत्यर्थी सं0-२ के मैकेनिक जिसके द्वारा सर्विस की गई द्वारा बताया गया कि चेसिस के झुके होने के कारण टायर खराब हो रहे हैं। तदोपरान्त परिवादिनी कार को दामजी व्हील्स, ४४, सिविल लाइन्स, अयूब खॉं क्रॉसिंग, बरेली, यू0पी0 में टायर क्षति की समस्या के कारण की जानकारी हेतु ले गई। जहॉं पर जांच के उपरान्त यह पाया गया कि कार की चेसिस बायीं तरफ झुकी हुई है जिसके कारण एलाइनमेण्ट खराब हो गया है तथा टायर खराब हो रहे हैं। वास्तव में प्रत्यर्थी सं0-२ के कर्मचारियों ने चतुराईपूर्वक सस्पेंशन के बायीं तरफ एक बोल्ट लगा दिया था जिससे चेसिस के बायीं तरफ के झुकाव को निष्प्रभावी किया जा सके तथा एलाइनमेण्ट सही किया जा सके। परिवादिनी के चतुर्थ पेड सर्विस के बिल में बोल्ट का ६.९२ रू० भुगतान प्राप्त किया गया। तदोपरान्त परिवादिनी कार को भीम मोटर्स सिविल लाइन्स, चोपला रोड, बरेली ले गई जो एक राजकीय मान्यता प्राप्त वर्कशॉप है तथा मारूति गाडि़यों के सम्बन्ध में विशेषज्ञ है। उनके द्वारा भी इस तथ्य की पुष्टि की गई कि गाड़ी का चेसिस झुका हुआ है। परिवादिनी को यह बताया गया कि चेसिस का झुकाव कार में उत्पादन त्रुटि के कारण अथवा किसी गम्भीर दुर्घटना के कारण होना सम्भव है। क्योंकि परिवादिनी की कार कभी दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुई, अत: उत्पादन त्रुटि के कारण ही
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चेसिस में यह झुकाव आया। तत्काल परिवादिनी प्रत्यर्थी सं0-२ के पास गई जिसके कर्मचारियों ने बोल्ट के विषय में अनभिज्ञता व्यक्त की। प्रत्यर्थी सं0-२ के कर्मचारियों द्वारा यह भी कहा गया कि खराब ड्राइविंग तथा खराब सड़क होने के कारण भी चेसिस में झुकाव आ सकता है। प्रत्यर्थी सं0-२ के द्वारा यह सूचित किया गया कि वह परिवादिनी द्वारा भुगतान किए जाने पर चेसिस सीधी करा सकते हैं। तदोपरान्त परिवादिनी ने दिनांक १४-०५-२००४ को अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थीगण को नोटिस भेजी किन्तु नोटिस का कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। दिनांक २२-०५-२००४ प्रत्यर्थी सं0-२ का एक पत्र दिनांकित २०-०५-२००४ को प्राप्त हुआ जिसके द्वारा उन्होंने वाहन के निरीक्षण के उपरान्त कोई त्रुटि होने की स्थिति में त्रुटि निवारण के लिए तैयार होना सूचित किया। इस पत्र की भाषा से यह स्पष्ट था कि प्रत्यर्थी सं0-२ परिवादिनी पर दोष मढ़ना चाहता था। दिनांक २०-०५-२००४ को प्रश्नगत वाहन का क्लच पैडल बहुत सख्त हो जाने के कारण परिवादिनी तथा उसका परिवार दुर्घटनाग्रस्त होने से बचा जिसकी सूचना परिवादिनी ने पंजीकृत पत्र दिनांकित २१-०५-२००४ द्वारा प्रेषित की तथा यह भी सूचित किया कि ऐसी स्थिति में परिवादिनी ने कार का उपयोग बन्द कर दिया है और यह कार उसके घर में खड़ी है। इस सन्दर्भ में परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0-२ को टेलीफोन से भी सूचित किया तथा अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थीगण को पंजीकृत डाक से नोटिस भी भेजी किन्तु नोटिस का कोई जबाव प्राप्त नहीं हुआ। परिवाद योजित किए जाने से १० दिन पूर्व परिवादिनी को एक पत्र दिनांकित २५-०५-२००४ प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से इस आशय का प्राप्त हुआ कि शीघ्र ही वह परिवादिनी की कार का निरीक्षण करायेंगे तथा परिवादिनी की समस्या का निराकरण किया जायेगा किन्तु इस सन्दर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की गई। पत्र दिनांकित २५-०५-२००४ लगभग एक माह बाद परिवादिनी को प्राप्त हुआ। अत: अपीलार्थी एवं अन्य प्रत्यर्थीगण द्वारा सेवा में त्रुटि कारित किया जाना अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच के समक्ष कार के मूल्य की अदायगी अथवा प्रश्नगत कार बदलकर दूसरी नई कार दिलाए जाने तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया।
अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-३ व ४ की ओर से संयुक्त प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें उनके द्वारा परिवाद असत्य कथनों पर योजित किया जाना अभिकथित
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किया गया। परिवाद में अल्फा आटोमोबाइल्स १४/५, मथुरा रोड, फरीदाबाद, हरियाणा को पक्षकार न बनाए जाने का दोष होना बताया गया। उनके द्वारा यह भी कहा गया कि प्रश्नगत वाहन के सन्दर्भ में जारी की गई वारण्टी के अन्तर्गत अपीलार्थी का दायित्व वारण्टी अवधि के मध्य यदि आवश्यक हुआ तो सम्बन्धित त्रुटिपूर्ण पार्ट को बिना भुगतान के बदलने का है। प्रश्नगत कार दिनांक २०-०९-२००२ को क्रय की गई। दिनांक १९-०९-२००४ तक कार लगभग २०,००० कि0मी0 चल चुकी थी। इस बीच में प्रत्यथी/परिवादिनी की कार की सर्विसिंग कराई गई। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने वाहन में कोई गम्भीर त्रुटि नहीं बताई। वारण्टी अवधि के मध्य परिवादिनी की समस्या का निराकरण वारण्टी की शर्तों के आलोक में किया गया। अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ द्वारा सेवा में कोई त्रुटि न किया जाना अभिकथित किया गया।
प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा अलग प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। प्रत्यर्थी सं0-४ ने स्वयं को अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया जाना अभिकथित किया। यह भी अभिकथित किया कि उसके द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई है।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय दिनांकित १५-१२-२००७ द्वारा परिवादिनी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया कि वह परिवादिनी का सम्बन्धित वाहन उसी मेक गाड़ी द्वारा मय वारण्टी सहित आदेश की तिथि से एक माह के भीतर बदल दे अन्यथा परिवादिनी का वाहन लेकर वाहन का क्रय मूल्य ३,५२,३९१.७८ रू० वापस करे। ऐसा न करने पर उक्त धनराशि पर आदेश की तिथि से ताअदायगी ०७ प्रतिशत ब्याज देय होगा। इसके अतिरिक्त यह भी निर्देशित किया गया कि परिवादिनी २०००/- रू० वाद व्यय के रूप में भी अपीलार्थी से प्राप्त करेगी।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपील सं0-३१०/२००८ प्रश्नगत निर्णय को अपास्त किए जाने हेतु योजित की गई तथा अपील सं0-५२/२००८ विद्वान जिला मंच द्वारा प्रदान किए गये अनुतोष में वृद्धि हेतु योजित की गई।
हमने अपीलार्थी मारूति सुजूकी इण्डिया लि0 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता एवं प्रत्यर्थी सं0-२ की कविशा आटोमोबाइल्स प्रा0लि0 ओर से विद्वान अधिवक्ता
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श्री एन0एन0 पाण्डेय के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-३ व ४ की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0बिसारिया द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अल्फा आटोमोबाइल्स १४/५, मथुरा रोड, फरीदाबाद, हरियाणा से क्रय किया था। परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी ने अनेक तथ्य एवं आश्वासन अल्फा आटोमोबाइल्स द्वारा प्रस्तुत किया जाना अभिकथित किया है। क्रय संविदा प्रत्यर्थी/परिवादिनी एवं अल्फा आटोमोबाइल्स के मध्य निष्पादित हुई। ऐसी परिस्थिति में अल्फा आटोमोबाइल्स भी परिवाद के उचित निस्तारण हेतु आवश्यक पक्षकार था किन्तु परिवादिनी ने अल्फा आटोमोबाइल्स को पक्षकार नहीं बनाया। अत: परिवाद में आवश्यक पक्षकार न बनाए जाने का दोष था।
उल्लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी ने प्रश्नगत वाहन में उत्पादन दोष बताते हुए तथा अपीलार्थी द्वारा अधिकृत सर्विस सेण्टर द्वारा सेवा में त्रुटि किया जाना अभिकथित करते हुए परिवाद योजित किया। प्रश्नगत वाहन में कथित किसी उत्पादन दोष के सन्दर्भ में वाहन विक्रेता/सम्बन्धित डीलर उत्तरदायी नहीं माना जा सकता और न ही प्रत्यर्थी सं0-२ लगायत ४ द्वारा सेवा में किसी कमी के सन्दर्भ में सम्बन्धित वाहन विक्रेता को उत्तरदाई माना जा सकता। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने सम्बन्धित वाहन विक्रेता के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा है। ऐसी परिस्थिति में सम्बन्धित वाहन विक्रेता प्रश्नगत परिवाद के निस्तारण हेतु आवश्यक पक्षकार होना नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवकत द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन की सर्विसिंग के मध्य परिवादिनी ने वाहन में उत्पादन दोष का आरोप नहीं लगाया। वाहन लगभग १९४५० कि0मी0 चलने के बाबजूद कोई महत्वपूर्ण दोष परिवादिनी द्वारा नहीं बताया गया। आधारहीन आरोपों के आधार पर प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
परिवाद की प्रति अपीलार्थी द्वारा दाखिल की गई है जिसके अवलोकन से यह
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विदित होता है कि परिवादिनी ने प्रश्नगत वाहन के क्रय करने के उपरान्त ०३ फ्री सर्विस के मध्य तथा चौथी भुगतानयुक्त सर्विस के मध्य प्रश्नगत वाहन में अनेक कमियॉं बताईं थीं। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि वारण्टी अवधि के मध्य प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने प्रश्नगत वाहन में जो कमियॉं बताईं उनका निराकरण परिवादिनी की सन्तुष्टि पर प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा किया गया। मात्र इस आधार पर कि वारण्टी अवधि के मध्य प्रश्नगत वाहन में कुछ कमियॉं बताई गईं उनका निराकरण वारण्टी की शर्तों के अनुसार किया गया। प्रश्नगत वाहन में उत्पादन दोष नहीं माना जा सकता।
अपील के आधारों में स्वयं अपीलार्थी द्वारा यह स्वीकार किया गया कि दिनांक ०१-०८-२००३ को प्रश्नगत वाहन का ल्यूकस सेल्फ सोलेनाइड स्विच बदला गया। दिनांक १९-०२-२००४ को वाहन सर्विसिंग हेतु लाया गया तथा वाहन में बायीं ओर शोर की शिकायत, एवरेज कम होने की शिकायत, चेसिस जांच, ब्रेक जांच एवं ऑयल फिल्टर चेन्ज की शिकायत बताई गईं जिनका निराकरण वारण्टी की शर्तों के अनुसार किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि यदि प्रश्नगत वाहन में कोई उत्पादन दोष होता तो तो यह वाहन १५ माह में लगभग २०,००० कि0मी0 नहीं चला होता।
उल्लेखनीय है कि १५ माह में २०,००० कि0मी0 चार पहिया वाहन का चलना अधिक नहीं माना जा सकता। साथ ही यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि मात्र वाहन का चलना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि वाहनका का बिना किसी त्रुटि एवं असुविधा के चलना महत्वपूर्ण तथ्य होगा। परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी ने इस अवधि के मध्य वाहन के संचालन में समय-समय पर हुई असुविधा का उल्लेख किया है तथा इस असुविधा से प्रत्यर्थी सं0-२ को निरन्तर अवगत भी कराया जाता रहा। अत: वाहन असुविधापूर्वक संचालित किए जाने के बाबजूद मात्र इस आधार पर कि यह वाहन १५ माह में लगभग २०,००० कि0मी0 चल गया, यह स्वत: प्रमाणित नहीं माना जा सकता कि वाहन में कोई उत्पादन दोष नहीं था।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रश्नगत वाहन की कमियों के सन्दर्भ में जिला मंच के समक्ष परिवादिनी द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया
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तथा शपथ पत्र के साथ साक्ष्य के रूप में संलग्नक भी सम्मिलित किए गये। स्वयं अपीलार्थी ने अपील मेमो के साथ दिनांक २४-०५-२००३ एवं १९-०२-२००४ को कराई गई सर्विसिंग से सम्बन्घित जॉब कार्ड की फोटोप्रति दाखिल की है जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा किए गये पृष्ठांकन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत वाहन में दोषों से प्रत्यर्थी सं0-२ को अवगत कराया गया तथा सर्विसिंग के समय स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा यह तथ्य पृष्ठांकित किया गया कि दोषों के निराकरण का निर्धारण वाहन के कुछ दिन प्रयोग बाद ही होगा। अत: अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार किए जाने योग्य नहीं माना जा सकता कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने वारण्टी अवधि के मध्य वाहन में किसी दोष की कोई शिकायत अपीलार्थी से नहीं की।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि समय-समय पर अनेक पार्ट्स बदले गये। वाहन के संचालन में अगले दो पहियों के टायर क्षतिग्रस्त होना प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अभिकथित किया गया जिसे अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा लापरवाही से वाहन चलाए जाने के कारण होना बताया। इस प्रकार प्रश्नगत वाहन के संचालन में आगे के दोनों टायर क्षतिग्रस्त होने का तथ्य निर्विवाद है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा सामने के दोनों टायरों के क्षतिग्रस्त होने का सन्तोषजनक निदान उपलब्ध न कराए जाने पर उसने वाहन का निरीक्षण दामजी व्हील्स तथा भीम मोटर्स बरेली से कराया। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि इस सन्दर्भ में साक्ष्य प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई एवं विशेषज्ञ अमित गुप्ता का शपथ पत्र भी जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिन्होंने वाहन के निरीक्षण के उपरान्त यह मत व्यक्त किया कि वाहन के अगले पहिए के एलाइनमेण्ट में दोष चेसिस में आगे की ओर झुकाव के कारण है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह भी कथन है कि चेसिस में आगे की ओर से झुकाव को छिपाने हेतु प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा वाहन में बोल्ट लगाया गया और उसका भुगतान भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी से प्राप्त किया गया।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत की गई विशेषज्ञ आख्या स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है क्योंकि श्री
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अमित गुप्ता केन्द्र/राज्य सरकार या किसी कानून के अन्तर्गत घोषित विशेषज्ञ नहीं हैं और न ही उनकी ओर से कोई लाइसेंस दाखिल किया गया। उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी ने अपील के साथ श्री अमित गुप्ता द्वारा प्रस्तुत किए गये शपथ पत्र तथा उनकी आख्या से सम्बन्धित अभिलेख दाखिल नहीं किए हैं। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि श्री अमित गुप्ता ने शपथ पत्र द्वारा स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वह एक प्रशिक्षित आटोमोबाइल इंजीनियर ही नहीं हैं बल्कि जनरल इंश्योरेंस कं0 के सर्वेयर भी हैं तथा लगभग १७ वर्षों से उनका वर्कशॉप सिविल लाइन्स चौपला रोड, बरेली स्थित सरकारी अधिकृत वर्कशॉप है। अपीलार्थी द्वारा श्री अमित गुप्ता के इस शपथ पत्र के विरूद्ध कोई प्रतिशपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया। ऐसी परिस्थिति में श्री अमित गुप्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य को विश्वसनीय मान कर हमारे विचार से विद्वान जिला मंच द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने अपीलार्थी की ओर से श्री विक्रान्त सिंह एवं श्री आनन्द अमिताभ के शपथ पत्रों पर ध्यान न दे कर त्रुटि की है। उल्लेखनीय है कि श्री विक्रान्त सिंह एवं श्री आनन्द अमिताभ द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों की प्रति अपील के साथ दाखिल नहीं की गई है और न ही अपील के आधारों में यह स्पष्ट किया गया है कि श्री विक्रान्त सिंह एवं श्री आनन्द अमिताभ की योग्यता क्या है। ऐसी परिस्थिति में श्री विक्रान्त सिंह एवं श्री आनन्द अमिताभ द्वारा प्रस्तुत किए गये शपथ पत्रों को विशेष महत्व का न मानते हुए हमारे विचार से विद्वान जिला मंच द्वारा कोई त्रुटि नहीं की गई है।
जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई साक्ष्य से अपीलार्थी द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि प्रश्नगत वाहन के चेसिस में उत्पादन दोष होने के कारण चेसिस में आगे की ओर झुकाव है और इस उत्पादन दोष के कारण प्रश्नगत वाहन के आगे के टायर क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। परिवादिनी द्वारा इस त्रुटि की ओर अपीलार्थी के अधिकृत सर्विस सेण्टर प्रत्यर्थी सं0-२ का ध्यान दिलाए जाने के बाबजूद प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा निराकरण नहीं किया गया बल्कि टायर की क्षति के लिए स्वयं परिवादिनी को दोषी माना गया। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष के प्रश्नगत
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वाहन में उत्पादन दोष था, त्रुटिपूर्ण नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा मारूति उद्योग लि0 बनाम सुशील कुमार गबगोत्रा, १ (२००६) सीपीजे ३ (एससी) के मामले में दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि इस निर्णय में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वारण्टी की शतें पक्षकारों पर बाध्यकारी होती हैं। वारण्टी की शर्तों के अनुसार निर्माता का मात्र यह दायित्व होता है कि वारण्टी अवधि के मध्य दोषपूर्ण पार्ट्स की आवश्यकतानुसार मरम्मत की जाए अथवा बदले जाऐं। ऐसी परिस्थिति में वाहन के मूल्य का भुगतान किया जाना अथवा वाहन को बदल कर दूसरा वाहन दिए जाने के सन्दर्भ में पारित आदेश त्रुटिपूर्ण है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने इस सन्दर्भ में मारूति सुजूकी इण्डिया लि0 बनाम डॉ0 कोनेरू सत्य किशरे व अन्य, १ (२०१८) सीपीजे १५७ (एनसी) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित इस निर्णय का हमने अवलोकन किया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत उपरोक्त मामले के तथ्य प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों से भिन्न हैं। प्रस्तुत प्रकरण में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत वाहन में इंगित त्रुटियों में से चेसिस में बताई गई त्रुटि के अतिरिक्त अन्य त्रुटियों का निराकरण अपीलार्थी के अधिकृत सर्विस सेण्टर प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा वारण्टी की शर्तों के अधीन किया गया। प्रश्नगत वाहन प्रश्नगत परिवाद योजित किए जाने से पूर्व लगभग २०,००० कि0मी0 चल चुका था तथा परिवाद योजित किए जाते समय यह वाहन प्रत्यर्थी/परिवादिनी की अभिरक्षा में ही था। ऐसी परिस्थिति में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत वाद के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान नहीं किया जा सकता। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित मारूति उद्योग लि0 बनाम सुशील कुमार गबगोत्रा, १ (२००६) सीपीजे ३ (एससी) के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय के आलोक में प्रश्नगत वाहन के बदले जाने अथवा वाहन के मूल्य का पूर्ण भुगतान कराए जाने हेतु
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निर्देशित किया जाना न्यायसंगत नहीं होगा।
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अपीलार्थी द्वारा की गई सेवा में त्रुटि हेतु प्रत्यर्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के रूप में कितनी धनराशि दिलायी जाय।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-२ एवं अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत वाहन के निराकरण हेतु परिवादिनी को वाहन प्रस्तुत करने हेतु कहा गया किन्तु परिवादिनी ने स्वयं वाहन उपलब्ध नहीं कराया। प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि परिवाद योजित किए जाने से पूर्व परिवादिनी द्वारा दिनांक १४-०५-२००४, २१-०५-२००४ एवं ०३-०६-२००४ को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजे गये जिनमें से प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा प्रेषित जबाव नोटिस दिनांकित २५-०५-२००४ द्वारा परिवादिनी को अवगत कराया गया कि मारूति उद्योग लि0 द्वारा एक इंजीनियर वाहन का निरीक्षण करने हेतु तथा वाहन के दोष के निराकरण हेतु शीघ्र भेजा जायेगा किन्तु ऐसा नहीं किया गया। प्रश्नगत निर्णय में जिला मंच द्वारा यह भी उल्लिखित किया गया है कि परिवादिनी ने परिवाद दिनांक १६-०४-२००४ को योजित किया तथा अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी सं0-२ लगायत ४ द्वारा दोष निवारण हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया जब परिवाद अन्तिम अवस्था में पहुँचा तब इस हेतु याचना की गई जिसे जिला मंच ने सदभावी नहीं माना। जिला मंच का यह निष्कर्ष हमारे विचार से मामले की परिस्थितियों के आलोक में त्रुटिपूर्ण नहीं है।
प्रश्नगत विवाद वर्ष २००४ से लम्बित है। ऐसी परिस्थिति में लगभग १४ वर्षों बाद वाहन की मरम्मत हेतु निर्देशित किए जाने का कोई औचित्य नहीं होगा और न ही सम्भवत: अब इसकी आवश्यकता शेष रह गई हो। अपीलार्थी द्वारा की गई सेवा में त्रुटि के कारण निश्चित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रश्नगत वाहन के सुविधाजनक उपयोग से वंचित रहना पड़ा होगा एवं आर्थिक व मानसिक रूप से भी प्रताड़ना झेलनी पड़ी होगी। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आलोक में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बतौर क्षतिपूर्ति ०१.०० लाख रू० दिलाया जाना हमारे विचार से न्यायोचित होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने तथा जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय/आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।
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जहॉं तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा योजित अपील सं0-५२/२००८ का प्रश्न है, अपील सं0-३१०/२००८ के निस्तारण के सन्दर्भ में व्यक्त किए गए विचारों एवं निष्कर्षों के आलोक में अपील सं0-५२/२००८ निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील सं0-३१०/२००८ आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा अपील सं0-५२/२००८ निरस्त की जाती हैं। जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-४७/२००४ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १५-१२-२००७ अपास्त किया जाता है। परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय की तिथि से ४५ दिन के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को ०१.०० लाख रू० बतौर क्षतिपूर्ति अदा करे। क्षतिपूर्ति की इस धनराशि पर परिवाद सं0-४७/२००४ योजित किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी से ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज भी प्राप्त करने की अधिकारी होगी। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी १०,०००/- रू० प्रत्यर्थी/परिवादिनी को वाद व्यय के रूप में उपरोक्त अवधि में ही अदा करे।
इस निर्णय की मूल प्रति अपील सं0-३१०/२००८ में रखी जाय तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-५२/२००८ में रखी जाय।
इन अपीलों का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.