(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2294/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-228/2005 में पारित निणय/आदेश दिनांक 19.11.2009 के विरूद्ध)
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, जी.टी. रोड मॉडल टाऊन सेकेण्ड गाजियाबाद, तहसील व जिला गाजियाबाद द्वारा ब्रांच मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती राजबीरी पत्नी स्व0 इन्द्रपाल, निवासिनी ग्राम व पोस्ट सदरपुर, जिला गाजियाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्द तिलहरी।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 18.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-228/2005, श्रीमती राजबीरी बनाम शाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला आयोग, गाजियाबाद द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 19.11.2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने बीमाधारक की मृत्यु पर बीमित राशि अंकन 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) 8 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति इन्द्रपाल ने बीमा निगम से दिनांक 28.3.2003 को अंकन 1,00,000/-रू0 की एक बीमा पासिली प्रात्थ की थी। सभी प्रकार की चिकित्सीय जांच के पश्चात बीमा पालिसी जारी की गई थी। दिनांक 17.12.2003 को फैक्ट्री ड्यूटी से लौटते समय अचानक तबियत खराब होने के बाद बीमाधारक की मृत्यु हो गई। परिवादिनी उपरोक्त पालिसी में नामिनी है, इसलिए बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, जो दिनांक 18.2.2005 को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि बीमाधारक द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं छिपाई गयीं, जबकि बीमा पालिसी कराते समय इन्द्रपाल किसी भी बीमारी से पीडित नहीं थे और मृत्यु की तिथि को भी वह ड्यूटी करके वापस अपने घर लौटे थे।
4. बीमा निगम का कथन है कि बीमाधारक ने स्वास्थ्य के संबंध में समुचित जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। पिछले 5 वर्षों में कार्य के दौरान अनुपस्थित रहने के प्रश्न का गलत उत्तर दिया गया, जबकि वह दिनांक 4.2.2003 से दिनांक 7.3.2003 तक लगातार अनुपस्थित रहे थे। अत: तथ्यों को छिपाकर पालिसी प्राप्त की गई है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया कि अवकाश पर रहने के दौरान किसी प्रकार की बीमारी का इलाज कराने का कोई सबूत नहीं है, इसलिए बीमा क्लेम देय है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि पिछले 5 वर्षों के दौरान अवकाश पर रहने के संबंध में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर न देना भी तथ्यों को छिपाना है। अपीलार्थी, बीमा निगम की ओर से इसी पीठ द्वारा अपील संख्या-1002/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.7.2024 की प्रति प्रस्तुत की गई, इस निर्णय को पारित करते समय यह पाया गया था कि बीमाधारक दिनांक 21.5.1999 से दिनांक 24.5.1999, दिनांक 12.8.1999 एवं दिनांक 9.1.2000 को मेडिकल अवकाश पर रहा था तथा डा0 द्वारा मेडिकल प्रमाण पत्र भी जारी किए गए थे, इसलिए माना गया था कि बीमाधारक द्वारा बीमारी से संबंधित तथ्य को छिपाया गया और बीमारी का इलाज कराने के लिए अवकाश लिया गया और अवकाश के संबंध में तथ्य को छिपाया गया, परन्तु प्रस्तुत केस में बीमाधारक एक फैक्ट्री में कार्यरत था न कि किसी राजकीय संस्थान में। फैक्ट्री में कार्यरत रहने के दौरान जो अवकाश लिया गया, उसमें किसी बीमारी का इलाज कराने का या मेडिकल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का कोई सबूत मौजूद नहीं है। अत: स्वंय इस पीठ द्वारा दिए गए निर्णय की कोई सुसंगता प्रस्तुत केस में लागू नहीं है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2